फुलेरा की पावन महक | पुस्तक समीक्षा

SHARE:

फुलेरा की पावन महक जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, लोकप्रियता में अग्रणी है, ताँका एवं सेदोका इसके पीछे चलते हैं। इन विधाओं का अब पूर्णतः भा

फुलेरा की पावन महक

     
जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, लोकप्रियता में अग्रणी है, ताँका एवं सेदोका इसके पीछे चलते हैं। इन विधाओं का अब पूर्णतः भारतीयकरण हो चुका है एवं हिंदी साहित्य की अन्य विधाओं की तरह इनकी साधना,लेखन, पठन… आदि प्रचलन में है। 
      
सेदोका 5,7,7,5,7,7 यानि 38 वर्ण की छह पंक्तियों की पूर्ण कविता है। यह दो अपूर्ण कतौता से मिलकर ही पूर्ण मानी गयी है। वर्तमान में इसे सोशल मीडिया के विविध प्लेटफॉर्म पर पढ़ा जा सकता है; इसके साधक देश-विदेश में अपनी साधना में लगे हुए हैं। प्रमुख सेदोकाकार हैं-डॉ. सुधा गुप्ता, डॉ. उर्मिला अग्रवाल, डॉ. रामनिवास मानव, रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’, डॉ. भावना कुँवर, देवेन्द्र नारायण दास, डॉ. हरदीप कौर संधू, डॉ. कृष्णा वर्मा, डॉ. सुदर्शन रत्नाकर, विभा रानी श्रीवास्तव एवं प्रदीप दाश ‘दीपक’ जिनके मार्गदर्शन में सेदोका साँसे ले रही है। ‘त्रिवेणी’ ब्लॉग में सेदोका से संबंधित जानकारी एवं प्रकाशन प्रशंसनीय रुप से लगातार जारी है। 
     
श्रेष्ठ साहित्य की रचना किसी कठिन साधना से कम नहीं है। समीक्षित कृति ‘फुलेरा’ रमेश कुमार सोनी की सद्य प्रकाशित छत्तीसगढ़ी सेदोका संग्रह  विश्व की प्रथम छत्तीसगढ़ी सेदोका संग्रह है। इसे छत्तीसगढ़ राजभाषा आयोग रायपुर ने प्रकाशित किया है इसलिए अब यह छत्तीसगढ़ी साहित्य की थाती बन चुकी है। 
        
समर्थ रचनाकार रमेश कुमार सोनी ने साहित्य रुपी शिव को साधने पार्वती सी साधना में लीन रहकर ‘फुलेरा’ को रचा है। आपने हिंदी एवं छत्तीसगढ़ी में समान रूप से लेखन किया है जो अनुकरणीय है। इसके पहले आपने छतीसगढी़ में हाइकु संग्रह, प्रथम छत्तीसगढ़ी ताँका संग्रह (हरियर मड़वा) द्वारा छतीसगढी़ साहित्य के विकास की संभावना को मुक्ताकाश दिया है। यहाँ परिपक्व मानवीय संवेदनाओं में बौद्धिकता है एवं  रचनात्मकता निखरकर प्रस्तुत हुई है। ऐसे ही आपके द्वारा रचित 'फुलेरा' सेदोका संग्रह शीर्षक से लेकर अंतिम सेदोका तक छतीसगढी़ के रंग में रंगी हुई है। 
      
‘फुलेरा’ सबके दिलों में सावनी तीज के श्रृंगार की महक व पावनता का संचार करती हुई प्रस्तुत हुई है। छत्तीसगढ़ में तीजा-पोरा का त्यौहार विशेष मायने रखता है इस दिन बहुएँ अपने मायके आकर पति की लंबी उम्र की कामना का निर्जला व्रत करती हैं। मायके आना और मनचाही भेंट प्राप्त करना ख़ुशी में चौतरफा वृद्धि करती है। इस पर्व के प्रमुख पकवानों में ठेठरी-खुरमी प्रसिद्ध हैं जिसका स्वाद वर्ष भर तक बना रहता है। पोला में मिट्टी के बैल और रसोई के खिलौने बच्चों को भाते हैं।तीजा-लुगरा/माहुर ल रचाए/मइके म हे नोनी/गाँव माहके/सहेली संग हाँसे/काय बोलथव ओ?
      
