जहां ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों की जानकारियां प्राप्त हो सकेंगी, वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों को भी सरकार द्वारा चलाई जा
योजनाओं की पहुंच से दूर ग्रामीण
मेरे परिवार में 8 सदस्य हैं. बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी के दस्तावेज़ बने हुए हैं. इसके बावजूद हमें किसी योजनाओं का लाभ नहीं मिल पाता है. कभी लाभार्थी के लिस्ट में नाम नहीं आया. पंचायत में भी कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है. समझ में नहीं आता है कि ऐसा क्यों हो रहा है?" यह दर्द है 37 वर्षीय अंजू बाई का जो राजस्थान के अजमेर जिला के धुवालिया नाडा गांव की रहने वाली है. अंजू कहती है कि परिवार में आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड, चिरंजीवी और ई-श्रमिक के साथ साथ राशन कार्ड भी बने हुए हैं. लेकिन इनमें से किसी योजनाओं का परिवार को कोई लाभ नहीं मिल सका है. वह कहती हैं कि उनके पति स्थानीय चूना भट्टी में श्रमिक मज़दूर के रूप में काम करते हैं. जहां उनका वेतन दस हज़ार से भी कम है. इतने बड़े परिवार का पेट भरने के लिए एक सदस्य की कमाई कम पड़ती है.
अंजू की तरह रसूलपुरा के गौरव की भी यही स्थिति है. गौरव और उनकी पत्नी शांति देवी प्रतिदिन दैनिक मज़दूरी करने अजमेर शहर जाते हैं ताकि बूढ़े माता-पिता और चार बच्चों का पेट भरा जा सके. गौरव कहते हैं कि गांव में न तो रोज़गार का कोई साधन उपलब्ध है और न ही किसी योजना का लाभ प्राप्त होता है. हालांकि पति पत्नी दोनों ने मनरेगा में काम के लिए अपना नाम दर्ज करा रखा है, लेकिन उन्हें आज तक इसके अंतर्गत काम नहीं मिला है. उनकी पत्नी शांति देवी कहती हैं कि "हम दोनों पढ़े लिखे नहीं हैं, इसलिए हमें योजनाओं का लाभ उठाने की प्रक्रिया नहीं मालूम है. इसीलिए हम अपने बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं ताकि वह जागरूक बन सकें और सभी योजनाओं की जानकारियां प्राप्त कर सकें. वह कहती हैं कि यदि महिलाओं के लिए गांव में रहकर ही स्वरोज़गार के साधन उपलब्ध हो जाएं तो हमारी बहुत सारी समस्याओं का हल हो जाएगा. लेकिन इसके लिए क्या योजना है और इसे कैसे प्राप्त किया जा सकता है, इसकी जानकारी का अभाव है. शांति देवी कहती हैं कि गांव की बहुत सारी महिलाएं स्वरोज़गार से जुड़कर आत्मनिर्भर बनना चाहती हैं, लेकिन किसी को भी इस दिशा में कोई भी जानकारी नहीं है.
धुवालिया नाडा अजमेर जिला स्थित रसूलपुरा पंचायत के अंतर्गत स्थित है. जो अजमेर ग्रामीण क्षेत्र का हिस्सा है. इस गांव में अनुसूचित जनजाति भील और रेगर समुदाय की बहुलता है. 2011 की जनगणना के अनुसार इस गांव की जनसंख्या करीब 819 है. यह न केवल सामाजिक और आर्थिक रूप से बल्कि शैक्षणिक रूप से भी काफी पिछड़ा इलाका है. जिसके कारण गांव में जागरूकता के स्तर पर काफी कमी देखी जाती है. यहां की साक्षरता दर काफी कम है. राज्य की औसत साक्षरता दर 66.11 प्रतिशत की तुलना में केवल 54.12 प्रतिशत दर्ज की गई है. वहीं महिला और पुरुष साक्षरता दर की बात करें तो 76.79 प्रतिशत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में साक्षरता की दर मात्र 31 प्रतिशत के आसपास है, जो काफी चिंता का विषय है. गांव में कुछ ही परिवार ऐसे हैं जिनके पास खेती के लिए पर्याप्त भूमि है. जबकि अधिकतर परिवार के पास कृषि कार्य के लिए नाममात्र की ज़मीन है. इसीलिए ज़्यादातर परिवार के पुरुष स्थानीय चूना भट्टी में काम करते हैं या दैनिक मज़दूरी करते हैं. इस संबंध में महेश रेगर कहते हैं कि आर्थिक कमी के कारण उनके तीनों बच्चों का जन्म घर पर ही हुआ है, जिसके कारण उनका जन्म प्रमाण पत्र नहीं बन सका है. इससे उनके स्कूल में एडमिशन में कठिनाइयां आ रही हैं. वह कहते हैं कि "मैं पढ़ा लिखा नहीं हूं. मुझे नहीं मालूम कि घर में जन्म लेने वाले बच्चों का प्रमाण पत्र कैसे बनाया जाए? इसके लिए क्या प्रक्रिया अपनाई जाती है? इसके नहीं होने की वजह से मेरे बच्चों को किसी प्रकार की योजना का लाभ नहीं मिल पा रहा है.
धुवालिया नाडा में पीने के साफ़ पानी की भी बहुत बड़ी समस्या है. गांव में एक हैंडपंप है जिसमें पीने का पानी उपलब्ध होता है. गर्मी के दिनों में अक्सर इसके पानी का लेवल काफी नीचे चला जाता है. यहां पानी की व्यवस्था की ज़िम्मेदारी महिलाओं की है. जिन्हें इसके लिए कई किमी पैदल चलना पड़ता है. इस संबंध में इंदिरा देवी कहती हैं कि गांव के अधिकतर बावड़ी सूख चुकी है. जो मौजूद हैं उसका पानी इतना खारा होता है कि इंसान या मवेशी पी नहीं सकते हैं. इसलिए पानी के लिए हमें कई किमी चलना पड़ता है. इससे हमें शारीरिक और मानसिक परेशानी उठानी पड़ती है. गांव में लोग आर्थिक रूप से इतने सशक्त नहीं हैं कि प्रतिदिन पानी का टैंकर मंगवा सकें क्योंकि एक बार टैंकर का खर्च दो से तीन हज़ार रूपए का होता है. इसलिए गांव वाले आपस में चंदा इकठ्ठा करके सप्ताह में एक दिन टैंकर मंगवाते हैं. इससे केवल दो दिन पानी की पूर्ति हो पाती है. वह कहती हैं कि अभी धुवालिया नाडा में हर घर नल जल योजना नहीं आई है. जिस दिन यह योजना गांव में आ जाएगी सबसे अधिक आराम हम महिलाओं को होगा. इंदिरा देवी कहती हैं कि इस गांव में बहुत कम लोगों को सरकार द्वारा चलाई जा रही कल्याणकारी योजनाओं की जानकारियां हैं. जिससे वह इनका लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं.
इसी वर्ष राजस्थान सरकार ने राज्य के सभी गांवों की जानकारी को ऑनलाइन करने का निर्णय लिया है. इसके लिए मुख्यमंत्री ई-ग्राम परियोजना पर काम चल रहा है. इसके तहत राज्य के सभी राजस्व गांवों से जुड़े सरकारी विभागों की सूचनाएं एक पोर्टल ई-ग्राम पर उपलब्ध कराई जाएंगी. इस पोर्टल पर न केवल योजनाओं से जुड़ी सूचनाएं उपलब्ध होंगी बल्कि उस गांव की जनसंख्या, महिला और पुरुषों में साक्षरता की दर आदि की जानकारियां एक क्लिक पर उपलब्ध हो जाएंगी. यह योजना राजस्थान सरकार के गुड गवर्नेंस और ई गवर्नेंस के लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है. इससे एक ओर जहां ग्रामीण क्षेत्रों में सरकार द्वारा किये जा रहे विकास कार्यों की जानकारियां प्राप्त हो सकेंगी, वहीं दूसरी ओर ग्रामीणों को भी सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं की जानकारियां आसानी से उपलब्ध हो जाएंगी.
दरअसल हमारे देश में सरकार ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को ध्यान में रखते हुए कई लाभकारी योजनाएं संचालित करती है, ताकि उसका लाभ उठाकर देश की ग्रामीण जनता भी विकास के पथ पर शहरी क्षेत्रों के साथ कदम से कदम मिलाकर चल सके. लेकिन अक्सर यह देखा जाता है कि ग्रामीण इन योजनाओं का बहुत अधिक लाभ नहीं उठा पाते हैं. इसके पीछे कई कारण हैं. एक ओर जहां सामाजिक चेतना की कमी होती है वहीं दूसरी ओर शिक्षा की उचित व्यवस्था नहीं होने के कारण जागरूकता का अभाव भी देखने को मिलता है. जिससे योजना के वास्तविक हकदार इसका लाभ उठाने से वंचित रह जाते हैं. ऐसे में ज़रूरी है कि जहां विभाग के साथ साथ पंचायत और सामाजिक स्तर पर इन योजनाओं का प्रचार किया जाए. जिसमें गांव के अंदर नुक्कड़ नाटक और प्रदर्शनी जैसी गतिविधियां प्रमुख भूमिका निभा सकती हैं. (चरखा फीचर)
- सुमन मेघवंशी
अजमेर, राजस्थान
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