जंगल और जनकपुर | Jungle Aur Janakpur | Bal Ram Katha जंगल और जनकपुर बाल रामायण का दूसरा अध्याय है, जिसमें ऋषि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण को मिथिला
जंगल और जनकपुर | Jungle Aur Janakpur | Bal Ram Katha
जंगल और जनकपुर बाल रामायण का दूसरा अध्याय है, जिसमें ऋषि विश्वामित्र, राम और लक्ष्मण को मिथिला नगरी, जनकपुर की यात्रा पर ले जाते हैं। यह अध्याय रोमांच, शिक्षा और भक्ति का अनूठा मिश्रण प्रस्तुत करता है।यह अध्याय, हमें जीवन के अनेक मूल्यों, जैसे कि साहस, शिक्षा, कर्तव्यनिष्ठा, भक्ति और विनम्रता का पाठ पढ़ाता है।
जंगल और जनकपुर का सारांश
ऋषि विश्वामित्र दोनों राजकुमारों को लेकर सरयू नदी के किनारे-किनारे चलने लगे। राम-लक्ष्मण ने एक बार भी पीछे मुड़कर नहीं देखा। चलते-चलते शाम हो गई। परन्तु राजकुमारों के चेहरों पर थकान का कोई चिह्न नहीं था। महर्षि ने कहा- "मैं तुम दोनों को कुछ विद्याएँ सिखाना चाहता हूँ। इन्हें सीखने के बाद तुम पर कोई प्रहार नहीं करेगा। उस समय भी नहीं, जब तुम नींद में रहो।" विश्वामित्र ने दोनों भाइयों को 'बला-अतिबला' की विद्याएँ सिखाईं। रात वहीं नदी किनारे विश्राम किया।
अगले दिन चलते-चलते वे ऐसी जगह पहुँचे जहाँ दो नदियाँ आपस में मिलती थीं। रास्ते में महर्षि राजकुमारों को वहाँ के लोगों, वनस्पतियों के बारे में बता रहे थे। रास्ते में अब नदी पार करनी थी। नदी पार घना जंगल था, सूरज की किरणें धरती तक नहीं पहुँचती थीं। महर्षि ने उन्हें जंगल की राक्षसी ताड़का के बारे में बताया था कि तुम्हें उस राक्षसी का वध करना है। ताड़का के डर से इस वन में कोई नहीं आता, इसलिए इस सुन्दर वन का नाम 'ताड़का वन' पड़ गया है।
राम ने महर्षि की आज्ञा पर धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर उसे छोड़ा। ताड़का क्रोधित होकर गरजती हुई राम की ओर दौड़ी। ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिया। राम ने उस पर बाण चलाए। लक्ष्मण ने भी निशाना साधा। राम का एक बाण उसके हृदय में लगा। वह वहीं ढेर हो गई। विश्वामित्र बहुत प्रसन्न हुए। उन्होंने राम को गले लगाया। दोनों राजकुमारों को नए अस्त्र-शस्त्र देकर उनके प्रयोग करने की विधि बताई।
अगले दिन महर्षि व दोनों राजकुमार 'सिद्धाश्रम' (महर्षि के आश्रम) में पहुँचे। महर्षि यज्ञ की तैयारियों में लग गए। आश्रम की रक्षा की जिम्मेदारी राम-लक्ष्मण को सौंपकर महर्षि आश्वस्त थे। राम व लक्ष्मण ने यज्ञ पूरा होने तक न सोने का निर्णय लिया। अनुष्ठान के अंतिम दिन आसमान अचानक भयानक आवाज़ों से भर गया। सुबाहु और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। राम ने राक्षसों का हमला होते ही धनुष उठाया और मारीच को निशाना बनाया, वह मूच्छित हो गया व समुद्र के किनारे जा गिरा। राम का दूसरा बाण सुबाहु को लगा, उसके प्राण निकल गए। शेष सभी राक्षस भाग गए। महर्षि विश्वामित्र का अनुष्ठान संपन्न हुआ।
राम ने महर्षि से पूछा कि अब उन्हें कहाँ जाना है? विश्वामित्र ने कहा- अब हम मिथिला महाराज जनक के यहाँ जाएँगे, उनके पास एक अद्भुत शिव-धनुष है उसे देखने चलेंगे।
