गोदान उपन्यास की तात्विक समीक्षा मुंशी प्रेमचंद गोदान उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द का सर्वश्रेष्ठ एवं महाकाव्यात्मक उपन्यास है। यह कसौटी पर कसने योग्य नही
गोदान उपन्यास की तात्विक समीक्षा | मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचन्द के शब्दों में 'उपन्यास 'मानव चरित्र' का चित्र मात्र हैं' और इस दृष्टि से गोदान एक सफल उपन्यास है। गोदान महाकाव्यात्मक उपन्यास है। इसमें उपन्यास के सर्व प्रख्यात तत्वों का सुन्दर विनियोग हुआ है। उपन्यास के तत्व इस प्रकार हैं-
- कथावस्तु,
- चरित्र-चित्रण,
- कथोपकथन,
- शैली,
- देश काल और वातावरण तथा
- उद्देश्य ।
कथावस्तु
उपन्यास की मूलकथा को कथावस्तु कहा जाता है, जो उदय, विकास और अन्त वाली होती है, तथा इसकी समस्त घटनाएँ परस्पर सम्बद्ध होती हैं, उनमें औचित्य भी होता है। घटनाचक्र की एकता वस्तु-गठन के रूप में उपन्यास के रस को कलात्व प्रदान करती है। उपन्यासकार घटना वैचित्र्य से अपनी कथा को रोचक बनाता है।
गोदान में दो कथाएँ एक साथ चलती हैं। दोनों को जोड़ने वाला होरी गोदान का नायक है। ग्रामीण कथा मुख्यतया अधिकारिक है और नगर की कथा गौण अथवा प्रासंगिक है। इन दोनों की सम्बन्ध स्थापना रायसाहब और गोबर द्वारा होती है। रायसाहब के यहाँ रामलीला देखने नगर के संभ्रात व्यक्ति आते हैं और गोबर मजदूर बनकर नगर को जाता है। इस प्रकार दोनों कथाएँ एक-दूसरे से मिल जाती हैं। गोदान को प्रमुख रूप से ग्रामीण जीवन का उपन्यास माना जाता है। प्रेमचन्द भारतीय समाज का समग्र चित्र उतारना चाहते थे, जिसका प्रमुख भाग गाँवों में बिखरा पड़ा है। उन्होंने इसमें किसानों के होने वाले उस शोषण का चित्रण किया है जिसे प्रत्यक्ष रूप से तो जमींदार करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से नगर वाले। किसानों से आने वाला धन नगर के विलासों में खर्च होता है। ग्रामीण जीवन नागरिक जीवन की तुलना में अधिक सुन्दर, पवित्र और सादा होता है। नगरों में विलास और पाप है। इसी हेतु गोदान में नागरिक कथा को जोड़ना कला एवं उद्देश्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण था। गोदान का कथानक सुसम्बद्ध है। उसे रोचक बनाने के लिए लेखक ने घटना वैचित्र्य का संयोजन किया है। उपन्यासकार पाठक को ग्राम और नागरिक जीवन के विभिन्न चित्र दिखाता चलता है, उसकी तुलना पाठक स्वयं कर सकता है। लेखक कहीं भी अपना निष्कर्ष प्रस्तुत नहीं करता। वह ग्रामीण जीवन की समस्याओं का गहराई से समूल उद्घाटन करता है। नागरिक जीवन की समस्याओं में केवल उच्च वर्ग और मजदूर वर्ग की समस्याओं का ही संक्षिप्त चित्रण है, वह भी रायसाहब और गोबर के माध्यम से। इस प्रकार कथानक-संयोजन की दृष्टि से प्रेमचन्द को गोदान में पूर्ण सफलता मिली है।
पात्र और चरित्र चित्रण
उपन्यास में पात्रों का चरित्र-चित्रण सजीवता, सत्यता और स्वाभाविकता के साथ अत्यन्त प्रभावशाली ढंग से होना चाहिए। पात्र की आकृति के अनुरूप ही उसके कार्य और बातें होना आवश्यक है। इससे कथावस्तु के विकास में पर्याप्त सहायता मिलती है। पात्र उपन्यासकार के हाथ की कठपुतली मात्र नहीं होते । स्वतन्त्र संकल्प शक्ति सम्पन्न और निरन्तर गतिशील पात्रों से उपन्यास की उत्कृष्टता और लेखक की सफलता आँकी जाती है। पात्रों का चरित्र-चित्रण आदर्शवादी और यथार्थवादी दो प्रकार का होता है।
गोदान के पात्र कुछ वर्ग के प्रतिनिधि जैसे प्रतीत होते हैं। यह महाकाव्यात्मक उपन्यास है। इसमें गाँव और नगर के सभी वर्गों के पात्रों को प्रतिनिधित्व देना था, अतः लेखक ने टाइप या वर्गपरक पात्र प्रस्तुत किये हैं। किन्तु कुशलता को इस बात में है कि वे अपने-अपने वर्ग का प्रतिनिधित्व सही ढंग से करते हुए भी अपनी विशिष्टता रखते हैं। इस उपन्यास का नायक होरी है जो उपन्यास के नामकरण से भी सम्बन्धित है और जिसका चरित्र-चित्रण विशद् तथा महाकाव्यात्मक है, होरी के जीवन के अन्त के साथ ही उपन्यास समाप्त हो जाता है। उसका चरित्र अपनी कुछ निश्चित विशेषताओं से विशिष्ट है। एक ओर तो वह ऋणमस्त भारतीय किसान का प्रतिनिधि है और उसकी समस्त समस्याओं को प्रस्तुत करता है। उसका जीवन अत्यन्त कठोरता में बीतता है और अन्त भी बड़ा करुण है। लेखक ने उसका चित्रण यथार्थ की पृष्ठभूमि में किया है और कहीं भी, उसे आदर्श का स्पर्श नहीं दिया है। यही कारण है कि होरी एक यथार्थ शैली से चित्रित पात्र है। उसके चित्रण में स्वाभाविकता का विशेष ध्यान रखा गया है। वह व्यवहारकुशल है और जमींदार की जी हजूरी करता है किन्तु वह रूढ़िवादी भी है और 30) रु. पर ब्याज-दर-ब्याज से 300) रुपया देना भी उचित मानता है क्योंकि एक पण्डित का धन लेकर मरने पर उसका उद्धार नहीं हो सकता। गोबर ग्रामीण युवक है किन्तु नगर में आकर वह बहुत कुछ सीख जाता है, उसे रूस के कम्यूनिज्म की हवा लग जाती है।
इस प्रकार गोबर जब पुनः गाँव में लौटकर जाता है तो वह एक दम बदला हुआ होता है। रायसाहब जमींदार के रूप में अपना पार्ट खूबी से निबाहते हैं। अन्य नगर के संभ्रात नागरिक पात्र भी अपना स्वाभाविक चरित्र रखते हैं, इस प्रकार चरित्र-चित्रण की दृष्टि से गोदान एक सफल उपन्यास है। चरित्र-चित्रण के द्वारा कथानक का विकास होता है, उपन्यास में सजीवता एवं रोचकता बनी रहती है।
संवाद
उपन्यास में संवादों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया जाता है। यह कथावस्तु के विकास एवं पात्रों के चरित्र-चित्रण में सहायक होता है।
गोदान के संवाद अत्यन्त स्वाभाविक हैं। डॉ. मेहता एक दार्शनिक प्रोफेसर है उनके संवाद कुछ लम्बे हैं, शेष सम्वाद संक्षिप्त एवं रोचक हैं। इन संवादों में पात्रों के अनुरूप भाषा प्रयुक्त है। मुहावरों के प्रयोग से भाषा की शक्ति भी बढ़ जाती है और कलात्मकता भी आ जाती है। प्रारम्भ में ही रायसाहब के घर जाने वाले होरी को धनिया टोकती है, तो होरी व्यवहारकुशल व्यक्ति के समान यह कहकर कि यह सब मिलने-जुलने का परसाद है कि अब तक जान बची हुई है। रायसाहब से मिलने चल देता है। गोदान के कथोपकथन सोद्देश्य तथा सारगर्भित हैं तथा पात्रों के चरित्र का उद्घाटन करते चलते हैं उनके मनोभावों पर प्रकाश डालते हैं, साथ ही ग्रामीण जीवन के अनुकूल व्यावहारिक, सरल एवं संक्षिप्त हैं। ये सम्वाद सर्वथा पात्रानुकूल हैं।
देशकाल और वातावरण
प्रेमचन्द जी ने सामाजिक उपन्यासों की रचना की है जिनमें देशकाल तो स्वतन्त्रता आन्दोलन एवं जमींदारी उन्मूलन के पूर्व के भारत और विशेषकर उत्तर प्रदेश का है। ये ग्रामीण जीवन के कलाकार हैं और उसका कौना-कौना झाँक आये हैं। इस जीवन के वे प्रवीणतम कलाकार हैं। उनका वातावरण चित्रण अत्यन्त स्वाभाविक एवं कलात्मक है। पाठक उसी वातावरण में अपने को रंगा हुआ पाता है और उस वातावरण की समस्त विशेषताओं से परिचित होता है। गोदान में ग्रामीण जीवन-सूदखोर, महाजन, क्रूर जमींदार, क्रूर सरकारी अफसर और नगर विलासी वर्ग का चित्रण भी अत्यन्त स्वाभाविक है। देशकाल एवं वातावरण का यह चित्रण कथा प्रवाह में सहायक है ।
उद्देश्य
उपन्यास में मानव-जीवन का चित्रण होता है। यह एक सोद्देश्य कला है। प्रेमचन्द के गोदान में हमें ग्रामीण जीवन की समस्त समस्याओं का कलापूर्ण चित्रण मिलता है। उन्होंने ऋणग्रस्तता से पिसकर मरते हुए भारतीय किसान का अत्यन्त करुण चित्रण किया है । साथ ही रूढ़िवादी किसान का जीवन कैसा कष्टपूर्ण है, इसका चित्रण राजनीतिक तटस्थता से किया गया है। प्रेमचन्द ने तत्कालीन आन्दोलन की चर्चा नहीं की है वरन् अपना ध्यान ग्रामीण जीवन के विशद चित्रण पर केन्द्रित रखा है।
भाषा शैली
उपन्यासकार को अपने भाव एवं विचारों की अभिव्यक्ति के लिए सरल एवं रोचक भाषा-शैली प्रयुक्त करनी चाहिए। प्रेमचन्द की भाषा-शैली देशकाल एवं पात्रों के अनुसार स्वाभाविक है। वे व्यावहारिक भाषा का प्रयोग करना उचित समझते हैं। मुसलमान पात्र सरल उर्दू बोलता है तथा हिन्दू पात्र भी व्यावहारिक हिन्दी का प्रयोग करते हैं।
भाषा-शैली की दृष्टि से गोदान विशिष्ट है। इसमें गठी हुई, कोमल एवं भावपूर्ण भाषा के भी उदाहरण हैं। 'वह अभिसार की मीठी स्मृतियाँ याद आई। जब वह अपने उन्मत्त उसासों में, अपनी नशीली चितवन में मानो अपने प्राण निकाल कर उसके चरणों पर रख देता था। झुनिया किसी वियोगी पक्षी की भाँति अपने छोटे से घोंसले में एकान्त जीवन काट रही थी। वहाँ नर का मत्त आग्रह न था, न वह उद्दीप्त लालसा, न शावकों की मीठी आवाजें, मगर बहेलिये का जाल और छल भी तो वहाँ न था।' इसी प्रकार भाषा-गाम्भीर्य का उदाहरण दृष्टव्य है- “वैवाहिक जीवन के प्रभाव में लालसा अपनी गुलाबी मादकता के साथ उदय होती है और हृदय के सारे आकाश को अपने माधुर्य की सुनहरी किरणों से रंजित कर देती है। फिर मध्यान्ह का प्रखर ताप आता है, क्षण-क्षण पर बबूले उठते हैं और धरती काँपने लगती है। लालसा का सुनहला आवरण हट जाता है और वास्तविकता अपने नग्न रूप में सामने आ खड़ी होती है।”
अन्यत्र गोदान की भाषा पात्रानुकूल है। उसमें व्यावहारिकता भी है तथा सुबोधता भी। यह कहीं भी बोझिल या क्लिष्ट नहीं है। प्रेमचन्द की शैली बड़ी ही रोचक एवं कुतूहलपूर्ण है। पाठक एक बार उनके उपन्यास को हाथ में लेकर पूरा किये बिना नहीं छोड़ता। कहीं वर्णनात्मक शैली है तो कहीं आत्म विश्लेषणात्मक, कहीं संवादात्मक। इस प्रकार गोदान की भाषा-शैली अत्यन्त रोचक है ।
निष्कर्ष
गोदान उपन्यास सम्राट प्रेमचन्द का सर्वश्रेष्ठ एवं महाकाव्यात्मक उपन्यास है। यह कसौटी पर कसने योग्य नहीं, वरन् स्वयं ही एक मानदण्ड प्रस्तुत करता है। इसमें प्रेमचन्द शुद्ध यथार्थवादी उपन्यासकार के रूप में हमारे सामने आते हैं। उनका चिन्तन गम्भीर है और कथा पूर्णरूपेण विकसित है।
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