दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान

SHARE:

दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान अनुवाद एक जटिल कर्म है और आशु अनुवाद अथवा दुभाषिया कर्म जटिलतर। आशु अनुवाद एक प्रकार की परकाया

दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान


नुवाद एक जटिल कर्म है और आशु अनुवाद अथवा दुभाषिया कर्म जटिलतर। आशु अनुवाद एक प्रकार की परकाया प्रवेश की विद्या है, जिसमें आशु-अनुवादक (दुभाषिक) को वक्ता की मात्र भाषा ही नहीं समझनी होती वरन् उसके वक्तव्य के मूल अभिप्राय, उसके अभीष्ट अर्थ, उसके अंतर्मन की वस्तुगत एवं भावगत स्थिति को समझकर लक्ष्यभाषा में तुरन्त अनुवाद करना होता है। वक्ता की वक्तृत्व-शैली, उसकी आंगिक चेष्टाओं, उसके हास-परिहास का यथावत् अनुकरण करते हुए भाषान्तरण प्रस्तुत करना ही एक अच्छे दुभाषिया की कसौटी मानी जाती है। वक्ता का अभिप्रेत अर्थ अपनी सम्पूर्ण वक्तृता के साथ, वाक्-शिल्पगत समग्र भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत करना ही दुभाषिया का ध्येय होता है, होना भी चाहिए।
 
दुभाषिया की सीमा सर्वज्ञता का आग्रह भी है।कोई व्यक्ति सर्वज्ञ नहीं हो सकता। कोई भी भाषाविद् ज्ञान-विज्ञान, प्रौद्योगिकी, मानविकी, समाज-विज्ञान, विधि, वाणिज्य आदि अन्यान्य अनुशासनों की वैज्ञानिक, तकनीकी तथा पारिभाषिक शब्दावली का जानकार नहीं हो सकता, दुभाषिया भी नहीं। किन्तु उससे आशा यही की जाती है कि मूल वक्ता के वक्तव्य में अनुस्यूत साहित्य तथा साहित्येत्तर संदर्भों के लिए लक्ष्य-भाषा में तुरंत सटीक शब्द-विधान करे, जो प्रायः असंभव होता है। अतः दुभाषिया या तो मूल से कतरा जाता है और श्रोताओं को वाग्जाल में उलझाकर तालियाँ पिटवाता है अथवा वक्तव्य के मूलाशय को ही भाषान्तरित कर देता है और विशिष्ट पारिभाषिक शब्दावली छोड़ देता है। वस्तुतः दूसरी स्थिति ही दुभाषिया के लिए सुरक्षित होती है।
 

दुभाषिया प्रविधि का स्वरूप

भाषण की व्यापक समझ के लिए आशु-भाषान्तरकार को भाषण को ध्यान से सुनना, समझना और पूर्वानुमान के आधार पर भाषण के अग्र अंश की संकल्पना कर लेना और लक्ष्य भाषा में भाषान्तर की पेशबन्दी कर लेनी चाहिए। वस्तुतः ये तीनों क्रियाएँ मन में एक साथ स्वचालित ढंग से होनी चाहिए। इस क्षमता का विकास ही दुभाषिया की सफलता का केन्द्र-बिन्दु होता है। उसे 'हेड-फ़ोन' की सुविधा यदि मिली हुई है तो यह काम आसान हो जाता है। अन्यथा स्थिति में माइक से हटकर बोली हुई बातों का पूर्वानुमान ही करना होता है। वक्तव्य की सम्पूर्ण जानकारी के लिए आशु- भाषान्तरकाल को तीन चरणों से गुज़रना होता है-

(i) भाषण के विषय का पूर्ण ज्ञान 
(ii) वक्ता की मुद्राओं, आंगिक चेष्टाओं और भाव-भंगिमाओं से भाषण को 'समझना अथवा अनुमान करना 
(iii) भाषण को मनोयोग से सुनकर समझना। कहना न होगा कि उक्त क्रियाएँ अन्योन्याश्रित हैं।
 