स्वर्णिम रश्मियों से रंगी भोर को आपने सोनहा बिहान कहा है। इसके सेदोका की उजास और स्फूर्ति से यह खंड भरा हुआ है। प्रकृति और मौसम इसके केंद्रीय भाव में हैं। बसंत, सावन, पतझड़, चाँद, नदी, वन,पहाड़,,,, के सौंदर्य भाव से सेदोका पगे हुए हैं। सोनहा बिहान प्रतीक है खुशहाली का इन सेदोका में एक साथ कई बिम्ब और प्रतीक हैं।
 
मोहनी डारे/हाँसथे जी गुलाब/ममहागे बियारा/ताके बइठे/कोन घर जाबे जी?/बिजरावत हस।
बादर बेर्रा/टार्च मारके देखे/कहाँ बरसना हे/भादो के पूरा/घर-दुआर बुड़े/बचा ले भगवान!
   
फुलेरा की पावन महक
नवा बिहान में चिरई संग माँ का  जागना किसी भी प्रकृति प्रेमी को जीवंत कर देगा। ये पँक्तियाँ छत्तीसगढ़ी संस्कृति और परम्परा को सुघड़ता से प्रस्तुत कर रही हैं- पैजेब बाजे/बिहनिया होवथे/कमइलीन दाई/बुता चिन्हथे/बिहान के चिरई/सुकवा के अँजोर।
     
मौसम की बेरुखी और मानव के लोभ को प्रकृति सहन नहीं कर पा रही है। आपने पेड़ नहीं काटा बल्कि काटी है छाँह, हवा,नमी, औषधि, फल-फूल और पक्षियों का बसेरा अब इसी के लिए आप तरस रहे हैं। प्रदूषण सर्वत्र हाहाकार मचाया हुआ है। गौ माता की सेवा से मुख मोड़ते इस समाज में वे चारे के लिए भटकती हुई प्लास्टिक खाकर अपनी क्षुधा शांत करने लगी हैं इन्ही भावों को इन सेदोका में देखिए-

रुख के छाँव/पइसा मं बिसोय/साँस बर घलो दे/ठाढ़ होय के/पइसा गन बाबू/काबर काटे रुख।
घुरुवा होगे/गाय के पेट घलो/प्लास्टिक निकलथे!/ चारा नंदागे/दूध नकली होगे/गोठान सुन्ना परे।
      
आरुग मया-शीर्षक पढ़कर ही मन को पावनता का अहसास होने लगता है।आरुग शब्द की पावनता को कोई भक्त ही समझ सकता है। अपने ईश्वर को आरुग भाव से अर्पित करने की चाह भक्तों को जिज्ञासु व खोजी बना देती है।  छतीसगढ़ महतारी को आरुग मया समर्पित करने की आपकी इच्छा ही नही जुनून भी है,जो ‘फुलेरा’ के रूप में समर्पित हुई हैं। आरुग मया के प्रत्येक सेदोका हृदय की प्रेम तान छेड़ते लग रहे हैं। पढ़कर मन में गुदगुदी होने लगती है। मया-पिरित के छतीसगढ़ी उपादान करौंदा के समान चटकारें लगाने को मजबूर कर देता है। प्रेम के भरे इन सेदोका में बहुत कुछ समेटा हुआ है-

मन हिरना/तोरेच्च पारा जाथे/मया कर ले कर/सुरता भारी/खोइला होगे जीव/मया बरसा देते। 
हिरनी चाल/कनिहा म घघरी/मऊहा कस नशा/मया बगरे/ददरिया सुनाथे/तोर सांटी मयारु।
सँझा के दीया/मोर जँवारा बारे/झुँझकुर चुँदी मं/गँवागे मन/चँदा कस चेहरा/दीया ह लजावथे।
     
रिश्ता-नता के झाँपी- छतीसगढ़ की संस्कृति रिश्ता-नता के खज़ाने से  सदैव खनकती रही है। प्रभु श्रीराम के ननिहाल होने का गौरव प्राप्त यह भूमि आज भी अपने भांजे को प्रभु श्रीराम मानकर चरण पखारती है। संबंधों के निर्वाह के लिए अपना सर्वस्व लुटा देने की क्षमता यहाँ है जिसे आपने रेखांकित किया है। नववधू के स्वागत में घर का कोना-कोना महक जाता है।
 
बहू के आती/पुरखा के कुंदरा/मंदिर कस होगे/चऊँक पुरे/अँगना ले रँधनी/नवा खुशी बगरे।  माँ की ममता, बहनों के विश्वास और पिता के स्नेह को नापा नहीं जा सकता और इसे निभाने के क्षण अनमोल हैं जो जीवन को महकाते रहते हैं-

मया नापबे?/अथाह समुंदर/दाई-अँचरा कस/बाबू के छाँव/बहिनी-राखी कस/भाई के विश्वास हे।

छत्तीसगढ़ भी अब आधुनिकता की चपेट में आने लगा है जिसका विपरीत परिणाम रिश्तों में आना स्वाभाविक ही है। रिश्तों में अब आत्मीयता की तलाश बेमानी है बल्कि कृतघ्नता अवश्य दिखाई देती है। हर कोई अपेक्षाओं की बेल पकड़े ऊँचाई पर जाना चाहता है ऐसे ही भाव लिए हुए हैं ये सेदोका-  
कोन काखर/मतलब के गोठ/खा-पी के खसकथें /बखत बेरा/चिन्हबे नइ करे/तैं कोन की मैं कोन? 
      
पहुना शीर्षक में सोनी जी ने जीवन की असारता ओर मया -मोह का वर्णन किया है। इस खंड में उन्होनें जग की रीति को उजागर किया है। उन्होनें कहा है कि ये दुनिया किराये के मकान के समान है चार दिन यहाँ रहकर माटी में मिल  जाना है इसलिए इस नश्वर देह का अभिमान कैसा? 
किराया खोली/मनखे हे पहुना/मायाजाल अरझे/ मोहिनी डारे/जदुहा हे रुपिया/दुनिया हे भोरहा।
सच-झूठ और सुख-दुःख दोनों समय के पहलू हैं जो हर किसी की ज़िंदगी से होकर अवश्य ही गुजरते हैं। जिनसे बचना कठिन होता है बल्कि इन्हें निभाना आसान होता है। 

सच और झूठ के तराजू में यहाँ झूठ के कई दोस्त और गवाह मिलते हैं जबकि सच को अकेले संघर्ष करना पड़ता है। खुशी का वक़्त जल्दी बीत जाता है जबकि दुःख का समय बहुत भारी और लम्बा लगता है। ऐसे ही भावों में मलाई रुपी सुख को चाँटने मुनु बिलाई को दुःख का प्रतीक बनाया है-
खुशी के देखे/जम्मो बइहा जाथें/दुःख भुलवारथे/ झाँकत ठाढ़े/खुशी ल चाँटे बर/मुनु-बिलाई कस।
     
मेला-मड़ई,,,छतीसगढ़ को मेला-मड़ई का प्रदेश कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। छतीसगढ़ की संस्कृति को सूक्ष्मता से सेदोका में पिरोकर कवि ने छतीसगढ़ के प्रति अपने प्रेम को उजागर किया है। यहाँ का किसान जाँगर तोड़ कमाता है और वैसे ही  दिल खोलकर उत्सव भी मनाता है। इस हेतु गाँवों में विविध प्रकार के मेला-मड़ई निरंतर आयोजित होते रहते हैं ।

मेला-मड़ई/नाचा-गम्मत धरे/पीरा-भूलवारथें/रागी बजाथे/पंडवानी देखैया/अँजोर बगरथे।

पूरा गाँव छेरछेरा पुन्नी में माँदर की थाप  में झूमता रहता है। हरेली की पूजा, शबरी की भक्ति,सुआ नृत्य,रामनामी, भोजली बदना,बसदेवा का गीत, हरबोलवा की गूँज, पालो चढ़ाना, पंडवानी में रागी का हव, फुगड़ी, सोहाई-बरवाही, राउत नाचा….एवं खुमरी-भंदई। ये सब अपनी-अपनी पहचानों के साथ समवेत रुप से छत्तीसगढ़ को बनाते हैं-" छत्तीसगढ़िया सबले बढ़िया।"
गाँव मताय/छेरछेरा-तिहार/दान दे के उछाह/बाँटे ले बाढ़े/खुशी,अन्न,पइसा/असीस झोंक बाबू।

