लंका में हनुमान | Lanka Mein Hanuman | Hindi Bal Ram Katha लंका में हनुमान पाठ रामायण के उस प्रसंग से संबंधित है जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका पह
लंका में हनुमान | Lanka Mein Hanuman | Hindi Bal Ram Katha
लंका में हनुमान पाठ रामायण के उस प्रसंग से संबंधित है जब हनुमान जी सीता की खोज में लंका पहुंचते हैं। हनुमान जी रावण के महल, अशोक वाटिका में पहुंचते हैं और सीता माता को ढूंढते हैं।सीता माता उन्हें राम का संदेश देती हैं और हनुमान जी रावण को युद्ध के लिए ललकारते हैं।
लंका में हनुमान पाठ का सारांश
हनुमान उठे। अँगड़ाई ली। झुककर धरती को छुआ। और एक ही छलांग में महेंद्र पर्वत पर जा खड़े हुए। पर्वत शिखर पर खड़े हनुमान ने विराट समुद्र की ओर देखा । उनकी आँखों में चुनौती का भाव नहीं था। समर्पण का भाव था। राम के प्रति । हनुमान ने पूर्व दिशा की ओर मुँह करके अपने पिता को प्रणाम किया। हाथ हवा में उठाए । अगले ही पल वह आकाश में थे। समुद्र के ऊपर। हुनमान की गति अधिक थी। पत्थर पीछे छूटे और समुद्र में जा गिरे। महेंद्र पर्वत सुंदर था। वनस्पतियों और जीव-जन्तुओं से भरा। हनुमान के छलाँग लगाने तक पर्वत शांत था। निश्चल! छलांग के दबाव से पर्वत दरक गया। वृक्ष काँपकर गिर गए। वन थर्रा गया। चट्टानें दहक उठीं। लाल हो गईं। आग के गोलों की तरह। हनुमान सबसे बेखबर थे। वायु की गति से आगे बढ़ रहे थे। उनकी परछाई समुद्र में विराट नाव की तरह दिखती। बिना आवाज चलती हुई। समुद्र के अंदर एक पर्वत था। मैनाक। सुनहरा चमकता हुआ। मैनाक चाहता था कि हनुमान कुछ देर वहाँ विश्राम कर लें। हनुमान नहीं रुके।
हनुमान के रास्ते में कई बाधाएँ आईं। राक्षसी सुरसा मिली। विराट शरीर। वह को खा जाना चाहती थी। पवनपुत्र ने उसे चकमा दिया। उसके मुँह में घुसकर निकल आए। आगे एक राक्षसी टकराई। उसका नाम सिंहिका था। छाया राक्षसी। उसने जल में हनुमान की परछाई पकड़ ली। अब गतंव्य दूर नहीं था। दूर क्षितिज पर लंका दिखाई पड़ने लगी थी। सोने की लंका। अब वह लंका को और निकट से देख पा रहे थे। इतनी लंबी यात्रा का उन पर कोई प्रभाव नहीं था। चिंता थी कि सीता को कैसे ढूंढेंगे? कैसे पहचानेंगे? लंका नगरी को ठीक से देखने के लिए हनुमान एक पहाड़ी पर चढ़ गए। दृष्टि दौड़ाई। चारों ओर वृक्ष। सुवासित उद्यान भव्य भवन। हवा में लहराती संगीत धाराएँ। वे चकित थे। राक्षस नगरी में इतनी सुंदरता? उस नगर का एक-एक विवरण आँखों में भर लेना चाहते थे। ताकि बाद में वह सीता की खोज में काम आए। दिन के समय लंका में प्रवेश करना हनुमान को उचित नहीं लगा। उन्होंने प्रतीक्षा की।