दुभाषिया को विषय-ज्ञान (भाषण) सुस्पष्ट होना चाहिए। भाषण का विषय, राजनीति, कूटनीति, धर्म-दर्शन, साहित्य, विज्ञान, वाणिज्य-व्यापार, कुछ भी हो सकता है। विषय-ज्ञान होने पर वक्ता की बात को वह तुरन्त समझ सकेगा और लक्ष्य-भाषा में उसका अनुवाद उसके मन में कौंध जायेगा। यही नहीं, उसके भाषान्तर में सहजता और सुसम्बद्धता भी बनी रहेगी।
 
दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान
वक्ता की आंगिक चेष्टाओं, भाव-भंगिमाओं आदि अर्थात् भाषण-कला के सम्पूर्ण नाटकीय व्यापार से दुभाषिया को पूरी तरह परिचित होना चाहिए। वक्तृत्व एक कला है, एक नाटकीय व्यापार है, जिसमें शब्द-शक्तियों के अन्यान्य पहलुओं-सेन्स, फ़ीलिंग, टोन और इन्टेंशन से अर्थ द्योतित होता है। यही नहीं, वाचिक के साथ ही कायिक और सात्त्विक चेष्टाओं, मुख-मुद्राओं, भंगिमाओं, बलाघात आदि क्रियाओं से वक्ता अपना अभीष्ट अर्थ सम्प्रेषित करता है। उसके अभीष्ट अर्थ को लक्ष्य-भाषा में रूपांतरित करने के लिए दुभाषिया को उसी तरह की कायिक चेष्टाएँ करनी चाहिए। मूल वक्ता भाषण के दौरान हँसता है तो दुभाषिया को भी ठहाका लगाना चाहिए। वह यदि हाथ उठाता है, मुट्ठी बाँधता है तो दुभाषिया को भी वही सब करना चाहिए । कुल मिलाकर दुभाषिया को नाटकीय व्यापार (वक्ता का अनुकरण) का बराबर सहारा लेना चाहिए। यही नहीं दुभाषिया को मुख-मुद्राओं, कायिक चेष्टाओं के आधार पर वक्ता के मूल मंतव्य को भाँप लेना चाहिए। 

दुभाषिया को मूल वक्ता के भाव-बोध को निरन्तर संचालक बनाना चाहिए। भाषण सुनने और अंतरण के बीच का अंतराल अत्यल्प होता है। अतः वक्ता की अभिप्रेत विचारधारा/ भावधारा को आत्मसात् करके यथासंभव समुचित शब्दों में अभिव्यक्त करने की प्रक्रिया स्वचालित ढंग से भाषान्तरकार के मस्तिष्क में होती है, किन्तु कभी-कभी वक्ता की कठिन शब्दावली उसे बाधित करती है। ऐसी स्थिति में दुभाषिये को शब्दों पर विशेष बल न देकर मस्तिष्क की स्वचालित प्रक्रिया को तिरोहित नहीं होने देना चाहिए, अन्यथा वह या तो भाषान्तर में पिछड़ जायेगा अथवा सही अनुवाद नहीं कर पायेगा।
 
वैज्ञानिक, तकनीकी और पारिभाषिक शब्दावली, मुहावरेदार, लच्छेदार भाषा अथवा संख्या-आधारित (डाटा-बेस्ड) व्याख्यानों के भाषान्तरण से दुभाषिया के भाषा-ज्ञान और तत्परता की परीक्षा होती है। दोनों भाषाओं, स्रोत और लक्ष्य की वृहत् पारिभाषिक शब्दावली का परिज्ञान ही उसका पथ-प्रदर्शक होता है।
 
दुभाषिया को भाषान्तरण के दौरान लक्ष्य-भाषा की सहजता और स्वाभाविक प्रवाह की रक्षा करनी चाहिए। श्रोताओं को शब्दार्थगत साम्य और सहज अर्थबोध की अनुभूति होनी चाहिए। कुल मिलाकर भाषान्तर जीवन्त और सुबोध होना चाहिए तथा भाषा और शब्द-प्रयोग प्रांजल । द्विअर्थी और विवादास्पद शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए।
 

