वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएं और हमारा कर्तव्य वरिष्ठ नागरिक हमारे समाज के अमूल्य रत्न हैं। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान से समाज को समृद्ध किया है लेकिन
वरिष्ठ नागरिकों की समस्याएं और हमारा कर्तव्य
वरिष्ठ नागरिक हमारे समाज के अमूल्य रत्न हैं। उन्होंने अपने अनुभव और ज्ञान से समाज को समृद्ध किया है। लेकिन, बढ़ती उम्र के साथ उन्हें कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।परिवर्तन प्रकृति का नियम है जो मनुष्य के चाहने या न चाहने पर निर्भर नहीं करता है। वसंत ऋतु में मनोहारी फूलों एवं कोमल पत्तियों से सजे वृक्ष हेमंत ऋतु में ढूँठ बनकर रह जाते हैं। यही हाल मनुष्य का है। अपने धन, रूप, बल आदि पर दर्प करने वाला मनुष्य 60-65 वर्ष की आयु के बाद उस दशा में पहुँच जाता है जहाँ उसे अपनी अनेक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए दूसरों पर निर्भर रहना पड़ता है। दुर्भाग्य से कल तक हमें जिन्होंने सहारा दिया, पाल-पोसकर बड़ा किया और किसी योग्य बनाया उन्हीं आदरणीयों, पूजनीयों को अनेक समस्याओं से दो-चार होना पड़ रहा है।
संयुक्त परिवार का विघटन
वर्तमान समय में जब संयुक्त परिवार पूर्णतया विघटन की कगार पर है, ऐसे में वरिष्ठ नागरिकों का समूह स्वयं को अकेला महसूस करने लगा है। शहरों में यह समस्या ग्रामीण क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक है। ग्रामीण क्षेत्रों की संस्कृति एक-दूसरे के सहयोग की आवश्यकता और पारिवारिक सहनशीलता के कारण आज भी संयुक्त परिवार प्रथा है और वरिष्ठ नागरिक उतने असहाय नहीं हैं। वहाँ उनकी आवश्यकताओं की पूर्ति परिजन करते हैं। संयुक्त परिवार होने के कारण उनको अकेलेपन की समस्या नहीं सताती है। इसके विपरीत शहरों में वरिष्ठ नागरिकों को अधिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है। यहाँ की जीवनशैली, शहर की महँगाई, शहरी चकाचौंध में बढ़ी आवश्यकताएँ पति-पत्नी दोनों को कोल्हू के बैल की तरह काम करने पर विवश कर देती हैं। ऐसे में परिवार के वरिष्ठ नागरिकों को अपने काम खुद करने पड़ते हैं।
परिजनों द्वारा उनकी मदद करना तो दूर उल्टे बच्चों की कुछ जिम्मेदारियाँ उन पर जरूर डाल दी जाती हैं। शहरों में जनसाधारण के छोटे मकान भी समस्या का कारण बनते हैं। मकानों में संयुक्त परिवार का निर्वाह अत्यंत कठिनाई से होता है। ऐसे में वरिष्ठ नागरिक अपने ही परिवार में अलग-थलग होकर रह जाते हैं। पैंसठ साल का हर व्यक्ति वरिष्ठ नागरिक की श्रेणी में आ जाता है। परिजनों द्वारा समय न मिल पाने, उनकी बातें न सुनी जाने के कारण प्रायः इन्हें पार्कों में बैठे या सार्वजनिक स्थानों पर अपनी-अपनी कथा-व्यथा सुनते-सुनाते देखा जा सकता है। सेवा-निवृत्ति के बाद इन्हें अपना समय काटना मुश्किल लगने लगता है। ज्यों-ज्यों इनकी आयु बढ़ती है, त्यों-त्यों इनकी शारीरिक तथा अन्य समस्याएँ उभरकर सामने आती हैं।
वरिष्ठ नागरिकों की समस्या
वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर विचार करने से ज्ञात होता है कि इनकी प्रमुख समस्या इनका एकाकीपन है। ये अपने ही परिवार में उपेक्षित और फालतू बनकर रह जाते हैं। इनकी समस्या या इनकी बातों को सुनने का समय इनकी औलाद के पास ही नहीं होती है। वे जिस आदर-सम्मान के हकदार होते हैं उन्हें वह नहीं मिल पाता है।
शारीरिक अस्वस्थता वरिष्ठ नागरिकों की अगली प्रमुख समस्या है। वर्तमान समय का खान-पान इस समस्या को और भी बढ़ावा देता है। अब तो साठ साल तक ही स्वस्थ रहना कठिन होता जा रहा है। इस उम्र में उन्हें नाना प्रकार की बीमारियों का सामना करना पड़ता है। परिवार में अकेले होने के कारण न वे स्वयं अस्पताल जा सकते हैं और आर्थिक रूप से सुदृढ़ न होने के कारण वे अपने महँगे इलाज का खर्च भी वहन नहीं कर सकते हैं।
वरिष्ठ नागरिकों ने परिवार, समाज और राष्ट्र को किसी-न-किसी रूप में कुछ-न-कुछ दिया है। ऐसे में हम सबका यह नैतिक कर्तव्य बनता है कि हम उनकी समस्याओं पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करें तथा उनसे तदानुभूति बनाने का प्रयास करें। समाज के कुछ लोगों को आगे आकर ऐसे सामुदायिक भवन या क्लब की व्यवस्था करनी चाहिए जहाँ उनकी हर आवश्यकता की पूर्ति हो सके। उनके मनोरंजन के भरपूर साधन हों। जिससे उनका एकाकीपन दूर हो तथा वे स्वयं को समाज की मुख्यधारा से कटा हुआ न महसूस करें। इसका एक लाभ यह भी होगा कि युवा पीढ़ी को उनके अनुभवों का लाभ भी मिलेगा। ऐसे लोगों को अपने अनुभव का लाभ बाँटने का अवसर मिलना चाहिए। उन्हें तो बस अवसर का इंतजार होता है।
ऐसे लोगों को सप्ताह में एक बार घूमने-फिरने का अवसर मिलना चाहिए। यह उनके शारीरिक स्वास्थ्य और एकाकीपन दूर करने में लाभप्रद होगा।सरकार ने वरिष्ठ नागरिकों की समस्याओं पर ध्यान दिया है। इसी क्रम में उनके लिए बैकों और डाकखानों की विभिन्न योजनाओं में अधिक ब्याज प्रदान करती है। सरकारी वाहनों में उनके लिए सीटें आरक्षित होती हैं। बस के मासिक पास और रेलवे यात्रा किराए में छूट प्रदान की जाती है। अस्पतालों एवं अन्य स्थानों पर उनके लिए विशेष काउंटर बनाए गए हैं। इसके अलावा वृद्धावस्था पेंशन प्रदान कर आर्थिक मदद प्रदान करने की पहल की है।
वरिष्ठ नागरिकों के प्रति हमारा कर्तव्य
वरिष्ठ नागरिकों को भी युवा पीढ़ी की कुछ सीमितताओं को समझना चाहिए। उन्हें समय न मिल पाने का कारण शहरी जीवन-शैली, बढ़ती महँगाई और कामकाज का बढ़ता बोझ समझकर किसी प्रकार की शिकवा-शिकायत नहीं रखनी चाहिए। उन्हें यथा संभव प्रसन्नचित्त रहना चाहिए। स्वयं को अपनी शारीरिक क्षमता के अनुसार काम में व्यस्त रखना चाहिए। दिन भर ताश खेलने की अपेक्षा छोटे बच्चों को निःशुल्क पढ़ाने, बागवानी करने या अन्य सामाजिक कार्यों में व्यस्त रखना चाहिए। साथ ही युवा पीढ़ी को भी यह ध्यान रखना चाहिए कि वे हमारे पूज्य और आदरणीय हैं और उनकी सेवा शुश्रूषा करना हमारा नैतिक कर्तव्य है।
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