रघु सोचता है कि पत्थर उठाकर चारों डाकुओं का सिर कुचल दे। लेकिन यह एक सैनिक के शौर्य के खिलाफ था। रघु उनको ललकारता है। चारों डाकु उठकर अपनी तलवारें उठा
जमिया मसान
कांगड़ा के राजा रूपचंद की सेनाएं मंडी रियासत की सीमा पर जमा हो रही थी। मंडी के खिलाफ रूपचंद को दिल्ली के सुल्तान तुगलक खान का समर्थन प्राप्त था। कंधार में विद्रोह हो जाता है। दिल्ली सल्तनत की सारी सेनाओं को विभिन्न मोर्चों से वापस बुलाकर, कंधार विद्रोह को कुचलने के लिए भेज दिया जाता है रूपचंद भी अपनी सेना सहित कंधार चला जाता है। मंडी पर आया खतरा टल जाता है। मंडी का राजा अपनी सेना को भंग कर देता है। मंडी की सेना का एक सैनिक रघु अपने घर धर्मपुर लौट जाता है। रघु सत्रह - अठारह वर्ष का युवा सैनिक है। रघु गांव लौट कर खेती के काम में लग जाता है। रघु के खेत सोन नदी के किनारे पर हैं। रघु का घर पहाड़ी की चोटी पर है। जहां से दूर - दूर तक का नजारा दिखता है। रघु सुबह के चार बजे ही उठ जाता है। वह अपने हाथ - मुंह धोता है। वह कुदाल और फावड़े को अपने कंधों पर रखकर सोन नदी के किनारे अपने खेतों की तरफ चल देता है। रघु की खुखरी(चाकू) सदा की तरह उसकी कमर से लटक रही होती है। युद्ध में रघु ने अपनी इस खुखरी से सौ से अधिक दुश्मनों के सिर काटे हैं। रघु खेतों में पहुंच जाता है। रघु देखता है कि चार जंगली सूअर उसके खेतों में फसल को नुकसान पहुंचा रहे हैं। रघु अपनी खुखरी को जोर से घुमाकर फेंकता है। सदा की तरह आज भी रघु का निशाना नहीं चुकता। खुखरी एक जंगली सूअर के दिल के आर-पार हो जाती है। जंगली सूअर वहीं धड़ाम से गिर कर तड़पने लगता है। बाकी तीनों जंगली सूअर उसे तड़पता देख वहां से भाग जाते हैं। रघु जंगली सूअर के पास पहुंचता है।रघु खुखरी को जंगली सूअर के दिल से झटके के साथ निकालता है। जंगली सूअर वहीं दम तोड़ देता है। रघु जंगली सूअर को खेत के किनारे पत्थरों पर रख देता है। रघु फावड़ा उठाकर खेतों में काम करने लग पड़ता है।
पूर्व दिशा में सूर्योदय होता है। प्रातःकालीन सूर्य की किरणों की लालिमा से पेड़ चमक उठते हैं। धीरे-धीरे सूर्य की प्रचंडता बढ़ती जाती है। खेतों में काम कर रहा रघु पसीने से भीग जाता है। रघु को थकान नहीं महसूस हो रही होती है। उसका बलशाली और गठीला शरीर रात-दिन काम कर सकता है। मारे हुए जंगली सूअर को समय पर घर पहुंचाना है ताकि रात्रि के भोजन में उसके गोश्त का जायका लिया जा सके। रघु जंगली सूअर को कंधों पर उठाकर घर की तरफ चल देता है। तपती दोपहर में पहाड़ की चढ़ाई भी रघु के कदमों को धीमा नहीं कर पाती। रघु जंगली सूअर को लेकर घर पहुंच जाता है। रघु घर पहुंच कर अपनी माँ को आवाज लगाता है। रघु की आवाज को सुनकर उसकी भाभी सुमना बाहर आती है। सुमना उसके बड़े चचेरे भाई की पत्नी है। रघु-"सुमना, माता-पिता कहां हैं?" सुमना - "वह जालपू के घर गए हैं, वहां कुछ काम है।" रघु-"आप यहां क्या कर रही हो?" सुमना - "मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी।" इतना