आशु अनुवाद की प्रक्रिया  

अनुवाद-प्रक्रिया के प्रायः तीन चरण बताये जाते हैं- विश्लेषण, अंतरण और पुनर्गठन । परन्तु दुभाषिया को इतना अवकाश कहाँ कि वह इन तीनों चरणों से विधिवत् गुज़रे । ये चरण उसके मस्तिष्क में तत्काल स्वरूप ग्रहण कर लेते हैं और उसे अंतरण करना होता है। सिद्धहस्त और अनुभवी दुभाषिये के मन में विश्लेषण तुरंत कौंधता है और वह त्वरित गति से भाषान्तर प्रस्तुत कर देता है।आशु अनुवाद मे निम्नलिखित प्रक्रिया होती है - 
 
  • विश्लेषण - वस्तुत: विश्लेषण अर्थगत (विषयगत) और भाषागत होता है। दुभाषिया के लिए यह आवश्यक है कि वह वक्ता के विषय का ज्ञाता हो और भाषण के अर्थ को तुरंत पकड़ सके। यह मानसिक तैयारी दुभाषिया से अपेक्षित है। अर्थ को सही ढंग से न पकड़ पाने के कारण दुभाषियों से भयंकर भूलें हुई हैं और हो सकती हैं।भाषिक विश्लेषण दुभाषिया को वक्तव्य की भाषागत यूनिटों का आग्रही बनाता है। यद्यपि दुभाषिया के पास वक्ता के भाषण के शब्दों, पदबन्धों आदि के गम्भीर विश्लेषण का समय नहीं होता, फिर भी उसे वक्तव्य में प्रयुक्त मुहावरों, सूक्तियों और लोकोक्तियों पर तुरंत ध्यान देना होता है, ताकि वक्ता का व्यंग्यार्थ स्पष्ट किया जा सके।
  • अन्तरण - अनुवाद-प्रक्रिया का दूसरा चरण अंतरण है। सामान्य वाक्यों का अंतरण आसान होता है, जैसे कि Mahabharat was written by Vedvyas. महाभारत वेदव्यास द्वारा लिखा गया। किन्तु प्रोक्ति-विश्लेषण और लाक्षणिक अभिव्यक्तियों के अनुवाद में दुभाषिया को सोचना पड़ता है और कभी-कभी उसे गूढ़ार्थ-प्रधान बहि:केन्द्रित (Exo-centric) अभिव्यक्तियों की व्याख्या भी करनी होती है। किन्तु यह व्याख्या ऐसी होनी चाहिए, जो श्रोताओं को व्याख्या जैसी न लगे।
  • पुनर्गठन - अनुवाद-प्रक्रिया में दुभाषिया को कभी-कभी पुनर्गठन अथवा पुनर्रचना भी करनी होती है अर्थात् स्रोत-भाषा के वक्तव्य की अटपटी, अस्पष्ट और गलत अभिव्यक्तियों को लक्ष्य-भाषा में सहज समतुल्य अभिव्यक्तियों से अंतरित करना। वस्तुतः अनुवाद-प्रक्रिया के सभी चरण आशु-अनुवाद में भी अपेक्षित होते हैं, किन्तु मानसिक स्तर पर दक्ष दुभाषिया के मस्तिष्क में अनुवाद-प्रक्रिया निर्बाध गति से गतिमान रहती है और आशु-अनुवाद सहज ही स्फुरित होता रहता है।
 

आशु भाषांतरण के प्रकार 

आशु-भाषान्तरण के प्रकार एवं विभेद मुख्यतः निम्नांकित हैं- 
1. दो व्यक्तियों के बीच भाषांतरण । 
2. सभाओं, सम्मेलनों आदि में त्वरित भाषान्तर 
3. लिखित भाषा का तत्काल भाषांतरण । 
4. द्रुतगति से भाषांतरण । 
5. धीमी गति से आशु अनुवाद ।
 

दुभाषिया के लिए अपेक्षित गुण एवं विशिष्टताएँ

उत्कृष्ट कोटि के दुभाषिये के लिए वास्तव में निम्नांकित विशिष्टताओं की अपेक्षा सदैव रहती है, क्योंकि इन्हीं गुणों के कारण वह अपने कार्य में पूर्ण दक्षता एवं निपुणता प्राप्त करता है। कतिपय महत्त्वपूर्ण विशिष्टताएँ निम्नांकित हैं- 
  1. मूल वक्ता के व्याख्यान का अभिप्रेत अर्थ- तत्काल-भाषान्तरण में दुभाषिया को सबसे पहले वक्ता के वक्तव्य के अभिप्रेत अर्थ को समझना होता है। इसके लिए आवश्यक है कि वह वक्ता के भाषण को ठीक तरह से सुने और समझे। इस काम में उसके लिए आवश्यक है कि उसे स्रोत-भाषा का गंभीर ज्ञान हो, वह वक्ता की संस्कृति से तथा उस भाषा की विशेषताओं और उसके उच्चारण से भी परिचित हो और उसका सामान्य ज्ञान व्यापक हो ।
  2. त्वरित भाषान्तरण- सुनने के साथ-साथ भाषान्तरकार मन-ही-मन सुने हुए वाक्य का अनुवाद करता चलता है। भाषान्तरकार के काम का तात्कालिक और अनिवार्य उद्देश्य अपने श्रोताओं तक यह पहुँचाना है कि मूल भाषण करने वाला व्यक्ति क्या कहना चाहता है।मूल भाषणकर्त्ता जो प्रभाव डालना चाहता है उसी को श्रोताओं तक पहुँचाना भाषान्तरकार का काम है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए शाब्दिक अनुवाद न तो पर्याप्त है और न वांछनीय। 
  3. दुभाषिये की अभिव्यक्ति और वक्तव्य-शक्ति- चूँकि दुभाषिये को मूल वक्ता के समानान्तर अनूदित वक्तव्य देना होता है, अतः आवश्यक है कि दुभाषिया की वाणी न केवल सशक्त हो वरन् मधुर भी हो। उसका उच्चारण यथासंभव निर्दोष होना चाहिए। उसकी वाणी नीरस होगी तो भाषण में कोई रुचि नहीं लेगा। उसे एक अच्छे भाषणकर्त्ता के समान अपने श्रोताओं के दिल को छू लेना चाहिए। 
  4. दुभाषिये के साधन उपकरण- दुभाषिया को कुछ साधनों की आवश्यकता पड़ती है, जैसे- कक्ष, माइक्रोफ़ोन, हेडफ़ोन तथा विषय से सम्बन्धित सामग्री आदि, परन्तु कभी-कभी दुभाषिया के पास कोई साधन-उपकरण नहीं होता। उसे विना किसी उपकरण के भी भाषान्तरण करना होता है। सामान्यतः सभा-भवनों में तत्काल भाषान्तरण की व्यवस्था के लिए कुछ उपकरण लगाये जाते हैं।
 
विशेषज्ञों का अभिमत है कि एक दुभाषिये के लिए निश्चित रूप से निम्नांकित विशिष्टताएँ होनी चाहिए - (1) प्रत्युत्पन्नमति, (2) स्मरण शक्ति, (3) सामान्य ज्ञान, (4) प्रखर वक्ता, (5) स्थितप्रज्ञ ।
 

दुभाषिया प्रविधि की समस्याएँ और समाधान

दुभाषिया-कर्म एक कंठिन कार्य है, जिसमें दुभाषिया की शत-प्रतिशत मानसिक उपस्थिति अनिवार्य है। तत्काल-भाषान्तरण के दौरान कुछ यांत्रिक परेशानियाँ तो आती ही हैं, जैसे- अचानक यंत्र (माइक्रोफ़ोन, हेडफ़ोन) आदि का निष्क्रिय हो जाना अथवा सभा-कक्षों में मूल वक्ता का माइक्रोफ़ोन के सामने अत्यन्त धीमी आवाज़ में बोलना, जिससे दुभाषिया को सुनने में कठिनाई हो रही हो अथवा वक्ता का उच्चारण अत्यंत दोषपूर्ण होना जिससे मूल बात समझ में नहीं आ रही हो आदि। जब वक्ता और दुभाषिया एक ही साथ बराबर-बराबर खड़े होते हैं तो सुनने की कठिनाई प्रायः नहीं होती, परन्तु सभाकक्षों में जहाँ वक्ता से दुभाषिया काफ़ी दूर बैठता है, इस प्रकार की कठिनाइयाँ हो सकती हैं। इसके अतिरिक्त तत्काल भाषान्तरण की अन्यान्य समस्याएँ हैं-
 
