आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की समीक्षा पद्धति आलोचना दृष्टि

SHARE:

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी हिंदी साहित्य के एक विशिष्ट और प्रभावशाली आलोचक रहे हैं। उन्होंने अपनी समीक्षा पद्धति के माध्यम से साहित्यिक रचनाओं के मूल्या

आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की समीक्षा पद्धति आलोचना दृष्टि


चार्य रामचन्द्र शुक्ल ने काव्य-कृतियों का भाव-संवेद्य और नैतिक मूल्यांकन तो किया था, पर वे नवीन युग की विकासोन्मुख काव्यधारा के सौष्ठव का पूर्ण साक्षात्कार न कर पाये। छायावादी काव्यधारा का मूल्यांकन करने में उनकी नीति-प्रधान रसदृष्टि असमर्थ ही रही। यह कार्य हिन्दी की सौष्ठव तथा स्वच्छन्दतावादी समीक्षा-पद्धति ने किया। इस पद्धति के प्रमुख समीक्षकों में से एक हैं - आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ।
 

समीक्षात्मक दृष्टिकोण

वाजपेयी जी ने हिन्दी आलोचना में अपने स्वच्छन्द विचारों के साथ पदार्पण किया। एक कहावत है—“नई शराब पुरानी बोतल में न भरनी चाहिए, वह फूट जाती है।” इसी प्रकार नये काव्य की आलोचना भी पुरानी कसौटी पर ठीक-ठीक ढंग से नहीं हो सकती है। शुक्ल जी ने सूर, तुलसी, जायसी आदि की सर्वांगीण आलोचना करके हिन्दी आलोचना को सुदृढ़ भित्ति पर स्थापित अवश्य किया था, पन्तु उनकी नैतिकता की कसौटी पर सभी काव्य कसे नहीं जा सकते। इसीलिए बाजपेयी ने शुक्ल जी की दृष्टि को छायावादी काव्य के सन्दर्भ में अनुपयुक्त माना। उनका कथन था कि अपने पूर्वाग्रह और द्विवेदीयुगीन संस्कारों के कारण शुक्ल जी छायावादी काव्य के साथ न्याय नहीं कर सकते हैं। इसके लिए आलोचना की नई कसौटी होनी चाहिए। डॉ. भगवतस्वरूप मिश्र ने इसी बात को लक्ष्य करके लिखा है-“बाजपेयी जी ने शुक्ल जी के प्रबन्ध काव्यवाद तथा मर्यादावाद के कठोर नियन्त्रण से हिन्दी-समीक्षा को मुक्ति दिलाई है।"
 
वाजपेयी जी की समीक्षा-पद्धति का स्वरूप उनकी इन रचनाओं में मिलता है-
  • हिन्दी-साहित्य : बीसवीं शताब्दी, 
  • आधुनिक साहित्य, 
  • जयशंकर प्रसाद,
  • महाकवि सूरदास, 
  • प्रेमचन्द, 
  • कवि निराला, तथा 
  • नया साहित्य : नये प्रश्न ।
 

छायावाद के प्रति आकर्षण

छायावादी काव्य ने वाजपेयी जी की समीक्षा दृष्टि के निर्माण में महत् योग दिया। छायावाद की नूतन कल्पना
आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की समीक्षा पद्धति आलोचना दृष्टि
छवियाँ, वायवीयता, अमूर्त भावों का चित्रण और लाक्षणिकता आदि की ओर वे विशेष आकृष्ट हुए। परिणामस्वरूप द्विवेदीयुगीन नैतिकता और इतिवृत्तात्मकता के प्रति वे स्वाभाविक रूप से विमुख रहे। 'साकेत' की अभिव्यक्तियाँ उन्हें प्रभावित न कर सकीं। महावीर प्रसाद द्विवेदी के भाषा-परिष्कार और सम्पादन को महत्त्व देते हुए उनके भी साहित्य को उन्होंने महत्त्वहीन ही माना। प्रेमचन्द के आदर्श को भी वे सराह न सके। ऐसा प्रायः उनकी आरम्भिक आलोचनाओं में ही हुआ है। जहाँ वे संयम न रख सके हैं। उदाहरण के लिए देखिए -प्रेमचन्द जी के एक शब्द को लेकर वे मजाक करने लगे-“जहाँ वाणी मौन रहती है, वह साहित्य है ? वह साहित्य नहीं गूंगापन है।" यदि इस प्रकार की दलील की जाय हम भी कह सकते हैं कि उपन्यास, कहानियाँ और लेख लिखते समय क्या आपकी वाणी चिल्लाया करती तो है ? आपकी किन-किन रचनाओं का कण्ठ फूट चुका है ? क्या वह आविष्कार लखनऊ में हुआ है, जिससे साहित्यिक पुस्तकें वहाँ की कुंजड़िनों की तरह वाचाल बन गई हैं ?
 
