सोने का हिरण | Sone Ka Hiran | Hindi Bal Ram Katha सोने का हिरण , बाल राम कथा का महत्वपूर्ण पाठ है । दंडक वन में रहते हुए, सीता सोने के हिरण को देखकर
सोने का हिरण | Sone Ka Hiran | Hindi Bal Ram Katha
सोने का हिरण , बाल राम कथा का महत्वपूर्ण पाठ है । दंडक वन में रहते हुए, सीता सोने के हिरण को देखकर मोहित हो जाती हैं और उसे पकड़ने का आग्रह करती हैं। राम हिरण का पीछा करते हुए सीता और लक्ष्मण से दूर चले जाते हैं। रावण, जो सीता का अपहरण करना चाहता था, इस मौके का फायदा उठाता है और मारीच नामक राक्षस को सोने के हिरण का रूप धारण करने का आदेश देता है।
सोने का हिरण पाठ का सारांश
राम को कुटी से निकलते देखकर मायावी हिरण कुलाचें भरने लगा। झाड़ियों में लुकता- छिपता-भागता वह राम को कुटी से बहुत दूर ले गया। वह इतनी दूर कभी नहीं जाता था कि पहुँच से बाहर लगे ।
राम हिरण को पकड़ नहीं पाए। उन्होने हिरण पर बाण चला दिया। बाण लगते ही मारीच के रूप के साथ-साथ आवाज भी बदल गई। वह जोर से चिल्लाया। हा सीते! हा लक्ष्मण! ध्वनि ऐसी थी जैसे बाण राम को लगा हो। वह सहायता के लिए पुकार रहे हों। जल्दी ही उसके प्राण-पखेरू उड़ गए। रावण एक विशाल वृक्ष के पीछे खड़ा था। मारीच की पुकार राम ने सुनी। उन्हें समझने में देर नहीं लगी कि पुकार की मंशा क्या है। वह मायावी पुकार सीता और लक्ष्मण ने भी सुनी। लक्ष्मण उसका रहस्य तत्काल समझ गए। वे राक्षसों की अगली चाल का सामना करने के लिए तैयार थे। साथ ही राम का आदेश उन्हें याद था ।
सीता ने लक्ष्मण से कहा, "तुम जल्दी जाओ। जिस दिशा से आवाज आई है।, उसी ओर। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। जाओ लक्ष्मण जल्दी । " आप चिंता न करें माते! "लक्ष्मण ने सीता को आश्वस्त करते हुए कहा। राम संकट में नहीं हैं, हो ही नहीं सकते। भाई राम जल्दी ही आते होंगे। सीता क्रोध से उबल पड़ी। सीता को लगा कि लक्ष्मण राम का भला नहीं चाहते। उनके हितैषी नहीं हैं। चाहते हैं कि राम न रहें। मारे जाएँ। ताकि राजपाट उन दोनों को हो जाए। उनके रास्ते का काँटा निकल जाए। सीता ने यहाँ तक कह दिया कि लक्ष्मण की कुदृष्टि उन पर है। यह भी कहा कि वे भरत के गुप्तचर तो नहीं हैं। सीता की बातों से लक्ष्मण को गहरा आघात पहुँचा। केवल इतना बोले, मुझ पर विश्वास करें। राम को कुछ नहीं होगा। उन्होने राम से बिछुड़कर मैं नहीं रह सकती। मैं जान दे दूँगी। हे लक्ष्मण! तुम उन्हें लेकर आओ। लक्ष्मण ने सीता को प्रणाम किया और राम की खोज में निकल पड़े।
लक्ष्मण के जाते ही रावण आ पहुँचा। उसने सीता का परिचय प्राप्त करने के बाद कहा, सुमुखी, मैं रावण हूँ, राक्षसों का राजा, लंकाधिपति। मेरा नाम लेने पर लोग थरथरा उठते हैं। मेरे साथ चलो, सोने की लंका में रहो, मेरी रानी बनकर सीता क्रोधित हो उठी। कहा, मैं प्राण त्याग दूँगी लेकिन तुम्हारे साथ नहीं जाऊँगी। तुम चले जाओ नहीं तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा। रावण ने सीता की बात अनसुनी कर दी। खींचकर उन्हें रथ में बिठा लिया। स्वयं को असहाय पाकर वे विलाप करने लगीं। हा राम! हा लक्ष्मण! पुकारती रहीं। गिद्धराज जटायु ने सीता का विलाप सुना। उसने ऊँची उड़ान भरी। रावण को क्षत-विक्षत कर दिया। क्रोध में रावण ने जटायु के पंख काट दिए। जटायु अब उड़ नहीं सकता था। वह सीधे धरती पर आ गिरा। रावण ने तत्काल सीता को अपनी बाहों में दबाया और दक्षिण दिशा की ओर उड़ने लगा। सीता ने अपने आभूषण उतारकर फेंकना प्रारंभ कर दिया। आभूषण वानरों ने उठा लिए। रावण ने सीता को आभूषण फेंकने से नहीं रोका। कुछ ही समय में रावण लंका पहुँच गया। उसने कहा, सुंदरी, मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी। सीता राम का गुणगान करती रही। पापी रावण, राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता भी स्वीकार करते हैं। तूने पाप किया है। राम के हाथों तेरा अंत निश्चित है। सीता को पाने के लिए रावण ने अपनी योजना बदली। उन्हें अंतःपुर से निकालकर अशोक वाटिका में बंदी बना दिया गया। सोने के हिरण ने सीता को सोने की लंका में पहुँचा दिया था। यहाँ से उन्हें राम ही बचा सकते थे।
सोने का हिरण पाठ के प्रश्न उत्तर
प्रश्न. सीता ने हिरण की आवाज ( मायावी आवाज) सुनकर लक्ष्मण से क्या कहा?
उत्तर- सीता ने लक्ष्मण से कहा, "तुम जल्दी जाओ। जिस दिशा से आवाज आई है, उसी ओर। तुम्हारे भाई किसी कठिन संकट में फँस गए हैं। उन्होंने सहायता के लिए पुकारा है। उनकी ऐसी कातर आवाज मैंने कभी नहीं सुनी। जाओ लक्ष्मण जल्दी।
प्रश्न. लक्ष्मण ने सीता को आश्वस्त करते हुए क्या कहा?
उत्तर- " आप चिंता न करें माते!" लक्ष्मण ने सीता को आश्वस्त करते हुए कहा। "राम संकट में नहीं हैं। हो ही नहीं सकते। उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता। हमने जो आवाज सुनी वह बनावटी है। मायावी राक्षसों की चाल है। मुझे कुटिया से दूर ले जाने के लिए। आप निश्चित रहें। भाई राम जल्दी ही आते होंगे।"
प्रश्न. सीता ने लक्ष्मण के चरित्र के संबंध में क्या कहा?
उत्तर- तुम्हारा मन पवित्र नहीं है। कलुषित है। पाप है उसमें। मैं समझ सकती हूँ कि तुम अपने भाई की सहायता के लिए क्यों नहीं जा रहे हो। सीता ने यहाँ तक कह दिया कि कहीं वे भरत के गुप्तचर तो नहीं हैं।
प्रश्न. सीता द्वारा प्रताड़ित होने पर भी लक्ष्मण ने सीता से क्या कहा?
उत्तर- सीता द्वारा प्रताड़ित होने पर भी लक्ष्मण ने कहा, "हे देवी! यह राक्षसों का छल है। खर दूषण के मारे जाने के बाद वे बौखला गए हैं। किसी तरह हमसे बदला लेना चाहते हैं। आप उनकी चाल में न आएँ। वे कुछ भी कर सकते हैं। मुझ पर विश्वास करें। राम को कुछ नहीं होगा ।"
प्रश्न. रावण ने सीता को अपना क्या परिचय दिया?
उत्तर- " सुमुखी! मैं रावण हूँ। राक्षसों का राजा। लंकाधिपति। मेरा नाम लेने पर लोग थरथरा उठते हैं। लेकिन तुम सुंदरी हो। सबसे अलग हो। तुम्हारे लिए मैं स्वयं चलकर आया हूँ। मेरे साथ चलो। सोने की लंका में रहो। मेरी रानी बनकर ।"
प्रश्न. लंका पहुँचकर रावण ने सीता से क्या-क्या कहा?
उत्तर- उसने कहा, “सुंदरी, मैं तुम्हें एक वर्ष का समय देता हूँ। निर्णय तुम्हें करना है। मेरी रानी बनकर लंका में राज करोगी या विलाप करते हुए जीवन बिताओगी। तुम्हारा राम यहाँ कभी नहीं पहुँच सकता। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता। तुम्हारी रक्षा केवल मैं कर सकता हूँ। मुझे स्वीकार करो और लंका में सुख से रहो।"
प्रश्न. सीता ने राम की शक्ति के बारे में रावण से क्या कहा?
उत्तर- सीता ने राम की शक्ति के बारे में रावण से कहा, "पापी रावणा राम तुझे अपनी दृष्टि से जलाकर राख कर सकते हैं। उनकी शक्ति देवता भी स्वीकार करते हैं। मैं उस राम की पत्नी हूँ जिसके तेज और पराक्रम के आगे कोई नहीं ठहर सकता। तेरा सारा वैभव मेरे लिए अर्थहीन है। तूने पाप किया है। राम के हाथों तेरा अंत निश्चिंत है।"
प्रश्न. रावण ने राक्षसों व राक्षसियों को सीता के लिए क्या निर्देश दिए?
उत्तर-"सीता को किसी तरह का शारीरिक कष्ट न हों। इसके मन को दुःख पहुँचाओ। अपमानित करो। लेकिन सीता को कोई हाथ न लगाए।"
सोने का हिरण पाठ के कठिन शब्दार्थ
कुलाचें भरना = तेज़-तेज़ दौड़ना ।
प्राण पखेरू उड़ना = मर जाना।
विचलित होगा = डगमगा जाना।
कुदृष्टि = बुरी नज़र।
बौखला गए = पागल से हो गए।
बिछोह = वियोग।
सर्वनाश = सब कुछ समाप्त हो जाना।
थरथरा उठना - काँप जाना (डर जाना)।
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