कहकर सुमना अपनी छाती से दुपट्टे को नीचे सरका देती है। इससे सुमना के स्तनों का ऊपरी भाग दिखाई देने लगता है। रघु टकटकी लगाए सुमना के स्तनों को देखने लगता है। सुमना रघु को देखकर मुस्कराने लगती है। रघु अपनी आँखों को नीचे झुका लेता है। सुमना -" चलो अंदर चलते हैं। मैं तुम्हारे लिए खाना बना देती हूं।" रघु-"मैं शाम को ही भोजन करूंगा।" सुमना(भाभी) - "चलो अंदर आ जाओ, मैं तुम्हें पानी पीला देती हूं।" रघु-"मुझे प्यास नहीं लगी हुई है।" सुमना मुस्कराते हुए-"इस उम्र में भी तुम प्यासे नहीं हो? आओ तुम्हें स्वर्ग की सैर करा दूं।" रघु सिर झुकाए खड़ा रहता है। सुमना गुस्सा होकर थोड़ी देर बाद वहां से चली जाती है। रघु पीछे से सुमना के गदराए हुए नितंबों को देखता रहता है। सुमना चौबीस-पच्चीस वर्ष की सुंदर लड़की है। उसकी शादी बचपन में ही हो गई थी। उसका पति सुल्तान तुगलक खान की सेना में सैनिक है। अभी तक उसने अपने पति को एकबार भी नहीं देखा है। अभी तक उसका कौमार्य भंग नहीं हुआ है। वह रघु के बलशाली और गठीले शरीर पर मोहित है। रघु उम्र में उससे चार-पाँच वर्ष छोटा है। सुमना की तरह गांव की और भी लड़कियों की नजर रघु पर है। वे रघु के साथ संभोग कर चरम यौन सुख को पाना चाहती हैं। रघु सूअर को घर के अंदर ले जाता है। रघु अपनी खुखरी(चाकू) से सूअर की खाल निकालता है।
शाम होने को है। ढलते सूर्य की किरणों से रघु की झोंपड़ी चमक रही है। झोपड़ी के द्वार पर बैठा रघु अपने माता-पिता के आने का इंतजार कर रहा है। उसे दूर अपने माता-पिता आते दिखाई देते हैं। रघु उनके लिए वर्तन में पीने के लिए पानी ले आता है। पानी पिलाने के बाद रघु उन्हें सूअर के बारे में बताता है। रघु की माता सूअर का गोश्त पकाने के लिए घर के अंदर चली जाती है। रघु अपने पिता के साथ गपशप करने लगता है। रघु का पिता उसे बताता है कि जालपू बोल रहा था कि जंगल के रास्ते में लोगों को जमिया मसान मिल रहा है।पूरा गांव जमिया मसान के आंतक से डरा हुआ है। रघु की माँ जंगली सूअर का गोश्त पका देती है। सभी भरपेट गोश्त खाकर सो जाते हैं। रात के डेढ़ बजे के करीब घर के बाहर किसी के कदमों की आहट सुनकर रघु जाग जाता है। रघु खिड़की से बाहर देखता है। एक काला साया आँगन में खड़ा होता है। काला साया भी रघु को देख रहा होता है। रघु दरवाजा खोलकर बाहर निकलता है। रघु काले साये को बाहर नहीं पाता। रघु इधर-उधर देखता है। उसे दूर काला साया जंगल की ओर जाता दिखाई देता है। रघु काले साये का पीछा करता है। काले साये का पीछा करता हुआ रघु घने जंगल में पहुंच जाता है। रघु बचपन से इस जंगल में बकरियां चराता आया है। उसने अपने दोस्तों के साथ जंगल का चप्पा-चप्पा घूमा है। जंगल के इस हिस्से में रघु पहली बार आया है। रघु इधर-उधर घूमता है। उसे साया कहीं नहीं मिलता। रघु घर वापस जाने के लिए मुड़ता है। रघु जंगल के इस हिस्से में पहली बार आया है। रघु अपने घर जाने का रास्ता खो चुका है। तभी रघु को एक चीख सुनाई देती है। रघु आवाज की दिशा में भागता है। आगे चलकर रघु को एक पुराना खंडहर दिखाई देता है। खंडहर खस्ताहाल में है। रघु खंडहर में प्रवेश कर जाता है। रघु खंडहर का कोना - कोना खोजता है। उसे वहां कोई नहीं मिलता।
