राम का वन गमन बाल राम कथा राम का वन गमन पाठ का सारांश राम का वन गमन प्रश्न उत्तर महारानी कैकेयी का कोपभवन में होना किसी को भी मालूम नहीं था। कैकेयी
राम का वन गमन | बाल राम कथा
बाल राम कथा पुस्तक में राम का वन गमन एक महत्वपूर्ण घटना है जो भगवान राम के जीवन में एक बड़ा बदलाव लाती है। यह घटना कथा में कई नैतिक और सामाजिक मूल्यों को दर्शाती है।
राम का वन गमन पाठ का सारांश
महारानी कैकेयी का कोपभवन में होना किसी को भी मालूम नहीं था। कैकेयी अपनी जिद पर अड़ी थी। गुरु वशिष्ठ व नगरवासी राज्याभिषेक की तैयारी करते हुए सारी रात सोये नहीं थे। हर व्यक्ति शुभ घड़ी की प्रतीक्षा में था।
महामंत्री सुमंत्र असहज थे। महर्षि वशिष्ठ के पास आकर महाराज के बारे में चर्चा करने लगे। सुमंत्र को राजभवन भेजा गया क्योंकि सभी तैयारियाँ हो चुकी थीं। केवल महाराज का आना शेष था।
सुमंत्र कैकेयी महल की तरफ गए। उन्होंने देखा महाराज पलंग पर बीमार, दीनहीन अवस्था में पड़े हैं। कैकेयी ने सुमंत्र से कहा-"मंत्रिवर! महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रात भर जगे हैं। वे बाहर निकलने से पूर्व राम से बात करना चाहते हैं।"
दशरथ ने भी क्षीण स्वर में राम को बुलाने की आज्ञा दी। सुमंत्र ने राम से जाकर कहा, "राजकुमार, महाराज ने आपको बुलाया है। आप मेरे साथ ही चलें।" कुछ ही पल में राम ने महल में पहुँच कर पिता को, फिर माता कैकेयी को प्रणाम किया। राम को देखते ही दशरथ बेसुध हो गए। उनके मुँह से एक हल्की-सी आवाज निकली-“राम।” राम ने पिता से पूछा, “क्या मुझसे कोई अपराध हुआ है? कोई कुछ बोलता क्यों नहीं? आप ही बताइए, माते?"
कैकेयी बोली, "महाराज दशरथ ने मुझे दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात दोनों वर माँगे, जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्रसम्मत नहीं है। रघुकुल की नीति के विरुद्ध है। मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का ही हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे थे।"
राम ने संयत रहकर दृढ़ता से कहा-"पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।'
राम की शांत व सधी हुई वाणी सुनकर कैकेयी के चेहरे पर प्रसन्नता छा गई। कैकेयी के महल से निकलकर राम सीधे अपनी माँ के पास गए। उन्होंने माता कौशल्या को कैकेयी भवन का विवरण दिया और अपना निर्णय सुनाया। कौशल्या ने कहा, “पुत्र! यह राजाज्ञा अनुचित है। उसे मानने की आवश्यकता नहीं है।" राम ने कहा, “यह राजाज्ञा नहीं, पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लंघन मेरी शक्ति से परे है। आप मुझे आशीर्वाद दें। "
लक्ष्मण ने राम से कहा, "आप बाहुबल से अयोध्या का सिंहासन छीन लें। देखता हूँ कौन विरोध करता है।" राम नहीं माने। कौशल्या ने राम से कहा- "जाओ पुत्र! दसों दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक जीवित रहूँगी ।'
राम ने सीता से कहा, "प्रिये! तुम निराश मत होना। चौदह वर्ष बाद हम फिर मिलेंगे।" सीता ने कहा, "मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ। अतः मैं आपके साथ चलूँगी।"
