एक मोटा व्यक्ति दुबले - पतले मजदूर को थप्पड़ मार देता है। दूसरा मोटा व्यक्ति मजदूर को घसीटते हुए बाथरूम तक छोड़ आता है। डलकू के पास बैठा मजदूर चुपचाप
मजदूर
डलकू सांझ के सूर्य को निहार रहा है। सांध्य बेला में पंछी अपने घरों को लौट रहे हैं। नौसैनिकों का हृदय विचित्र दुविधा में रहता है। वे समझ नहीं पाते कि उनका मातृ गांव जहां वे पैदा हुए हैं वह उनका घर है या विशाल हिंदमहासागर में लहरों पे हिलोरें लेता नौसेना का जहाज उनका घर है। जब वे जहाज में होते हैं तो गांव की यादों में खोए रहते हैं और जब घर पर होते हैं तो दोबारा लहरों की सवारी करने के लिए लौट जाना चाहते हैं। दुविधा ही नौसैनिकों के हृदय को शांति का एहसास कराती है। सागर की लहरों की तरह उनका दिल भी दुविधा में हिलोरें मारता रहता है। अगली सुबह डलकू को निकोबार द्वीप समूह के लिए निकल जाना है। कांगड़ा से निकोबार तक की एक लंबी यात्रा होगी। अगर चेन्नई से फ्लाइट मिल जाती है तो यात्रा कुछ छोटी हो जाएगी। डलकू को कांगड़ा से दिल्ली बस, दिल्ली से चेन्नई ट्रेन और चेन्नई से निकोबार जहाज से जाना है।
अगली सुबह डलकू यात्रा पर निकल पड़ता है। डलकू समय पर रेलवे स्टेशन पहुंच जाता है। अगली सुबह डलकू जब उठता है तो ट्रेन मध्य प्रदेश के हरे-भरे खेतों से गुजर रही होती है। जंगली जानवर फसल को चोरी-छुपे खा रहे होते हैं। थोड़ी देर बाद ट्रेन विंध्याचल के पर्वतों में प्रवेश करती है। हरियाली से भरे पर्वतों की अपनी एक अलग ही शोभा है। अब ट्रेन छत्तीसगढ़ में प्रवेश करती है। कुछ समय के लिए ट्रेन रायपुर रेलवे स्टेशन पर रूकती है। डलकू स्टेशन पर पेट पूजा करता है। अब ट्रेन शहर को छोड़ ग्रामीण क्षेत्रों में प्रवेश करती है। बगल वाली रेल पटरी का मरम्मत का कार्य चल रहा होता है। मजदूर दोपहर की भीषण गर्मी में पसीना बहा रहे होते हैं। इतनी मेहनत करने के बावजूद उनके शरीर पर पसीना नहीं दिखाई दे रहा होता है। पसीना निकलते ही गर्मी से सूख जा रहा होता है। ट्रेन धीमी होकर रूक जाती है।
डलकू स्लीपर क्लास में यात्रा कर रहा है। डिब्बे की आधी सीटें खाली हैं। यह एक रिजर्वेशन वाला डिब्बा है। मजदूरिनें बाथरूम की बगल में बैठ जाती हैं। मजदूर सीटों के बीच में फर्श पर नीचे बैठ जाते हैं। थोड़ी देर बाद जोरदार बारिश शुरू हो जाती है। तेज हवाओं के साथ वर्षा का पानी डिब्बे में भी आ जाता है। फर्श पानी से गीला हो जाता है। मजदूरों के कपड़े गीले हो जाते हैं। एक मजदूर उठ कर डलकू के पास खाली सीट पर बैठ जाता है। वह बाकी मजदूरों को भी खाली सीटों पर बैठने के लिए चुपके से इशारा करता है। परंतु बाकी मजदूर गीले फर्श पर ही बैठे रहते हैं। कुछ समय बाद मजदूर और डलकू में वार्तालाप शुरू हो जाता है। मजदूर डलकू को बताता है कि भारतीय रेल ट्रेन की पटरियों के लोहे पर नहीं अपितु मजदूरों के सिने पर दौड़ती है। दिन भर रेलवे ट्रैक पर काम करने के बावजूद मजदूर रात को ट्रेन की खाली सीट पर भी नहीं बैठ सकते। दोनों की बातें चलती रहती हैं।
दोनों को इतनी आत्मीयता के साथ बातें करते देख एक मजदूर गीले फर्श से उठ कर बगल की खाली सीट पर बैठ जाता है सामने वाली सीट पर दो मोटे-तगड़े व्यक्ति बैठे होते हैं। जिनकी बातों से पता चल रहा था कि वे बैंक में काम करते हैं। एक मोटा व्यक्ति दुबले - पतले मजदूर को थप्पड़ मार देता है। दूसरा मोटा व्यक्ति मजदूर को घसीटते हुए बाथरूम तक छोड़ आता है। डलकू के पास बैठा मजदूर चुपचाप खड़ा हो कर बाथरूम के पास चला जाता है।
- विनय कुमार
सहायक हिन्दी प्रोफेसर
हमीरपुर ,हिमाचल प्रदेश
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