प्रजातांत्रिक व्यवस्था में चतुर्थ स्तम्भ के रूप में पत्रकारिता का दायित्व प्रजातंत्र में पत्रकार के दायित्व पर निबन्ध प्रजातंत्र में पत्रकार के दायित्
प्रजातांत्रिक व्यवस्था में चतुर्थ स्तम्भ के रूप में पत्रकारिता का दायित्व
एक स्वस्थ लोकतंत्र के लिए पत्रकारिता का चौथा स्तंभ के रूप में महत्वपूर्ण स्थान है। यह न केवल नागरिकों को सूचित करने और शिक्षित करने का काम करता है, बल्कि सरकार और अन्य शक्तिशाली संस्थाओं को जवाबदेह ठहराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
लोकतंत्र के विभिन्न स्तम्भ
पत्रकारिता के उदय से पूर्व लोकतांत्रिक व्यवस्था के सुचारु रूप से चलने के लिए तीन स्तम्भों-व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका का होना आवश्यक था। व्यवस्थापिका से तात्पर्य संसद के दोनों सदनों- लोकसभा व राज्यसभा तथा राज्य-विधान-मंडलों के दोनों सदनों विधानसभा तथा विधान परिषद् से है। शासन को स्थापित एवं गति देने के उद्देश्य से व्यवस्थापिका अनेक नियम बनाती है। इन सभी नियमों का उद्देश्य जनकल्याण करना और सरकारी तंत्र को स्थिरता एवं शक्ति देना होता है।
व्यवस्थापिका द्वारा निर्मित नियमों व अधिनियमों के अनुपालन का उत्तरदायित्व कार्यपालिका के विभिन्न अंगों पर निर्भर करता है। कार्यपलिका का दायित्व है कि व्यवस्थापिका ने जो भी नियम बनाये हैं उनका अनुपालन करे तथा उनका उल्लंघन करने वाले व्यक्तियों के विरुद्ध नियमानुसार कार्यवाही करे।
इसके समानान्तर, न्यायपालिका का कार्य व्यवस्थापिका द्वारा पारित अधिनियमों के सम्बन्ध में उत्पन्न संवैधानिक अथवा कानूनी भ्रान्तियों का निराकरण करना, नियमों के गुण-दोषों का विश्लेषण कर उनके औचित्य पर उठाये गये प्रश्नों को सुलझाना, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका पर अंकुश लगाकर उन्हें निरंकुश होने के दोष से मुक्त रखना तथा कार्यपालिका द्वारा कतिपय कानूनों के अनुपालन से किसी व्यक्ति या समूह के अधिकारों का हनन होने पर उनके मौलिक अधिकारों की सुरक्षा करना है।
पत्रकारिता का उदय
कालान्तर में पत्रकारिता या प्रेस की शक्ति के प्रादुर्भाव से, प्रेस प्रजातांत्रिक व्यवस्था में एक चौथे स्तम्भ के रूप में अवतरित हुआ। प्रेस का जन्म शासक और शासित के मध्य एक समझदारी (Understanding), समन्वय (Coordination) तथा तारतम्य बनाये रखने के उद्देश्य से हुआ। चूँकि लोकतांत्रिक शासन-व्यवस्था में सामान्य लोग अपने मतदान के अधिकार का प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से प्रयोग कर अपने शासकों का चुनाव करते हैं, अस्तु यह आवश्यक हो जाता है कि शासक यह समझें कि शासित क्या चाहते हैं और शासित भी यह जानें कि उनके शासक उनके और देश के लिए कैसे काम कर रहे हैं।
शासक और शासित के मध्य प्रेस के माध्यम से ही एक प्रत्यक्ष संवाद सम्भव है। प्रेस ही वह माध्यम है जो जनता की भावनाओं को शासकों तक पहुँचाता है और शासकों पर जनता की "भावनाओं के अनुकूल नीति-निर्धारण करने का दबाव बनाता है।
इसी प्रकार, शासक देश की अर्थ-व्यवस्था, सामाजिक संरचना, सुरक्षा, शिक्षा, स्वास्थ्य, विदेश नीति आदि को किस दिशा में ले जाना चाहते हैं इसकी सम्पूर्ण जानकारी प्रेस के माध्यम से जन-मानस को हो पाती है। लोकसभा व राज्य-विधान-मंडलों में होने वाली नीतिगत गम्भीर बहस तथा अन्य अनेक ज्वलंत मुद्दों पर होने वाली चर्चा से प्रेस लोगों को परिचित कराता है और उनकी प्रतिक्रिया भी शासकों तक पहुँचाता है।
पत्रकारिता के महत्वपूर्ण कार्य
लोकतंत्रीय व्यवस्था में प्रेस का सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण कार्य लोकतंत्रीय मूल्यों की स्थापना और उनकी रक्षा करना है। एक ओर प्रेस शासकों के निजी एवं सार्वजनिक आचरण पर नियन्त्रण रखता है और उन्हें साफ़-सुथरी शासन की प्रक्रिया को स्थापित करने के लिए बाध्य करता है, वहीं दूसरी ओर लोगों को उनके जनतांत्रिक अधिकार और कर्त्तव्यों से अवगत कराता है तथा लोगों में राजनीतिक एवं सामाजिक चेतना का प्रसार करता है। यह प्रेस का ही योगदान है कि देश का प्रत्येक नागरिक चुनावी प्रक्रिया में शासकीय व्यवस्थाओं को आत्मसात् कर सका है।
प्रेस जहाँ व्यवस्थापिका की कार्यविधियों से देश के करोड़ों लोगों को अवगत रखता है, वहीं वह कार्यपालिका को निरंकुश होने से रोकता है और न्यायपालिका के निर्णयों की सामान्य लोगों को जानकारी देता है।
जनमत-निर्माण की दिशा में भी प्रेस की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है। लोकतंत्रीय व्यवस्था में किसी भी नीति को देश या विदेश के नागरिकों पर बलात् थोपा नहीं जा सकता। किसी भी नीति को लागू करने के लिए जनमत की आवश्यकता होती है। यह कार्य बृहत् स्तर पर प्रेस ही कर सकता है। राष्ट्रीय स्तर के समाचारपत्रों के माध्यम से विशेष मुद्दों पर होने वाली बहस जनमत-निर्माण में सहायक होती है। इसी प्रकार, समय-समय पर विशिष्ट लेखों के प्रकाशन से जन-सामान्य की नब्ज़ की पहचान होती है, जिसके अनुरूप शासक वर्ग अपनी कार्य-विचार-यात्रा को गति देता है।
प्रेस नियन्त्रण और सन्तुलन के सिद्धान्त को अपनाते हुए जनमानस की उग्रता और शासक वर्ग की उच्छृंखलता पर लगाम लगाता है तथा दोनों ही वर्गों को अपने अभीष्ट को प्राप्त करने का न्यायोचित एवं संसदीय मार्ग दिखाता है। लोगों में सामाजीकरण को सुदृढ़ रूप प्रदान करने का कार्य भी प्रेस का ही है। वर्तमान में एक समाज के लोगों को दूसरे समाज के लोगों के निकट लाने में प्रेस ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभायी है।
राष्ट्रीय एकता को मजबूती
राष्ट्रीय एकता को सुदृढ़ कर लोकतंत्र की जड़ों को मजबूत बनाये रखने का श्रेय भी प्रेस को जाता है। सम्भवतः अपने इन अनेक महत्त्वपूर्ण कार्यों के कारण प्रेस लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ के रूप में उभरा है और चौथे खम्भे के रूप में प्रेस के दायित्व निरन्तर बढ़ते ही जा रहे हैं।देश की एक विशाल जनसंख्या को संतुलित, समन्वित, सक्रिय तथा एकजुट करने का कार्य कोई नियम या अधिनियम नहीं, अपितु प्रेस ही कर सकता है। इसीलिए देश-दुनिया में प्रेस को इतनी महिमा मान्यता प्राप्त है।
पत्रकारिता का दायित्व
पत्रकारिता लोकतंत्र के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।एक स्वतंत्र, निष्पक्ष और जिम्मेदार मीडिया नागरिकों को सशक्त बनाने, सत्ता को जवाबदेह ठहराने और एक बेहतर समाज बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
यह भी ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि पत्रकारिता का दायित्व केवल मीडिया संस्थानों तक ही सीमित नहीं है। प्रत्येक नागरिक को सत्य और निष्पक्षता के साथ जानकारी साझा करने और गलत सूचनाओं का खंडन करने में अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है।
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