तभी जमिया मसान रघु के कंधों पर बैठ जाता है। जमिया मसान रघु को दबाने लगता है। रघु अपनी जेब से बीड़ी निकाल कर जला लेता है रघु बीड़ी से जमिया मसान के चूतड़ों को जलाता है। जमिया मसान नीचे गिर जाता है। रघु एक बड़ा पत्थर उठा लेता है। रघु पत्थर से जमिया मसान का सिर कुचल देता है। रघु खंडहर के कोने में बैठ जाता है। थोड़ी देर बाद सूर्योदय हो जाता है। रघु अपने घर की तरफ चल देता है। रघु बाल्टी से पानी निकाल कर अपना मुंह धोता है। रघु की माँ पानी का गिलास लेकर आ जाती है। वो सोचती है कि रघु खेतों से आ रहा है। माँ-"बेटा आज जल्दी लौट आए।" रघु-"हां माँ।" माँ-"कुदाली और फावड़ा खेतों में ही छोड़ आए। कोई वहां से चुरा ले जाएगा।" रघु चुपचाप बैठा रहता है। नाश्ता करने के बाद रघु गांव में घूमने निकल पड़ता है। गांव में जमिया मशान की ही बात हो रही होती है। एक बूड्डा - "पंद्रह दिन पहले, मैं रात के ग्यारह बजे घर वापस आ रहा था। मैंने गेहूं की बोरी सिर पर उठा रखी थी। तभी मेरे को लगा कि गेहूं की बोरी का वजव बड़ रहा है। मुझे लगा कि मैं बोरी के वजन से दबा जा रहा हूं। तभी मैंने बोरी को नीचे फेंक दिया। बोरी के ऊपर बैठा जमिया मशान एक झटके से नीचे गिर गया। जमिया मसान उठ के मेरी तरफ बड़ा। मैंने फूर्ती से आगे बढ़ कर उसे लपक लिया। फिर मैंने उसे उठा कर नीचे पटक दिया। चार-पाँच मिनट तक हम दोनों गुत्मगुत्था रहे। फिर जमिया मसान समझ गया कि वह मेरे से नहीं लड़ सकता। जमिया मसान वहां से भागने लगा। वह कुछ ही दूर भाग कर गया था कि मैंने लपक कर उसे पकड़ लिया। फिर मैंने उसे नीचे लेटा दिया। फिर मैंने एक बड़ा पत्थर उठाकर उसके सिर पर मारा। उसका सिर पत्थर से पिचक गया। इस तरह से मैंने जमिया मसान का नामोनिशान मिटा दिया। " ऐसा कहकर बूड्डा जोर-जोर से हंसने लगा। तभी एक युवक बोल उठता है -" क्यों हमें मूर्ख बना रहे हो चाचा? जमिया मसान पीछले ही सप्ताह मुझे नदी किनारे मिला था। खेतों में काम करते समय मुझे रात हो गई थी। मैं फावड़े से जमीन खोद रहा था। तभी पीछे से किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। पहले तो मैंने ध्यान नहीं दिया। तभी दोबारा किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। मैंने कंधा झड़क दिया। तभी थोड़ी देर बाद फिर किसी ने मेरे कंधे पर हाथ रखा। अबकी बार मैं गुस्से से पीछे मुड़ा। मैंने देखा जमिया मसान पीछे खड़ा हुआ है। तभी जमिया मसान उछल कर मेरे कंधों पर बैठ गया। कंधों पर बैठ कर जमिया मसान मुझे जोर से दबाने लगा। पहले तो मैं डर गया। फिर मैंने हिम्मत जुटा के जमिया मसान को जमीन पर पटक दिया।