विश्वामित्र मिथिला पहुँचे। राजा जनक ने उनका स्वागत करते हुए पूछा- "ये सुंदर राजकुमार कौन हैं?" विश्वामित्र ने कहा-"ये राम व लक्ष्मण महाराज दशरथ के पुत्र हैं। मैं इन्हें अपने साथ आपका अद्भुत धनुष दिखाने यहाँ लाया हूँ।"दोनों राजकुमारों व महर्षि के ठहरने का उचित प्रबंध किया गया। राजा जनक ने अनुचरों को आज्ञा दी, “शिव-धनुष को यज्ञशाला में लाया जाए।"
शिव धनुष सचमुच विशाल था। राजा जनक ने कहा- "जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ाएगा, उसी से मैं अपनी पुत्री सीता का विवाह करूँगा।" अनेक राजकुमारों ने प्रयास किया। परन्तु सब व्यर्थ। महर्षि विश्वामित्र ने राम से कहा, "उठो वत्स! यह धनुष देखो।" गुरु का संकेत मिलने पर राम ने विशाल धनुष को सहज ही उठा लिया और पूछा, "इसकी प्रत्यंचा चढ़ा दूँ, मुनिवर?" अवश्य। यदि ऐसा कर सकते हो। "
राम ने ऊपर से दबाकर प्रत्यंचा खींची। दबाव से धनुष बीच से टूट गया। यज्ञशाला में सन्नाटा छा गया।महाराजा जनक की खुशी का ठिकाना न रहा। उन्होंने पूछा, "मुनिवर! आपकी अनुमति हो तो मैं महाराज दशरथ के पास संदेश भेजूँ।" महर्षि की अनुमति से दूत अयोध्या भेजे गए। बारात के स्वागत की तैयारियाँ होने लगीं। नगर की प्रसन्नता चरम पर थी।
महाराज जनक का संदेश मिलते ही अयोध्या में भी खुशी छा गई। राजा दशरथ बारात लेकर मिथिला पहुँचे। विवाह से पूर्व राजा जनक ने दशरथ से कहा- "राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं-माँडवी और श्रुतकीर्ति। कृपया उन्हें भरत व शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें।"
राजा दशरथ ने यह प्रस्ताव तत्काल मान लिया। बाराती बहुओं को लेकर अयोध्या लौटे तो रानियों ने पुत्र-वधुओं की आरती उतारी।
जंगल और जनकपुर प्रश्न उत्तर
प्रश्न. महर्षि ने राम-लक्ष्मण को जंगल में जाते समय कौन-सी विधायें सिखाईं ?
उत्तर- महर्षि ने दोनों भाइयों को 'बला-अतिबला' नाम की विधाएँ सिखाईं। रात में वे लोग वहीं सोए। तिनकों और पत्तों का बिस्तर बनाकर रहा। नींद आने तक महर्षि उनसे बात करते रहे।
प्रश्न. महर्षि विश्वामित्र ने राजकुमारों को जंगल ले जाते समय जंगल व राक्षसी के बारे में क्या बताया?
उत्तर- राम और लक्ष्मण को आश्वस्त करते हुए महर्षि ने कहा, "ये जानवर और वनस्पतियाँ जंगल की शोभा हैं। इनसे कोई डर नहीं है। असली खतरा राक्षसी ताड़का से है। वह यहीं रहती है। तुम्हें वह खतरा हमेशा के लिए मिटा देना है।"
प्रश्न. ताड़का वध का वर्णन कीजिए।
उत्तर- राम ने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई और उसे एक बार खींचकर छोड़ा। इतना ताड़का को क्रोधित करने के लिए बहुत था। टँकार सुनते ही क्रोध से बिलबिलाई ताड़का गरजती हुई राम की ओर दौड़ी। दो बालकों को देखकर उसका क्रोध और भड़क उठा। जंगल में जैसे तूफान आ गया। विशालकाय पेड़ काँप उठे। पत्ते टूटकर इधर-उधर उड़ने लगे। धूल का घना बादल छा गया। उसमें कुछ दिखाई नहीं देता था। फिर ताड़का ने पत्थर बरसाने शुरू कर दिए। राम ने उस पर बाण चलाए। लक्ष्मण ने भी निशाना साधा। ताड़का बाणों से घिर गई। राम का एक बाण उसके हृदय लगा। वह गिर पड़ी। फिर नहीं उठ पाई।
प्रश्न. महर्षि विश्वामित्र के अनुष्ठान के अंतिम दिन क्या हुआ?
