वैचारिक साहित्य के अनुवाद का महत्व समस्याएँ एवं समाधान वैचारिक साहित्य, जिसमें दार्शनिक ग्रंथ, राजनीतिक सिद्धांत, वैज्ञानिक शोध पत्र, और सामाजिक आलोच
वैचारिक साहित्य के अनुवाद का महत्व समस्याएँ एवं समाधान
वैचारिक साहित्य, जिसमें दार्शनिक ग्रंथ, राजनीतिक सिद्धांत, वैज्ञानिक शोध पत्र, और सामाजिक आलोचना शामिल हैं, ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसका अनुवाद विभिन्न भाषाओं के बोलने वालों को विभिन्न संस्कृतियों और दृष्टिकोणों से परिचित कराकर सांस्कृतिक समझ और सहयोग को बढ़ावा देता है।
साहित्य के प्रमुखतः दो अंग हैं - गद्य-साहित्य तथा पद्य साहित्य गद्य-साहित्य में वैचारिक अभिव्यक्ति की प्रधानता होती है, तो पद्य-साहित्य में भावात्मक अभिव्यक्ति की। अतः जब हम वैचारिक साहित्य की बात करते हैं, तो प्रमुख रूप से हमारा ध्यान गद्य-साहित्य पर जाता है।
वैचारिक साहित्य का अपना विशिष्ट महत्त्व होता है। इसमें अपने समाज, परिवेश, युग की विचारधारा, चिन्तन, दर्शन का समावेश होता है। हर भाषा-भाषी के समाज की एक विशिष्ट संरचना होती है । उसकी अपनी विशिष्ट सभ्यता, संस्कृति, वैचारिक धारा होती है। इन सभी की प्रभावपूर्ण तथा सार्थक अभिव्यक्ति जितना उस भाषा-विशेष का साहित्य कर सकता है; उतना अन्य कोई विधा नहीं। अतः एक भाषा-भाषी समाज को दूसरे भाषा-भाषी समाज की चिन्तन- धारा से सुपरिचित होने, उसकी वैचारिक सम्पदा से लाभान्वित होने, उसकी सभ्यता-संस्कृति की विशिष्ट प्रवृत्तियों का साक्षात्कार करने के लिए प्रमुखतः और अधिकांशत: अनुवाद का ही सहारा लेना पड़ता है।
वैचारिक साहित्य के अनुवाद का महत्व
वैचारिक साहित्य का अनुवाद न केवल एक देश के विभिन्न भाषा-भाषी समुदायों को एक-दूसरे के निकट लाता है, उनमें भावात्मक तथा सांस्कृतिक एकता का भाव उत्पन्न करता है, अपितु विश्व के विभिन्न राष्ट्रों के निवासियों के मध्य भी रागात्मक सम्बन्ध स्थापित करता है। अनुवाद के माध्यम से ही एक समाज की वैचारिक सम्पदा दूसरे समाज को उपलब्ध होती है और विभिन्न भाषा-भाषी वैचारिक तथा भावात्मक स्तर पर एक-दूसरे के निकट आते हैं। इस सम्बन्ध में डॉ. अर्जुन चाह्वाण का यह कथन द्रष्टव्य है -
"जो अँगरेज़ी नहीं जानता उसके लिए शेक्सपियर, शेली, कीट्स, बायरन और जो हिन्दी नहीं जानता उसके लिए प्रेमचन्द, महादेवी वर्मा तथा निराला का साहित्य व्यर्थ है।"
अतः यदि अहिन्दी भाषियों को हिन्दी के साहित्य का ज्ञान उपलब्ध कराना है, तो उसका अनुवाद उनकी भाषा में करना होगा। इसी प्रकार, यदि अँगरेज़ी न जानने वालों को अँगरेज़ी साहित्य की वैचारिक सम्पदा का बोध कराना है, तो उसका अनुवाद उनकी भाषा में करना होगा। "इस प्रकार, यह सुस्पष्ट है कि विश्व के लब्धप्रतिष्ठ रचनाकारों की कृतियों में निहित ज्ञान की उपलब्धि अनुवाद के द्वारा ही हो सकती है।
स्पष्टतः, अनुवाद ही ऐसा सक्षम माध्यम है, जिसके द्वारा एक भाषा-भाषी का साहित्य दूसरे भाषा-भाषी के लिए सुलभ होता है। अतः वैचारिक साहित्य का अनुवाद मनुष्य-मनुष्य के मध्य की दूरियों को समाप्त करते हुए न केवल राष्ट्रीय एकता का स्वप्न साकार करता है, अपितु 'विश्वबन्धुता' की विराट् कल्पना को भी समूर्त करने में सहायता देता है। वैचारिक साहित्य के अन्तर्गत निबन्ध, लेख, समीक्षा, जीवनी, डायरी, पत्र आदि विविध विधाएँ आ जाती हैं।
वैचारिक साहित्य का क्षेत्र
वैचारिक साहित्य का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता है। फलस्वरूप उसका अनुवाद-क्षेत्र भी व्यापक हो जाता है। आधुनिक युग में मनुष्य का संवेदना-पक्ष क्षीण हो रहा है, भावुकता घट रही है। फलस्वरूप वह अधिक व्यावहारिक हो रहा है। भौतिकता का तीव्र विकास, विज्ञान-तकनीक, प्रौद्योगिकी की अभूतपूर्व उन्नति ने मनुष्य को भावनाप्रधान की अपेक्षा विचारप्रधान अधिक बना दिया है। संवेदना, कल्पना, भावुकता के स्थान पर यथार्थता, व्यावहारिकता, वैचारिकता जैसी प्रवृत्तियाँ प्रबल हो रही हैं। अतः वैचारिक साहित्य का महत्त्व बढ़ रहा है। आधुनिक मनुष्य की इस चिन्तन-प्रधानता ने वैचारिक साहित्य के अनुवाद के महत्त्व में भी वृद्धि कर दी है। एक भाषा-भाषी समाज के साहित्य में निहित वैचारिक ज्ञान दूसरे भाषा-भाषी समाज तक केवल अनुवाद के द्वारा ही पहुँच सकता है। विश्व के प्रख्यात साहित्यकारों की रचना का परिचय विभिन्न देशवासियों को अनुवाद के द्वारा ही सुलभ हो सका है। बायरन, कॉलरिज, रिचर्ड्स, मैथ्यू आर्नाल्ड, जैसे अँगरेज़ी के साहित्यकारों, ताल्स्ताय, गोर्की जैसे रूसी साहित्यकारों; कालिदास, रवीन्द्रनाथ, प्रेमचन्द जैसे भारतीय साहित्यकारों; ज्याँ पॉल सार्त्र, सिमोन द बुआ जैसे फ्रेंच साहित्यकारों आदि के साहित्य का, उसमें निहित मूल्यवान् विचारधारा का विश्व में प्रचार-प्रसार अनुवाद द्वारा ही सम्भव हो सका है।
सृजनात्मक साहित्य का अनुवाद एक अत्यन्त कठिन कार्य है। उसमें भी वैचारिक साहित्य का अनुवाद और भी कठिन है। इस सन्दर्भ में डॉ० भोलानाथ तिवारी का यह कथन अवलोकनीय है, "यों तो सभी प्रकार के सृजनात्मक साहित्य का अनुवाद कठिन होता है, किन्तु सभी की कठिनाइयाँ समान नहीं होतीं ।"
साहित्यिक गद्य का अनुवाद
यह एक सर्वविदित तथा सामान्य तथ्य है कि वैचारिक साहित्य की कोटि में प्रमुखतः गद्यात्मक साहित्य आता है। साहित्य की दोनों विधाओं-पद्य तथा गद्य की जिस तरह अपनी अलग-अलग प्रवृत्तियाँ हैं, उसी तरह इनमें अनुवाद-सम्बन्धी कठिनाइयाँ भी अलग-अलग हैं। डॉ॰ अर्जुन चाह्वाण ने अपनी पुस्तक 'अनुवाद : समस्याएँ एवं समाधान' में इस प्रकार के वैचारिक साहित्य (गद्यात्मक) के अनुवाद में आने वाली कतिपय प्रमुख कठिनाइयों को रेखांकित किया है, जो इस प्रकार हैं-
1. शब्द-स्तर की समस्याएँ
2. ध्वनि-स्तर की समस्याएँ
3. रूप-स्तर की समस्याएँ
4. वाक्य-स्तर की समस्याएँ
5. अर्थगत अर्थात् अभिव्यजंना-स्तर की समस्याएँ
6. शैली को मूलवत् बनाये रखने की समस्याएँ
7. प्रतीक के सही सम्प्रेषण की समस्या
8. बिम्ब के सही सम्प्रेषण की समस्या
9. मिथकीय सन्दर्भ के अन्तरण की समस्या
10. आलंकारिक अभिव्यक्ति के अन्तरण की समस्या
11. पुनरुक्ति के लाघव के अन्तरण की समस्या
12. शीर्षक की गरिमा बनाये रखने की समस्या
13. संक्षिप्तियों के सम्प्रेषण की समस्या
14. कहावतों/लोकोक्तियों के पर्याय की समस्या
15. मुहावरों के सही पर्याय की समस्या
16. आंचलिकता से सम्बन्धित समस्या
17. सामाजिक-सांस्कृतिक स्तर की समस्या
18. रसात्मक एवं कलात्मक अभिव्यक्ति की समस्या
19. कोश-ग्रन्थ के अभाव या अनुपलब्धता की समस्या
20. अनुवाद के अधिकार की समस्या
21. प्रकाशन के अधिकार की समस्या
विचारप्रधान गद्य-साहित्य के सार्थक, सटीक, सुप्रभावी तथा सम्पूर्ण अनुवाद के लिए इन समस्याओं का निराकरण आवश्यक है। यहाँ यह तथ्य ध्यातव्य है कि सफल अनुवाद के लिए स्रोत भाषा तथा लक्ष्य भाषा का सम्यक् ज्ञान ही अपेक्षित नहीं है, वरन् दोनों ही भाषाओं की सामाजिक-सांस्कृतिक प्रवृत्तियों, विशिष्टताओं का सम्यक् ज्ञान भी आवश्यक है। सृजनात्मक साहित्य, विशेषत: वैचारिक साहित्य के अनुवादक को स्वतः सृजनात्मक शक्ति से सम्पन्न होना चाहिए, उसकी वैचारिक शक्ति प्रबल होनी चाहिए। इतिहास साक्षी है कि श्रेष्ठ वैचारिक साहित्य के श्रेष्ठ अनुवाद प्रतिभा-सम्पन्न, सुचिन्तक तथा सृजनात्मक शक्ति-सम्पन्न रचनाकारों द्वारा ही किये गये हैं। इस सम्बन्ध में साहित्यकार अमृतराय का यह कथन द्रष्टव्य है, "हर क्रियेटिव राइटर को ट्रांसलेशन करना चाहिए।"
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