फिर हम दोनों गुत्मगुत्था हो गए। कभी मैं जमिया मसान के ऊपर तो कभी जमिया मसान मेरे ऊपर। थोड़ी देर बाद जमिया मसान मेरे ऊपर हावी होने लगा। तभी फावड़ा मेरे हाथ में आ गया। मैंने फावड़ा जोर से जमिया मसान के सिर पर मारा। जमिया मसान नीचे गिर गया। तब मैंने एक बड़ा पत्थर उठा कर जमिया मसान के सिर पर मारा। जमिया मसान वहीं ढेर हो गया। उसके बाद मैंने घर की राह ली।" तभी चार-पाँच और लोग जमिया मसान को मारने की कहानी सुनाते हैं कि कैसे उन्होंने जमिया मसान के सिर को पत्थर से कुचला। रघु सोच में पड़ जाता है कि रात को तो उसने जंगल के खंडहर में जमिया मसान को पत्थर से कुचल कर मारा है। रघु घर लौट आता है। उसकी माँ उसे दोपहर का भोजन परोस देती है। भोजन करते समय भी रघु जमिया मसान के बारे में सोचता रहता है। माँ-"किस ख्याल में डूबे हो बेटा? मैं सुबह से देख रही हूँ। तुम बहुत परेशान लग रहे हो।" तभी रघु के पिता जी वहां आ जाते हैं। वे भी रघु से उसकी परेशानी का कारण पूछते हैं। रघु - "माँ परेशान होने वाली कोई बात नहीं है। मैं बस ऐसे ही उधेड़ बुन में लगा हूं।" रघु आराम करने के लिए चला जाता है। चारपाई पर लेटे हुए भी रघु को आराम नहीं मिलता।
रघु जमिया मसान के बारे में ही सोचता रहता है। रात्रि का भोजन करने के बाद रघु सोने के लिए बिस्तर पर लेट जाता है। रघु को नींद नहीं आती। रघु बिस्तर से उठकर आँगन में चला जाता है। रघु आँगन में घूम रहा होता है तभी उसे पेड़ के पीछे एक साया दिखता है। रघु साये की तरफ देखता है। साया भी उसे देख रहा होता है। साया जंगल की तरफ जाने लगता है। रघु साये का पीछा करता है। साये का पीछा करता हुआ रघु सुमना के घर के सामने से गुजरता है। तभी उसे सुमना के घर से 'आह' की आवाज सुनाई देती है। रघु किसी अनहोनी की आशंका से वहीं रूक जाता है। रघु दबे पांव सुमना के घर की तरफ जाता है। रघु खिड़की से अंदर झांकता है। कमरे में दीपक जल रहा होता है। सुमना अपने बिस्तर पर नग्न सो रही होती है।दीये की रोशनी में उसका गोरा बदन चमक रहा था। उसके गठीले, नुकीले स्तनों को देखकर रघु मदहोश हो जाता है। सुमना अपने हाथों से ही अपने स्तनों को दबा रही होती है। थोड़ी देर स्तनों को दबाने के बाद सुमना अपनी एक अंगुली अपनी योनि में डाल लेती है। सुमना अपनी योनि को मलने लगती है। योनि को मलते-मलते सुमना 'आह-आह' की आवाजें निकालने लगती है। थोड़ी देर बाद सुमना की योनि से तरल पदार्थ बाहर निकलता है। सुमना शांत होकर सो जाती है। रघु का मन करता है कि वह अंदर जाए और सुमना को दबोच ले। परंतु अभी उसे जमिया मसान के पीछे जाना है। रघु दबे पांव वहां से वापस आ जाता है। रघु जमिया मसान के पीछे जंगल में उसी खंडहर के पास पहुंच जाता है। जमिया मसान रघु के कंधों के ऊपर बैठकर उसे दबाने लगता है। रघु बीड़ी जलाकर जमिया मसान के चूतड़ों को जलाता है। जमिया मसान उछल कर नीचे गिर जाता है। रघु पत्थर उठा कर जमिया मसान के सिर पर मारता है। जमिया मसान वहीं धराशायी हो जाता है। रघु घर को वापस लौट आता है। सुबह नाश्ता करके रघु गांव की तरफ निकल जाता है। रघु सुमना के घर के आँगन से गुजरता है। रघु देखता है कि सुमना घर