यह उद्धरण यदि एक ओर उनकी हास्य-व्यंग्य की प्रवृत्ति का द्योतक है, आलोचना करते-करते प्रतिपक्षी पर व्यंजक प्रश्नों की बौछार कर देने की प्रवृत्ति का परिचायक है, तो दूसरी ओर उनकी व्यक्तिगत आक्षेप करने की प्रवृत्ति का निदर्शक भी है परन्तु आरम्भिक रचनाओं के बाद उनकी लेखनी में सन्तुलन आता गया और उन्होंने व्यक्तिगत आक्षेप करना छोड़ दिया। 'आधुनिक साहित्य' तथा 'नया साहित्य : नये प्रश्न' में संकलित निबन्धों में उनका सन्तुलन देखा जा सकता है ।
 

समन्वय भावना 

वाजपेयी जी समन्वयवादी समीक्षक हैं। उन्होंने स्वच्छन्दता और सौष्ठववादी समीक्षा-पद्धति का शुक्ल-पद्धति से समन्वय किया। शुक्ल जी की विश्लेषणात्मक पद्धति को विस्तार देते हुए उन्होंने उसे निगमनात्मक कर दिया। शुक्ल जी के नीतिवादी दृष्टिकोण को स्वीकार करते हुए उन्होंने उसे लोक-कल्याण में रूपान्तरित कर दिया। साहित्य का उद्देश्य चरित्र-निर्माण है, शुक्ल जी की इस धारणा को स्वीकार करते हुए साहित्य का उद्देश्य वे सांस्कृतिक चेतना प्रदान करना भी मानते हैं। शुक्ल जी की रसवादी धारणा को अपनाते हुए भी वे उसका पाश्चात्य संवेदनीयता से समन्वय स्थापित करते हैं। वस्तुतः बाजपेयी जी को एक समृद्ध भाव-भूमि प्राप्त हुई थी। उस समय हिन्दी आलोचना विकास की ऊँचाइयों पर पहुँची हुई थी। बाजपेयी जी को विरासत के रूप में शुक्ल जी की अमूल्य सिद्धान्त-निधि मिली, अध्ययन-मनन के लिए पाश्चात्य-समीक्षा सिद्धान्त मिले और इसके साथ-साथ समकालीन विकासशील आलोचना का स्वरूप मिला। इस समय तक सिद्धान्त बन चुके थे, उपकरण निर्मित हो चुके थे। इसी बनी-बनाई पृष्ठभूमि पर कार्य करने के लिए जिस सजग आलोचना-बुद्धि की आवश्यकता थी, उसका बाजपेयी जी में पूर्ण सन्निवेश था।
 

सौन्दर्य प्रेम

वाजपेयी जी की समीक्षात्मक दृष्टि को समझने के लिए हमें उनकी सूर और प्रसाद की आलोचनाएँ देखनी आवश्यक हैं। सूर के गोचरण तथा गोवर्धन-धारण के कथात्मक प्रसंगों का सौन्दर्य उन्हें अभिभूत किये बिना नहीं रहता। तभी वे लिखते हैं- “ स्थिति विशेष का पूरा दिग्दर्शन भी करें, घटनाक्रम का अभास भी दें और साथ ही समुन्नत कोटि के रूप-सौन्दर्य की परिपूर्ण झलक भी दिखाते जायें, यह विशेषता हमें कवि सूरदास में ही मिलती है।” इससे प्रकट है कि सौन्दर्य-बोध पर बाजपेयी जी की पूर्ण आस्था है। कदाचित् इसलिए जयशंकर प्रसाद उनके सर्वाधिक प्रिय कवि बने । डॉ. रामचन्द्र तिवारी ने लिखा है- “कहना चाहे तो कह सकते हैं कि यदि आचार्य शुक्ल के काव्य-सिद्धान्त तुलसी के आधार पर निर्मित हुए हैं, तो बाजपेयी जी की मान्यताएँ प्रसाद से प्रभावित हैं ।” 

प्रसाद जी रसवादी (आनन्दवादी) कलाकार थे और बाजपेयी जी रसवादी समीक्षक हैं। सौन्दर्य को वे नैतिकता के बन्धनों में बाँधना नहीं चाहते हैं। शुक्ल जी ने सौन्दर्य को शिवत्व से पूरित देखना चाहा था, पर बाजपेयी जी सौन्दर्य को स्वतः ही शिवत्वमय देखते हैं और उसे नैतिकता के बन्धनों में आवृत्त करने के विरुद्ध हैं। वे मानते हैं कि श्रेष्ठ कला में श्लील-अश्लील का प्रश्न उठाना अनुचित है। उनके शब्दों में- “ महान् कला कभी अश्लील नहीं हो सकती है।” उनका विश्वास है- “सौन्दर्य स्वतः शिव है । 

सौन्दर्य के प्रति बाजपेयी जी में निरन्तर आग्रह का भाव विद्यमान रहा है। प्रेमचन्द की आलोचना में उन्होंने कहा है—“इस 'शिव' शब्द को हम व्यर्थ समझकर निकाल देना चाहते हैं। 'सत्य' और 'सुन्दर' पर्याप्त हैं।" उनका विश्वास है कि - "सुन्दरतम् साहित्यिक रचनाओं में सार्वजनिकता होती है, युग का प्रतिबन्ध या वाद का वितण्डा नहीं होता।” इस प्रकार सौन्दर्यानुसन्धान उनकी समीक्षा-दृष्टि की एक महत्त्वपूर्ण विशेषता है।
 

रस विषयक दृष्टि

वाजपेयी जी ने प्राच्य एवं पाश्चात्य आलोचकों के अध्ययन एवं सन्तुलन द्वारा साहित्यिक व्यक्तित्व का निर्माण किया। पाश्चात्य विचारधारा से प्रभावित होने के कारण वे काव्य को कला मानते हैं, जबकि भारतीय काव्यशास्त्र उसे कला नहीं मानता। वे रस को 'ब्रह्मानन्द सहोदर' कहने की परम्परागत मान्यता से भी सहमत नहीं हैं। उनका तर्क है कि रस को ब्रह्मानन्द सहोदर कहकर उसकी आड़ में अनेक ऐसे तत्त्वों का प्रतिपादन किया गया है, जो भारतीय संस्कृति और समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर पाते। उनकी यह भी मान्यता है कि रस-सिद्धान्त को इतना व्यापक रूप प्रदान करना चाहिए कि वह सम्पूर्ण साहित्य-समीक्षा का मूल आधार बन सके। रस को केवल वेद्यान्तर स्पर्श शून्य और ब्रह्मानन्द सहोदर कहना उसे संकुचित परिधि में बाँधना है। उसे इतना व्यापक बना देना चाहिए कि कला-मात्र के आनन्द को 'रस' नाम से अभिहित किया जा सके। बाजपेयी जी की रस विषयक इस मान्यता से स्पष्ट है कि वे अभिव्यंजनावादी नहीं हैं।

काव्य में अनुभूति की तीव्रता को ही मुख्य मानते हैं और अभिव्यंजना को गौण समझते हैं। उनके शब्दों में- काव्य अथवा कला का सम्पूर्ण सौन्दर्य अभिव्यंजना का ही सौन्दर्य नहीं है। अभिव्यंजना काव्य नहीं है। काव्य अभिव्यंजना से उच्चतर तत्त्व है। उनका सीधा सम्बन्ध मानव जगत् और मानस-वृत्तियों से है, जबकि अभिव्यंजना का सम्बन्ध केवल सौन्दर्यपूर्ण प्रकाशन से है।”
 