राम के वन जाने का समाचार सारे नगर में फैल गया। सड़कें लोगों के आँसुओं से गीली थीं। लक्ष्मण भी राम के साथ वन जाने को तैयार हो गए थे।राम-सीता-लक्ष्मण जंगल जाने से पूर्व पिता का आशीर्वाद लेने गए। दशरथ ने राम से कहा, “पुत्र! मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बना लो और राज संभालो । यह राजसिंहासन तुम्हारा है, केवल तुम्हारा। इसी बीच कैकेयी ने राम, लक्ष्मण व सीता को वल्कल वस्त्र दिए। सभी ने तपस्वियों के वस्त्र पहने।
एक बार फिर राम ने सबसे अनुमति माँगी। आगे-आगे राम, उनके पीछे सीता । उनके पीछे लक्ष्मण। रथ पर चढ़कर राम ने कहा, "महामंत्री, रथ तेज चलाएँ। ताकि लोग हार जाएँ, थककर पीछे छूट जायें। घर लौट जायें।"
राजा दशरथ लगातार रथ की दिशा में नजरें गड़ाए रहे। रथ दिखना बंद हुआ तो वे धरती पर गिर पड़े। शाम होते-होते राम, लक्ष्मण व सीता गंगा किनारे शृंग्वेरपुर में पहुँचे। निषादराज गुह ने उनका स्वागत किया। दोनों राजकुमारों और सीता ने नाव से नदी पार की। सुमंत्र तट पर खड़े रहे। उसके बाद वे अयोध्या लौट गए।
सुमंत्र के अयोध्या लौटते ही सभी लोगों ने व महाराज ने प्रश्न पूछने शुरू किए। सुमंत्र की आँखों में आँसू थे। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया।
दूसरे दिन महर्षि वशिष्ठ ने मंत्रिपरिषद् से चर्चा की कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। तय हुआ कि भरत को तत्काल अयोध्या बुलाया जाए। घुड़सवार दूत रवाना किए गए।
राम का वन गमन प्रश्न उत्तर
प्रश्न. कैकेयी ने सुमंत्र से क्या कहा?
उत्तर- कैकेयी ने कहा, "चिंता की कोई बात नहीं है मंत्रिवर, महाराज राज्याभिषेक के उत्साह में रात भर जागे हैं। वे बाहर निकलने से पूर्व राम से बात करना चाहते हैं।"
प्रश्न. कैकेयी ने राम से क्या कहा?
उत्तर- महाराज दशरथ ने मुझे एक बार दो वरदान दिए थे। मैंने कल रात वही दोनों वर माँगे, जिससे वे पीछे हट रहे हैं। यह शास्त्र सम्मत नहीं है। रघुकुल की नीति के विरुद्ध है। कैकेयी ने बोलना जारी रखा, मैं चाहती हूँ कि राज्याभिषेक भरत का हो और तुम चौदह वर्ष वन में रहो। महाराज यही बात तुमसे नहीं कह पा रहे थे।
प्रश्न. राम ने माता कैकेयी की बात का क्या जवाब दिया?
उत्तर- राम संयत रहे। उन्होंने दृढ़ता से कहा, "पिता का वचन अवश्य पूरा होगा। भरत को राजगद्दी दी जाए। मैं आज ही वन चला जाऊँगा।"
प्रश्न. कौशल्या ने राम को वन जाने के लिए रोका तो राम ने क्या जवाब दिया?
उत्तर- राम ने उन्हें नम्रता से उत्तर दिया, "यह राजाज्ञा नहीं, पिता की आज्ञा है। उनकी आज्ञा का उल्लंघन मेरी शक्ति से परे है। आप मुझे आशीर्वाद दें।"
प्रश्न. लक्ष्मण के तर्कों का राम ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर- " अधर्म का सिंहासन मुझे नहीं चाहिए। मैं वन जाऊँगा। मेरे लिए तो जैसा राजसिंहासन, वैसा ही वन।"
प्रश्न. कौशल्या ने राम को विदा करते समय क्या कहा?
उत्तर-कौशल्या ने राम को विदा करते हुए कहा, "जाओ पुत्र! दसों दिशाएँ तुम्हारे लिए मंगलकारी हों। मैं तुम्हारे लौटने तक जीवित रहूँगी।"
प्रश्न. सीता ने राम का साथ देने के लिए क्या कहा?