पर नहीं है। रघु वहीं मेढ़ पर बैठ जाता है। थोड़ी देर बाद सुमना खेतों से वापस आ जाती है। रघु उसे आता देख वापस जाने लगता है। सुमना - "रघु कहाँ जा रहे हो? पानी पी के जाओ।" रघु रूक जाता है। सुमना रघु को पानी का गिलास पीने को देती है। सुमना जब झुकती है तो उसके स्तनों का उपरी भाग रघु को दिखाई देता है। स्तनों को देखकर रघु गद-गद हो जाता है। सुमना जब पीछे मुड़ती है तो रघु सुमना के नितंबों को टक-टकी लगाकर देखता रहता है। सुमना रघु को नाश्ते के लिए पूछती है। रघु मना कर देता है। थोड़ी देर बैठने के बाद रघु घर लौट आता है। रघु खेतों में काम करने के लिए चला जाता है। शाम को रघु खेतों से जल्दी लौट आता है। रात के समय फिर वही घटना घटती है। रघु साये का पीछा करता है। रघु सुमना के घर के अंदर झांकता है। सुमना नग्नावस्था में अपने स्थान दबा रही होती है। रघु साये के पीछे खंडहर में पहुंच जाता है। खंडहर में रघु जमिया मसान का सिर पत्थर से कुचल देता है। इस तरह एक महीना बीत जाता है। रघु को यह चक्कर समझ में नहीं आता। रघु साये का पीछा करता हुआ खंडहर में पहुंच जाता है। जमिया मसान रघु के कंधों पर बैठ जाता है। रघु बीड़ी जलाकर, बीड़ी से जमिया मसान के चूतड़ों को जलाता है। जमिया मसान नीचे गिर जाता है। इस बार रघु जमिया मसान के सिर पर पत्थर नहीं मारता। जमिया मशान खंडहर के कोने की तरफ इशारा करता है। रघु कुछ नहीं समझ पाता। रघु घर लौट आता है। अगली सुबह ही रघु कुदाली और फावड़ा लेकर खंडहर की तरफ चल देता है। सुमना रघु को देखकर मुस्कराती है। लेकिन रघु उ की तरफ नहीं देखता। रघु सीधा खंडहर पर जाकर ही रूकता है। रघु खंडहर के कोने में खुदाई शुरू करता है। लगातार खुदाई करने से रघु पसीने से भीग जाता है।
काफी देर खुदाई करने के बाद रघु को जमीन के अंदर एक कंकाल मिलता है। कंकाल किसी लंबे कद के व्यक्ति का होता है। कंकाल को ढंग से देखने के बाद रघु को उसकी एक अंगुली में अंगुठी दिखाई देती है। रघु को यह अंगुठी जानी-पहचानी लगती है। रघु सोच में पड़ जाता है कि उसने इस अंगुठी को कहाँ देखा है। रघु को याद आता है कि यह अंगुठी भलकू की है। भलकू सुमना का पति है। भलकू सुल्तान तुगलक खान की सेना में सैनिक था। भलकू को अपनी पत्नी के साथ आलिंगन करने का कभी मौका नहीं मिला। वह कहा करता था कि सेना से वापस आने के बाद गांव में ही रहेगा। फिर वह अपनी पत्नी से कभी दूर नहीं जाएगा। गांव में सभी लोग यही सोचते हैं कि भलकू अभी भी सुल्तान तुगलक खान की सेना में सेवाएं दे रहा है। भलकू की यह हालत देखकर रघु दुखी हो जाता है। तभी जमिया मसान सामने आता है। दिन की रोशनी में रघु जमिया मसान का चेहरा ढंग से देखता है। अरे! यह तो भलकू है। थोड़ी देर तक दोनों एक-दूसरे को देखते रहते हैं। फिर रघु बोलता है - "भलकू भाई, आप कैसे हो? आपकी यह हालत कैसे हुई?" भलकू-"मेरी हालत तो तुम देख ही रहे हो। सुल्तान तुगलक खान की सेना में अपनी सेवाएं समाप्त होने के बाद में अपने घर वापस आ रहा था। गांव तक पहुंचते - पहुंचते मुझे रात हो गई। तब मैं जंगल में रास्ता भटक कर इस खंडहर में पहुंच गया। तभी बारिश शुरू हो गई। मैं रात को खंडहर के एक कोने में सो गया। तभी रात को कुछ आवाजें सुनकर मेरी आंख खुल गई। तभी मैंने देखा कि खंडहर के दूसरे कमरे में चार लोग आपस में बातें कर रहे थे। मैं चुपके से उनकी बातें सुनने लगा। वे चारों डाकू थे। वे डकैती का माल वहां छुपाने आए थे। तभी एक डाकू की नजर मुझ पर पड़ गई। चारों डाकुओं ने मुझे घेर लिया। मैंने भी अपनी तलवार निकाल ली। घमासान युद्ध होने लगता है। मैं जोश से भरा था। चारों डाकू अधेड़ उम्र के थे। मैं चारों डाकुओं पर भारी पड़ रहा था। मैंने चारों डाकुओं को जख्मी कर दिया। चारों डाकू मुझसे दया की भीख मांगने लगे। एक डाकू मुझसे बोला - हम पर रहम करो मेरे भाई। हमें जिंदा छोड़ दो। हम यहां से चुपचाप चले जाएंगे। में डाकुओं से बोला - आज मैं तुम्हें जिंदा छोड़ देता हूं। फिर कभी इस गांव में दोबारा मत दिखाई देना। चारों डाकू वहां से चले गए। मैं रात भर जागता रहा कि कहीं डाकू वापस न आ जाएं। कब मेरी आँख लग गई, मुझे पता भी नहीं चला। मैं गहरी नींद में सो गया। मैंने सपने में देखा कि मैं वापस अपने घर पहुंच गया हूं। मैंने अपनी पत्नी के माथे से चुंबन लिया। मैंने अपनी पत्नी को अपनी बांहों में भर लिया। मैंने उसके स्तनों को पकड़ा, फिर थोड़ी देर दबाया। फिर हम दोनों ने कपड़े खोल दिए। फिर हम दोनों ने संभोग किया। मैं सपनों में खोया हुआ था। तभी पेड़ों के पीछे छिपे डाकू खंडहर में वापस आ गए। एक डाकू ने पत्थर उठा कर मेरे सिर पर मार दिया। मेरे सिर से खून बहने लगा। मैंने वहीं दम तोड़ दिया। एक डाकू बोला कि बड़ा तीसमार खाँ बन रहा था। अब बेमौत मारा गया। चारों डाकू हंसने लगे। वे मेरा सारा सामान लूट कर ले गए। उन्होंने एक बड़ा गड्ढा खोद कर मुझे उसमें दबा दिया। मेरे को गड्ढे में दबाने के बाद, चारों ने उसपर पेशाब किया। फिर चारों शराब पीकर वहीं सो गए। अगली सुबह चारों ने डकैती का माल खंडहर में दबा दिया और वहां से चले गए। " रघु को इतना बताकर जमिया मसान गायब हो जाता है। रघु अपने घर लौट आता है। तीन महीने बीत जाते हैं। गांव के लोग जमिया मसान को भूल जाते हैं। जमिया मसान अब किसी को नहीं मिलता। रघु भी जमिया मसान को भूल जाता है। रघु भलकू को नहीं भूल पाता। रघु भलकू के बारे में किसी को कुछ नहीं बताता। भलकू की याद उसे सदा आती रहती है।
एक रात दो बजे रघु की आँख खुल जाती है। रघु खिड़की के बाहर देखता है। रघु को कोई नहीं दिखाई देता है। रघु बिस्तर से उठकर आँगन में घुमने लगता है। रात्रि की चीर शांति में उसे अपने कदमों की आहट के अलावा कुछ नहीं सुनाई देता है। रघु खंडहर की तरफ चल देता है। रास्ते में सुमना का घर आता है। रघु खिड़की से अंदर झांकता है। दीया बुझ चुका होता है। सुमना गहरी नींद में सो रही होती है। रघु खंडहर की तरफ चल देता है। रघु खंडहर के एक कोने में बैठ जाता है। आज उनके कंधों पर कोई मसान नहीं बैठता है। रघु वहां बैठ कर बीड़ी पीता है। बीड़ियां पीते-पीते कब सुबह हो जाती है उसे पता ही नहीं चलता। रघु अपने घर वापस लौट आता है। रघु नाश्ता करके, कुदाली और फावड़ा उठाकर खंडहर की तरफ चल देता है। रघु खंडहर का कोना-कोना खोद डालता है। थोड़ी देर बाद रघु को डाकुओं का डकैती का माल मिल जाता है। रघु सारा माल निकाल लेता है। रघु डकैती के माल को जंगल में दूसरी जगह छुपा देता है। रघु खंडहर में खोदे गड्ढे को फिर से मिट्टी से भर देता है। रघु घर वापस लौट आता है। दो महीने बीत जाते हैं। गांव में चार साधुओं की टोली भिक्षा मांगने आती है। साधु सुमना के घर भिक्षा मांगने पहुंचते हैं। साधु-"भिक्षा दे बच्चा। तेरी मनचाही इच्छा पूरी होगी।" सुमना उनको भिक्षा देकर, मन ही मन मांगती है कि उसका पति वापस घर लौट आए। सुमना के घर के बाद साधु रघु के घर भिक्षा मांगने पहुंचते हैं। रघु घर पर ही होता है। रघु की माँ साधुओं को भिक्षा देती है। साधु भिक्षा लेकर वहां से चले जाते हैं। माँ रघु से-" कितने हृष्ट-पुष्ट साधु थे। इतने हृष्ट-पुष्ट होकर ये लोग खेतों में काम क्यों नहीं करते।" यह सुनकर रघु चौंक जाता है। रघु-"माँ कितने साधु थे?" माँ - "बेटा, चार साधु थे।" रघु समझ जाता है कि वे ही चार डाकु हैं, जिन्होंने भलकू की हत्या की थी। खंडहर में अपना डकैती का माल गायब देखकर ये चारों हरामी गांव वालों की जासूसी करने आए हैं। रघु का खून खौल उठता है। रघु किसी तरह अपने उपर नियंत्रण रखता है। रघु दिनभर बेचैन रहता है। रात के एक बजे रघु अपने बिस्तर से उठ जाता है। रघु अपनी खुखरी को अपनी कमर में बांधता है। रघु खंडहर की तरफ निकल पड़ता है। रघु सुमना के घर की खिड़की से अंदर झांकता है। रघु मन ही मन कहता है-'फिर मिलेंगे।' रघु दबे पांव खंडहर में घुसता है। चारों डाकु सो रहे होते हैं।
रघु सोचता है कि पत्थर उठाकर चारों डाकुओं का सिर कुचल दे। लेकिन यह एक सैनिक के शौर्य के खिलाफ था। रघु उनको ललकारता है। चारों डाकु उठकर अपनी तलवारें उठा लेते हैं। भयंकर युद्ध होता है। रघु चारों के सिर अपनी खुखरी से काट देता है। रघु अपने घर वापस लौट आता है। अगली रात ग्यारह बजे के करीब रघु अपने बिस्तर से उठकर सुमना के घर की तरफ चल देता है। रघु खिड़की से अंदर झांकता है। सुमना अपने स्तनों को दबा रही होती है। रघु खांसता है। सुमना चौंक कर खिड़की की तरफ देखती है। सामने रघु मुस्करा रहा होता है। सुमना दरवाजा खोल देती है। रघु नग्नावस्था में ही सुमना को अपनी बांहों में उठा लेता है। रघु सुमना को बिस्तर पर लेटा देता है। सुमना के स्तनों को दबाने के बाद रघु सुमना की दोनों टांगों को खोल देता है। कमरा 'आह-आह' की आवाजों से गुंज उठता है। संभोग करने के बाद दोनों सो जाते हैं। थोड़ी देर बाद रघु की आँख खुलती है। रघु की नजर खिड़की पर पड़ती है। एक साया दोनों को टकटकी लगाए देख रहा होता है।
- विनय कुमार
सहायक हिन्दी प्रोफेसर
हमीरपुर , हिमाचल प्रदेश
बहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएं