वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता

SHARE:

वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। आजादी के बाद से वि

वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता


विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। आजादी के बाद से विधायिका में सुधार होते रहे हैं। जैसे कि दल - बदल कानून। कार्यपालिका में भी सुधार होते रहे हैं। जैसे कि सूचना का अधिकार कानून। मीडिया के सुधार उसकी स्वतंत्रता में ही निहित हैं। वर्तमान समय में न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता है।  परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है। पतझड़ में पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और वसंत में नई कोंपलें उग आती हैं। समय के साथ सामाजिक व्यवस्था में परिवर्तन आया है। इसी बदलाव के समानांतर न्यायपालिका में भी सुधारों की आवश्यकता है। वर्तमान समय में कुछ पुराने कानून जड़ हो चुके हैं, तो कुछ नए बनाए गए कानून प्रासंगिकताहीन हैं। उच्च न्यायालय अपने अधीनस्थ न्यायालयों पर न तो नियंत्रण रख पा रहा है और न तो उनका मार्गदर्शन कर पा रहा है।   बिना रोए तो मां भी दूध नहीं पिलाती। कानून अंधा होता है। वह सिर्फ आपके पक्ष को सुन सकता है। न्यायपालिका की भी यह जिम्मेदारी है कि वह किसी व्यक्ति के पक्ष को अनसुना न करे। समाज और अधीनस्थ न्यायपालिका के मार्गदर्शन की जिम्मेदारी देश के उच्चतम न्यायालय और राज्यों के उच्च न्यायालयों की है। एक आदर्श नागरिक होने के नाते देश के सभी नागरिकों का कर्तव्य है कि वह न्यायपालिका की खामियों को उजागर करें, जिससे वह वरिष्ठ न्यायशास्त्रियों की नजर में आए और वे उन खामियों को दूर कर उनमें सुधार कर सकें। किसी भी तथ्य को शिष्ट तरीके से बुद्धिजीवियों के सामने लाने की अपनी प्रासंगिकता और महत्व है।

दलील सौदेबाजी उस स्थिति के बारे में बात करता है जिसमें अभियुक्त सजा को कम करने के बदले में मुआवजे के लिए पीड़ित के साथ सौदेबाजी करता है। प्रतिवादी अधिक उदार सजा, सिफारिशों, एक विशिष्ट सजा या अन्य आरोपों को खारिज करने के बदले में कम अपराध या (एकाधिक अपराधों के मामले में) एक या अधिक अपराधों के लिए दोषी मानता है। प्रतिवादी या अभियुक्त अभियोजन पक्ष द्वारा दायर किए गए मूल आरोपों पर अपराध के लिए दोषी ठहराने के लिए सहमत होते हैं, इस उम्मीद में कि मुकदमे में दोषी ठहराए जाने पर उन्हें कम सजा मिल सकती है।

'याचिका' शब्द का अर्थ है 'अनुरोध' और 'सौदेबाजी' शब्द का अर्थ है 'बातचीत'। तो सरल शब्दों में इसका मतलब एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत एक व्यक्ति जिस पर आपराधिक अपराध का आरोप लगाया गया है, वह कम गंभीर अपराध के लिए दोषी मानते हुए कानून में निर्धारित सजा से कम सजा के लिए अभियोजन पक्ष से बातचीत करता है। दलील सौदेबाजी में अभियुक्त अपना बचाव नहीं करना चाहता। उसे पता होता है कि वह दोषी सिद्ध हो जाएगा। इसलिए उसका उद्देश्य यह होता है कि उसे कम से कम सजा हो। वह जल्दी से जल्दी अपनी सजा काट कर अपनी आम जिंदगी जी सके। दलील सौदेबाजी के कुछ अपवाद भी हैं।ऐसे अपराध जो मृत्युदंड, आजीवन कारावास, सात वर्ष से अधिक कारावास से दंडनीय है।  महिलाओं के विरूद्ध अपराध (जैसे पीछा करना या बलात्कार)।   चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों के विरूद्ध अपराध।  ऐसे अपराध जो किसी देश की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को प्रभावित करते हैं (जैसे खाद्य पदार्थों में मिलावट या मनी लॉन्ड्रिंग)।  इसके अलावा जहां अदालत को पता चलता है कि किसी व्यक्ति को पहले भी इसी अपराध के तहत दोषी ठहराया गया है या उसने (आरोपी) ने अनजाने में इस अवधारणा के तहत आवेदन दायर किया है, तो अदालत उस चरण से कानून के अनुसार आगे बढ़ सकती है जहां ऐसा हो।  

वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता
कुछ मामलों में प्रतिवादी अधिक नरम सजा पाने के लिए मूल आरोप से कम गंभीर आरोप को स्वीकार करने का निर्णय ले सकता है। उदाहरण के लिए जिस व्यक्ति पर गंभीर हमले का आरोप लगाया गया है, वह कम सजा के बदले में साधारण हमले का दोष स्वीकार करना चुन सकता है। एक प्रतिवादी कुछ आरोपों को खारिज करने के बदले में कम अपराध के लिए दोषी ठहराने या कम सजा स्वीकार करने का विकल्प चुन सकता है। उदाहरण के लिए चोरी के कई मामलों में आरोपी कोई व्यक्ति केवल एक मामले में दोषी मान सकता है और शेष आरोपों को कम सजा के लिए बातचीत के समझौते के हिस्से के रूप में खारिज कर सकता है। यदि प्रतिवादी अपना दोष स्वीकार करता है, तो अभियोजन पक्ष के पास एक विशिष्ट सजा का सुझाव देने का विवेक है।उदाहरण के लिए, गबन के आरोपों से जुड़े मामले में, प्रतिवादी दोष स्वीकार करने का विकल्प चुन सकता है और परिणामस्वरूप, पूर्ण क्षतिपूर्ति करने की शर्त पर परिवीक्षा दी जा सकती है। दलील सौदेबाजी का दुनिया-भर में बहुत लंबा और विविध इतिहास रहा है। इसकी उत्पत्ति रोम के समय से लेकर वर्तमान अमेरिका तक देखी जा सकती है, और अब यह कई विकसित और विकासशील देशों की कानूनी प्रणालियों में फैल रही है। अमेरिका और भारत की राजनीतिक और सामाजिक स्थिति में जमीन आसमान का अंतर है। जहां अमेरिका एक विकसित राष्ट्र है वहीं भारत एक विकासशील राष्ट्र है। भारत अपने राजनीतिक और सामाजिक भ्रष्टाचार के लिए सदा से ही प्रसिद्ध रहा है। यह भ्रष्टाचार विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तीनों ही क्षेत्रों में व्याप्त रहा है। दलील सौदेबाजी न्यायपालिका के क्षेत्र में भ्रष्टाचार को बढ़ाएगी। 

अगर हम अस्सी और नब्बे के दशक की वॉलीवुड की फिल्मों की बात करें तो गांव का जमींदार कोई अपराध कर देता था। जमींदार का चमचा थानेदार के सामने जमींदार के अपराध को स्वयं कबूल कर लेता था। इससे थानेदार अपराध की जांच में ढिलाई बरतता था। बाद में जमींदार अपने चमचे को भी छुड़ा लेता था। अमीर लोगों के अपराध पैसे के लालच में गरीब लोग अपने सिर पर ले लेंगे। भ्रष्ट जांच अधिकारी जांच में कोताही बरतेंगे। न्यायालय भी दलील सौदेबाजी के चलते निर्दोष लोगों को जेल भेजेंगे। इससे दलील सौदेबाजी अमीर लोगों के लिए अपराध करने का एक लाइसेंस साबित होगा। न्यायालय सौदेबाजी के अड्डे बन कर रह जाएंगे| हर व्यक्ति कुछ नया करना चाहता है, जिससे की उसका नाम हो। कुछ नया करने के चक्कर में उन चीजों को भारतीय न्यायपालिका पर नहीं थोपना चाहिए। जो भारतीय समाज की परिस्थितियों के अनुकूल न हो। नए अव्यवहारिक कानूनों को लाने की जगह पुराने अव्यावहारिक कानूनों को हटाना चाहिए। दलील सौदेबाजी के समर्थकों का कहना है कि इससे मुकदमों के निपटारों में जल्दी होगी और न्यायपालिका पर बोझ घटेगा। न्यायपालिका के बोझ को घटाने के लिए किसी के साथ अन्याय नहीं किया जा सकता। मुकदमों के जल्दी निपटारे के लिए अतिरिक्त न्यायधीशों की नियुक्ति की जा सकती है। न्यायधीश दिन में एक घंटा अतिरिक्त कार्य कर सकते हैं। वर्तमान में न्यायपालिका में सुधारों के नाम पर दलील सौदेबाजी जैसे सभी अव्यवहारिक कानूनों को हटाने की आवश्यकता है। वर्तमान समय में न्यायपालिका की साख को बचाए जाने की जरूरत है। बहुत से मुकदमों में न्यायधीश केवल तारीख पे तारीख देता है। वह मुकदमे की गहराई तक जाने की कोशिश नहीं करता। गरीबों की जिंदगी तारीखों में ही निकल जाती है। लेकिन न्यायालय अपना फैसला नहीं दे पाता। मुंशी प्रेमचंद के उपन्यासों में पहले पिता, फिर बेटा, फिर पोता जमींदार का कर्ज चुकाने के लिए जिंदगी भर मजदूरी करते हैं पर कर्ज नहीं चुका पाते। उसी तरह वर्षों नहीं, दशकों निकल जाते हैं पर न्यायालय अपना फैसला नहीं दे पाता। अधीनस्थ न्यायपालिका की उच्च न्यायालय के प्रति जबावदेही तय होनी चाहिए।सभी मुकदमों का निश्चित समय में फैसला होना चाहिए। अगर अधीनस्थ न्यायालय निश्चित समय में फैसला नहीं करता है तो उच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करना चाहिए। उच्च न्यायालय को अधीनस्थ न्यायालय के कामकाज पर निरंतर नजर रखनी चाहिए। अगर कोई न्यायाधीश अपने काम में कोताही बरतता है तो उच्च न्यायालय को उसके खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। देरी से मिला न्याय, न्याय नहीं होता। 

