सीता की खोज | Sita Ki Khoj | Bal Ram Katha सीता की खोज पाठ, बाल राम कथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भगवान राम के वनवास और सीता माँ की खोज के दौरान
सीता की खोज | Sita Ki Khoj | Bal Ram Katha
सीता की खोज पाठ, बाल राम कथा का एक महत्वपूर्ण अध्याय है, जो भगवान राम के वनवास और सीता माँ की खोज के दौरान घटित घटनाओं का रोमांचक वर्णन करता है।यह पाठ हमें सिखाता है कि सत्य और न्याय के लिए सदैव संघर्ष करना चाहिए और कठिन परिस्थितियों में भी हार नहीं माननी चाहिए।
सीता की खोज पाठ का सारांश
राम के मन में सीता को लेकर कई प्रश्न थे। आशंकाएँ थीं। मारीच की माया उन्होंने देख ली थी। लक्ष्मण को वे कुटी पर छोड़ आये थे। सीता की रखवाली के लिए। मारीच की मायावी आवाज़ उन तक न पहुँची हो। राम ने सोचा। तभी उन्होंने पगडंडी से लक्ष्मण को आते देखा। पता नहीं सीता किस हाल में होगी?
कुटी छोड़कर आने पर वह लक्ष्मण से क्रुद्ध थे। "देवी सीता ने मुझे विवश कर दिया, भ्राते! उनके कटु वचन में सहन नहीं कर सका। मैं जानता था कि आप सकुशल होंगे। तब भी मुझे कुटिया छोड़कर आना पड़ा, " लक्ष्मण ने कहा । "यह तुमने अच्छा नहीं किया।" राम ने चलने की गति और बढ़ा दी। "सीते! तुम कहाँ हो?'' उनकी एक आवाज पर कहीं से भी उपस्थित हो जाने वाली वहाँ नहीं थी। अनुपस्थिति बोलती कैसे? राम की आवाज पेड़ों से टकराकर हवा में विलीन हो गई। राम पुकारते रहे। उत्तर में उन्हें हर बार सन्नाटा ही मिला।
राम भागते हुए आश्रम पहुँचे। पेड़ों-झाड़ियों के पीछे गये। उन स्थानों की ओर भागे जहाँ सीता जा सकती थी। विरह में वे गोदावरी नदी के पास, हाथी के पास, शेर के पास, फूलों के पास गए। उनके उत्तर भी मौन ही रहे। वे निराश होकर पेड़ के नीचे बैठ गए। विलाप करते राम ने कहा, "मैं सीता के बिना नहीं रह सकता। उसके बिना कैसे लौटूंगा?" "आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए, " लक्ष्मण ने उन्हें ढाढ़स बँधाते हुए कहा। वन में भटकते हुए उन्होंने एक टूटे रथ के टुकड़े देखे। मरा हुआ सारथी और मृत घोड़े भी देखे। "वन में रथ का क्या प्रयोजन? उसके टूटने का क्या अर्थ?" राम असमंजस में पड़ गए। लक्ष्मण ने कहा, "यह पुष्पमाला वही है, जिसे सीता ने वेणी में गूँथ रखा था।" "पर यह रथ कैसे टूटा ?" राम सोचने लगे।
वहाँ से थोड़ी ही दूर राम ने पक्षिराज जटायु को देखा। लहूलुहान। "हे राजकुमार ! सीता को रावण उठा ले गया है। रावण उन्हें लेकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर उड़ " कहते-कहते जटायु ने प्राण त्याग दिए। राम ने आगे बढ़ने से पहले जटायु की अंतिम क्रिया की। राम की आँखें नम हो गईं। आगे का भार्ग और कठिन था। राम और लक्ष्मण को लगभग हर दिन राक्षसी आक्रमणों से जूझना पड़ा। वनवासी राजकुमार प्रतिदिन सुबह उठते और दक्षिण दिशा की ओर चल पड़ते।
एक दिन यात्रा के प्रारम्भ में ही एक विशालकाय राक्षस ने उन पर आक्रमण कर दिया। उसका नाम कबंध था। राम-लक्ष्मण को देखते ही कबंध प्रसन्न हो गया। उसे मनमाँगा आहार मिल गया था। बैठे बिठाए। इससे पहले ही राम-लक्ष्मण ने अपनी तलवारें निकाल लीं। एक झटके में कबंध के हाथ काट दिए। उसके हाथ धरती पर गिर पड़े। कबंध उनकी शक्ति और बुद्धि पर आश्चर्यचकित रह गया। "कौन हो तुम दोनों?" उसने पूछा! राम-लक्ष्मण का परिचय पाने पर कबंध बोला, "आप दोनों पंपा सरोवर के निकट ऋष्यमूक पर्वत पर जाएँ। वह वानरराज सुग्रीव का क्षेत्र है। वे निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सुग्रीव से मदद का आग्रह कीजिए। उनके पास बहुत बड़ी वानर सेना है। सुग्रीव के वानर सीता को अवश्य खोज निकालेंगे। पंपा सरोवर के पास मतंग ऋषि का आश्रम है वहीं उनकी शिष्या शबरी रहती है। आगे जाने से पूर्व शबरी से अवश्य मिल लें।" यही बोलते-बोलते कबंध ने प्राण त्याग दिए । कबंध की बातों से राम को बहुत ढाढ़स हुआ। सीता तक पहुँचने की आशा बलवती हुई।
राम को आश्रम में देखकर शबरी बहुत प्रसन्न हुई । उनकी आवभगत की। खाने को मीठे फल दिये। रहने की जगह दी। उसकी आँखें तृप्त हो गईं। राम ने उससे सीता के संबंध में पूछा। "आप सुग्रीव से मित्रता कीजिए। सीता की खोज में वह अवश्य सहायक होगा। उसके पास विलक्षण शक्ति वाले बंदर हैं।" शबरी ने राम को आश्वस्त किया।अगले दिन राम ऋष्यमूक पर्वत चले गए। उनकी व्याकुलता अब और घट गई थी। मन में शांति लौट आई थी।
सीता की खोज पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. पगडंडी से लक्ष्मण को आते देखकर राम के मन में क्या-क्या विचार आए?
उत्तर- पगडंडी से लक्ष्मण को आते देख वही हुआ जिसका राम को डर था। अनिष्ट की आशंका और बढ़ गई। पता नहीं सीता किस हाल में होंगी? राक्षसों ने उन्हें मार डाला होगा? उठा ले गए होंगे? अकेली सीता दुष्ट राक्षसों के सामने क्या कर पाई होंगी?
प्रश्न. राम को विलाप करते देख लक्ष्मण ने राम से क्या कहा?
उत्तर- " आप आदर्श पुरुष हैं। आपको धैर्य रखना चाहिए। इस तरह दुःख से कातर नहीं होना चाहिए। हम मिलकर सीता की खोज करेंगे। वे जहाँ भी होंगी, हम उन्हें ढूँढ निकालेंगे। सीता हमारी प्रतीक्षा कर रही होंगी।"
प्रश्न. जटायु ने सीता के बारे में क्या जानकारी दी?
उत्तर- "हे राजकुमार ! सीता को रावण उठा ले गया है। मेरे पंख उसी ने काटे। सीता का विलाप सुनकर मैंने रावण को चुनौती दी। उसका रथ तोड़ दिया। सारथी और घोड़ों को मार डाला। स्वयं रावण को घायल कर दिया। पर मैं सीता को नहीं बचा सका। रावण उन्हें लेकर दक्षिण-पश्चिम दिशा की ओर उड गया।"
प्रश्न. कबंध कैसा राक्षस था?
उत्तर- कबंध देखने में बहुत डरावना था। मोटे माँस पिंड जैसा। गर्दन नहीं थी। एक आँख थी। दाँत बाहर निकले हुए। जीभ साँप की तरह लंबी और लपलपाती हुई।
प्रश्न. कबंध ने राम-लक्ष्मण को सीता की खोज का क्या रास्ता बताया?
उत्तर- कंबध बोला, "आप दोनों पंपा सरोवर के निकट ऋष्यमूक पर्वत पर जाएँ। वह वानरराज सुग्रीव का क्षेत्र है। वे निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं। सुग्रीव से मदद का आग्रह कीजिए। उनके पास बहुत बड़ी वानर सेना है। सुग्रीव के वानर सीता को अवश्य खोज निकालेंगे।
प्रश्न. शबरी ने राम से क्या कहा?
उत्तर- "आप सुग्रीव से मित्रता करिए। सीता की खोज में वह अवश्य सहायक होगा। उसके पास विलक्षण शक्ति वाले बंदर हैं, " शबरी ने राम को आश्वस्त किया।
सीता की खोज पाठ के कठिन शब्दार्थ
प्रतीक्षा - इन्तजार ।
व्याकुल = बेचैन।
अनिष्ट = अपशकुन।
कटाक्ष = किसी को आहत करना।
आग्रह - निवेदन ।
आश्वस्त किया = विश्वास दिलाया।
जर्जरकाया = दुर्बल व क्षीण
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