रानी लीलावती | हिन्दी कहानी सांयकाल के समय ढलते सूर्य की किरणों की लालिमा से पहाड़, रावण की सोने की लंका के महलों की तरह चमक रहे हैं। किले की प्राचीर
रानी लीलावती
सांयकाल के समय ढलते सूर्य की किरणों की लालिमा से पहाड़, रावण की सोने की लंका के महलों की तरह चमक रहे हैं। किले की प्राचीर पर खड़ी रानी ढलते सूरज को निहार रही है। किला इतनी उंचाई पर बना है कि पहाड़ों की चोटियां बहुत ही नीचे दिखाई दे रही हैं। अनंतपुर किला अनंतपुर रियासत की शान है। राणा का महल भी किले के अंदर ही है। सांयकाल की सुंदरता को निहारते हुए रानी उसमें खो गई है। तभी रानी की छोटी बेटी दौड़ते हुए आती है और रानी की टांगों से चिपट जाती है। रानी बेटी को गोदी में उठा लेती है। रानी बेटी को गोदी में उठाए अपने कक्ष की तरफ चल देती है।
रात के समय कोलाहल सुनकर रानी जाग उठती है। वह देखती है कि राणा पलंग पर नहीं सो रहे हैं। वह अपने कक्ष की खिड़की से बाहर झांकती है। किले की सबसे बाहरी प्राचीर के नीचे लड़ाई चल रही होती है। राणा हाथों में तलवार लहराते हुए अपनी वीरता का परिचय दे रहे होते हैं। राणा एक ही वार में दुश्मन सैनिक का सिर धड़ से अलग कर देते हैं। दुश्मन के कुछ सैनिक भागने की कोशिश करते हैं, लेकिन अनंतपुर के सैनिक उनका पीछा कर उनका काम - तमाम कर देते हैं। थोड़ी देर बाद राणा कक्ष में आते हैं। रानी - "कौन थे वे लोग?" राणा - "कमलाहदुर्ग के सैनिक थे। अंधेरे का फायदा उठा कर बाहरी दीवार पर चढ़ने की फिराक में थे। पहरेदारों ने उन्हें देख लिया और बाकी सैनिकों को जगा दिया। दुश्मन के सैनिकों ने भागने की कोशिश की, पर गांव से भी हमारे कुछ सैनिक आ गए। तो हम सब ने उनको घेर कर उनका काम - तमाम कर दिया।" कमलाह का किला अनंतपुर के किले की सामने वाली पहाड़ी पर है। दोनों ही किले दुर्गम और अजेय हैं।
कमलाह के किले का किलेदार मंडी रियासत के राजा का सूबेदार और रिश्तेदार है। कमलाह का किला मंडी रियासत की शान है। अनंतपुर का राणा मंडी के राजा की अधीनता स्वीकार करने को तैयार नहीं है। वह स्वतंत्र रूप से अनंतपुर रियासत पर राज करता है। राणा एक सहृदय व्यक्ति है। अनंतपुर के लोग उसके शासन और नेतृत्व में आनंदमय जीवन व्यतीत कर रहे हैं। राणा उनके सुख और दुख दोनों में सम्मिलित होता है। राणा की अर्धांगिनी रानी लीलावती कदम - कदम पर उनका साथ देती है। रानी को अनंतपुर की प्रजा बहुत प्रेम करती है।रानी राणा का राज-पाठ के काम में पूरा सहयोग करती है। रानी राणा से-"वे लोग फिर आएंगे।" राणा-"मैं कमलाह के दुर्ग पर आक्रमण करने की सोच रहा हूँ।" रानी - "यह मूर्खता होगी। कमलाह के किले को हम नहीं जीत पाएंगे। अपने किले की सुरक्षा को ही और सुदृढ़ करना होगा।" अगले दिन कमलाह के सैनिकों के हार की खबर मंडी के राजा सूरजसेन को दरबार में मिलती है। सूरजसेन यह खबर सुनकर बेचैन हो उठता है। सूरजसेन अनंतपुर के किले को किसी भी कीमत पर जीतना चाहता है। वह अनंतपुर के किले को जीतने के लिए मंडी से एक विशाल सेना भेजना चाहता है। वह सेनापति को इसका आदेश देता है। तभी एक मंत्री - "महाराज, कुल्लू का राजा मानसिंह अपनी विशाल सेना के साथ मंडी की सीमा से सटे जंगलों में शिकार खेलने आया है लेकिन मुझे उनकी मंशा शिकार खेलने की न लगकर, कुछ और ही लगती है। इस समय राजधानी से सेना को बाहर भेजना, शेर के मुंह में स्वयं अपने सिर को देने जैसा होगा। आप अपने निर्णय पर पुनः विचार करें। " राजा-" मैं अनंतपुर के राणा को उसकी धृष्टता का दंड दिए बिना नहीं छोड़ सकता। " एक मंत्री जिसका नाम जालपू है -" महाराज, यह समय कूटनीति से काम लेने का है। हमें साम, दाम, दंड, भेद सभी का सहारा लेना चाहिए। राणा को पराजित करने के लिए कूटनीति से काम लिया जाना चाहिए।" राजा-" तो जालपू, मैं यह काम तुम पर छोड़ता हूं। " दरबार खत्म हो जाता है।
एक सप्ताह बाद कुल्लू का राजा मानसिंह शिकार खेलकर वापस अपनी राजधानी लौट जाता है। देखते-देखते सात महीने बीत जाते हैं। मंडी के राजा का दरबार लगा होता है। राजा का खजांची -" महाराज मंत्री जालपू ने खजाने से सौ स्वर्ण मुद्राओं का गमन किया है। मेरे पास इस आरोप के समर्थन में सबूत भी हैं।" राजा जालपू से - "जालपू क्या तुमने ऐसा किया है?" जालपू - "मैं ऐसा करने के बारे में सपने में भी नहीं सोच सकता।" महाराज खजांची से - "मंत्रीवर आप सबूत पेश कीजिए। " खजांची सबूत पेश करता है। सबूतों से आरोप सिद्ध हो जाते हैं। राजा-"जालपू तुम्हारे इस अपराध की सजा केवल मृत्युदंड है। लेकिन तुम्हारी सेवाओं को देखते हुए मैं तुम्हें अपने राज्य से निष्कासित करता हूं।" जालपू अपने मित्रों से कहता है कि वह राजा से अपने इस अपमान का बदला जरूर लेगा। यह बात चारों तरफ फैल जाती है। अनंतपुर के दुर्ग के परकोटे के मुख्य द्वार का प्रहरी घोड़े पर किसी को द्वार की तरफ आते देखता है। प्रहरी -" तुम कौन हो? अपना परिचय दो अजनबी। " अजनबी - "मैं मंडी का निर्वासित मंत्री जालपू हूं। राजा को मेरे आगमन की सूचना दो।" प्रहरी राजा को जालपू के आने की सूचना देता है। राणा जालपू को अंदर बुला लेता है। राणा अपने दरबार में जालपू का स्वागत करता है। राणा जालपू का अपने महल में अतिथि की तरह स्वागत करता है। राणा के सलाहकार उसे ऐसा नहीं करने की सलाह देते हैं। वे राणा से कहते हैं कि आपकी इस हरकत से सूरजसेन चिढ़ जाएगा। राणा कहता है कि सूरजसेन की परवाह ही किसे है। दिन बीतते चले जाते हैं। जालपू राणा का विश्वासपात्र बन जाता है। राणा अपने लोगों से ज्यादा उस पर विश्वास करने लग जाता है। रानी लीलावती जालपू को अपना धर्म भाई बना लेती है। रानी और जालपू में घनिष्ठ संबंध बन जाते हैं। ऐसा कोई दिन नहीं होता था जब रानी और जालपू आपस में हंसी-मजाक न करते हों। जालपू का व्यापार और बाजार का ज्ञान राणा के बहुत काम आता है। राणा को व्यवसाय में बहुत फायदा होता है।
फसलों की बुआई के लिए बीज बाहर से लाए जाते हैं। इस वर्ष फसल अच्छी होती है। दीपावली के दिन रानी लीलावती और अन्य स्त्रियों ने मिलकर किले को दीयों से सजा रखा है। राणा ने सबके लिए दावत का आयोजन किया है। रानी लीलावती साड़ी में अत्यंत सुंदर लग रही है। रानी अन्य स्त्रियों से घिरी हुई ऐसी लग रही है जैसे घनेरी काली रात में तारों से चांद घिरा होता है। जालपू - "आज दीयों रूपी तारों के बीच चांद स्वयं उतर आया है।" सभी स्त्रियां हंसने लगती हैं।तभी राणा वहां आते हैं। राणा को आते देख रानी घूंघट ओड़ लेती है। जालपू राणा को संबोधित करते हुए - "आप काली घनेरी बदली के समान आए महाराज, जिसने चांद को ढक दिया।" राणा हंसने लगते हैं। तभी प्रहरी वहां आता है। प्रहरी - "महाराज सभी लोग दरबार में इकट्ठे हो गए हैं।" राणा प्रहरी को जाने को बोलता है। राणा और रानी बांहों में बांहें डाले दरबार में पहुंचते हैं। सभी लोग उनके सम्मान में जयघोष करते हैं। राणा शराब का प्याला उठाते हैं। राणा के प्याला उठाते ही दावत की शुरुआत हो जाती है। लोग दावत का पूरा मजा उठाते हैं। कुछ लोग शराब के नशे में धुत्त होकर लुढ़क जाते हैं। तो कुछ लोग औरतों के साथ प्राचीर के कोनों में प्रेमलीला में रत हो जाते हैं। रात के एक बजे तक सभी लोग आनंद मना कर सो जाते हैं। दुर्ग के नीचे बंजारों के कारवां में अभी भी रोशनी जल रही होती है।
बंजारों का यह कारवां आज सुबह ही यहां पहुंचा है। जालपू ने राणा को विश्वास दिलाया है कि इनसे व्यापार करके वे बहुत मुनाफा कमाएंगे। मुख्य द्वार के दोनों प्रहरी भी शराब के नशे में धुत्त होते हैं। बंजारों की एक सत्रह - अठारह वर्ष की सुंदर युवती मुख्य द्वार पर आती है। उसके वक्ष आधे नंगे होते हैं। वह प्रहरियों को देखकर मुस्कराती है। दोनों प्रहरी उसके पीछे चल देते हैं। थोड़ी दूर एक पेड़ के पीछे प्रहरी उसे अपनी बांहों में पकड़ लेते हैं। तीनों वहां प्रेम लीला में रत हो जाते हैं। मुख्य द्वार बिना प्रहरियों के खुला होता है। अब कोई भी बिना पता चले अंदर बेटोक आ सकता था। जालपू दुर्ग की मीनार पर तीन मशालें जलाकर बंजारों को संकेत देता है। वास्तव में बंजारों के वेश में मंडी के राजा के सैनिक होते हैं। वे जालपू का संकेत समझ जाते हैं। वे अपने छिपाए हुए हथियार बाहर निकाल लेते हैं। मंडी के सैनिक दुर्ग में प्रवेश कर जाते हैं। वे रास्ते में नशे में वेसुध पड़े सैनिकों को गाजर - मूली की तरह काट देते हैं। खून की धारा ऐसे बहने लगती है मानो अनंतगढ़ दुर्ग में खून की बारिश हो रही हो। सैनिकों को लेकर जालपू राणा के कक्ष में पहुंच जाता है। संभोग करने के बाद राणा और रानी लीलावती नग्नावस्था में ही सो रहे होते हैं। शोर सुनकर राणा और रानी जाग जाते हैं। जालपू अपनी तलवार राणा के पेट के आर-पार कर देता है। जालपू पहले ही दिन से रानी के सौंदर्य पर मोहित था। वह किसी भी कीमत पर रानी को पाना चाहता था। वास्तव में मंडी के राजा द्वारा जालपू को अपने दरबार से बाहर निकालना एक षड्यंत्र का हिस्सा था। जब मंडी के राजा ने देखा कि अनंतपुर दुर्ग को ताकत से नहीं जीता जा सकता तो उसने षड्यंत्र से काम लेने का निर्णय लिया। इसके लिए उसने अपने सबसे विश्वसनीय मंत्री जालपू को चुना। जालपू ने भी इस षड्यंत्र में अपना किरदार बखूबी निभाया। रानी सब कुछ समझ चुकी होती है। उसने जालपू पर अपने सगे भाई की तरह विश्वास किया था। जालपू रानी को नग्नावस्था में ही उठाकर अपने साथ ले जाने लगता है। किले से बाहर निकलते ही रानी अपने आप को जालपू के चुंगल से छुड़ा कर भागती है। जालपू उसके पीछे भागता है। वह अपने इनाम को किसी भी हालत में अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता था। आगे बहुत ही गहरी खाई होती है। रानी वहां रूक जाती है। पीछे से भागता हुआ जालपू वहां आ जाता है। वह समझ जाता है कि रानी अब भाग नहीं सकती। वह जोर - जोर से हंसने लगता है। रानी उसको श्राप देती है कि वह और उसका पूरा खानदान कुष्ठ रोग से मरेंगे। श्राप देकर रानी खाई में कूद कर अपनी जान दे देती है।
जालपू हाथ मल कर रह जाता है। जालपू मंडी के राजा के दरबार में लौट जाता है। राजा उसका खूब स्वागत करता है। राजा जालपू को इनाम में एक लाख स्वर्ण मुद्राएँ देता है। दो वर्षों में ही जालपू और उसका खानदान कुष्ठ रोग से मर जाते हैं। इस प्रकार रानी का श्राप सत्य सिद्ध होता है।
- विनय कुमार
सहायक प्रोफेसर हिन्दी
हमीरपुर ,हिमाचल प्रदेश
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