उत्तर-अनुष्ठान के अंतिम दिन अचानक भयानक आवाज़ों से आसमान भर गया। और मारीच ने राक्षसों के दल-बल के साथ आश्रम पर धावा बोल दिया। मारीच क्रोधित था। यज्ञ के अलावा इस बात से भी कि राम-लक्ष्मण ने उसकी माँ को मारा था। ताड़का को राम ने राक्षसों का हमला होते ही कार्रवाई की। धनुष उठाया और मारीच को निशाना बनाया। मारीच बाण लगते ही मूच्छित हो गया। बाण के वेग से बहुत दूर जाकर गिरा, समुद्र के किनारे। वह मरा नहीं। जब होश आया तो उठकर दक्षिण दिशा की ओर भाग गया। राम का दूसरा बाण सुबाहु को लगा। उसके प्राण वहीं निकल गए। सुबाहु को मारने पर राक्षस सेना में भगदड़ मच गई। वे चीखते-चिल्लाते भागे।
प्रश्न. अनुष्ठान की समाप्ति पर राम ने विश्वामित्र से आज्ञा माँगी तो महर्षि ने क्या कहा?
उत्तर- राम ने महर्षि को प्रणाम करते हुए पूछा, "अब हमारे लिए क्या आज्ञा है, मुनिवर?" महर्षि ने राम को गले लगाया। कहा, "हम लोग यहाँ से मिथिला जाएँगे। महाराज जनक के यहाँ । विदेहराज के दरबार में। मैं चाहता हूँ कि तुम दोनों मेरे साथ चलो। उनके आयोजन में हिस्सा लेने। महाराज के पास एक अद्भुत शिव-धनुष है। तुम भी उसे देखो।"
प्रश्न. शिव धनुष का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए ।
उत्तर-शिव-धनुष सचमुच विशाल था। लोहे की पेटी में रखा हुआ था। पेटी में पहिए लगे हुए थे। आठ पहिए। उसे उठाना असंभव था। पहियों के सहारे खिसकाकर उसे एक से दूसरी जगह ले जाया जाता था। अनुचर मुश्किल से उसे खींचते हुए यज्ञशाला में ले आए। धनुष देखते ही विदेहराज एक पल के लिए उदास से हो गए।
प्रश्न. राजा जनक ने क्या प्रतिज्ञा की?
उत्तर-राजा जनक ने एक प्रतिज्ञा की थी अपनी पुत्री सीता के विवाह के संबंध में। जो यह धनुष उठाकर उस पर प्रत्यंचा चढ़ा देगा उसी के साथ सीता का विवाह होगा।
प्रश्न. राम ने महर्षि को आज्ञा पाकर क्या किया?
उत्तर- राम ने सिर झुकाकर गुरु की आज्ञा स्वीकार की। वे आगे बढ़े और पेटी का ढक्कन खोल दिया। राम ने पहले धनुष को देखा फिर महर्षि को। गुरु का संकेत मिलने पर राम ने वह विशाल धनुष सहज ही उठा लिया। यज्ञशाला में उपस्थित सभी लोग हतप्रभ थे। "इसकी प्रत्यंचा चढ़ा दूँ, मुनिवर?" राम ने पूछा।
प्रश्न. राम के विवाह से पूर्व राजा दशरथ ने क्या कहा?
उत्तर-विवाह से ठीक पहले विदेहराज ने महाराज दशरथ से कहा, "राजन! राम ने मेरी प्रतिज्ञा पूरी कर बड़ी बेटी सीता को अपना लिया। मेरी इच्छा है कि छोटी पुत्री उर्मिला का विवाह लक्ष्मण से हो जाए। मेरे छोटे भाई कुशध्वज की भी दो पुत्रियाँ हैं-माँडवी और श्रुतकीर्ति । कृपया उन्हें भरत और शत्रुघ्न के लिए स्वीकार करें।"
जंगल और जनकपुर पाठ के कठिन शब्दार्थ
ओझल होना = छिप जाना।
भयमुक्त निडर = होना।
अभिनंदन = स्वागत।
आश्वस्त = विश्वास होना।
लज्जित होना = शर्मसार होना।
सन्नाटा छाना = चुप्पी छा जाना।
अनुमति = आज्ञा ।
सुवासित = सुगंधित।
आनंदोत्सव = खुशी का महोत्सव।
COMMENTS