छत्तीसगढ़ी ग्रामीण संस्कृति अब भी इसके गॉंवों में साँसे लेती है जिसकी धमक सत्ता और समय दोनों को चुनौती देती रहती है। युवा पीढ़ी का दायित्व है कि वो अपनी धरोहरों पर गर्व करना सीखें तथा इसे संवारें। 
गोदना वाली/हिरदे मं गोद दे/सीता-राम के नांव/मन रंगाही/फागुन के रंग नवा/मया सुआ नाचही।
     
संसो के घाम-इस खंड के के केंद्र में किसान और गाँव है। किसानों की दुर्दशा है, कर्ज़ और मौसम की मार है। सभी उपायों से हताश लोगों के लिए शोषण के खिलाफ आवाज़ उठाने की ललकार है। बँटवारे का दर्द है, अधिया प्रथा से उपजी समस्या के मूल में जाँगर ना चलाना है। मोबाइल के साइड इफेक्ट्स का भी उल्लेख है। आपने सेदोका साहित्य के द्वारा इन समस्याओं को पहचाना तथा इनसे बचने के उपायों को रेखांकित किया है-

करजा बाढ़े/किसानी संसो माढ़े/बादर ह भगागे
/करा गिरीस/किरा मन झंपागे/का ला बदँव जोड़ी?
बन बघवा/अपन धोंध बर/परदेशी लीलथे/ बइठांगुर/उदाली झन मार/कुआँ-मेचका कस।

शराब/मांसाहार द्वारा गाँव को निगलते जाना यहाँ एक बड़ी समस्या है। यहाँ न्याय के नाम पर हो रही शराबियों की गोलबंदी को भी आपने अपने निशाने पर लिया है-

नवा फैसला/नियांव करे बर/मंदहा सकलागें!/ जुर्माना होही/कुछु गलती होय/कुकरी भात खाहीं।
     
रिंगी चिंगी-वर्तमान समय विविधताओं और विसंगतियों के साथ तालमेल बिठाने का है। आप जो देखना चाहें वही आपको दिखेगा इसलिए अच्छा हो कि आप अपनी राह चलिए और अपनी करुणा, दया, संवेदनशीलता  जैसे आभूषणों को यथासमय ही धारण कीजिए।

पानी बेचाथे/लहू के कीमत मं/कोन पोंछही आँसू/ नवा बेमारी/दया-धरम कहाँ/ईमान बेचावथे।
भूखाय पेट/हँड़िया कस तीपे/चुरथे आश्वासन/तात पसीना/सुरुज ह लजाय/भभकथे करेजा।

आधुनिक युग पूरी तरह से बाज़ार की गिरफ़्त में है उसे ज़ेब की गर्मी उतारने का हुनर आता है इसलिए अब वह सबसे अमीर है। इसी बाजार के कारण अनियंत्रित इच्छाओं की पूर्ति हेतु उपजी घूस की समस्या सर्वत्र विद्यमान है जिसके चलते चाय-पानी बदनाम हुए हैं। सशक्त शब्दों का चयन इनके गुरुत्व को बढ़ाते दिख रहे हैं-

जेब गरु हे!/बजार हरु करे/गर्मी उतार देथे/झन इतरा/इहाँ जम्मो गरीब/बजारेच्च अमीर। 
घूस 'फेमस'/'ऑफिस' के 'फाईल'/पैसा गोड़ बनाथे
/उही रेंगाथे/चाहा-पानी बिचारा/बदनाम होगे जी।

शहर एवं गाँव की अघोषित जंग में गाँव शहर होना चाहता है और शहर चाहकर भी गाँव नहीं हो पा रहा। 
शहरी गोठ/मतलबी रिश्ता हे/बखत बेरा यार/फुर्सत कहाँ/चक्का बाँधे ढुलथें/मोबाइल ज़माना।
      
‘फुलेरा’ छत्तीसगढ़ी सेदोका संग्रह में आपने छत्तीसगढ़ प्रदेश की परंपराओं एवं संस्कृति की महक को रेखांकित किया है। इस संग्रह के सेदोका के भाव सशक्त हैं बिम्ब एवं प्रतीकों का यथास्थान सुंदर उपयोग आपने किया है। शिल्प पक्ष कसा हुआ है तथा विचारों में सकारात्मकता एवं गहराई है-

मुड़ी उठाव/रेंगव छाती ठोंक/कन्हार माटी देथे/ बासी सजोर/मयारु हवै भाँचा/उही पार लगाही।
     
इस संग्रह के लिए मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएँ। आपने इसके द्वारा सेदोका की नई राह सुझाई है जो शोधार्थियों के लिए अनुकरणीय होगी। आशा है यह संग्रह पाठकों को अवश्य ही पसंद आएगी ।

डॉ. सीमा रानी प्रधान
सहायक प्राध्यापक
महाप्रभु वल्लभाचार्य शास.स्नातकोत्तर महाविद्यालय
महासमुंद, छत्तीसगढ़

…..

फुलेरा-छत्तीसगढ़ी सेदोका संग्रह
रमेश कुमार सोनी
प्रकाशक-राजभाषा आयोग,छत्तीसगढ़-रायपुर 2024
पृष्ठ-81

रमेश कुमार सोनी
रायपुर, छत्तीसगढ़
मो.-7049355476

COMMENTS

Leave a Reply: 1
  1. फुलेरा जो विश्व में मेरी प्रथम छत्तीसगढ़ी सेदोका संग्रह है की समीक्षा आपने प्रकाशित की-आपका हार्दिक आभार।
    कृपया स्नेह बनाए रखिएगा।
    डॉ. सीमा रानी प्रधान जी का भी आभार की आपने इसकी समीक्षा लिखी।
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
आपकी मूल्यवान टिप्पणियाँ हमें उत्साह और सबल प्रदान करती हैं, आपके विचारों और मार्गदर्शन का सदैव स्वागत है !
टिप्पणी के सामान्य नियम -
१. अपनी टिप्पणी में सभ्य भाषा का प्रयोग करें .
२. किसी की भावनाओं को आहत करने वाली टिप्पणी न करें .
३. अपनी वास्तविक राय प्रकट करें .

नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1473,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,5,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,9,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,46,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,7,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,13,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,1,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,267,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,429,हिंदी लेख,531,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,181,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,5,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,19,hindi essay,421,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,678,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,59,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: फुलेरा की पावन महक | पुस्तक समीक्षा
फुलेरा की पावन महक | पुस्तक समीक्षा
फुलेरा की पावन महक जापानी साहित्य की विधाओं में हाइकु, लोकप्रियता में अग्रणी है, ताँका एवं सेदोका इसके पीछे चलते हैं। इन विधाओं का अब पूर्णतः भा
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhn3wwetbejZs93ajTDomVNwFDE5zfJ2WWEzy1w-awlIWA2NkjkG3e9cUniBiEt4JVNhZyVuPpcK__89NALJUymg_EhjN17v1cBUsWf4rvRBwI4aJXW5cmiHoiRT_aZyjWqxRCnbK3glc-5und_Fd0TOmXISvixzOH3tr1Dr4Su7NDWGvpaNWt2ZLS7fNNs/w320-h253/Screenshot_20240404-121420.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEhn3wwetbejZs93ajTDomVNwFDE5zfJ2WWEzy1w-awlIWA2NkjkG3e9cUniBiEt4JVNhZyVuPpcK__89NALJUymg_EhjN17v1cBUsWf4rvRBwI4aJXW5cmiHoiRT_aZyjWqxRCnbK3glc-5und_Fd0TOmXISvixzOH3tr1Dr4Su7NDWGvpaNWt2ZLS7fNNs/s72-w320-c-h253/Screenshot_20240404-121420.png
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/08/fulera-ki-paavan-mahak-samiksha.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/08/fulera-ki-paavan-mahak-samiksha.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका