हिंद महासागर से हिमालय तक उपन्यास में सैनिक चेतना हिंद महासागर से हिमालय तक' उपन्यास के लेखक विनय कुमार हैं। विनय कुमार वर्तमान समय में राजकीय महाविद
हिंद महासागर से हिमालय तक उपन्यास में सैनिक चेतना
हिंद महासागर से हिमालय तक' उपन्यास के लेखक विनय कुमार हैं। विनय कुमार वर्तमान समय में राजकीय महाविद्यालय भोरंज, हमीरपुर, हिमाचल प्रदेश में सहायक आचार्य (हिंदी) के पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। विनय कुमार भारतीय नौसेना के पूर्व नौसैनिक हैं। विनय कुमार स्वयं एक सैनिक हैं। उन्होंने स्वयं एक सैनिक के जीवन को जीया है। उन्हें सैन्य जीवन का स्वयं अनुभव है। उन्होंने अपने उपन्यास 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' में एक भारतीय सैनिक को महिमामंडित करने की कोशिश की है। जब तक शेरों के अपने इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार की कहानियों में शिकारी ही महिमामंडित होंगे। 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उपन्यास में विनय कुमार भारतीय सैनिकों के प्रतिनिधि बनकर उभरे हैं। एक सैनिक कैसे अपने परिवार और देश के प्रति अपने कर्तव्य का पालन करता है, उसका उपन्यास में सुंदर वर्णन किया गया है। नारकीय परिस्थितियों से गुजरने के बावजूद एक सैनिक अपनी चेतना को जाग्रत रखता है। वह अपने परिवेश के प्रति सचेत रहता है। वह कठिनाइयों का डट कर मुकाबला करता है। उपन्यास के अंत में भारतीय सैनिक एक नायक के रूप में हमारे सामने आता है।
हिंदी उपन्यास साहित्य में विनय कुमार सर्वाधिक चर्चित रचनाकारों में से एक हैं। बहुमुखी प्रतिभा के धनी विनय कुमार केवल उपन्यासकार के रूप में विख्यात नहीं हुए, अपितु साहित्य की अन्य विधाओं नाटक, कविता, कहानी, व्यंग्य के अतिरिक्त एक अच्छे समीक्षक के रूप में अत्यंत सजगता के साथ सामयिक प्रश्नों को उजागर किया है। इनकी प्रतिभा एक रेखीय नहीं है। बल्कि बहुविधा अनुशासनों एवं प्रयोगों के माध्यम से इन्होंने साहित्य की प्रत्येक विधा को नए-नए रत्नों से सजाया-संवारा है। विनय कुमार के उपन्यासों का मुख्य विषय सैनिक जीवन रहा है। 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उपन्यास एक सैनिक के जीवन की कथा है। मौजूदा उपन्यास में उन्होंने सैनिक के जीवन को बड़ी सूक्ष्मता तथा प्रत्येक कोण से अभिव्यक्त किया है। इनकी कहानी 'रानी लीलावती', 'सुहानो', 'द नन' और जमिया मसान में भी सैनिक जीवन की बड़ी बारीकी से उभारा गया है। लेखक का उद्देश्य भारतीय सैनिक को भारतीय समाज में वह स्थान दिलाना है, जिसका वह हकदार है।
सैनिकों के जीवन पर साहित्य लिखने में चंद्रधर शर्मा' गुलेरी' की परंपरा के अग्रणी लेखक विनय कुमार हैं। समकालीन पात्रों के माध्यम से भारतीय सैनिक के जीवन के गहरे एवं अनसुलझे रिश्तों को इनके अधिकांश उपन्यासों में वर्णित किया गया है। सामाजिक स्तर पर समाज की रक्षा का दायित्व सैनिक पर है। भारत को अंग्रेजों से स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद एक भारतीय सैनिक के दायित्वों व कर्तव्यों में व्यापक परिवर्तन आया है। शिक्षा, रोजगार, नए विचारों से परिचय के कारण सैनिक के जीवन एवं सोच में व्यापक बदलाव की शुरुआत हुई। उसमें अपनी अस्मिता के प्रति पर्याप्त सजगता आई। सैनिक जीवन को कई उपन्यासकारों ने अपने उपन्यासों की विषय वस्तु बनाया। सामाजिकता निभाने में सैनिक के सामने काम-संबंध एक मुख्य समस्या के रूप में आया। "हमें आज हिंदी साहित्य का एक वृहद भाग सेक्स से ही आच्छादित मिलेगा।" फ्रायड के मनोविश्लेषणवाद के अनुसार जीवन के समस्त कार्य - व्यापारों का मूल काम-वासना से प्रभावित होता रहता है। 'सेतुबंध' नाटक में प्रभावती एवं कालिदास के प्रेम और यौन संबंधों की अवांदनीयता से उत्पन्न तनाव एवं द्वंद्व के द्वारा स्त्री-चेतना को चित्रित किया गया है। प्रभावती अपने पिता के दबाव में आकर वाकाटक नरेश से विवाह कर लेती है परंतु हृदय तल से वह पत्नी नहीं बन पाती है। तभी तो प्रभावती कहती है :- मेरी भावना आज तक कुमारी है। मैं माँ बनी हूँ, लेकिन पत्नी नहीं।
'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उपन्यास में मुख्य पात्र, वैवाहिक जीवन में धोखे का शिकार होता है। उसकी पत्नी उसे धोखा देती है और दोनों का तलाक हो जाता है। लेकिन जगनिक फिर भी हार नहीं मानता। वह इस धोखे से उभर कर उज्ज्वल भविष्य की आशा रखते हुए, अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ता रहता है और अंत में सफलता को प्राप्त करता है। आशा उत्साह की जननी है, आशा में तेज है, बल है, जीवन है। आशा ही संसार की संचालन शक्ति है।संघर्ष भी उन्हीं को चुनता है, जिनमें लड़ने की ताकत हो। हमने तो सिर्फ गाथाएं सुनी हैं, वीरों ने तो मंजर देखा था। जगनिक सफल होता है क्योंकि जगनिक की एक विशेषता थी कि कभी हार न मानना और अपने विचारों को निर्भीक होकर स्पष्ट रूप से प्रकट करना। नौसैनिक कितना ही अपरिपक्व हो, नौसेना उसे परिपक्व बना ही देती है। साथ में चालाक भी। तभी वह अपना अस्तित्व बचा पाएगा। हर काल में समाज मानव की कामोत्तेजना से ही परिचालित रहा है।जो स्त्री परपुरुष से संबंध बनाते हुए पकड़ी जाती है, वह कुलक्षणी कहलाती है और जो नहीं पकड़ी जाती वह पतिव्रता कहलाती है। अपने-अपने राज हैं। जिसके दुनिया को पता वह वेवफा और जिसके नहीं पता वह बेदाग है। सेना में जब कोई सैनिक तनाव का शिकार हो जाता है तो उसकी मदद नहीं की जाती है। उसे तंग करके उसके तनाव को और बड़ाया जाता है। मुसीबतें आती रहती हैं। उनसे बचा नहीं जा सकता। उनका आना या ना आना हमारे हाथ में नहीं है। वह मुकद्दर की बात है लेकिन जो चीज हमारे हाथ में है वह यह है कि हम मुसीबत आने पर मुसीबतों का सामना संयम, उत्साह और वीरता से करें।
'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उपन्यास के रचनाकार ने सैनिक-चरित्र की चेतना को मनोवैज्ञानिकता के आधार पर रचा है। उन्होंने सैनिक जीवन की विवशता, दैन्यता और असमर्थता को इस उपन्यास के माध्यम से अभिव्यक्त किया है। वस्तुतः उन्होंने जगनिक को आधुनिक युग के सैनिक के रूप में चित्रित किया है।जो नायक है, वही समय की जरूरत के अनुरूप खलनायक बन जाता है। दूसरे को लूट लेना इंसानी फितरत है।जब किसी व्यक्ति को किसी का शोषण करने का मौका मिलता है तो वह व्यक्ति कभी नहीं चूकता।
बुराई को शुरू में ही दबा देना चाहिए।विनय कुमार ने जगनिक के माध्यम से एक भारतीय सैनिक की विभिन्न प्रवृत्तियों को दिखाने का प्रयास किया है। उपन्यासकार ने इस उपन्यास में भारतीय सेना में जीवन-यापन करने वाले सैनिक की अर्थ प्राप्ति की दिशा में उलझे जीवन को अभिव्यक्ति दी है। इस उपन्यास में सैनिक चेतना की बात ही नहीं बल्कि सैनिक के विविध रूपों को दर्शाया गया है। इस उपन्यास में विनय कुमार की दृष्टि वर्तमान भारतीय समाज के नागरिक-सैनिक के बीच पारस्परिक मतभेद, मनभेद घृणा और दुख की स्थिति को व्यक्त करने की रही है। उन्होंने इसके लिए उपन्यास को साहित्यिक विधा का सबसे सफल प्रयोग के रूप में दर्शाने का कार्य किया है। इस उपन्यास के माध्यम से सैनिक वेदना को सफलतम अभिव्यक्ति प्रदान की है। उपन्यास में सैनिक चेतना को लेकर चर्चा हुई है। यह आधुनिक बोध की जीवन दृष्टि के धरातल पर चित्रित है। भारतीय समाज एक ऐसा समाज है जो आवरण एवं मुखौटों के साथ जीता है और यथार्थ का सामना नहीं करना चाहता।
हिंदी साहित्य में सैनिकों के जीवन पर बहुत सारी पुस्तकें लिखी गई हैं। परंतु अधिकांश पुस्तकों में उनकी वीरता और बलिदान को ही चित्रित किया गया है। सैनिकों को सिर्फ महान योद्धाओं के रूप में चित्रित करने की कोशिश की गई है। एक मनुष्य के रूप में उनकी जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों का वर्णन करने की बहुत कम कोशिश की गई है। एक सैनिक पूरा वर्ष अपने परिवार से दूर रहकर किस मनःस्थिति से गुजरता है। एक तरफ तो उसे अपने परिवार की याद आती है, तो दूसरी तरफ उसे अपने देश के प्रति अपने कर्तव्य और दायित्व का निर्वाह भी करना होता है। सैनिक अपने कर्तव्य का सफलतापूर्वक निर्वाह करते हैं। सैनिकों की व्यक्तिगत जिंदगी पीड़ा और कुण्ठा से भरी होती है। वर्तमान समय के साहित्य में सैनिक जीवन की पीड़ा और कुण्ठा को भी अभिव्यक्ति देने की आवश्यकता है।
इस प्रकार हम कह सकते हैं कि सैनिक-चेतना के स्तर पर विनय कुमार के उपन्यास में भारतीय सैनिकों के जीवन को स्वतंत्रण रूप से अभिव्यक्त किया गया है। इनका उपन्यास समकालीन भारत में सैन्य जीवन के बदलते हुए यथार्थ का गवाह बनकर हमारे सामने उपस्थित है। विनय कुमार ने सैन्य जीवन के नए आयामों को भी तलाशने का काम किया है। कुल मिलाकर विनय कुमार ने सैनिक चेतना के तहत सैन्य जीवन को आधुनिक दृष्टिकोण से देखा-परखा है।
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