Chitrakoot Mein Bharat | चित्रकूट में भरत | Bal Ram Katha Class 6

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चित्रकूट में भरत पाठ, कक्षा 6 के हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल बाल राम कथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।यह पाठ रामायण की कथा में एक महत्वपूर्ण मोड़ का दर्शा

Chitrakoot Mein Bharat | चित्रकूट में भरत | Bal Ram Katha Class 6


चित्रकूट में भरत पाठ, कक्षा 6 के हिंदी पाठ्यक्रम में शामिल बाल राम कथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है।यह पाठ रामायण की कथा में एक महत्वपूर्ण मोड़ का दर्शाता है, जहाँ भरत, भगवान राम के वनवास और माता कैकेयी के षड्यंत्र के बारे में जानकर, अयोध्या से चित्रकूट आते हैं।
 

चित्रकूट में भरत पाठ का सारांश

भरत केकय राज्य में थे। अपनी ननिहाल में। अयोध्या की घटनाओं से सर्वथा अनभिज्ञ। लेकिन वे चिंतित थे। उन्होंने एक सपना देखा था। संगी-साथियों के साथ बातचीत में उन्होंने कहा, "मैं नहीं जानता कि उसका अर्थ क्या है? पर सपने से मुझे डर लगने लगा है। मैंने देखा कि समुद्र सूख गया। चंद्रमा धरती पर गिर पड़े। वृक्ष सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं। "
 
जिस समय भरत मित्रों को अपना सपना सुना रहे थे, ठीक उसी समय अयोध्या से घुड़सवार वहाँ पहुँचे। घुड़सवारों ने छोटा रास्ता चुना था। भरत को संदेश मिला। वे तत्काल अयोध्या जाने के लिए तैयार हो गए। केकयराज ने भरत को विदा किया। सौ रथों और सेना के साथ। वे आठ दिन बाद अयोध्या पहुँचे। भरत ने अयोध्या नगरी को दूर से देखा। नगर उन्हें सामान्य नहीं लगा। यह मेरी अयोध्या नहीं है। क्या हो गया है इसे? उन्होंने पूछा। सड़कें सूनी हैं। बाग-बगीचे उदास हैं। सब लोग कहाँ गए? वह तुमुलनाद कहाँ है? पक्षी भी कलरव नहीं कर रहे हैं। इतनी चुप्पी क्यों? किसी ने भरत के प्रश्नों का उत्तर नहीं दिया।
 
Chitrakoot Mein Bharat | चित्रकूट में भरत | Bal Ram Katha Class 6
नगर पहुँचते ही भरत सीधे राजभवन गए। महाराज दशरथ के प्रासाद की ओर। महाराज वहाँ नहीं थे। फिर वे कैकेयी के महल की ओर बढ़े। माँ ने आगे बढ़कर पुत्र को गले लगा लिया। "पुत्र! तुम्हारे पिता चले गए हैं। वहाँ, जहाँ एक दिन हम सबको जाना है। उनका निधन हो गया।" भरत यह सुनते ही शोक में डूब गए। पछाड़ खाकर गिर पड़े। "उठो पुत्र! अपने को संभालो।" सब कुछ उल्टा हो गया। “उन्होंने मेरे लिए कोई संदेश दिया?" भरत ने माँ से पूछा। "नहीं, अंतिम समय में उनके मुँह से केवल तीन शब्द निकले। हे राम! हे सीते! हे लक्ष्मण! तुम्हारे लिए कुछ नहीं कहा।" भरत व्याकुल थे। वह तुरंत राम के पास जाना चाहते थे। "महाराज ने उन्हें वनवास दे दिया है। चौदह वर्ष के लिए। सीता और लक्ष्मण भी राम के साथ गए हैं, " कैकेयी ने भरत का मन पढ़ते हुए कहा। वह जानती थी कि भरत यहाँ से सीधे राम के पास ही जाएँगे। वरदान की पूरी कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा, "उठो पुत्र ! राजगद्दी संभालो। अयोध्या का निष्कंटक राज्य अब तुम्हारा है।" भरत अपना क्रोध रोक नहीं सके। चीख पड़े, "यह तुमने क्या किया, माते! ऐसा अनर्थ! घोर अपराध! अपराधिनी हो तुम। वन तुम्हें जाना चाहिए था, राम को नहीं। मेरे लिए यह राज अर्थहीन है। पिता को खोकर, भाई से बिछड़कर। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्या" भरत बोलते रहे, "तुमने पाप किया है, माते! इतना साहस कहाँ से आया तुममें? मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें मैं दास बनकर रहूँगा।'
 
भरत बहुत उत्तेजित हो गए थे। स्वयं पर नियंत्रण नहीं रख सके। भरत रानी कौशल्या के महल की ओर चल पड़े। उनके चरणों में गिर पड़े। कौशल्या आहत थी, कहा, "पुत्र, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे, हो गया। राम अब जंगल में है। अयोध्या का राज तुम्हारा है। मुझे बस एक दुःख है। तुम राज करो पर मुझ पर एक दया करो। मुझे मेरे राम के पास भिजवा दो।" "राम मेरे प्रिय अग्रज हैं। मैं उनका अहित सोच भी नहीं सकता। मैं निरपराध हूँ।" कौशल्या ने भरत को क्षमा कर दिया। भरत सारी रात फूट-फूटकर रोते रहे। सुबह तक शत्रुघ्न को पता चल गया था कि कैकेयी के कान किसने भरे। मुनि वशिष्ठ ने भरत से कहा, "वत्स, तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है। " भरत ने महर्षि का आग्रह अस्वीकार कर दिया। बोले, "मुनिवर, यह राज्य राम का है, वही इसके अधिकारी हैं। मैं यह पाप नहीं कर सकता। हम सब वन जाएँगे और राम को वापस लाएँगे।"
 
वन जाने के लिए सभी तैयार थे। अगली सुबह भरत सभी मंत्रियों और सभासदों के साथ वन जाने के लिए चले। राम और सीता पर्णकुटी में थे। लक्ष्मण पहरा दे रहे थे। कोलाहल उन्होंने भी सुना। वे एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गए। देखने के लिए कि मामला क्या है। लक्ष्मण ने देखा कि विराट सेना चली आ रही है। सेना का ध्वज जाना-पहचाना था। अयोध्या की सेना थी। वे उत्तर की ओर से आगे बढ़ रहे थे। लक्ष्मण ने पेड़ से ही चीखकर कहा, "भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाहते हैं ताकि एकछत्र राज्य कर सकें।" राम ने लक्ष्मण को समझाया। "भरत हम पर हमला नहीं करेगा। कभी नहीं। वह हमलोगों से भेंट करने आ रहा होगा, " राम ने कहा। "भेंट के लिए सेना के साथ आने का क्या औचित्य?" "वीर पुरुष धैर्य का साथ कभी नहीं छोड़ते। कुछ समय प्रतीक्षा करो। इस प्रकार का उतावलापन उचित नहीं है।"
 
भरत ने सेना पहाड़ी के नीचे रोक दी। नगरवासियों से भी वहीं ठहरने को कहा। कोलाहल थम गया। पहाड़ी पर दूर से उन्हें एक छवि दिखी। वह राम थे। शिला पर बैठे हुए। पास ही सीता और लक्ष्मण बैठे थे। भरत दौड़ पड़े। राम के चरणों में गिर पड़े। उनके मुँह से एक शब्द भी नहीं निकला। शत्रुघ्न ने भी राम की चरण वंदना की। बोले वे भी नहीं। राम ने दोनों को उठाकर सीने से लगा लिया। सबकी आँखों में आँसू थे। राम को पता चला कि नगरवासी आए हैं गुरुजन हैं, माता हैं, कैकेयी भी। राम-लक्ष्मण पहाड़ी से उतरकर उनसे भेंट करने आए। अगले दिन भरत ने राम से राजग्रहण का आग्रह किया। समझाया। विनती की कि अयोध्या लौट चलें। महर्षि वशिष्ठ ने कहा, "राम, रघुकुल की परंपरा में राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है। तुम्हें अयोध्या लौटकर अपना दायित्व निभाना चाहिए। इसी में कुल का मान है। नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा।" अयोध्या पहुँचकर भरत ने पादुका पूजन किया। भरत अयोध्या में कभी नहीं रुके। तपस्वी वस्त्र पहने और नंदीग्राम चले गए। जाते समय उन्होंने कहा, "मेरी अब केवल एक इच्छा है इन पादुकाओं को उन चरणों में देखूँ जहाँ इन्हें होना चाहिए। मैं राम के लौटने की प्रतीक्षा करूँगा। चौदह वर्ष।" 


चित्रकूट में भरत पाठ के प्रश्न उत्तर

 
प्रश्न. भरत ने अपने ननिहाल में क्या सपना देखा? 
उत्तर- भरत ने कहा, "मैं नहीं जानता कि उसका अर्थ क्या है? पर सपने से मुझे डर लगने लगा है। मैंने देखा कि समुद्र सूख गए। एक राक्षसी पिता को खींचकर ले जा रही है। वे रथ पर बैठे हैं। रथ गधे खींच रहे हैं।"
 
प्रश्न. भरत को अपनी अयोध्या नगरी में दूर से क्या बदलाव नजर आया? उन्होंने क्या-क्या प्रश्न पूछे? 
उत्तर- भरत ने अयोध्या नगरी को दूर से देखा। नगर उन्हें सामान्य नहीं लगा। बदला-बदला सा था। अनिष्ट की आशंका उनके मन में और गहरी हो गई। यह मेरी अयोध्या नहीं है। क्या हो गया है इसे? उन्होंने पूछा। सड़कें सूनी हैं। बाग-बगीचे उदास हैं। सब लोग कहाँ गए? वह तुमुलनाद कहाँ है? पक्षी भी कलरव नहीं कर रहे हैं। इतनी चुप्पी क्यों?
 
प्रश्न. कैकेयी ने भरत से पिता के बारे में क्या कहा? 
उत्तर- "पुत्र! तुम्हारे पिता चले गए हैं। वहाँ, जहाँ एक दिन हम सबको जाना है। उनका निधन हो गया।
 
प्रश्न. कैकेयी ने भरत को राजगद्दी पर बैठने के लिए क्या कहा? 
उत्तर- वरदान की पूरी कथा सुनाते हुए उन्होंने कहा, "उठो पुत्र! राजगद्दी संभालो। अयोध्या का निष्कंटक राज्य अब तुम्हारा है।'

प्रश्न. भरत ने राज्य के लिए माँ से क्या कहा? 
उत्तर- भरत अपना क्रोध नहीं रोक सके। चीख पड़े, "यह तुमने क्या किया माते! ऐसा अनर्थ! घोर अपराध! अपराधिनी हो तुम। वन तुम्हें जाना चाहिए था। राम को नहीं। मेरे लिए यह राज अर्थहीन है। पिता को खोकर भाई से बिछड़कर। नहीं चाहिए मुझे ऐसा राज्य । " 

प्रश्न. भरत ने सभासदों से क्या कहा? 

उत्तर- भरत ने हाथ जोड़कर कहा, “आप भी सुन लें। मेरी माँ ने जो किया है, उसमें मेरा कोई हाथ नहीं है। मैं राम की सौगंध खाकर कहता हूँ। मैं राम के पास जाऊँगा। उन्हें मनाकर लाऊँगा। प्रार्थना करूँगा कि वे गद्दी संभालें। मैं दास बनकर रहूँगा।"
 
प्रश्न. कौशल्या से मिलने आए भरत को माँ कौशल्या ने क्या कहा? 
उत्तर- "पुत्र, तुम्हारी मनोकामना पूरी हुई। तुम जो चाहते थे हो गया। राम अब जंगल में हैं। अयोध्या का राज तुम्हारा है। मुझे बस एक दुःख है। कैकेयी ने राज लेने का जो तरीका अपनाया वह अनुचित था। निर्मम था। तुम राज करो पुत्र, पर मुझ पर एक दया करो। मुझे मेरे राम के पास भिजवा दो।"
 
प्रश्न. गुरु वशिष्ठ ने भरत से क्या कहा? 

उत्तर-गुरु वशिष्ठ ने भरत से कहा कि वत्स तुम राजकाज संभाल लो। पिता के निधन और बड़े भाई के वन-गमन के बाद यही उचित है।
 
प्रश्न. भरत ने मुनि वशिष्ठ से क्या कहा? 
उत्तर- "मुनिवर, यह राज्य राम का है। वही इसके अधिकारी हैं। मैं यह पाप नहीं कर सकता। हम सब वन जाएँगे और राम को वापस लाएँगे।"
 
प्रश्न . भरत को आता देखकर लक्ष्मण व राम के क्या विचार थे? 
उत्तर-लक्ष्मण ने पेड़ से ही चीखकर कहा, "भैया, भरत सेना के साथ इधर आ रहे हैं। लगता है वे हमें मार डालना चाहते हैं ताकि एकछत्र राज्य कर सकें। " राम कुटी से बाहर आए। उन्होंने लक्ष्मण को समझाया। " भरत हम पर हमला नहीं करेगा। कभी नहीं। वह हम लोगों से भेंट करने आ रहा होगा," राम ने कहा।
 
प्रश्न. भरत ने राम को क्या दुःखद समाचार बताया? 
उत्तर- " एक दुःखद समाचार है, भ्राता ! बहुत कठिनाई से उन्होंने कहा, पिता दशरथ नहीं रहे। आपके आने के छठे दिन । दुःख में प्राण त्याग दिए ।
 
प्रश्न. महर्षि वशिष्ठ ने राम को अयोध्या ले जाने के लिए क्या तर्क दिया? 

उत्तर- महर्षि वशिष्ठ ने कहा, "राम! रघुकुल की परंपरा में राजा ज्येष्ठ पुत्र ही होता है। तुम्हें अयोध्या लौटकर अपना दायित्व निभाना चाहिए। इसी में कुल का मान है। "

प्रश्न. राम ने गुरु वशिष्ठ के वचनों का क्या उत्तर दिया? 
उत्तर- " चाहे चंद्रमा अपनी चमक खो दे, सूर्य पानी की तरह ठंडा हो जाए, हिमालय शीतल न रहे, समुद्र की मर्यादा भंग हो जाए, परंतु मैं पिता की आज्ञा से विरत नहीं हो सकता। मैं उन्हीं की आज्ञा से वन आया हूँ। उन्हीं की आज्ञा से भरत को राजगद्दी संभालनी चाहिए।" 

प्रश्न. राम के अयोध्या न लौटने की जिद को देखकर भरत ने क्या कहा?

उत्तर- " आप नहीं लौटेंगे तो मैं भी खाली हाथ नहीं जाऊँगा। आप मुझे अपनी खड़ाऊँ दे दें। मैं चौदह वर्ष उसी की आज्ञा से राजकाज चलाऊँगा । 

प्रश्न. भरत ने राम की पादुकाएँ लेकर क्या कहा? 
उत्तर- भरत ने पादुका पूजन किया। कहा, “ये पादुकाएँ राम की धरोहर हैं। मैं इनकी रक्षा करूँगा। इनकी गरिमा को आँच नहीं आने दूँगा।मेरी अब केवल एक इच्छा है। इन पादुकाओं को उन चरणों में देखूँ जहाँ इन्हें होना चाहिए। मैं राम के लौटने की प्रतीक्षा करूंगा। चौदह वर्ष ।"

चित्रकूट में भरत पाठ के कठिन शब्दार्थ

अनभिज्ञ =अनजान।
प्रासाद = महल। 
तुमुलनाद = हर्षयुक्त ध्वनि। 
निष्कंटक = बिना किसी रुकावट के (बाधा के)।

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