अलंकार विषयक दृष्टि

वाजपेयी जी का अलंकार सम्बन्धी दृष्टिकोण यह है कि अलंकार काव्य के लिए आवश्यक नहीं हैं। उनका कथन है- “कविता अपने उच्चतम स्तर पर पहुँचकर अलंकार विहीन हो जाती है । कविता जिस स्तर पर पहुँचकर अलंकार विहीन हो जाती है, वहाँ वह वेगवती नदी की भाँति हाहाकार करती हुई हृदय को स्तम्भित कर देती है। उस समय उसके प्रवाह में अलंकार, ध्वनि, वक्रोक्ति आदि न जाने कहाँ बह जाते हैं और सारे सम्प्रदाय न जाने कैसे मटियामेट हो जाते हैं।" बाजपेयी जी के अनुसार ऐसी उच्चस्तरीय कविता में अलंकार वही कार्य करते हैं, जो दूध में पानी । इससे प्रकट है कि बाजपेयी जी काव्य में अनुभूति को प्रधानता देते हैं, अभिव्यक्ति को नहीं। उनकी समीक्षा-पद्धति का निर्माण भारतीय और पाश्चात्य दोनों विचारधाराओं के समन्वय से हुआ है । इसलिए उन्होंने विश्वासपूर्वक कहा है- “पिछले पचास वर्षों से हिन्दी-साहित्य की जो मर्यादा बन गई है उसे हम किसी भी स्थिति में टूटने न देंगे।” वे अतिवादों से बचते हुए भारतीय साहित्य-शास्त्र की मान्यताओं को समुन्नत और व्यापक बनाना चाहते हैं। इसके लिए वे आवश्यकता पड़ने पर पाश्चात्य सिद्धान्तों को ग्रहण करने से भी नहीं हिचकते हैं।
 
वाजपेयी जी की मान्यता है कि साहित्य को जीवन के लिए अजस्त्र स्रोत की भाँति होना चाहिए। उनमें समाज, संस्कृति, जीवन, सांस्कृतिक चेतना और भावनाओं के परिष्करण की शक्ति होनी चाहिए। काव्य के सम्बन्ध में वे सौन्दर्य तत्त्व पर विशेष बल देते हैं तो नाटक और कथा के क्षेत्र में जीवन-चेतना और सामाजिक प्रभाव को मुख्य मानते हैं। इसलिए उन्होंने जैनेन्द्र के सीमित दृष्टिकोण, वैविध्यहीनता, हासोन्मुखी मूल्यों पर प्रहार किये। अश्क की उपन्यास- सृष्टि को सजीव किन्तु पात्रों को निर्जीव माना है, 'शेखर: एक जीवनी के सम्बन्ध' में प्रश्न उठाये हैं।
 

वाद विमुखता

वाजपेयी जी किसी बाद में आस्था नहीं रखते हैं। उनका स्पष्ट कथन है- “ वाद-पद्धति पर चलने का नतीजा साहित्य में कृत्रिमता बढ़ाना, दलबन्दी फैलाना और साहित्य की निष्पक्ष माप को क्षति पहुँचाना ही हो सकता है।” आलोचक-कर्म की सफलता के लिए बाजपेयी ने दो आवश्यक शर्तें बताई हैं—“एक यह कि समीक्षक का व्यक्तित्व समुन्नत हो और दूसरी यह कि उसमें कला का मानसिक आधार ग्रहण करने की पूरी शक्ति हो—किसी मतवाद का आग्रह न हो।" उनका आग्रह है कि युग की संवेदनाओं से समीक्षक का घनिष्ठ परिचय होना चाहिए। साहित्य में प्रयोगों का खिलवाड़ उनकी दृष्टि में “समीक्षा को जड़ से उखाड़ फेंकने का सरंजाम" है।
 

समीक्षा शैली 

वाजपेयी जी की समीक्षा-शैली व्याख्यात्मक और विवेचनात्मक है। उनकी मुख्य विशेषताएँ निम्न हैं- 
  1. किसी कृति की विशेषताओं का उद्घाटन करते समय वे क्रमानुसार एक, दो, तीन नम्बर देते हुए उनका वर्णन करते हैं। शुक्ल जी की भाँति किसी एक तथ्य को सूत्र रूप में उपस्थित करके उसको व्याख्या नहीं करते, अपितु तथ्यों का क्रमानुसार वर्णन करते हैं।
  2. व्याख्या में पूर्णतया और प्रभावात्मकता की सृष्टि के लिए तुलनात्मक पद्धति का प्रश्रय भी ग्रहण करते हैं। साकेत की आधुनिकता पर विचार करते हुए उसकी कामायनी, कुरुक्षेत्र और मानस से तुलना करते हैं।
  3. कहीं-कहीं विषय में डूबकर वे भाव-विभोर भी हो जाते हैं। ऐसे स्थलों पर उनकी आलोचना प्रभाववादी हो जाती है। सूर की आलोचना में ऐसा देखा जा सकता है, परन्तु ऐसे स्थल अत्यन्त कम हैं।
  4. बाजपेयी जी कहीं-कहीं आवेश में आकर प्रश्नों की बौछार करने लगते हैं; यथा- 'शेखर : एक जीवनी' की आलोचना का यह स्थल देखिए- “अब वह (राशि) और भी निराश्रित हो गई, किन्तु शेखर को और भी बल मिला। संस्कार के लिए ? समाधान के लिए ? शान्ति के लिए ? नहीं, आत्म-प्रवंचना के लिए, विषाद-तृप्ति के लिए, अहं-पूर्ति के लिए।" 
  5. हास्य-व्यंग्य का सन्निवेश बाजपेयी जी की आलोचना-शैली की एक अन्य विशेषता है। कहीं-कहीं व्यंग्य में तीखापन भी आ गया है। 

भाषा

वाजपेयी जी की आलोचनाओं की भाषा संयत व गम्भीर है। डॉ. नगेन्द्र ने उनकी भाषा और विवेचन पर अस्पष्टता का आरोप किया है, जो अनुचित है। वस्तुतः बाजपेयी जी की भाषा में भावोद्बोधन की अद्भुत शक्ति है। कहीं-कहीं अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी करते हैं परन्तु उनके साथ हिन्दी शब्द भी रख देते हैं। उर्दू शब्दों का उनकी भाषा में अभाव है। तथ्यों के उल्लेख के अवसरों पर वाक्य छोटे-छोटे रहते हैं, जबकि भावों का प्रवाह रहने पर वाक्य बड़े हो जाते हैं। 

निष्कर्ष - उपर्युक्त विवेचन से प्रकट है कि वाजपेयी जी आधुनिक हिन्दी समीक्षकों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखते हैं। प्राचीन और नवीन के सहज सामंजस्य को नया रूप, नया जीवन और नई दिशा देने का उन्होंने सराहनीय कार्य किया है। प्राचीनता से उन्हें विरोध नहीं है और न नवीनता के प्रति व्यामोह है। इन दोनों के संयत- सम्मिश्रण को उन्होंने साहित्य-क्षेत्र में वांछनीय बताया है। आधुनिक काव्य-चेतना के लिए उपर्युक्त भारतीय काव्य-तत्त्व उन्होंने निःसंकोच ग्रहण किये हैं और भारतीय समाज के उपर्युक्त पाश्चात्य आदर्शों को भारतीय जामा पहनाने में भी कोई त्रुटि नहीं की है। पीटर और एडीसन की विचारधारा को भी उन्होंने अपनाया तथा भारतीय काव्यशास्त्र की परम्परागत मान्यताओं को भी उपजीव्य बनाकर अपनी समीक्षा-पद्धति का विकास किया।

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,3,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,11,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,5,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,53,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की समीक्षा पद्धति आलोचना दृष्टि
आचार्य नंददुलारे वाजपेयी की समीक्षा पद्धति आलोचना दृष्टि
आचार्य नंददुलारे वाजपेयी हिंदी साहित्य के एक विशिष्ट और प्रभावशाली आलोचक रहे हैं। उन्होंने अपनी समीक्षा पद्धति के माध्यम से साहित्यिक रचनाओं के मूल्या
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuA17LRn8q3A2CCA_uumekIs886IwoFxirLs2GTUPe4xgCaFrTXnc8OQtC5jkjGi2iKyfarJO7fkBK5XUvsApoudsHCx51FDPKhsZFbadPWAWHIR7R0O2fdLzPssUIlH-PZ88YjIzBbd8zUen50Ne5HyNeXJfXVKDxgmXNTexratgel6J0F2DJlT58E4AP/s16000/Nand-Dulare-Bajpai.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhuA17LRn8q3A2CCA_uumekIs886IwoFxirLs2GTUPe4xgCaFrTXnc8OQtC5jkjGi2iKyfarJO7fkBK5XUvsApoudsHCx51FDPKhsZFbadPWAWHIR7R0O2fdLzPssUIlH-PZ88YjIzBbd8zUen50Ne5HyNeXJfXVKDxgmXNTexratgel6J0F2DJlT58E4AP/s72-c/Nand-Dulare-Bajpai.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/07/nand-dulare-vajpayee-ki-samiksha-paddhati.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/07/nand-dulare-vajpayee-ki-samiksha-paddhati.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका