हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना

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हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना एक महान कहावत है कि - "जब तक शेरों के पास अपने स्वयं के इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार का इतिहास हमेशा शिकारी का महिमामंडन

हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना


क महान कहावत है कि - "जब तक शेरों के पास अपने स्वयं के इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार का इतिहास हमेशा शिकारी का महिमामंडन करेगा। भारत में सैनिक सत्रह - अठारह वर्ष की छोटी उम्र में ही सेना में भर्ती हो जाते हैं। सेना में वह अपने समाज से दूर हो जाते हैं। वहां पर उन्हें रोजमर्रा की जिंदगी में कई तरह की कठिनाइयां सहनी पड़ती हैं। लेकिन भारतीय साहित्य में सैनिकों की वीर गाथाओं के अलावा उनकी जिंदगी का बहुत थोड़ा ही वर्णन है। अपने घर और समाज से दूर वह किस पीड़ा से गुजरते हैं।

प्रस्तावना

भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर 'शास्त्री' ने नारा दिया था-"जय जवान, जय किसान।" भारत अंग्रेजों से स्वतंत्रता मिलने के बाद से अब तक चार युद्ध लड़ चुका है। भारतीय हिंदी साहित्य में किसानों के साथ जवानों के योगदान को भी सराहा गया है। भारतीय साहित्य में किसानों के जीवन संघर्ष को भी महिमामंडित किया गया है। लेकिन सैनिकों की सिर्फ युद्ध में दिखाई गई वीरता और बलिदान को ही महिमामंडित किया गया है। उनके व्यक्तिगत जीवन की पीड़ा को साहित्य में बहुत कम जगह दी गई है।

बीज शब्द

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उद्देश्य

मेरे इस शोध पत्र का उद्देश्य भारतीय साहित्य में वर्णित सैनिक वेदना को उभारना है। सैनिकों की वीरगाथाओं के अलावा उनके व्यक्तिगत जीवन की पीड़ाओं को भी साहित्य में वह स्थान मिलना चाहिए, जिसके वे हकदार हैं।

हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना

भारत कृषि प्रधान देश है। इस देश की आबादी का तीन - चौथाई हिस्सा गांवों में बसा है। जिसका संबंध कृषि से है। हिंदी उपन्यासों का अध्ययन करने पर पता चलता है कि अधिकांश उपन्यासों में ग्रामीण जन - जीवन का विस्तृत एवं यथार्थ चित्रण हुआ है। गांव की पाठशाला में पढ़ने वाला बच्चा बड़ा होकर सैनिक बनना चाहता है। सैनिक बनने में असफल होने पर वह किसान बन जाता है। युवा अन्य क्षेत्रों में भी सफलता प्राप्त करते हैं। लेकिन अन्य क्षेत्रों में भी सफलता की यह दर बहुत कम होती है। किसान पूरा वर्ष चिंता से घिरा रहता है। अगर मौसम ने साथ नहीं दिया तो फसल बर्बाद हो जाएगी। लेकिन भारतीय सेना के जवान की तनख्वाह पूरा वर्ष आती रहती है। किसान का बेटा सैनिक बन कर आर्थिक चिंताओं से मुक्त हो जाता है। 

हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना
भारतीय साहित्य में कृषक जीवन की विविध समस्याओं का चित्रण किया गया है। इन समस्याओं के मूल में अर्थ या धन को माना है। पैसे का सर्वथा अभाव ही मानव जीवन का अभिशाप बन जाता है। कृषक जीवन की यही त्रासदी है। वे दाने - दाने को तरसते रहते हैं। कौड़ी कौड़ी को महाजन के आगे हाथ फैलाते हैं। उनकी अशिक्षा, दरिद्रता, अंधविश्वास, आपसी झगड़े आदि सभी दुर्दशा पैसे के अभाव से ही है। इसी अर्थ के कारण समाज में अनेक प्रकार की शोषण समस्याएं निर्मित होती हैं। रिश्वतखोर पुलिस, अदालत और नौकरशाही अपने अपने तरीके से इनका खून चूसते हैं। इन शोषण प्रकारों के अलावा कृषकों का शोषण और भी अन्य तरीकों से होता है। छूआछूत और जातिभेद का ढोंग, भाग्यवाद और धर्म का भय आदि सिर्फ गरीबों को लूटने के लिए ही होता है। पारिवारिक जीवन में अशांति अर्थ के अनर्थ का एक और ही रूप है। इसी अर्थप्रधान पद्धति ने सारे समाज का सुख चैन छीन लिया है। समाज को दूषित कर डाला है। भोले - भाले, निरीह, दुर्बल किसानों और सैनिकों के जीवन में धन प्रमुख भूमिका अदा करता है। व्यक्ति के जीवन में धन का महत्व मुंशी प्रेमचंद ने अपने उपन्यास 'गोदान' के पात्र भोला के मुख से अभिव्यक्त किया है। भोला कहता है, "आदमी वह है, जिसके पास धन है, अख्तियार है, इलम है, हम लोग तो बैल हैं और जुतने के लिए पैदा हुए हैं। ¹  मनुष्य सामाजिक प्राणी है। साहित्य समाज का दर्पण होता है। उसकी सामाजिक अनुभूति साहित्य में अभिव्यक्त होती रहती है। वह अपने आसपास के समाज में जो कुछ देखता है, सुनता है, महसूस करता है, जिसका उसे अह्सास होता है, उन सभी को वह अपनी लेखनी से चित्रबद्ध करता रहता है। दांपत्य प्रेम, प्रेम का अत्यंत उज्जवल और उदात्त रूप होता है। किसान और सैनिक के जीवन में मर्यादा का बहुत बड़ा महत्व होता है। गांवों में पंचायत महत्वपूर्ण स्थान रखती है। पंचायत के पंच ईश्वर के अवतार होते हैं। किसी भी काल के साहित्य में अपने युग जीवन की झलक देखने को मिलती है। साहित्यकार पर अपने युग की सामाजिक, राजनीतिक पृष्ठभूमि का प्रभाव गहरा होता है। उसका साहित्य इससे अछूता नहीं रहता।वह जिस युग में जीता है, उस युग की सामाजिक, राजनीतिक समस्याओं का अंकन उसकी रचनाओं में होता है। 

तत्कालीन राजनीतिक आंदोलनों का साहित्यकार और उसके साहित्य पर अपेक्षित प्रभाव पड़ता है। गोदान उपन्यास में प्रेमचंद ने लिखा है, "थाना-पुलिस, कचहरी-अदालत सब है हमारी रक्षा के लिए लेकिन रक्षा कोई नहीं करता। चारों तरफ लूट है। जो गरीब है, बेबस है, उसकी गर्दन काटने के लिए सभी तैयार रहते हैं।" ²   सैनिक जीवन की सबसे महत्वपूर्ण समस्या आर्थिक है। हिंदी साहित्यकारों ने अर्थ के अनर्थ का प्रभावकारी चित्रण किया है। उनकी दृष्टि में धन ही सभी समस्याओं की जननी है। सभी का उत्स वही है। सैनिक के घर में ऋण वह मेहमान है जो एकबार आकर जाने का नाम नहीं लेता। समाज जोंक की तरह सैनिकों का खून चूसने लगता है। पटवारी, पंच, प्रधान आदि उसका शोषण शुरू करते हैं। इन सबका कारण उनकी अन्याय से दबने की प्रवृत्ति, अज्ञान और उनका असंगठित होना बताया गया है। सैनिकों की सामाजिक समस्याओं में विवाह समस्या महत्वपूर्ण स्थान रखती है। अनेक नारकीय यातनाओं को सहते रहने के बावजूद सैनिक की त्याग एवं परिवार पालन की भावनाएं ऊंची हैं। विवाह समस्या का एक महत्वपूर्ण पहलू दहेज है। दहेज हमारे समाज पर धब्बा है। लेकिन सैनिकों को झूठे दहेज के मुकदमों में फंसाना अपराध है। सैनिकों की मर्यादा की रक्षा का प्रश्न भी महत्व रखता है। झूठी मर्यादा के पीछे सैनिक बर्बाद होते हैं। सैनिकों में तरह-तरह के व्यसन भी होते हैं। थोड़ी सी शराब पीकर अपने दुख दर्द को भूलने की कोशिश जरूर करेंगे। हिंदी साहित्य में सैनिकों की सामाजिक समस्याओं का चित्रण कम ही हुआ है। प्रेमचंद किसानों के लेखक माने जाते हैं तथा प्रेमचंद ने किसानों के जीवन का बहुत ही अच्छे से वर्णन किया है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी और प्रोफेसर विनय कुमार सैनिकों के लेखक माने जाते हैं तथा इन्होंने सैनिक जीवन का बहुत ही अच्छे से वर्णन किया है।चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' बहुत ही प्रसिद्ध हुई। 

प्रोफेसर विनय कुमार का उपन्यास 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' सैनिक जीवन की महागाथा है। जहां चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी 'उसने कहा था' सन् 1915 में प्रकाशित हुई वहीं विनय कुमार का उपन्यास 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' सन् 2024 में प्रकाशित हुआ। विनय कुमार शिक्षा क्षेत्र में आने से पहले भारतीय नौसेना में अपनी सेवाएं दे चुके हैं। इसलिए अपने उपन्यास में वे सैनिक वेदना को गहराई से उभारने में सफल रहे हैं। विनय कुमार ने अपने साहित्यिक जीवन की शुरुआत' विजडम एंड वर्ड ' पुस्तक में लघु कथा 'द नन' और कविता 'आशियाना' के प्रकाशन से की थी। 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उनकी प्रौढ़ कृति है। विनय कुमार ने अपने साहित्य में भारतीय सैनिक का चित्रण किया है। उनके साहित्य के कलापक्ष की समुचित व्याख्या करने के लिए उनके साहित्य के सामाजिक, आर्थिक पक्ष का अध्ययन भी अपेक्षित है। उनकी सर्जनात्मक कल्पना जिस जिस सामाजिक यथार्थ के ज्ञान पर टिकी हुई है, उससे उनकी सर्जनात्मक कल्पना की शक्ति निर्धारित हुई है। विनय कुमार के साहित्य में आलोचकों और साहित्यकारों ने अपनी गहरी रूचि दिखाई है तथा विनय कुमार की प्रतिभा को परिभाषित करने का प्रयास किया है और इसके साथ साथ तत्कालीन भारतीय समाज को समझाने के लिए भी उनके साहित्य का प्रयोग किया है। विनय कुमार के साहित्य के केंद्र में तत्कालीन भारतीय सैनिक है। उनकी संपूर्ण कला चेतना भारतीय सैनिक की जीवन पद्धति से प्रभावित और निर्धारित हुई है। उनके साहित्य के एक बड़े हिस्से का विषय क्षेत्र सैनिक जीवन से लिया गया है। इनकी सर्वोत्तम रचनाएं वे ही मानी गई हैं, जिनमें भारतीय सैनिक का जीवन प्रतिबिंबित हुआ है। 'रानी लीलावती', 'सुहानो', 'द नन', 'आशियाना', 'हिंदमहासागर से हिमालय तक', जैसी रचनाओं में मुख्य रूप से सैनिक के जीवन के विविध पक्षों को ही उभार कर सामने रखा गया है। इसके अलावा जिन रचनाओं के विषय सैनिकों से संबंधित नहीं हैं, उनमें भी कहीं न कहीं सैनिक दृष्टि का उपयोग किया गया है।इसलिए भारतीय सैनिक के जीवन की वास्तविक और ऐतिहासिक स्तिथि का विश्लेषण आवश्यक है। 

विनय कुमार ने अपनी रचनाओं में सैनिक को जिस जमीन पर खड़ा किया है, उसकी पड़ताल आवश्यक है। अगर तूफानी समुद्र एक कुशल नौसैनिक बनाता है तो शहरों का आत्मीयपन एक जिम्मेदार नागरिक नौसैनिकों को बनाता है। ³    विनय कुमार का मानना है कि सैनिक देश का आधार होता है। तत्कालीन समाज में सैनिक सबक नर्म चारा है। जब किसी व्यक्ति को किसी का शोषण करने का मौका मिलता है, तो वह व्यक्ति कभी नहीं चुकता है। ⁴    दूसरे को लूट लेना इंसानी फितरत है। 5     गांव के लोगों को दावतें न दें तो गांव में रहना मुश्किल हो जाता है। विनय कुमार ने अपनी रचनाओं में सैनिक के क्रांतिकारी रूप की बजाय उसकी बदहाली का जिक्र ज्यादा किया है। अगर हम विनय कुमार की रचनाओं का विश्लेषण करें, तो हम सैनिक के दुश्मनों और दोस्तों को अच्छी तरह से समझ सकते हैं। काम है तो सलाम है, नहीं तो मेहमान है। 6    सेना में जब कोई सैनिक तनाव का शिकार हो जाता है तो उसकी मदद नहीं की जाती है। उसे तंग करके उसके तनाव को और बढ़ाया जाता है।7     नौसैनिकों के रहने के स्थान और भेड़ों के बाड़े में बहुत कम अंतर होता है। 8    नौसैनिक कितना भी अपरिपक्व हो, नौसेना उसे परिपक्व बना ही देती है। साथ में चालाक भी। तभी वह अपना अस्तित्व बचा पाएगा। 9   सैनिकों का शोषण हर समाज में होता रहा है। 

वर्तमान समय में सैनिक का शोषण राष्ट्रीय शोषण के रूप में सामने आया है। विनय कुमार एक सोद्देश्य रचनाकर हैं।इन्होंने सामाजिक दृष्टि से उपयोगी और हितकर रचनाएं की हैं। विनय कुमार साहित्य को मनोरंजन का साधन नहीं मानते बल्कि सामाजिक परिवर्तन का साधन मानते हैं। विनय कुमार का 'हिंदमहासागर से हिमालय तक' उपन्यास तो सैनिक जीवन का महाकाव्य है। विनय कुमार का यह भी कहना है कि साहित्य तभी सफल है जब वह जीवन में परिवर्तन कर सके और उसको सही दिशा दे सके। थोड़ा - थोड़ा, दिन - प्रतिदिन, जो किसी के भाग्य में लिखा है, वह उसे मिल ही जाता है। 10      मुसीबतें आती रहती हैं। उनसे बचा नहीं जा सकता है। उनका आना या ना आना हमारे हाथ में नहीं है। वह मुकद्दर की बात है। लेकिन जो चीज हमारे हाथ में है वह यह है कि हम मुसीबत आने पर मुसीबतों का सामना संयम, उत्साह और वीरता से करें। 11    सैनिकों के प्रति दया भाव को कई साहित्यकारों ने दिखाया है, पर उनके प्रतिनिधि बनकर बोलने वाले विनय कुमार ही हुए हैं। विनय कुमार ने सामान्यतः सैनिकों का ही पक्ष लिया है। विनय कुमार सैनिक के अच्छे जीवन की बहुत कामना करते हैं। वे जानते हैं कि किस प्रकार एक सैनिक अपने जीवन की छोटी - छोटी आकांक्षाओं को पूरी करने के लिए तरसता रहता है और ये आकांक्षाएं उसकी जीवन भर पूरी नहीं हो पाती। विनय कुमार ने अपने साहित्य में सैनिकों की समस्याओं को अधिक से अधिक उठाया है। चंद्रधर शर्मा गुलेरी और विनय कुमार के सैनिक साहित्य की परंपरा को आगे बढ़ाने की जरूरत है।

निष्कर्ष
भारतीय ही नहीं संपूर्ण विश्व के साहित्य में सैनिकों की वीरगाथाओं का महिमामंडन है। होमर विरचित महाकाव्य 'इलियाड' और 'ओडेसी' सैनिकों की वीरगाथाओं से भरे पड़े हैं। बिना दबाव झेले कोयला हीरा नहीं बनता। वीर योद्धाओं के व्यक्तिगत जीवन भी पीड़ाओं से भरे पड़े हैं। साहित्य में सैनिकों की वीरता के साथ - साथ उनके जीवन के संघर्ष और पीड़ा को भी स्थान मिलना चाहिए।

संदर्भ ग्रंथ :- 
(1)   गोदान, मुंशी प्रेमचंद, सरस्वती विहार दिल्ली, 1978, पृष्ठ संख्या - 27
(2)   गोदान, मुंशी प्रेमचंद, सरस्वती विहार दिल्ली, 1978,पृष्ठ संख्या - 355
(3)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या –39
(4)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -67
(5)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -66
(6)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -70
(7)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -74,75
(8)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -66
(9)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -34
(10)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -60
(11)   हिंदमहासागर से हिमालय तक, प्रो विनय कुमार, बी एफ सी पब्लिकेशन, 2024, पृष्ठ संख्या -78



- Vinay Kumar
Asst Prof Hindi,Ex Petty Officer of Indian Navy
Govt College Bhoranj Hamirpur Himachal Pradesh
Mob : 7876196399,E mail - vinayrana1433@gmail.com

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हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना
हिंदी साहित्य में सैनिक वेदना एक महान कहावत है कि - "जब तक शेरों के पास अपने स्वयं के इतिहासकार नहीं होंगे, शिकार का इतिहास हमेशा शिकारी का महिमामंडन
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