धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे

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धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे धूम्रपान, एक ऐसी आदत जो न सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बल्कि समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। आजकल

धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे


धूम्रपान, एक ऐसी आदत जो न सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बल्कि समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। आजकल धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति एक गंभीर चिंता का विषय बन गई है। युवाओं से लेकर बुजुर्गों तक, धूम्रपान हर उम्र वर्ग को अपनी चपेट में ले रहा है।

मनुष्य श्रमशील प्राणी है। मानव-जीवन और श्रम का घनिष्ठ रिश्ता है। आदि काल में वह भोजन पाने के लिए श्रम करता था तो वर्तमान काल में अपनी बढ़ी हुई आवश्यकताओं और क्षुधापूर्ति के लिए। श्रम के उपरांत थकान होना स्वाभाविक है। इस थकान से वह मुक्ति पाना चाहता है। इसके अलावा मनुष्य के जीवन में दुख-सुख आते-जाते रहते हैं। थकान और दुख दोनों से छुटकारा पाने के लिए वह धूम्रपान का सहारा लेने लगता है। उसका दुख और थकान इससे कितना दूर होता होगा, पर वह अपने स्वास्थ्य के लिए नाना प्रकार की मुसीबतें जरूर मोल ले लेता है, जिसका दुष्प्रभाव तात्कालिक न होकर दीर्घकालिक होता है।
 
'धूम्रपान' शब्द दो शब्दों 'धूम्र' और 'पान' से मिलकर बना है, जिसका अर्थ है-धूम्र अर्थात् धुएँ का पान करना। अर्थात् नशीले पदार्थों के धुएँ का विभिन्न प्रकार से सेवन करना, जो नशे की स्थिति उत्पन्न करते हैं और यह नशा व्यक्ति मनोमस्तिष्क पर हावी हो जाता है। इससे धूम्रपान करने वाले व्यक्ति का मस्तिष्क शिथिल हो जाता है और वह अपने आस-पास की वास्तविक स्थिति में अलग-सा महसूस करने लगता है। यही स्थिति उसे एक काल्पनिक आनंद की दुनिया में ले जाती है। एक बार धूम्रपान की आदत पड़ जाने पर इसे छोड़ना मुश्किल होता है, पर यदि दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो यह कार्य असंभव नहीं होता है।
 

धूम्रपान क्यों एक खतरा है?

धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे
समाज में धूम्रपान की प्रवृत्ति बहुत पुरानी है। मनुष्य प्राचीन काल से ही तंबाकू और उनके उत्पादों को विभिन्न रूप में सेवन करता रहा है। इसी तंबाकू एवं अन्य नशीले पदार्थ को बीड़ी, सिगरेट में भरकर उसके धुएँ का सेवन कुछ लोगों द्वारा किया जाता रहा है। समाज की वही प्रवृत्ति उत्तरोत्तर चली जा रही है। श्रमिक वर्ग में धूम्रपान की प्रवृत्ति अधिक देखी जा सकती है। यह वर्ग अपनी आर्थिक स्थिति के अनुसार बीड़ी-तंबाकू का सेवन करता है तो उच्च आयवर्ग के लोग बीड़ी-तंबाकू का सेवन करना अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप नहीं समझते हैं। वे प्रसिद्ध कंपनियों द्वारा उत्पादित तथा सिलेब्रिटीज़ द्वारा विज्ञापित महँगे सिगरेट का सेवन करते हैं। ऐसा करना वे अपनी शान समझते हैं। दुख तो यह है कि यह शिक्षित एवं प्रतिष्ठित वर्ग धूम्रपान के खतरों से भलीभाँति परिचित होता है, फिर भी धूम्रपान करना अपनी शान एवं प्रतिष्ठा बढ़ाने वाला मान बैठता है। बीड़ी-सिगरेट की उत्पादक कंपनियाँ और सरकार दोनों को ही यह पता है कि बीड़ी-सिगरेट का प्रयोग स्वास्थ्य के लिए घातक होता है, पर कंपनियाँ इनके पैकेटों पर साधारण-सी चेतावनी-'सिगरेट पीना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है' लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझ लेती हैं और सरकार भी इसे मौन स्वीकृति दे देती है। इनके प्रयोग करने वाले इस नाममात्र की वैधानिक चेतावनी को अनदेखा कर उसका धड़ल्ले से प्रयोग करते हैं और जाने-अनजाने अपने स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करते है। यद्यपि सरकार ने इस दिशा में कुछ ठोस कदम उठाते हुए सार्वजानिक स्थानों और सरकारी कार्यालयों में इसके प्रयोग पर पाबंदी लगा दी है। उसने ऐसा करने वालों के विरुद्ध दो सौ रूपये का अर्थदंड भी लगाया है, पर लोग किसी कोने में या किनारे खड़े होकर चेहरा छिपाकर धूम्रपान कर लेते हैं। धूम्रपान को रोकने की ज़िम्मेदारी जिन पर डाली गई है, यदि वे धूम्रपान करने वाले व्यक्ति को पकड़ते भी हैं तो कुछ ले-देकर मामला रफा-दफा करने में उन्हें अपनी भलाई नज़र आती है। यह मध्यम मार्ग अपनाने की प्रवृत्ति के कारण धूम्रपान रोकने की यह मुहिम कारगर सिद्ध नहीं हो सकी। इसके विपरीत धूम्रपान करने वाले इस दो सौ रूपये के अर्थदंड का मजाक उड़ाते हुए नज़र आते हैं।

धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति के कारण

धूम्रपान को दोहरा नुकसान है। एक ओर यदि प्रयोग करने वाले के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालता है तथा गाढ़ी कमाई को बर्बाद करता है तो दूसरी ओर यह हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है। धूम्रपान करने वालों के पास जो लोग खड़े होते हैं, वे भी अपनी साँस द्वारा उस धुएँ का सेवन करते हैं, जिससे उनका स्वास्थ्य प्रभावित होता है। युवा और बच्चे विशेष रूप से इसका शिकार होते हैं। ऐसे लोग चाहकर भी इस दुष्प्रभाव से नहीं बच पाते हैं। इसके अलावा बच्चों के कोमल मन पर भी इसका दुष्प्रभाव पड़ता है। उनमें अपने बड़ों की देखादेखी धूम्रपान करने की इच्छा पनपती है और वे चोरी-छिपे इसका प्रयोग करना शुरू करते हैं। विज्ञापन और फ़िल्मों के अलावा समाचार-पत्र एवं पत्रिकाओं में दर्शाए गए विज्ञापनों की जीवन-शैली देखकर युवा मन भी वैसा करने को आतुर हो उठता है। सीमित आय के कारण युवा वैसी जीवन-शैली तो अपना नहीं पाता है, पर धूम्रपान की कुप्रवृत्ति का शिकार ज़रूर हो जाता है। इस संबंध में युवाओं को खुद ही सोच-समझकर उचित आदत डालने का निर्णय लेना होगा।
 
बीड़ी-सिगरेट आदि सरकार की आय तथा कंपनियों के ऊँचे मुनाफ़े का साधन हैं। इस कारण इन पर पूर्ण प्रतिबंध लगाने में सरकार भी ईमानदारी और दृढ़ता से प्रयास नहीं करती है, पर आय प्राप्त करने के लिए देश की बहुसंख्यक जनता के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करना बुद्धिमानी की बात नहीं है। इस पर रोक लगाने से एक व्यावहारिक समस्या यह ज़रूर उठ सकती है कि इनमें काम करने वाले श्रमिक बेरोज़गार हो जाएँगे। यदि ईमानदारीपूर्वक इस समस्या के समाधान के लिए कदम उठाया जाए तो इसका हल यह है कि इन श्रमिकों को अन्य कामों में समायोजित कर उन्हें भुखमरी से बचाया जा सकता है। लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करने के बजाय बीड़ी, तंबाकू और सिगरेट उद्योग पर प्रतिबंध लगाने से ही मानवता का कल्याण हो सकेगा।
 

धूम्रपान छोड़ना क्यों जरूरी है?

धूम्रपान के विरुद्ध जन-जागृति भलीभाँति इसलिए नहीं फैल पा रही है, क्योंकि इससे होने वाला नुकसान तत्काल नहीं दिखाई देता है। यह नुकसान बाह्य रूप में न होकर आंतरिक होता है जो तुरंत दिखाई नहीं देता है। धूम्रपान करते समय जो धुआँ श्वासनली से होकर हमारे फेफड़ों में जाता है, वह एक काली परत बना देता है, जिससे श्वास-संबंधी अनेक बीमारियाँ हो जाती हैं। इसकी शुरुआत प्रायः खाँसी से होती है। यह ऐसा व्यसन है जो एक बार छू जाने पर आसानी से नहीं छोड़ता है। यह खाँसी धीरे-धीरे बढ़ती हुई टी०बी० और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारियों में बदल जाती है।

धूम्रपान छोड़ने के तरीके

धूम्रपान रोकने के लिए लोगों को अपनी सोच में बदलाव लाना होगा और इसके खतरों से सावधान होकर इसे त्यागने का दृढ़ निश्चय करना होगा। यदि एक बार ठान लिया जाए तो कोई भी काम असंभव नहीं है। बस आवश्यकता है तो दृढ़ इच्छाशक्ति की। इसके अलावा सरकार को धूम्रपान कानून के अनुपालन के लिए ठोस कदम उठाना चाहिए। धूम्रपान का प्रचार करने वाले विज्ञापनों पर अविलंब रोक लगाना चाहिए तथा इसका उल्लंघन करने वालों पर कड़ी कार्यवाही करनी चाहिए। विद्यालय पाठ्यक्रम का विषय बनाकर बच्चों को शुरू से ही इसके दुष्परिणाम से अवगत कराना चाहिए ताकि युवावर्ग इससे दूरी बनाने के लिए स्वयं सचेत हो सके। हमें धूम्रपान रोकने में हर संभव सरकार और लोगों की मदद करनी चाहिए।

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हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे
धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे
धूम्रपान की बढ़ती प्रवृत्ति और उसके खतरे धूम्रपान, एक ऐसी आदत जो न सिर्फ व्यक्तिगत स्वास्थ्य को बल्कि समाज के स्वास्थ्य को भी प्रभावित करती है। आजकल
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