श्रम ही सौं सब मिलत हैं बिनु श्रम मिले न काहि जीवन संघर्षमय है। जीवन में पग-पग पर विपरीत स्थितियों से संग्राम करना पड़ता है । इस संग्राम में स्थितियो
श्रम ही सौं सब मिलत हैं बिनु श्रम मिले न काहि
जीवन संघर्षमय है। जीवन में पग-पग पर विपरीत स्थितियों से संग्राम करना पड़ता है । इस संग्राम में स्थितियों के इस संघर्ष में उन्हीं व्यक्तियों को सफलता प्राप्त हो सकती है, जो अपना प्रत्येक काम परिश्रम से करते हैं अथवा जिनके जीवन में पुरुषार्थ और परिश्रम की साधना होती है । पुरुषार्थ और परिश्रम के द्वारा मनुष्य उन साधनों को अपने पास एकत्र कर लेता है, जो उसे स्थितियों से संघर्ष में विजय प्राप्त करने में अत्यधिक सहायता प्रदान करते हैं ।
'श्रम ही सौं सब मिलत है, बिनु श्रम मिले न काहि' : यह एक अत्यधिक व्यावहारिक उक्ति है । इस उक्ति का मानव जीवन से घनिष्ठ सम्बन्ध है । इसके भीतर श्रम का महत्त्व अन्तर्निहित है। इसका अर्थ यह सूचित करता है कि संसार में परिश्रम से ही मनुष्य को सब-कुछ प्राप्त हो सकता है । बिना परिश्रम के संसार में किसी को कुछ भी प्राप्त नहीं होता । सचमुच श्रम का सर्वाधिक महत्त्व है । जीवन की सम्पूर्ण सफलताएँ श्रम की ही देन हैं ।
परिश्रम का महत्त्व
परिश्रम एक ऐसी साधना है, जिसके द्वारा मनुष्य महान्-से-महान् कार्य कर सकता है। परिश्रमी मनुष्य संसार में क्या नहीं कर सकता ? परिश्रमी मनुष्य पर्वत की ऊँची चोटियों पर चढ़ सकता है, दुरूह-से- दुरूह रेगिस्तानों को पार कर सकता है, कठिनाइयों को झेल सकता है और कठिन से कठिन स्थितियों से संघर्ष करके उन्हें अपने जीवन के अनुरूप बना सकता है । जिस व्यक्ति में परिश्रम का गुण है, जिसमें पुरुषार्थ की प्रवृत्ति है, वह अपने जीवन में कदापि दुःख और निराशा के झंझावातों से भयभीत नहीं हो सकता । वह दुःखों और निराशा के झंझावातों में भी वीर की भाँति आगे बढ़ता है और सघन अंधकार में भी अपने लिए मार्ग खोज निकालता है ।
परिश्रम से लाभ सफलता
जीवन में परिश्रम से अनेक लाभ होते हैं। मनुष्य चाहे जिस किसी भी क्षेत्र में काम करता हो, बिना परिश्रम के उसे सफलता नहीं प्राप्त हो सकती । उद्योग और परिश्रम का महत्त्व जीवन की प्रत्येक अवस्था में दिखाई पड़ता है । उदाहरण के लिए विद्यार्थी जीवन को ले लीजिए। यदि इस समय बालक दिन-रात परिश्रम करक्ने विद्याभ्यास न करे, तो वह कभी अपनी परीक्षा में उत्तीर्ण नहीं हो सकता । परीक्षा चाहे जैसी हो-चाहे पढ़ने की हो अथवा कार्य की हो, यदि मनुष्य परिश्रम न करे तो वह अपने कार्य में कभी सफल नहीं हो सकता । अरे भाई सोते हुए सिंह के मुख में किसी ने मृगों को घुसते देखा है ? कौन कह सकता है कि अमेरिका को खोजने में कोलम्बस ने परिश्रम नहीं किया होगा । बाबर ने किस कठिनाई के साथ भारत का राज्य प्राप्त किया था, यह तो उसी से पूछने की बात थी । आजकल भी किस परिश्रम के साथ लोग एवरेस्ट की चोटी पर चढ़ने का साहस करते हैं। जॉर्ज स्टीवेन्सन ने किस परिश्रम के साथ 'जन का निर्माण किया था ! यह उसी के परिश्रम का ही फल है कि हम आज रेलों पर चढ़कर अल्प व्यय और समय में दूर-देशों की यात्रा करते हैं ।
हमारे शासक किस परिश्रम से देश का शासन करते हैं, तब कहीं हम सुरक्षा के साथ अपने घरों में शान्ति से बैठे रहते हैं । किसानों के उत्कट परिश्रम के कारण ही हम अन्न खाते हैं, अन्यथा हल जोतते-जोतते हमारा श्रम पानी हो जाता । यदि किसान परिश्रम करके अनाज उत्पन्न न करें, तो देश के निवासियों को भोजन प्राप्त नहीं हो सकता। यदि मजदूर परिश्रम करके मकान न बनाएँ, तो हमें रहने के लिए घर कैसे मिले ? यदि परिश्रम से सड़कें न बनाई जाएँ, तो चलने के लिए सुन्दर मार्ग कैसे तैयार हों ? इसी प्रकार हर एक काम में परिश्रम विद्यमान है । बिना परिश्रम के संसार में कोई काम नहीं होता ।
जीवन के प्रत्येक क्षेत्र और कार्य में सफलता प्राप्त करने के लिए श्रम की आवश्यकता है। यदि हम राजनीति के क्षेत्र में सफलता प्राप्त करना चाहते हैं, तो हमें पहले दर-दर की ठोकरें खानी पड़ेंगी । यदि हम साहित्य के क्षेत्र में अमरता प्राप्त करना चाहते हैं, तो पहले हमें अपने रक्त को सुखाने के लिए तैयार होना पड़ेगा । यदि हम संसार में कीर्ति प्राप्त करना चाहते हैं, तो श्रम की ही साधना का आश्रय ग्रहण करना पड़ेगा। तात्पर्य यह है कि हम अपने जीवन में जो कुछ भी बनना चाहते हैं, परिश्रम के द्वारा ही बन सकते हैं । बिना परिश्रम के हम संसार में किसी प्रकार की सफलता और किसी प्रकार का सुख प्राप्त नहीं कर सकते। जो लोग परिश्रम न करके केवल रामभरोसे बैठे रहते हैं, उनका जीवन तो आलस्य के कारण संकटपूर्ण बन ही जाता है, अपने परिवार, समाज और देश के लिए भी वे भारस्वरूप होते हैं ।
संसार में अनेक ऐसे मनीषी हुए हैं, जिन्होंने परिश्रम के द्वारा ही संसार में अमरता प्राप्त की है । उत्तरी-दक्षिणी ध्रुवों के अन्वेषकों ने मृत्यु से जूझकर ध्रुवों का पता न लगाया होता, तो आज हमें ध्रुवों के निवासियों का हाल कैसे ज्ञात होता । आज हम जिस अमेरिका के वैभव को देखकर चकित हो रहे हैं, उसका पता कोलम्बस के परिश्रम के द्वारा ही लग सका है । जर्मनी का अधिनायक हिटलर एक साधारण-सा, साधन-विहीन बालक था, किन्तु उसने परिश्रम से वह शक्ति प्राप्त की कि उसकी शक्ति से सारा संसार काँप उठा । इटली का मुसोलिनी भी एक लुहार का बालक था, पर उसकी परिश्रम-साधना ने उसे क्या नहीं बना दिया ? टर्की का कमालपाशा एक सराय में पैदा हुआ था और उसका पिता आठ रुपए मासिक की नौकरी करता था, परन्तु परिश्रम और पुरुषार्थ ने ही उसे उस सराय से निकालकर टर्की के राज्य-सिंहासन पर बैठा दिया । परिश्रम से ही ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने, जो एक दीन-हीन बालक थे, ऐसी विद्वत्ता प्राप्त की कि आज तक उनका नाम धरती पर अमर है। गोखले, तिलक और रानाडे आदि सभी महान पुरुषों ने परिश्रम ही से जीवन में सिद्धि प्राप्त की है ।
उपसंहार
जीवन में परिश्रम की सर्वाधिक आवश्यकता है । जीवन का सम्पूर्ण सुख और शान्ति केवल परिश्रम और पुरुषार्थ की ही ओर देखती है । परिश्रमी और पुरुषार्थी मनुष्य कहीं भी जाकर अपने लिए नवीन स्थान 'बना सकता है । वह जहाँ भी कहीं जाता है, उसका आदर होता है। उसके जीवन में चारों ओर सफलता ही सफलता दृष्टिगोचर होती है । श्रम के अपने अचूक मंत्र से वह सारे संसार को अपने जीवन के अनुकूल बना लेता है ।
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