न्यायपालिका को इस तथ्य को आत्मसात करना चाहिए। भारत में जब किसी व्यक्ति पर न्यायालय में आरोप लगते हैं, तो उसे तभी से दोषी माने जाना लगता है। कानून के अनुसार तो ऐसा नहीं है, पर जमीनी सच्चाई यही है। अगर आरोपी गरीब है तो न्यायालय के कर्मचारियों द्वारा भी उसके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है। एक तरह से बिना मुकदमे के फैसले के ही उसे सजा दी जाने की कोशिश की जाती है। इस हथियार का प्रयोग भारत में अमीरों द्वारा गरीबों को परेशान करने के लिए निरंतर किया जा रहा है। आरोपी के दोषी सिद्ध होने तक उसके साथ दोषियों की तरह बर्ताव नहीं किया जाना चाहिए। जब पुलिस स्टेशन में किसी के खिलाफ शिकायत दर्ज की जाती है तो जिस व्यक्ति के खिलाफ शिकायत दर्ज की जा रही है, अगर वह गरीब है तो पुलिस द्वारा उसके खिलाफ जानबूझकर कठोर धाराएं लगाई जाती हैं। इन धाराओं पर पुलिस की जबावदेही तय होनी चाहिए। गलत और अतार्किक धाराएं लगाने पर पुलिस पर जुर्माना लगाया जाना चाहिए।पुलिस भी समाज का हिस्सा होती है। भारत में पुलिस आज समाज की मालिक बनी बैठी है। पुलिस न्यायपालिका का प्रयोग अपने तुच्छ हितों को साधने के लिए कर रही है। न्यायपालिका गरीबों के प्रति कठोर और अमीरों के प्रति नरम है। गरीबों को तारीख पर तारीख दी जाती है। गरीबों के मुकदमों में पुलिस भी गवाही देने समय पर नहीं आती। न्यायालय को भी इससे फर्क नहीं पड़ता। क्योंकि आरोपी गरीब व्यक्ति है। मुकदमे को बेवजह वर्षों तक लंबा खींचा जाता है। जिला न्यायवादियों के स्थानांतरण बहुत कम होते हैं। वे वर्षों तक एक ही जगह पर जमे रहते हैं। जबकि सरकारी नीति तीन वर्ष बाद कर्मचारियों के स्थानांतरण करने की है। कुछ न्यायवादी दस वर्ष से भी अधिक समय से एक ही जगह जमे पड़े हैं। अगर स्थानांतरण होता भी है तो एक वर्ष बाद वे फिर उसी जगह पर लौट आते हैं। प्रत्येक तीन वर्ष बाद न्यायवादियों का स्थानांतरण होना चाहिए और उन्हें वापस पहले के स्थान पर स्थानांतरित नहीं करना चाहिए। 

पंच के दिल में खुदा बसता है। पंचों के मुंह से जो बात निकलती है, वह खुदा के तरफ से ही निकलती है।  आज का दौर नारीवाद का दौर है। नारीवाद सामाजिक व्यवस्था पर हावी है। नारीवादियों को नारीवाद के अलावा और किसी दृष्टिकोण से कोई लेना-देना नहीं है। बीते दिनों सोशल मीडिया पर एक बात छाई रही जिसमें एक गर्भवती कहती है कि मैं इतनी बड़ी नारीवादी हूं कि अगर मेरा बच्चा लड़का हुआ तो मैं स्वयं अपने हाथों से जन्म लेते ही उसका गला घोंट दूंगी।आज भारत में न्यायधीश की कुर्सी पर बैठी अधिकतर महिलाएँ न्यायशास्त्र के अनुसार कार्य करने की बजाए नारीवाद का प्रचार करना ही अपना कर्तव्य समझती हैं। आज भारतीय न्यायपालिका घोर पतनावस्था के दौर से गुजर रही है। वरिष्ठ न्यायधीशों को आगे आकर इन महिला न्यायधीशों के फैसलों पर नजर रखनी चाहिए और इन्हें न्यायशास्त्र के हिसाब से मुकदमों का फैसला देने के लिए प्रेरित करना चाहिए। आज भारत में उच्च न्यायालयों की यह हालत है कि न्यायधीशों और अधिवक्ताओं के सिंडिकेट बने हुए हैं। एक ही तरह के मुकदमों में एक ही न्यायधीश द्वारा अलग अलग तरह के फैसले दिए जाते हैं। आज उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश राजनीतिक दलों के प्रभाव में मुकदमों के फैसले देते हैं। अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है। जब हम राह भूल कर भटकने लगते हैं तब यही ज्ञान हमारा विश्वसनीय पथ प्रदर्शक बन जाता है। परंतु आज न्यायधीश जानबूझ कर राह भटक रहे हैं। क्योंकि सेवानिवृती के बाद राजनीतिक दलों द्वारा उन्हें बड़े ओहदों पर नियुक्ति दी जाती है। 

न्यायधीशों की हालत आज प्रेमचंद के उपन्यासों के ब्राह्मण पात्रों की तरह है। वहां का डर तुम्हें होगा, मुझे क्यों होने लगा। वहां तो सब अपने ही भाई बंधु हैं। ऋषि मुनि सब तो ब्राह्मण हैं, देवता ब्राह्मण हैं, जो कुछ बने बिगड़ेगी, संभाल लेंगे।  वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की नितांत आवश्यकता है।दल-बदल कानून विधायिका के क्षेत्र में, सूचना का अधिकार कार्यपालिका के क्षेत्र में सोशल मीडिया का विकास मीडिया के क्षेत्र में मील के पत्थर हैं। न्यायपालिका के क्षेत्र में ऐसे ही किसी मील के पत्थर की जरूरत है। इस तरह हम कह सकते हैं कि वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका के क्षेत्र में व्यापक सुधारों की आवश्यकता है।


- विनय कुमार 
सहायक हिन्दी प्रोफ़ेसर
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता
वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता
वर्तमान समय में भारतीय न्यायपालिका में सुधारों की आवश्यकता विधायिका, कार्यपालिका, न्यायपालिका और मीडिया लोकतंत्र के चार स्तंभ हैं। आजादी के बाद से वि
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMcBHE8bBSvXkVsOBbEDhyW6X5Gzl46DbucbhChWKXpqaRrCDc3s8WMv0IWpeKw1kFnKnP2g2WNPAjOQVeFa9r-h1ivH3ALIqeGk3D1IWHmimYgi3xd9jYniO2yqFnN_OuXvLjXnSiLVAQBmAfYftiNDA-GEA02g1uB84ppzOvRv_rDAhpwVReiRYWqE3l/s16000/nyaypalika-me-sudhar-ki-avashyakta.jpeg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEjMcBHE8bBSvXkVsOBbEDhyW6X5Gzl46DbucbhChWKXpqaRrCDc3s8WMv0IWpeKw1kFnKnP2g2WNPAjOQVeFa9r-h1ivH3ALIqeGk3D1IWHmimYgi3xd9jYniO2yqFnN_OuXvLjXnSiLVAQBmAfYftiNDA-GEA02g1uB84ppzOvRv_rDAhpwVReiRYWqE3l/s72-c/nyaypalika-me-sudhar-ki-avashyakta.jpeg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/07/nyaypalika-me-sudhar-ki-avashyakta.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/07/nyaypalika-me-sudhar-ki-avashyakta.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका