आदर्शवाद का अर्थ स्वरूप भेद विशेषताएँ महत्व आदर्शवाद एक दार्शनिक सिद्धांत है जो मानता है कि वास्तविकता या सत्य विचारों, अवधारणाओं या मानसिक संरचनाओं स
आदर्शवाद का अर्थ,स्वरूप,भेद,विशेषताएँ और महत्व
आदर्शवाद का स्वरूप
आदर्शवाद के भेद
- कल्पना विलासी आदर्शवाद,
- व्यावहारिक आदर्शवाद ।
आदर्शवाद की प्रवृत्तियाँ विशेषताएँ
- आदर्शवाद मानव को उसके अपने जीवन में उदात्त तत्त्वों के माध्यम से प्राप्त उपलब्धियों की दिशा में अग्रसर होने की प्रेरणा देता है।
- आदर्शवाद में बाह्य सुखों की अपेक्षा आन्तरिक सुखों को ही सर्वोपरि समझा जाता है ।
- आदर्शवाद उन संकीर्ण भावनाओं एवं दृष्टिकोणों का विरोधी भी है, जो मानव को पतनोन्मुख करते हैं।
- आदर्शवाद 'जैसा हो रहा है', के स्थान पर 'जैसा होना चाहिए' विचार का पक्षधर है।
- आदर्शवाद जीवन-चित्रण में वास्तविकता के स्थान पर उदात्तता के समावेश का समर्थन करता है और साहित्य में वर्णित प्रत्येक विषय के उदात्त स्वरूप को आदर्श मानकर उसी के चित्रण को आवश्यक बतलाता है।
- आदर्शवाद में सृजनशीलता पायी जाती है। वह जीवन में पतन की अपेक्षा उत्थान को बनाये रखने के लिए प्रयत्नशील रहता है।
- आदर्शवाद किसी एक सीमित सीमा में आबद्ध न होकर जीवन के विविध क्षेत्रों से सम्बन्ध रखने वाली मान्यताओं का निर्धारण करता है।
- आदर्शवाद ऐसे शाश्वत जीवन-मूल्यों की विवेचना करता है, जो नैतिकता पर आधारित होते हैं और मानव को प्रगति पथ पर अग्रसर करते हैं।
- आदर्शवादी रचनाओं में कला का उच्चतर रूप प्रतिष्ठित होता है।
- आदर्शवाद दुष्प्रवृत्तियों के स्थान पर सद्वृत्तियों की प्रतिस्थापना करता है तथा दुराचारी के स्थान पर सदाचारी की विजय दिखलाता है।
- आदर्शवाद जीवन की यथार्थता से विमुख न होकर, उसकी यथार्थता को दृष्टिगत रखते हुए, उसके उदात्तीकरण की सम्भावनाओं पर विचार करता है।
आदर्शवाद का महत्व
उपर्युक्त विवरण के आधार पर कहा जा सकता है कि आदर्शवाद एक ऐसी विचारधारा है जो प्राचीनकाल से लेकर आज तक समान रूप से काव्य या साहित्य के महत्त्व की साधन बनी हुई है। वैचारिक रूप से आदर्शवाद का पर्याप्त महत्त्व भी है, किन्तु कुछ आलोचकों ने इस विचारधारा पर यह आपेक्ष भी किया है कि आदर्शवाद जीवन की यथार्थ भावभूमि से हटकर पूर्णतया कल्पना की भावभूमि पर विचरण करता है। यह व्यावहारिक जगत् की नहीं बल्कि कल्पना-लोक की सर्जना है, अतः यह मात्र सैद्धान्तिक है, इसका व्यावहारिक महत्त्व नहीं है। आलोचकों का यह विचार किसी सीमा तक सत्य भी हो सकता, किन्तु समष्टि रूप से विचार करने पर यह ज्ञात होता है कि आदर्शवाद में यथार्थ की पूर्ण उपेक्षा नहीं, बल्कि यथार्थ में जो त्रुटियाँ एवं पतनोन्मुखता आदि हैं, आदर्शवादी साहित्यकार अपनी कल्पना से उनका निदान प्रस्तुत कर आदर्श की कल्पना करता है। इस प्रकार आदर्शवाद यथार्थ का उदात्तीकरण करता है। वह जीवन की वास्तविकताओं को अनदेखा नहीं करता, बल्कि उन पर दृष्टिपात करते हुए उन्हें उदात्त भावभूमि पर ले जाने का प्रयास करता है।
अन्त में सुश्री महादेवी वर्मा के शब्दों में कहा जा सकता है- "आदर्श हमारी दृष्टि की मलिन संकीर्णता धोकर, उसे बिखरे यथार्थ के भीतर छिपे हुए सामंजस्य को देखने की शक्ति देता है, हमारी व्यष्टि में सीमित चेतना को मुक्ति के पंख देकर समष्टि तक पहुँचने की दिशा देता है और हमारी खण्डित भावना को अखण्ड जागृति देकर उसे जीवन की विविधता नाप लेने का वरदान देता है। जब आदर्श जल-भरे बादल की तरह आकाश का असीम विस्तार लेकर पृथ्वी के असंख्य रंगों, अनन्त रूपों में नहीं उतर सकता, तब शरद के सूने मेघ-खण्ड के समान शून्य का धब्बा बना रहना ही उसका लक्ष्य हो जाता है।'
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