कॉमेडी का स्वरूप और उसका महत्व काव्यशास्त्र काव्यशास्त्र में, कॉमेडी को 'हास्य रस' के रूप में परिभाषित किया जाता है। यह रस दर्शकों में हंसी और मनोर
कॉमेडी का स्वरूप और उसका महत्व | काव्यशास्त्र
काव्यशास्त्र में, कॉमेडी को 'हास्य रस' के रूप में परिभाषित किया जाता है।यह रस दर्शकों में हंसी और मनोरंजन पैदा करता है। हास्य रस के कई प्रकार होते हैं, जिनमें व्यंग्य, विनोद, उपहास, और लघुता शामिल हैं।
कॉमेडी का स्वरूप
कॉमेडी शब्द यूनानी शब्द कामस से आया है, जिसका अर्थ है हर्षोल्लास मनाना । संभवतः कामेडी नाम प्राचीन यूनान के ग्रामों में डायसिस देवता के सम्मान में होने वाले आनंदोत्सवों में गाये जाने वाले गीतों के आधार पर पड़ा है क्योंकि उन गायकों को कॉमस कहते थे।इन आनंदोत्सवों के मूल में मनुष्यों को जन्म देने वाले ईश्वर के प्रति आभार प्रदर्शन की भावना हुआ करती थी ।
अरस्तू के अनुसार कामेडी में किसी ऐसे दोष या असौंदर्य का चित्रण होता है, जो दुखद अथवा विनाशकारी नहीं होता । आधुनिक धारणा कामेडी का मुख्य उद्देश्य मनोरंजन मानती है । इलियट डॉनेट्स के अनुसार कामेडी में व्यक्ति के जीवन व्यवहारों और स्वभावों का मनोरंजक चित्रण होता है और उससे पाठक यह सीखता है कि जीवन में क्या त्यागना और क्या पालन करना चाहिए। सिसरो के अनुसार कॉमेडी जीवन की प्रतिलिपि, प्रथाओं का दर्पण और तथ्य की छाया है।
कामेडी के स्वरूप को भली प्रकार समझने के लिए ट्रेजेडी, फार्स (भड़ंती) तथा बर्लेस्स (नकल) आदि से उसका अन्तर समझ लेना चाहिए। कामेडी और ट्रेजेडी में मुख्य अन्तर सुखान्त और दुःखान्त होने का है। ट्रेजेडी की तुलना में कामेडी में कुछ विशेषताएँ होती हैं-विचित्र एवं हास्यास्पद स्थितियों, हल्के फुल्के मजाकिया संवाद तथा चारित्रिक विशेषताओं का दिग्दर्शन । कामेडी और फार्स में अन्दर यह है कि उसमें फार्स की भाँति भोंडे मजाक नहीं होते और उसमें फार्स की अपेक्षा गांभीर्य होता है। फिर भी इन दोनों के बीच विभाजन रेखा नहीं खींची जा सकती क्योंकि आजकल इनके समन्वय की प्रवृत्ति उभर रही है और म्यूजिकल कामेडी इनका समन्वयात्मक रूप में ही है । बर्लेस्क की अपेक्षा भी कामेडी का स्तर ऊँचा होता है । कामेडी विषयक विवेचन - कामेडी के सम्बन्ध में प्लेटो ने अपने विचार व्यक्त किये हैं। उसके अनुसार कामेडी की आत्मा विरोध में बसती है । जैसे, आरम्भ में यदि हम किसी पात्र को वीरता की लम्बी चौड़ी डींग मारते देखते हैं और बाद में उसे भय सामने आने पर दुम दबाकर भागता पाते हैं, तो इस विरोधाभास पर हँसे बिना नहीं रहते।
कामेडी के सम्बन्ध में अरस्तू ने भी प्लेटो से मिलने-जुलते विचार प्रस्तुत किये हैं। वह कामेडी का मूल भाव हास्य मानता है, हर्ष नहीं । उसके अनुसार कामेडी में मानव की ऐसी मूर्खताओं, दोषों और विसंगतियों का चित्रण होता है, जो प्रेक्षक को हँसाये, न कि उसमें घृणा भाव उत्पन्न करे। ये दोष और दुर्बलताएँ अपने आप में कुरूप हो सकती हैं । परन्तु उनके प्रस्तुतीकरण का कौशल उनकी कुरूपता को नष्ट कर देता है । अरस्तू की यह भी धारणा है कि कामेडी में सामान्य जीवन में निम्नतर जीवन का चित्रण होता है । उसमें व्यक्तिगत दोषों का चित्रण नहीं होता, अपितु सार्वजनीन दोषों का चित्रण होता है और इसीलिए उसमें साधारणीकरण की अधिक क्षमता होती है । अरस्तू के अनुसार कामेडी की कथावस्तु प्रख्यात न होकर काल्पनिक होनी चाहिए । कामेडी की उपयोगिता यह है कि वह प्रेक्षक को मानव-स्वभाव के दोषों से अवगत कराकर उनसे बचने को प्रेरित करती है । वह कुछ-न-कुछ शिक्षा देती है और शिक्षा आनन्ददायक होती है।
अरस्तू के अनन्तर Tractatus Coispinianus नामक ग्रन्थ में भी कामेडी के सम्बन्ध में विचार व्यक्त किये गये । उसका रचनाकर अज्ञात है, परन्तु विद्वानों का अनुमान हैं कि वह किसी ग्रीक रचनाकर की कृति है । इस ग्रन्थ का कामेडी के शास्त्रीय विवेचन की दृष्टि में विशेष महत्व है । इसके अनुसार कामेडी का कार्य वर्त- मान वास्तविक स्थिति की निन्दा करना, हँसी उड़ाना और आलोचना करना ही नहीं है, अपितु वह महत् मूल्यों को स्वीकार कर उनकी स्थापना भी करती है ।
सिसरो तथा क्विन्टीलियन नामक रोमा विद्वानों ने भी कामेडी पर अपने विचार व्यक्त किये हैं । आधुनिक काल में वर्गसा नामक विचारक ने भी कामेडी पर अपने विचार प्रकट किये हैं । बर्गसा के अनुसार हास्य का कारण होता है मानव का यंत्रवत आचरण । जब विदूषक मशीन की तरह चलता, बोलता और हँसता है, तो हम हँसते हैं।
इस प्रकार स्पष्ट है कि कामेडी और हास्य में घनिष्ठ सम्बन्ध है । इस हास्य के अनेक कारण हैं । पात्रों को शारीरिक विचित्रता, बेढंगी पोशाक, विचित्र चाल हमें हँसाती है । भाषा के गलत प्रयोग भी हमारी हँसी का कारण बनते हैं। जीवन की मजेदार परिस्थितियाँ भी हमें हँसाती हैं, यथा-वीरता की डींग मारने वाले का काय- रता प्रदर्शन । ढोंगी व्यक्तियों के कथनी और करनी के अन्तर हास्य को जन्म देते हैं ।
कॉमेडी के प्रकार
श्री श्याममोहन श्रीवास्तव ने कामेडी को निम्न भागों में बाँटा है-
- शास्त्रीय कामेडी - इसमें रूढ़िगत आदर्शों व प्रथाओं का पालन तथा नैतिक मूल्यों कीं स्वीकृति होतीहै।
- रुमानी कामेडी - इसमें रूढ़ियों की उपेक्षा के साथ स्वच्छन्द कल्पना का प्राधान्य रहता है ।
- भावप्रधान कामेडी - इसमें किसी एक अन्तवृति के असंतुलन का हास्या- स्पद और व्यंग्यात्मक चित्रण होता है ।
- सामाजिक कामेडी - इसमें समाज की कृत्रिम समस्या का उपहास किया जाता है ।
- समस्यामूलक कामेडी - इसमें एक ओर तो समसामयिक जीवन के अन्तर्बाह्य रूप का मनोवैज्ञानिक विवेचन होता है और दूसरी ओर वर्तमान जीवन स्थिति एवं परम्परागत आदर्शों की विसंगतियों का दिग्दर्शन तथा उनके प्रति असंतोष व्यक्त किया जाता है ।
कॉमेडी का महत्व
कामेडी को निम्न वर्गों में भी विद्वानों ने विभक्त किया है-फार्स, कामेडी आफ मैनर्स, कामेडी आफ ह्य यरस, कामेडी आफ इन्ट्रोग, प्योर कामेडी, ग्रेट कामेडी आदि । इनमें फार्स सबसे निम्नतर तथा ग्रेट कामेडी सबसे उच्चतर वर्ग माना जाता है।फार्स का उद्देश्य प्रेक्षकों को हँसाना मात्र होता है । इसमें उछल-कूद, शोर- गुल व हँसी-मजाक का प्राधान्य होता है।
कामेडी आफ ह्यूमर में नायक की किसी सनक का चित्रण होता है जिसके कारण वह गलतियाँ करता है.। बेन जॉनसन ने अंग्रेजी में इस प्रकार की रचनाएँ अधिक लिखी हैं । खिल्ली और व्यंग्य का प्राधान्य होता है ।
कामेडी आफ मैनर्स में प्रायः परम्पराओं और रूढ़ियों का उल्लंघन दिखाया जाता है । इसके पात्र कामेडी आफ ह्येमर के पात्रों की अपेक्षा अधिक जीवन्त होते थे ।कामेडी आफ इंट्रीग का सर्वप्रथम प्रचलन रोम में हुआ। मनोरंजन के साथ- साथ समाज के दूषित व्यक्तियों की हँसी उड़ाई जाती थी । यह एक प्रकार का सामा- जिक व्यंग्य होता था । कामेडी में भावुकता पर बल दिया गया, आँसुओं और निःश्वासों की प्रधानता रही।
रोमांटिक कामेडी में एक ओर अभिहास्य द्वारा प्रेक्षकों का मनोरंजन किया गया, दूसरी ओर प्रणय व साहसिक कृत्यों का समावेश करके प्रेक्षकों की रोमानी वृति को सन्तुष्ट किया गया । शेक्सपियर ने अभिहास्य तथा रोमांस इन दोनों तत्वों के समन्वय से ऐसी कामेडी प्रदान की जो सम्पूर्ण विश्व में उच्च बनी । इस कामेडी में कथा बहुत महत्वपूर्ण होती है। मुख्य कथा और मुख्य पात्रों के साथ ही उपकथा और उपपात्र भी इसमें समान महत्व रखते हैं ।
ग्रेट कामेडी उच्चकोटि की कामेडी मानी जाती है। मोलियर, बैन जानसन, इब्सन, चैकोव आदि को इसे लिखने का श्रेय प्राप्त है। इसके जीवन मूल्यों का चित्रण होता है तथा स्वस्थ सन्देश प्रदान किया जाता है। इसमें मानव-दोषों का वर्णन होता है पर भावुकतापूर्ण नहीं। इसके पात्र साहसपूर्वक निर्यात के साथ सूझ दिखाये जाते हैं ।
इस प्रकार यह स्पष्ट हो जाता है कि एक उत्कृष्ट कामेडी अपने परिहास के साथ-साथ मानव स्वभाव के मूल तक पहुँच जाती है तथा प्रेक्षक का मनोंरंजन करती है। इससे प्रेक्षक यह भी सीखता है कि जीवन में उसे क्या करना, चाहिए और क्या त्यागना चाहिए।
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