उत्तर-सीता ने कहा, "मेरे पिता का आदेश है कि मैं छाया की तरह हमेशा आपके साथ रहूँ।"
प्रश्न. राम ने सीता को वन के बारे में क्या-क्या कठिनाइयाँ बताईं ?
उत्तर-‘'सीते! वन का जीवन बहुत कठिन है। न रहने का ठीक स्थान न भोजन का ठिकाना। कठिनाइयाँ कदम-कदम पर। तुम महलों में पली हो, ऐसा जीवन कैसे जी सकोगी?"
प्रश्न. राम को वन में जाते समय पिता ने क्या कहा?
उत्तर- " पुत्र ! मेरी मति मारी गई है। मैं वचनबद्ध हूँ। ऐसा निर्णय करने के लिए विवश हूँ। पर तुम्हारे ऊपर कोई बंधन नहीं है। मुझे बंदी बना लो और राज सँभालो । यह राजसिंहासन तुम्हारा है। केवल तुम्हारा।
प्रश्न. राम ने जाते समय पिता से क्या कहा?
उत्तर- राम ने जाते समय पिता से कहा, "आंतरिक पीड़ा आपको ऐसा कहने पर विवश कर रही है। मुझे राज्य का लोभ नहीं है। मैं ऐसा नहीं कर सकता। आप हमें आशीर्वाद देकर विदा करें। विदाई का दुःख सहन करना कठिन है। इसे और न बढ़ाएँ। "
प्रश्न. महर्षि वशिष्ठ ने सीता के वन जाने पर क्या कहा?
उत्तर-सीता वन जाएगी तो सब अयोध्यावासी उसके साथ जाएँगे। भरत सूनी अयोध्या पर राज करेंगे। यहाँ कोई नहीं होगा। पशु-पक्षी भी नहीं।
प्रश्न. सुमंत्र के लौटने पर राजा दशरथ ने क्या-क्या प्रश्न पूछे ?
उत्तर- महामंत्री, राम कहाँ हैं? सीता कैसी है? लक्ष्मण का क्या समाचार है? वे कहाँ रहते हैं? क्या खाते हैं?
प्रश्न. राम वन-गमन के पश्चात् महाराज दशरथ की क्या दशा हुई?
उत्तर- महाराज की बेचैनी बनी रही। बढ़ती गई। वन-गमन के छठे दिन दशरथ ने प्राण त्याग दिए। राम का वियोग उनसे सहा नहीं गया।
प्रश्न. दशरथ की मृत्यु के बाद यह क्यों तय किया गया कि राजगद्दी खाली नहीं रहनी चाहिए। राजगद्दी खाली रहने के क्या परिणाम हो सकते थे?
उत्तर- राजगद्दी खाली रखने से प्रजा उच्छृंखल हो जाती है। अपनी मनमानी करने लगती है। कई लोगों की नजरें राजगद्दी पर जम जाती हैं। राज्य में युद्ध के अवसर बढ़ जाते हैं। पड़ोसी राज्यों के राजा भी गद्दी हथियाने की सोचते हैं। इस प्रकार राजगद्दी खाली छोड़ने से केवल युद्ध व अनुशासनहीनता ही बढ़ती है। राज्य तहस-नहस हो जाता है। लोग मनमाना आचरण करते हैं। कोई नियम-कायदे, कानून शेष नहीं रह जाते। सभी अपने-अपने स्वार्थ की पूर्ति में लग जाते हैं।
राम का वन गमन पाठ के कठिन शब्दार्थ
प्रतीक्षा - इंतजार।
विस्मित - आश्चर्यचकित।
बेसुध - होश में न होना।
शास्त्र सम्मत = शास्त्रों के अनुसार उचित ।
संयत = नियंत्रित ।
उल्लंघन = न मानना।
स्वीकृति = अनुमति होना
विवश - मजबूर।
दृश्य -नज़ारा।
रवाना किए गए - उसी समय।
प्राण त्यागना = मर जाना।
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