हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है यह बात सत्य है कि हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है यह बात अलग है कि मानव ने अपनी आवा
हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
यह बात सत्य है
कि हर जीव की तरह मनुष्य भी बिना बोले ही बतियाता है
यह बात अलग है कि मानव ने
अपनी आवाज को अलग-अलग तरीके से उच्चारण करके
अपनी बोली और भाषा विकसित कर ली
पर एक भाषाई समूह की भाषा दूसरे भाषाई समूह के लिए
कल भी अबूझ थी आज भी अबूझ है कल भी अबूझ रहेगी!
कि मानव जब एक दूसरे से बोलकर बतियाता है
तो कुछ बुनियादी जरूरत की बातें छोड़कर
अपनी प्रवृत्ति व पेशा के अनुसार अधिकतर झूठ ही फैलाता है
हर आदमी धर्म संप्रदाय वेशभूषा का कृत्रिम आवरण ओढ़कर
तदनुसार पूर्वाग्रह पालता, दिल की सच्चाई छिपाता
मनगढ़ंत दिमागी फितूर पैदा करता और मानव को भरमाता
लेकिन दूसरा उनके हावभाव ऊलजलूल हरकत से सच समझ लेता!
एक शाश्वत तथ्य यह है
कि अधिकांश सत्य बिना बोले अंतःकरण में उद्भासित होता
और अधिकांश झूठ भाषा में बोलकर या लिखकर फैलाया जाता
यह पूरी तरह से सत्य है
कि सत्य का साक्षात्कार हमेशा मौन रहकर ही होता
और असत्य का प्रचार सदा भाषा के द्वारा किया जाता!
सच में जो सात्विक प्रवृत्ति का मनुष्य होता
वह किसी धर्म मजहब वेशभूषा भाषा से प्रभावित नहीं होता
सात्विक मनुष्य मानवीय धर्म और इंसानी कर्म को पहचानता
सात्विक मनुष्य सत्य का पक्षधर होकर सद्कर्म में लिप्त होता
सात्विक मनुष्य बिना बोले बतियाए सत्य को समझ लेता
सात्विक मनुष्य जरूरत के हिसाब से बिना कहे नेक कार्य करता!
जबकि सच्चाई यह भी है
कि तामसी व्यक्ति भी बिना बोले लोगों की समस्या समझ लेता
लेकिन वह जरूरतमंद की तबतक मदद के लिए आगे नहीं आता
जबतक वो व्यक्ति मदद हेतु गिड़गिड़ाता या चिरौरी नहीं करता!
ऐसे में एक समय ऐसा आ जाता जब तमस वृत्ति का व्यक्ति
मदद पहुँचाने के काबिल नहीं रह जाता,वय व्याधि से अक्षम हो जाता
या जरूरतमंद व्यक्ति उनकी तात्कालिक मदद पाए बिना ही
स्वप्रयत्न से अपनी समस्या का हल हासिल कर लेता
यह स्थिति उस व्यक्ति व सम्बंधी के लिए बड़ी हास्यास्पद होती
जब समय चूक जाने पर उसका धन-बल व सामर्थ्य धरा रह जाता!
सच तो यह है कि मानव भाषा को विकसित करने के बाद
बहुत अधिक संवादहीन, संवेदना शून्य, झूठा और मक्कार हो गया
जबकि भाषा विहीन सारे सजीव अपने सजाति के दुख दर्द को
आरंभ से जितना अधिक जानता उतना भाषाविद मानव नहीं जानता!
आज आम मानव मानव के दुख दर्द को जानकर आनंदित होता
आज एक मनुष्य का सुख, दूसरे मनुष्य के दुख से उत्पन्न होता
आज एक मनुष्य का दुख, दूसरे मनुष्य के सुख से जन्म लेता
जबकि बेजुबान जीवों का सुख-दुख एक दूसरे का सुख-दुख होता
तृणभक्षी हाथी भैंसा को हिंस्र सिंह बाघ से बचाने सारे साथी आता!
आज मानव ही क्यों झूठा मक्कार मतलबी और फरेबी हो गया?
भौतिक लाभ और स्वार्थ के लिए मानवता को क्यों खोने दिया?
ईश्वर अल्लाह खुदा रब में भेद कर घृणा को क्यों आस्था बनाया?
सारे ईश्वर हैं एक बराबर, अलग अलग नाम से प्रकट होते निरंतर!
प्रभु श्रीराम मानव जाति को मर्यादित जीवन जीना सिखा गए
श्रीकृष्ण ने न्याय की रक्षा हेतु जैसे को तैसा व्यवहार बता गए
बुद्ध और महावीर ने अहिंसावाद को मानव का धर्म बतला गए
मगर बाद के कुछ लोगों ने हिंसा और आतंकवाद को अपना लिए!
मगर जान लो लोगों कर्म के अनुसार कर्मफल तो मिलेगा ही
एक ही ईश्वर ने संपूर्ण जीव जगत अंडज पिंडज उद्भिद बनाया
जिसने जैसा कर्म किया वैसी ही योनि में जन्म व जीवन पाया
किसी को तृणभक्षी किसी को गला घोटकर सजीव खाने की योनि
मगर सब में उतनी ही शक्ति दी जिससे जीवित रहे सभी प्राणी!
मानव योनि ही ऐसी है जिसमें कर्मफल से मिलती है मुक्ति
भला करोगे भला होगा, बुरा करोगे बचने की नहीं कोई युक्ति
जीव जंतुओं की रक्षा कर, मानव हो मानव को मारने से डर,
जैसा तुम्हें खुद के लिए चाहिए वैसी चाह हर प्राणी के लिए कर।
जब ईश्वर के दरबार में जाओगे कोई भाषा काम नहीं आएगी
भूल जाओगे सारी भाषा लिपि, पूर्वाग्रही ज्ञान तालीम किताबी,
अगर कुछ होगा तो दिखेगा तुम्हारा सत्कर्म दुष्कर्म व यमदंड
कोई ना कुछ बोलेगा बतियाएगा,बिन बोले सब समझ आएगा
जितने जीव को जैसा कष्ट दिया, उतना कष्ट पाओगे हरदम!
- विनय कुमार विनायक
COMMENTS