(1) भाषागत समस्या, 
(2) वक्ता का अधकचरा भाषा-ज्ञान, 
(3) उच्चारण-वैशिष्ट्य, 
(4) वक्ता का भाषा-प्रयोग, 
(5) लोकोक्तियों, कहावतें और मुहावरे, 
(6) विशिष्ट पद-प्रयोगों के शाब्दिक अनुवाद की समस्या । 

त्वरित भाषान्तरकार को भाषा और साहित्य का विद्वान् तो होना ही चाहिए, साथ ही उसका सामान्य ज्ञान बहुत विस्तृत होना चाहिए। उसका प्रशिक्षण होना चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान व्याख्यान के एक अंश का अनुवाद उसे समझा दिया जाए, तदुपरान्त विशेषज्ञ द्वारा माइक पर बोलकर उसे सुनाया जाय और उसे तुरन्त अनुवाद करने को कहा जाये। उसका बार-बार अभ्यास कराया जाये। टेपित व्याख्यान की पद्धति भी अपनायी जा सकती है अर्थात् दुभाषिया का प्रशिक्षण लेने वाला व्यक्ति व्याख्यान के टेप बजाकर धीमे-धीमे सुने और तत्काल उसका भाषान्तरण अपने प्रशिक्षक के सामने प्रस्तुत करे। अपनी भूलें समझे और पुनः भाषान्तरण करे। इस निरन्तर अभ्यास से उसकी गति बढ़ेगी और कालान्तर में सक्षम दुभाषिया के रूप में उसका विकास होगा। यह धारणा भ्रान्त है कि दुभाषिया पैदा होते हैं, बनाये जाते। प्रतिभा निन्यानबे प्रतिशत अर्जित की जाती है। (Genius is ninety nine percent by preparation and one percent by inspiration) हिन्दी में भी कहावत है- करत करत अभ्यास के, जड़मति होत सुजान । 

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,36,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,3,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,7,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,2,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,6,कविता,1462,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,31,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,2,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,34,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,74,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,6,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,2,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,198,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,137,प्रयोजनमूलक हिंदी,37,प्रेमचंद,41,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,87,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,7,भक्ति साहित्य,142,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,15,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,5,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,2,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,7,मोहन राकेश,13,यशपाल,14,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,7,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,7,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,55,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,1,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,31,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,42,समसामयिक हिंदी लेख,256,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,19,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,81,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,414,हिंदी लेख,522,हिंदी व्यंग्य लेख,13,हिंदी समाचार,178,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,9,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,406,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,674,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,43,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,21,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,10,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,4,sponsored news,10,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,44,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान
दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान
दुभाषिया प्रविधि का अर्थ, विशेषता, समस्याएं और समाधान अनुवाद एक जटिल कर्म है और आशु अनुवाद अथवा दुभाषिया कर्म जटिलतर। आशु अनुवाद एक प्रकार की परकाया
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2zERlis_QPO0pmsqmUKv4esZaCJJ4wUDZrt5vP3EWwUMQSVpM50-CpP1ZJAuHydOPmO5W1jaylIRoJ1x70vr5T0LqiTStH-fHFGUNY0xscZrTzQZioPSnfNWwHcOaNtTR4oslRF4Ez12jLD_meTOkltBdwcawyzomaFCDSPBY19ASCRW5t30-HDzVhPGv/s16000/dubhashiya.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi2zERlis_QPO0pmsqmUKv4esZaCJJ4wUDZrt5vP3EWwUMQSVpM50-CpP1ZJAuHydOPmO5W1jaylIRoJ1x70vr5T0LqiTStH-fHFGUNY0xscZrTzQZioPSnfNWwHcOaNtTR4oslRF4Ez12jLD_meTOkltBdwcawyzomaFCDSPBY19ASCRW5t30-HDzVhPGv/s72-c/dubhashiya.png
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/06/dubhashiya-pravidhi-ka-arth-visheshta-samasya-samadhan.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/06/dubhashiya-pravidhi-ka-arth-visheshta-samasya-samadhan.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका