रेल यात्रा के दौरान हुई यादगार घटना पर निबंध अक्सर हम सबको रेल यात्राएँ करनी ही पड़ती हैं। चाहे किसी दूर बसे रिस्तेदार से मिलना हो या किसी पर्यटन-स्थ
रेल यात्रा के दौरान हुई यादगार घटना पर निबंध
अक्सर हम सबको रेल यात्राएँ करनी ही पड़ती हैं। चाहे किसी दूर बसे रिस्तेदार से मिलना हो या किसी पर्यटन-स्थल का भ्रमण करना हो या नहीं तो किसी दूसरे शहर में व्यावसायिक-वाणिज्यिक कार्य से जाना पड़े। रेल यात्रा के लिए टिकट लेना ही पड़ता है। वैसे तो मैं यात्रा की तिथि से पहले ही अपने टिकट का आरक्षण करवा लेता हूँ। फिर भी कभी-न-कभी कुछ आकस्मिक कारणवश रेल-यात्रा की जरूरत आ पड़ती है। ऐसा ही कुछ घटना मेरे साथ भी घटा।
मित्र के घर जाना
मेरे एक प्रिय मित्र ने सहसा फोन कर मुझे सूचित किया कि अगले दिन विजयादशमी के अवसर पर उनका गृह-प्रवेश का आयोजन है। मैंने उन्हें अपनी तमाम व्यस्त कार्यक्रमों को बताया पर वे एक न सुने। उन्होंने यहाँ तक कह दिया कि यदि आप नहीं पधारेंगे तो गृह-प्रवेश के कार्यक्रम को टाल दिया जायेगा। मुझे न चाहते हुए भी कार्यक्रम में उपस्थित रहने के लिए 'हाँ' करना पड़ा। दुर्गापूजा जैसे अवसरों पर रेल का टिकट का आरक्षित टिकट मिलना असंभव सा होता है। मैंने तमाम रेल आरक्षित करने वालों से संपर्क साधा। पर कोई सहायता न कर सका। अतः अपने दिन भर के सारे कार्यों को करने के उपरान्त अपने कुछ जरूरी कपड़े वगैरह ले मित्र के आयोजन में शरीक होने के लिए हावड़ा स्टेशन निकल पड़ा।
टिकट काउंटर पर सामान छूट गया
हावड़ा स्टेशन पहुँचने पर टिकट लेने के लिए रेल काउन्टर में लगी लाइन में लग गया। कुछ पल में ही मेरे पीछे भी अनेक लोग टिकट लेने खड़े हो गए। टिकट लेने वाले लोगों की लाइन देखकर लगता ही नहीं था कि गाड़ी खुलने से पहले मुझे गन्तव्य स्थान के लिए टिकट मिल ही जायेगा। लाइन में खड़े रहने के दौरान मेरा मोबाइल फोन बजता रहा। मैं लोगों से बातें करने में व्यस्त रहा। इसी बीच धीरे-धीरे टिकट काउन्टर की खिड़की पर आ पहुँचा। मैंने झट से टिकट देने वाले से टिकट की माँग की और टिकट का उचित मूल्य दे अनारक्षित टिकट ले गाड़ी पकड़ने के लिए प्लेटफार्म की ओर बढ़ चला। रेल डिब्बे के नजदीक पहुँचने पर मैंने पाया कि मेरा हैंडबैग तो टिकट काउंटर के पास ही छूट गया है। हैण्डबैग के छूटने से मैं परेशान हो गया। इधर गाड़ी के खुलने का समय भी काफी करीब था। उस हैण्डबैग में कपड़ों के अलावा अन्य जरूरी दस्तावेजों के संग मेरा पासपोर्ट भी था। मैं बहुत ही घबड़ाया और परेशान था। मनमसोस कर मैं साधारण रेल के डिब्बे में उठ गया।
अंजान नंबर से फोन आया
रेल का डिब्बा लोगों से ठसाठस भरा था, फिर भी मैं अपने लिए किसी तरह जगह बना डिब्बे में खड़ा हो गया। ट्रेन खुलने के लगभग आधे घंटे बाद मेरा मोबाइल फोन एकाएक बज उठा। मैं अनजान नम्बर जान उसे काट दिया। बार-बार फोन आता रहा और बार-बार फोन को काटता रहा। फिर मैंने सोचा कि अनजान नम्बर से कोई मुझे बार-बार क्यों फोन कर रहा है। मैं ही बात कर लूँ। जैसे ही मैंने उस नम्बर पर फोन मिलाया, उधर से जबाब आया कि 'भाई साहब आपका खोया हैण्डबैग तो मेरे पास है और मैं भी आपके ही ट्रेन में सवार हूँ। आपने जल्दबाजी में टिकट लेते समय अपने हैण्डबैग को टिकट काउन्टर पर छोड़कर चल दिए थे। टिकट लाइन में मैं ठीक आपके पीछे खड़ा था। आपके टिकट काउन्टर के छोड़ने के तत्काल बाद आपके बैग को अपने कब्जे में ले लिया। सौभाग्य से लाइन में लगे किसी ने भी मुझे हैण्डबैग को लेने में आपत्ति नहीं की। मुझे भी ट्रेन पकड़नी थी, अतः अपने सामान सहित आपके हैण्डबैग को लेकर साधारण डिब्बा में उठ गया हूँ। प्लेटफार्म पर भीड़ की वजह से आप दिखाई नहीं पड़े। उस व्यक्ति ने मुझसे पूछा कि आप किस डिब्बा में उठे हैं? “तब मैंने उस व्यक्ति से पूछा कि आपको मेरा मोबाइल फोन नम्बर कहाँ से मिला?” उस व्यक्ति ने जबाब दिया कि जब आप टिकट लेने के लिए लाइन में खड़े थे तो आपने किसी से बातचीत करने के दौरान अपने नम्बर का उल्लेख कर रहे थे। बार-बार नम्बर दोहराने से मुझे आपका नम्बर याद हो गया था। फिर उसने फोन पर अपनी हुलिया के बारे में बताया और मेरी भी हुलिया की जानकारी ली। हम दोनों ने तय किया कि गाड़ी के आसनसोल स्टेशन पर पहुँचने पर अपने-अपने डिब्बों से निकलकर प्लेटफार्म पर मुलाकात करेंगे।
हैण्डबैग बिल्कुल सुरक्षित है
हावड़ा स्टेशन से आसनसोल पहुँचने में करीब 4 घंटे लगे। बीच-बीच में मैं उस अनजान व्यक्ति से फोन पर संपर्क बनाता रहा और उस व्यक्ति ने मुझे बार-बार आश्वस्त किया कि आपका हैण्डबैग बिल्कुल सुरक्षित है। आसनसोल गाड़ी जैसे ही रुकेगी बैग को आपको सुपुर्द कर दूँगा। गाड़ी खुलने और आसनसोल स्टेशन पर पहुँचने में लगे समय कैसे कट गया पता ही नहीं चला। गाड़ी के आसनसोल स्टेशन पर पहुँचते ही मैं डिब्बे से बाहर स्टेशन पर खड़ा हो उस व्यक्ति से पुनः फोन पर सम्पर्क साधा। पर उस व्यक्ति का फोन व्यस्त बता रहा था। मुझे कुछ निराशा हुई और मैं स्टेशन पर खड़ा हो उस अनजान व्यक्ति के बताए हुलिए को ढूँढ़ने की कोशिश करने लगा तभी एकाएक पुनः मेरा फोन बजा । जैसे ही मैंने फोन उठाया उस व्यक्ति ने पूछा कि भाई साहब! आप स्टेशन पर उतरें हैं या नहीं। मैंने जबाव दिया कि मैं तो आपकी ही प्रतिक्षा कर रहा हूँ और आपसे फोन पर संपर्क साधने की कोशिश भी कर रहा था, पर आपका फोन व्यस्त होने की वजह से आप से संपर्क न कर पाया। उस व्यक्ति ने कहा कि संपर्क कैसे होगा लगता है हम दोनों एक ही समय एक दूसरे को संपर्क करने की कोशिश कर रहे थे।
जीवन की यादगार घटना
फोन से बातचीत के दौरान मेरी नजर एक ऐसे व्यक्ति पर पड़ी जिसके हाथ में मेरे जैसे ही हैण्डबैग था और वह भी किसी से बात कर रहा है. जो मेरे ही डिब्बे के दूसरे प्रवेश द्वार के पास खड़ा हो बात कर रहा है। मैं कौतूहलवश फोन से बातचीत करते-करते उस व्यक्ति के पास पहुँच गया। व्यक्ति के नजदीक पहुँचते ही पता चला कि वह व्यक्ति तो मेरा ही हैण्डबैग लेकर मुझसे ही बात कर रहा है। व्यक्ति की सकल की हुलिया भी वही है जिसकी जानकारी उसने दी थी। उस व्यक्ति ने भी मुझे झट से पहचान लिया। बिना कुछ जिरह किए मेरा हैण्डबैग मुझे सुपुर्द कर दिया। मेरे धन्यबाद करने से पहले वह मुझसे आग्रह किया कि यात्रा के दौरान अपने सामान को सावधानीपूर्वक रखें ताकि कहीं छूटने न पाये । और आगे यह भी सतर्क किया कि आप भी किसी का सामान पायें तो उसे लौटाने की कोशिश करें अन्यथा निकटस्थ पुलिस थाना में जाकर जमाकर दें। मैंने उस व्यक्ति के इस उपकार के बदले धन्यवाद शब्द भी कहना तुच्छ समझा। मैंने उस व्यक्ति से सिर्फ इतना ही कहा कि मुझे इस हैण्डबैग के मिलने से ज्यादा खुशी आप जैसे एक नेक, ईमानदार और अपने कर्तव्य का पालन करने वाले व्यक्ति से हुआ है। मैं इस घटना को सदैव याद रखूँगा।
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