राम और सुग्रीव | Ram Aur Sugreev | Hindi Bal Ram Katha राम और सुग्रीव, पाठ रामायण के उस प्रसंग से संबंधित है जब भगवान राम वनवास के दौरान ऋष्यमूक पर्व
राम और सुग्रीव | Ram Aur Sugreev | Hindi Bal Ram Katha
राम और सुग्रीव, पाठ रामायण के उस प्रसंग से संबंधित है जब भगवान राम वनवास के दौरान ऋष्यमूक पर्वत पर पहुंचते हैं। वहां उनकी मुलाकात सुग्रीव नामक वानर राजा से होती है। सुग्रीव अपने बड़े भाई बाली द्वारा राज्य और पत्नी छीन लिए जाने के कारण वनवास में रह रहा था।
राम और सुग्रीव मित्रता करते हैं और रावण द्वारा अपहृत सीता को वापस लाने के लिए एक साथ मिलकर काम करने का निर्णय लेते हैं।
राम और सुग्रीव पाठ का सारांश
राम और लक्ष्मण का अगला पड़ाव ऋष्यमूक पर्वत था। सुग्रीव वहीं रहते थे। कबंध और शबरी की बात दोनों भाइयों को याद थी। ऋष्यमूक में सुग्रीव निर्वासन में अपना समय बिता रहे थे। सुग्रीव किष्किंधा के वानरराज के छोटे पुत्र थे। बड़े भाई का नाम बाली था। दोनों भाइयों में बहुत प्रेम था। राजकाज में किसी बात को लेकर मनमुटाव हुआ। फिर झगड़ा हो गया। इतना गंभीर कि बाली सुग्रीव को मार डालने पर उतर आया। जान बचाने के लिए सुग्रीव को ऋष्यमूक आना पड़ा।
एक दिन सुग्रीव पहाड़ी पर खड़ा था। उसने दो युवकों को उधर आते देखा। “ये दोनों अवश्य बाली के गुप्तचर होंगे। मुझे मारने आ रहे होंगे।"
"हमें ऋष्यमूक पर्वत छोड़ देना चाहिए। बाली यहाँ भी आ धमका है।" सुग्रीव ने अपने साथियों से कहा, “मैंने दो युवकों को इधर आते देखा है।" हनुमान ने कहा, "मैं जाकर पता लगाता हूँ कि वे कौन हैं।" हनुमान पर सुग्रीव को भरोसा था। हनुमान ने शिष्टता से प्रणाम किया। पूछा, "आप दोनों कौन हैं? वन में क्यों भटक रहे हैं? आपका भेस मुनियों जैसा है, लेकिन चेहरे से राजकुमार लगते हैं।" "हम सुग्रीव से मिलने जा रहे हैं। क्या आप उन्हें जानते हैं?" राम ने विनम्रता से पूछा। प्रणाम करते हुए बोले, “मैं हनुमान हूँ, सुग्रीव का सेवक।" हनुमान ने सोचा, दोनों को एक-दूसरे की सहायता चाहिए। वे मित्र हो सकते हैं। एक अयोध्या से निर्वासित हैं, दूसरा किष्किंधा से। एक की पत्नी को रावण ने उठा लिया है। दूसरे की पत्नी को उसके भाई ने छीन लिया है। दोनों के पिता नहीं हैं। हनुमान ने दोनों को सुग्रीव से मिलाया। दोनों ने अग्नि को साक्षी मानकर मित्रता का वचन लिया। सुग्रीव ने कहा, "आज से हमारे सुख-दुःख साझा हैं।" राम ने सुग्रीव को सीता हरण के संबंध में बताया तो सुग्रीव अचानक उठ खड़े हुए। बोले, "वानरों ने मुझे एक स्त्री के हरण की बात बताई थी। रावण का रथ इस पर्वत के ऊपर से गया था।" गहनों की एक पोटली राम के सामने रखते हुए उन्होंने कहा, "देखिए, क्या ये गहने सीता के हैं?"
राम ने आभूषण तुरंत पहचान लिए। कुछ गहने लक्ष्मण ने भी पहचाने। उनके मुँह से निकला, “धिक्कार है मुझे, हे सीते! मैं संकट में तुम्हारी रक्षा नहीं कर सका। सुग्रीव ने उन्हें सांत्वना दी। "सीता अवश्य मिल जाएँगी।
राम के बाद सुग्रीव ने अपनी कथा-व्यथा सुनाई। "बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया है। मेरी स्त्री छीन ली।" राम बोले, "चिंता मत करो मित्र। तुम्हें अपना राज्य भी मिलेगा और स्त्री भी।" राम ने कहा, "मित्र! अब विलंब कैसा? बाली को युद्ध के लिए ललकारो। किष्किंधा की राजगद्दी का निर्णय उसी युद्ध में हो जाएगा। मैं पेड़ की ओट से युद्ध देखूँगा। जब तुम पर संकट आएगा, तुम्हारी सहायता करूँगा।” भीषण मल्ल युद्ध हुआ। बाली और सुग्रीव एक-दूसरे से गुँथ गए। युद्ध में बाली भारी पड़ रहा था। लगता था सुग्रीव का अंत नजदीक है। सुग्रीव वहाँ से किसी तरह जान बचाकर भागा। सुग्रीव राम से क्रोधित था। "यह धोखा है। आपने मेरे साथ धोखा किया है। समय पर बाण नहीं चलाया। मैं नहीं भागता तो वह आज मुझे मार डालता।" राम ने सुग्रीव को समझाया, "तुम दोनों भाइयों के चेहरे मिलते-जुलते हैं। दूर से दोनों एक जैसे लगते हो। मैं अपने मित्र को खोना नहीं चाहता था।" राम ने कहा, "जाओ मित्र ! इस बार बाली को पहचानने में चूक नहीं होगी। इस बार उसका अंत निश्चित है।"
किष्किंधा पहुँचकर सुग्रीव ने बाली को चुनौती दी। ललकारा। बाली ने हाथ हवा में उठाया। मुट्ठी भिंची हुई थी। वह एक घूँसे से सुग्रीव का काम तमाम कर देता। तभी राम का बाण उसकी छाती में लगा। वह लड़खड़ाकर गिर पड़ा। बाली के पुत्र को युवराज का पद दिया गया। राम किष्किंधा से लौट आए। वर्षा ऋतु के कारण आगे जाना कठिन था। वर्षा ऋतु बीत गई। राम प्रतीक्षा कर रहे थे। सुग्रीव की वानर सेना द्वारा सीता की खोज के लिए। लेकिन वह अपना वचन भूल गया। राग-रंग में उलझ गया। राम चिंतित थे। दुखी भी। पन्द्रह दिन बीत गए। लेकिन सेना राम के पास नहीं पहुँची। राम सुग्रीव के इस व्यवहार से क्षुब्ध थे। क्रोध में उन्होंने सुग्रीव के विनाश तक की बात कही। राम को चिंतित देखकर लक्ष्मण से न रहा गया। उन्होंने धनुष उठाया तो राम ने उन्हें रोक दिया। कहा, "सुग्रीव को बस समझाना है। वह हमारा मित्र है।" लक्ष्मण किष्किंधा चले गए। सुग्रीव को समझाने। वहाँ पहुँचकर उन्होंने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई। धनुष की टंकार सुनते ही उसे राम को दिया हुआ वचन पुनः याद आ गया। राम के सामने जाकर भयभीत वानरराज ने उनसे क्षमा माँगी। अपनी चूक के लिए। राम ने उन्हें उठाकर गले लगा लिया। इसके बाद लंकारोहण की योजना बनी। वानरों को चार टोलियों में बाँटा गया। अंगद को दक्षिण जाने वाले अग्रिम दल का नेता बनाया गया। वानरों की सेना भेजने से पहले चतुर और बुद्धिमान दूतों को लंका भेजा जाए। यही उचित है। दक्षिण जाने वाले दल को राम ने रोक लिया। उन्होंने हनुमान को अपने पास बुलाया। अपनी उंगली से अंगूठी उतारकर उन्हें दे दी। अंगूठी पर राम का चिह्न था। उन्होंने कहा, "जब सीता से भेंट हो तो यह अंगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी कि तुम्हें मैंने भेजा है, तुम मेरे दूत हो।"
अंगद और हनुमान आगे-आगे चल रहे थे। विशाल समुद्र। उसकी गहराई अथाह थी। लहरों की गरज कँपा देती थी। समुद्र को देखकर सबका साहस जवाब दे गया। वानर थक-हार कर वहीं बैठ गए। वानर राम के बारे में चर्चा करने लगे। अंगद ने कहा, "राम की सेवा में प्राण भी चले जाएँ तो दुख नहीं होगा। जटायु ने जान दे दी। हम भी पीछे नहीं हटेंगे।" तभी एक विशाल गिद्ध पहाड़ी के पीछे से निकला। वह जटायु का भाई संपाति था। “सीता लंका में हैं। मैं जानता हूँ। रावण उन्हें लेकर गया है। आप लोगों को यह समुद्र पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का यही एक रास्ता है।" वानर दल असमंजस में पड़ गया। अंगद ने पहले ही कह दिया था कि काम पूरा किए बिना कोई किष्किंधा नहीं जाएगा। तभी जामवंत की दृष्टि हनुमान पर पड़ी। वे सबसे दूर बैठे थे। चुपचाप। जामवंत जानते थे कि यह काम हनुमान कर सकते हैं। वे पवनपुत्र हैं। उनकी शक्ति अपार है। लेकिन उन्हें स्वयं इसका अनुमान नहीं है। उनकी सोई हुई शक्ति जामवंत ने जगाई। कहा, “हनुमान, आपको जाना होगा। यह कार्य केवल आप कर सकते हैं।" सबकी आँखें उन पर टिक गई।
राम और सुग्रीव पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. हनुमान ने राम-लक्ष्मण से क्या पूछा?
उत्तर- हनुमान ने राम-लक्ष्मण को शिष्टता से प्रणाम किया। पूछा, “आप दोनों कौन हैं? वन में क्यों भटक रहे हैं? आपका भेस मुनियों जैसा है, लेकिन चेहरे से राजकुमार लगते हैं।
प्रश्न. सुग्रीव ने राम को सीता के बारे में क्या जानकारी दी ?
उत्तर- "वानरों ने मुझे एक स्त्री के हरण की बात बताई थी। वह निश्चित रूप से सीता ही रही होंगी। रावण का रथ इसी पर्वत के ऊपर से गया था। सीता स्वयं को रावण के चंगुल से छुड़ाने का यत्न कर रही थीं। वानरों को देखकर उन्होंने अपने कुछ आभूषण नीचे फेंक दिए थे। "गहनों की एक पोटली राम के सामने रखते हुए उन्होंने कहा, "देखिए, क्या ये गहने सीता के हैं?"
प्रश्न. सुग्रीव ने राम को अपने बारे में व बाली के बारे में क्या बताया?
उत्तर- राम के बाद सुग्रीव ने अपनी व्यथा-कथा सुनाई। "बाली ने मुझे राज्य से निकाल दिया है। मेरी स्त्री छीन ली। मेरा वध करने की चेष्टा कर रहा है। संकट के समय हनुमान, नल और नील ने मेरा साथ दिया। मुझे कभी नहीं छोड़ा।" उसने राम से सहायता माँगी। राम बोले, "चिंता मत करो मित्र। तुम्हें अपना राज्य भी मिलेगा और स्त्री भी।"
"बाली महाबलशाली है। उसे हराना इतना आसान नहीं है। वह शाल के सात वृक्षों को एक साथ झकझोर सकता है।"
प्रश्न. राम ने क्या कहकर सुग्रीव को आश्वस्त किया?
उत्तर- राम बोले, "चिंता मत करो मित्र। मैं पेड़ की ओट से युद्ध देखूँगा। जब तुम पर संकट आएगा, तुम्हारी सहायता करूँगा। बाली की मृत्यु मेरे ही बाण से होगी। वह मारा जाएगा।
प्रश्न. सुग्रीव के नाराज होने पर राम ने सुग्रीव को क्या तर्क दिया?
उत्तर- राम ने सुग्रीव को समझाया, "तुम दोनों भाइयों के चेहरे मिलते-जुलते हैं। दूर से दोनों एक जैसे लगते हो। मैं बाली को पहचान नहीं पाया। बिना पहचाने बाण चलाता तो वह तुम्हें भी लग सकता था। मैं इस चूक के लिए तैयार नहीं था। मैं अपने मित्र को खोना नहीं चाहता था।"
प्रश्न. राम ने हनुमान को बुलाकर क्या कहा?
उत्तर- राम ने हनुमान को बुलाकर अपनी उंगली से अंगूठी उतारकर उन्हें दे दी। अंगूठी पर राम का चिह्न था। उन्होंने कहा, "जब सीता से भेंट हो तो यह अंगूठी उन्हें दे देना। वे इसे पहचान जाएँगी। समझ जाएँगी तुम्हें मैंने भेजा है। तुम मेरे दूत हो।"
प्रश्न. संपाति कौन था? उसने सीता के बारे में क्या जानकारी दी ?
उत्तर - संपाति जटायु का भाई था। उसने कहा, "सीता लंका में हैं। मैं जानता हूँ। रावण उन्हें लेकर गया है। आप लोगों को यह समुद्र पार करना होगा। सीता तक पहुँचने का बस यही एक रास्ता है।"
प्रश्न. जामवंत ने हनुमान से समुद्र पार करने के बारे में क्या कहा?
उत्तर - जामवंत जानते थे कि यह काम हनुमान कर सकते हैं। वे पवनपुत्र हैं। उनकी शक्ति अपार है। लेकिन उन्हें स्वयं इसका अनुमान नहीं है। उनकी सोई हुई शक्ति जामवंत ने जगाई। कहा, “हनुमान! आपको जाना होगा। यह कार्य केवल आप कर सकते हैं।" सबकी आँखें उन्हीं पर टिक गई।
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