उनके सामने पहला प्रश्न सीता का पता लगाना था। उनका अनुमान था कि सीता महल में ही होंगी। रावण ने उन्हें छिपाकर रखा होगा। राजमहल विराट था। वैभवपूर्ण । वे बचते-बचाते महल में घूमने लगे। सीता जैसी कोई स्त्री उन्हें नहीं दिखाई पड़ी। 'न जाने सीता को कहाँ छिपा रखा है,' सोचते हुए हनुमान अंत:पुर से बाहर निकल आए। एक-एक करके उन्होंने राक्षसों के सारे घर छान मारे। सीता का कहीं पता न था। अंतःपुर के बाहर हनुमान ने रावण का रथ देखा। स्वर्ण रथ। रत्नों से सजा हुआ। वे चकित रह गए। तभी उनका ध्यान अंतःपुर से लगी वाटिका की ओर गया। वह एक वृक्ष पर चढ़कर बैठ गए। दिन चढ़ आया था। ऐसे में नीचे उतरना उन्हें उचित नहीं लगा। रात हो आई। अचानक वाटिका के एक कोने से उन्हें अट्टहास सुनाई पड़ा। हनुमान उधर ही देखने लगे। एक वृक्ष के नीचे राक्षसियों का झुंड था। ध्यान से देखा। राक्षसियों के बीच एक स्त्री बैठी है। चेहरा मुरझाया हुआ। उदास। दयनीय दुर्बल। शोकग्रस्त। 'यही माँ सीता हैं,' उन्होंने मन में सोचा। उन्हें अब कोई संदेह नहीं था।
हनुमान उतावले थे। पर नीचे उतरने में डर था। स्वयं उनके लिए। सीता के लिए भी। देर रात राक्षसियाँ एक-एक करके चली गईं। सीता वाटिका में अकेली थीं। यह अच्छा अवसर था। पर हनुमान पेड़ से नहीं उतरे। 'कहीं सीता मुझे भी राक्षस न समझ लें। मायावी चाल मान लें,' उन्होंने सोचा। पेड़ पर बैठे-बैठे उन्होंने राम कथा प्रारंभ की। राम का गुणगान। सीता ने पूछा, "कौन हो तुम?" हनुमान ने कहा, "हे माता! मैं श्रीराम का दास हूँ। किष्किंधा के वानरराज सुग्रीव का अनुचर। उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है। आपका समाचार लेने।" सीता ने राम का कुशल-क्षेम पूछा। कई प्रश्न किए।
हनुमान ने सीता से विदा ली। वे पूरी सूचना तत्काल राम तक पहुँचाना चाहते थे। चलते समय सीता ने अपना एक आभूषण उन्हें दे दिया। उनकी आँखें नम थीं। हनुमान कहा, "निराश न हों, माते! श्रीराम दो माह में यहाँ अवश्य पहुँच जाएँगे।"
"उस हनुमान ने रावण का उपवन तहस-नहस कर दिया। अशोक वाटिका उजाड़ दी। राक्षस भागे-भागे राजमहल गए। रावण को इसकी सूचना दी। रावण ने कहा, वानर को मेरे सामने उपस्थित करो। उसने जघन्य अपराध किया है।" राक्षस उन्हें खींचते हुए रावण के दरबार में ले आए। सेनापति ने पूछा, "कौन हो तुम? किसने "तुम्हें यहाँ भेजा है?" हनुमान के मन में भय नहीं था। बोले, "मैं श्रीराम का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान है। आप श्रीराम की पत्नी सीता को हर लाए हैं। मैं उन्हीं की खोज में आया था। उनसे मैं मिल चुका। आपके दर्शन करना चाहता था। इसलिए उत्पात करना पड़ा।” हनुमान ने रावण को पुनः प्रणाम किया। “मेरा एक निवेदन है। आप सीता को सम्मान सहित लौटा दें। इसी में आपका कुशल है। धनुर्धर राम से आप युद्ध नहीं जीत सकते।” रावण ने हनुमान की पूँछ में आग लगा देने की आज्ञा दी।
राक्षसों ने आग लगा दी। इसी बीच हनुमान ने बंधन तोड़ दिए। एक भवन पर चढ़कर उसमें आग लगा दी। एक से दूसरी अटारी पर कूदते उन्होंने सभी भवन जला दिए । हाहाकार मच गया। लंका जल रही थी।
दूसरे तट पर सभी हनुमान की प्रतीक्षा कर रहे थे। अंगद । जामवंत। अन्य वानर । हनुमान ने संक्षेप में लंका का हाल सुनाया। हनुमान किष्किंधा पहुँच गए। राम के पास । वानरों को साथ लेकर सुग्रीव वहाँ पहुँचे। हनुमान ने राम को सीता द्वारा दिया गया आभूषण दिया। राम की आँखों में आँसू आ गए। हनुमान ने कहा, "मैंने उनसे भेंट की। वे व्याकुल हैं। चिंतित हैं। हर समय राक्षसों से घिरी रहती हैं। आपकी प्रतीक्षा कर रही हैं।" लक्ष्य स्पष्ट था। लंका पर आक्रमण। सुग्रीव ने लक्ष्मण के साथ बैठकर युद्ध की योजना पर विचार किया। योग्यता और उपयोगिता के आधार पर भूमिकाएँ निर्धारित हुईं। हनुमान, अंगद, जामवंत, नल और नील को आगे रखा गया। यह एक चुनौती थी। देर रात तक चर्चा का विषय रही।
लंका में हनुमान पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. हनुमान ने लंका में जाने के लिए अपनी यात्रा किस प्रकार प्रारंभ की?
उत्तर-हनुमान ने पूर्व दिशा की ओर मुँह करके अपने पिता को प्रणाम किया। हाथ हवा में उठाए पर्वत पर झुककर उसे हाथ-पैर से कसकर दबाया और छलांग लगा दी। समुद्र के ऊपर तेजी से आगे बढ़ते हुए। छलांग के समय बड़े शिलाखंड आसमान में उड़ गए। कुछ दूर हनुमान के साथ गए। जैसे परिजन किसी को विदा करने जाते हैं। हनुमान की गति अधिक थी। पत्थर पीछे छूटे और समुद्र में जा गिरे।
प्रश्न. हनुमान के महेन्द्र पर्वत पर पहुँचने पर क्या दृश्य उपस्थित हुआ?
उत्तर-हनुमान के छलांग लगाने तक पर्वत शांत था। निश्चित। छलांग के दबाव से पर्वत दरक गया। वृक्ष काँपकर गिर गए। वन थर्रा गया। बड़ी-बड़ी चट्टानें नीचे लुढ़कने लगीं। पशु-पक्षी चीत्कार करते हुए भागे। कई स्थानों पर जल-स्रोत फूट पड़े। कहीं धुआँ उठने लगा। चट्टानें दहक उठीं। लाल हो गईं, आग के गोलों की तरह।
प्रश्न. समुद्र के भीतर कौन-सा पर्वत था, उसकी क्या इच्छा थी?
उत्तर- समुद्र के अंदर एक पर्वत था मैनाक। सुनहरा चमकता हुआ। वह जलराशि को चीरकर ऊपर उठा । मैनाक चाहता था कि हनुमान कुछ पल वहाँ विश्राम कर लें। थक गए होंगे।
प्रश्न. हनुमान को समुद्र पार करते समय किस-किस राक्षसी का सामना करना पड़ा?
उत्तर-राक्षसी सुरसा, सिंहिका नामक छाया राक्षसी आदि।
प्रश्न. अशोक वाटिका में हनुमान ने क्या देखा?
उत्तर- एक वृक्ष के नीचे राक्षसियों का झुंड था। वे किसी बात पर ठहाके लगा रही थीं। हनुमान को लगा कि वे सीता पर हँस रही हैं। वह पेड़ से चिपककर नीचे की डाली पर आए। ध्यान से देखा। राक्षसियों के बीच एक स्त्री बैठी है। चेहरा मुरझाया हुआ। उदास। दयनीय। दुर्बल। शोकग्रस्त। यही माँ सीता हैं, उन्होंने मन में सोचा। उन्हें अब कोई संदेह नहीं था।
प्रश्न. रावण ने अशोक वाटिका में सीता से क्या कहा?
उत्तर- रावण ने कहा, "तुम्हें डरने की आवश्यकता नहीं है। सुमुखी! मैं तुम्हें स्पर्श नहीं करूँगा, जब तक तुम स्वयं ऐसा नहीं चाहोगी। मैं तुम्हें अपनी रानी बनाना चाहता हूँ। मेरी बात मान लो और सुख भोग करो। अन्यथा मैं तुम्हें तलवार से काट डालूँगा। सोच लो, तुम्हारे पास अब केवल दो महीने बचे हैं।"
प्रश्न. रावण के डराने-धमकाने पर सीता ने क्या उत्तर दिया?
उत्तर-रावण के डराने-धमकाने पर सीता ने उत्तर दिया, "ऐसा कभी नहीं होगा, दुष्ट! राम के सामने तुम्हारा अस्तित्व ही क्या है? मुझे राम के पास पहुँचा दो। वे तुम्हें क्षमा कर देंगे। तुमने ऐसा नहीं किया तो सर्वनाश निश्चित है। तुमने अपराध किया है। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। मूर्ख राक्षस! तुम्हारा अंत निकट है। "
प्रश्न. त्रिजटा ने सीता को अपने सपने के बारे में क्या बताया?
उत्तर-त्रिजटा ने सीता को अपने सपने के बारे में बताया। पूरी लंका समुद्र में डूब गई है। सब नष्ट हो गया है। यह सपना अच्छा नहीं है। कहीं यह सीता के दुख से जुड़ा तो नहीं है।
प्रश्न. हनुमान ने सीता माता को अंगूठी देते हुए अपना परिचय किस प्रकार दिया?
उत्तर- " हे माता! मैं श्रीराम का दास हूँ। किष्किंधा के वानरराज सुग्रीव का अनुचर। उन्होंने मुझे यहाँ भेजा है। आपका समाचार लेने।" हनुमान को लेकर सीता के मन में अब भी शंका थी। उन्होंने पर्वत पर फेंके आभूषणों की याद दिलाकर संदेह दूर कर दिया।
प्रश्न. लंका के सेनापति के पूछने पर हनुमान ने अपना क्या परिचय दिया?
उत्तर- " मैं श्रीराम का दास हूँ। मेरा नाम हनुमान है। आप श्रीराम की पत्नी सीता को हर लाए हैं। मैं उन्हीं की खोज में आया था। उनसे मैं मिल चुका। आपके दर्शन करना चाहता था। इसलिए उत्पात करना पड़ा। इसमें मेरा कोई अपराध नहीं है। दंड के भागी तो राक्षस हैं। उन्होंने मुझे रोकने का प्रयास किया।"
प्रश्न. विभीषण ने अपने भाई रावण से क्या निवेदन किया?
उत्तर- "मेरा एक निवेदन है, आप सीता को सम्मान सहित लौटा दें। इसी में आपका कुशल है। धनुर्धर राम से आप युद्ध नहीं जीत सकते।"
प्रश्न. रामकथा का कौन सा प्रसंग तुम्हें सबसे रोचक लगा? उसे अपने शब्दों में लिखो।
उत्तर - रामकथा का सबसे रोचक प्रसंग हनुमान का लंका पहुँचकर सीता से भेंट है। हनुमान जब लंका पहुँचते हैं तो उनके मन में सीता से भेंट करने की कितनी बेचैनी है, परन्तु समय को देखकर ही वे सीता के समक्ष जाते हैं। सीता से भेंट करके राम की अंगूठी उन्हें देते हैं। सीता भी राम के लिए अपनी एक अंगूठी निशानी के तौर पर पर दे देती हैं।
लंका में हनुमान पाठ के कठिन शब्दार्थ
प्राचीर = दीवार।
अट्टहास = ऊँची हँसी
विराट = विशाल ।
सुवासित = सुगन्धित।
तिरस्कार = अपमान।
ठिठोली = मज़ाक |
भाव विह्वल = भावुक होना।
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