गाँव का बदलता स्वरूप पर निबंध भारत का गाँव, देश की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। सदियों से यह देश के खाद्यान्न उत्पादन का मुख्य केंद्र रहा
गाँव का बदलता स्वरूप पर निबंध
भारत का गाँव, देश की संस्कृति और अर्थव्यवस्था का आधार रहा है। सदियों से यह देश के खाद्यान्न उत्पादन का मुख्य केंद्र रहा है और ग्रामीण जीवन सरलता और सादगी का प्रतीक रहा है। लेकिन आधुनिकीकरण के साथ, भारत के गाँव भी तेजी से बदल रहे हैं। ये परिवर्तन सामाजिक, आर्थिक और तकनीकी रूप से विभिन्न आयामों में हो रहे हैं।
भारत गाँवों का देश है। यहाँ की 80% से अधिक जनसंख्या गाँवों में बसती है और वहीं कुछ-न-कुछ कारोबार कर अपना जीवन-यापन करती है। इन गाँवों में ही देश का अन्नदाता बसता है। ये गाँव देश की अर्थव्यवस्था में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। देश की सरकार चुनने में भी गाँव अपनी भूमिका से पीछे नहीं हटते। गाँवों की महत्ता आदिकाल से रही है, है और भविष्य में भी रहेगी। कभी अपनी धूलभरी सड़कों, कच्चे मकानों, अधनंगे बच्चों और दयनीय दशा के लिए जाने-पहचाने जाने वाले गाँवों में भी परिवर्तन की बयार पहुँच चुकी है। कुछ विज्ञान के बढ़ते चरणों ने तो कुछ सरकारी प्रयासों ने गाँवों की दशा सुधारने का प्रयास किया है। गाँव पूरी तरह से बदल गए हैं, सुख-सुविधाओं से भरपूर हो गए हैं, ऐसा दावा करना न्यायसंगत नहीं होगा, पर इतना ज़रूर है कि गाँवों की दशा में सुधार आया है। यह सुधार किन-किन क्षेत्रों में आया है इस पर एक दृष्टि डालते हैं -
शिक्षा का प्रसार
गाँवों के पिछड़ेपन का सर्वप्रमुख कारण था-वहाँ शिक्षा का प्रचार-प्रसार न होना। शिक्षा के अभाव में अनपढ़ किसान महाजनों एवं सूदखोरों के चंगुल में फँसते थे और आजीवन ऋणमुक्त नहीं हो पाते थे। वे सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं उठा पाते थे। वे अपनी उपज का उचित मूल्य भी नहीं प्राप्त कर पाते थे। स्वतंत्रतोत्तर भारत में गाँवों तक शिक्षा पहुँचाने को प्राथमिकता दी गई। अब किसानों के बच्चों को शिक्षा के लिए दूरदराज नहीं जाना पड़ता है। वे पढ़-लिखकर उच्च पदों को सुशोभित कर रहे हैं। वे सरकारी योजनाओं का फायदा उठाकर अपनी उपज बढ़ा रहे हैं। ग्रामीण अब बैंकों के द्वारा देख चुके हैं। इससे ग्रामीणों की आर्थिक स्थिति मजबूत हुई है। आज ग्रामीणों ने शिक्षा के महत्त्व को पहचान लिया है। इससे उनके दृष्टिकोण में भी बदलाव आ गया है।
सड़क तथा यातायात व्यवस्था में सुधार
जो गाँव पहले अपनी धूल एवं कीचड़ भरी सड़कों के लिए जाने-पहचाने जाते थे, आज उन सड़कों की कायापलट हो चुकी है। सड़कों के अभाव में वर्षा के चार महीनों में उन गाँवों में पहुँचना पहाड़ चढ़ने जैसा होता था, पर अब किसी ऋतु-मौसम में वहाँ जाया जा सकता है। यातायात के कारण विकास के कदम गाँवों की परिधि में पहुँच चुके हैं। किसानों और अन्य ग्रामीणों की बैलगाड़ी की जगह मोटर साइकिलों, ट्रैक्टरों और कारों ने ले ली है। पैदल यात्रा करना तो अब बीते जमाने की बात हो चुकी है।
कृषि क्षेत्र में बदलाव
वैज्ञानिक उन्नति के कारण कृषि की दशा सुधरी है। अब किसान हल जैसे परंपरागत कृषि उपकरणों की जगह ट्रैक्टर कल्टीवेटर, हैरो आदि का प्रयोग करते हैं। सिंचाई नहरों और ट्यूब-वेल द्वारा की जाती है। कृषि जो कभी बैलों के सहारे ही की जाती थी आज पूरी तरह से यंत्रों से की जाने लगी है। ग्रामीण बुवाई, कटाई, निराई, मड़ाई, दुलाई जैसे कृषि कार्य मशीनों से करने लगे हैं। इससे उपज में वृद्धि हुई है और ग्रामीणों की दशा सुधरी है।
विद्युतीकरण से क्रांति
स्वतंत्रता के बाद प्रत्येक गाँव में बिजली पहुँचाने का लक्ष्य रखा गया। आज गाँवों में बिजली पहुँच गई है। वहाँ अब टेलीविजन, कूलर, पंखे, वाशिंग मशीन, प्रेस आदि का प्रयोग शुरू हो गया है। बच्चों को पढ़ने के लिए अब दीए और केरोसीन लैंप जलाने की आवश्यकता नहीं रही। बस बटन दबाते ही घर उजाले से भर उठता है। विद्युतीकरण से ग्रामीणों का जीवन सुखमय बना है। वहाँ कुश्ती, ताश, दंगल या बातचीत ही मनोरंजन के साधन हुआ करते थे, पर अब वे रेडियो, टेलीविजन पर तरह-तरह के मनोरंजक कार्यक्रम देखते हैं और देश-दुनिया की खबरों से अवगत होते हैं। अब तो ग्रामीणों और किसानों के लिए विशेष कार्यक्रम बनाए जाने लगे हैं। यद्यपि ये सुविधाएँ गाँव के हर व्यक्ति के पास नहीं हैं फिर भी गाँवों की दशा में सुधार आया है।
बढ़ती चिकित्सा सुविधाएँ
पहले गाँवों में चिकित्सा सुविधाएँ न के बराबर थीं, किंतु सरकारी प्रयासों और यातायात के बढ़ते साधनों के कारण वहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, आँगनवाड़ी केंद्र, सामुदायिक केंद्र जैसी सुविधाएँ हो गई हैं। इससे उन्हें शारीरिक परेशानियों के लिए अब झाड़-फूँक करने वालों, तांत्रिकों, वैद्यों और हकीमों पर ही निर्भर नहीं रहना पड़ता है। उन्हें चिकित्सा की बेहतर सुविधाएँ उनके आसपास ही मिल रही हैं। गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए ही उन्हें शहर की ओर जाना पड़ता है। डॉक्टर, प्रशिक्षित नर्सों और दाइयों की सेवाएँ उन्हें गाँवों में ही मिलने लगी हैं।
सामाजिक समता का प्रसार
यद्यपि गाँवों में आज भी छुआछूत, ऊँच-नीच, जाति-पाँति की बातें फैली हैं, फिर भी अब यह स्थिति पहले जितनी विकट नहीं है। शिक्षा के प्रचार-प्रसार ने उनके दृष्टिकोण में पर्याप्त बदलाव ला दिया है।
राजनैतिक सोच का विकास
आज गाँवों में राजनीति की बयार घर-घर तक पहुँच चुकी है। ग्रामीणों ने देश की राजनीति की - दिशा तय करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है। ग्राम पंचायतों की स्थापना तथा लोकतंत्र के कारण गाँवों की राजनीति बहुत प्रभावित हुई है। अब उन्हें बहला-फुसलाकर किसी के पक्ष में मतदान नहीं कराया जा सकता है। दुर्भाग्य से इस राजनीतिक चेतना से गाँवों में जातीय और सांप्रदायिक विवाद बढ़ा है। परस्पर सहयोग से रहने वाले ग्रामीण आज विभिन्न खेमों में बँटकर रह गए हैं।
शहर की ओर पलायन
गाँवों की दशा सुधरने के बाद भी शिक्षित युवा अपना पैतृक गाँव छोड़कर शहर की ओर पलायन कर रहा है। वह शिक्षित होकर नौकरी की राह में शहर भागने लगा है।
यद्यपि गाँवों की दशा में पहले की अपेक्षा बहुत अधिक परिवर्तन आया है, तथापि परंतु वहाँ अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। सरकार को गाँवों के उत्थान की ओर ध्यान देना चाहिए। भारत के गाँव तेजी से बदल रहे हैं। ये परिवर्तन कई मायनों में सकारात्मक हैं, लेकिन साथ ही कुछ चुनौतियाँ भी हैं। इन चुनौतियों का समाधान करके हम एक समृद्ध और विकसित ग्रामीण भारत का निर्माण कर सकते हैं।
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गांव के बदलते स्वरूप पर लिखा गया आलेख जनमानस के लिए उपयोगी सिद्ध हो, लोग इस आलेख से ज्ञान प्राप्त करने की ओर अग्रसर हो ं यही हमारी हार्दिक शुभकामनाएं🌹🌹🌹🌹🌹🙏🙏🌹🌹🌹🌹🌹
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