मैला आँचल उपन्यास के नामकरण की सार्थकता | फणीश्वरनाथ रेणु मैला आँचल उपन्यास का शीर्षक अपने आप में एक कहानी कहता है। यह शीर्षक उपन्यास की कथावस्तु, पा
मैला आँचल उपन्यास के नामकरण की सार्थकता | फणीश्वरनाथ रेणु
मैला आँचल उपन्यास का शीर्षक अपने आप में एक कहानी कहता है। यह शीर्षक उपन्यास की कथावस्तु, पात्रों और समाज के उन पहलुओं को बड़ी ही सटीकता से व्यक्त करता है, जिनका उपन्यास में चित्रण किया गया है।संसार में प्रत्येक वस्तु का कोई न कोई नाम अवश्य होता है। वास्तविकता तो यह है कि बिना नाम की वस्तु की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। इस प्रकार नामकरण एक स्वाभाविक और आवश्यक प्रक्रिया अथवा आवश्यकता है। साहित्य-विशेषतः उपन्यास-जगत में भी हम देखते हैं कि प्रत्येक कृति का कोई न कोई नाम अवश्य होता है। कृति के आकर्षक होने का नामकरण भी एक महत्वपूर्ण बल्कि यूँ कहिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण, कारण होता है। पाठक सर्वप्रथम कृति का नाम देख सुन और पढ़कर ही तत्सम्बन्धी धारणा बना लेता है। उपन्यास जगत में तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है। कारण है—उपन्यास का वृहत्ताकार होना ।
उपन्यास में 'नामकरण' का इतना महत्व होने पर भी उसके विषय में शास्त्रीय विवेचन नहीं मिलता । उसकी प्रायः उपेक्षा ही की जाती रही है। इसी से उपन्यास-नामकरण विषयक सर्वमान्य आधारभूत सिद्धान्त अभी भी नहीं बन पाया है। उपन्यासकार इस विषय में प्रायः स्वतन्त्र रहे हैं। इस कारण यहाँ मुख्य पात्र पात्रा (यथा चित्रलेखा, मृगनयनी, दिव्या), भाव (प्रेम की परख, हृदय की प्यास), स्थान (झाँसी की रानी, गढ़ कुन्डार), समय (कम तक पुकारूँ, बारह घण्टे, तीन वर्ष), प्रतीक (झूठा सच, सारा आकाश), तथा अंग-प्रत्यंग (बड़ी-बड़ी आँखें, पिंजर) तक पर आधारित नाम मिलते हैं। फिर भी, श्रेष्ठ नामकरण के लिए कुछ बातों का ध्यान रखना आवश्यक है। ये है— कथा, पात्र उद्देश्य की अनुकूलता, मौलिकता, सरलता, संक्षिप्तता और जिज्ञासा-भाव को बढ़ाने की समर्थता । इन्हीं तत्वों की कसौटी पर किसी उपन्यास के नाम के औचित्य को देखा जा सकता है।
मैला आँचल आशय और औचित्य - उपन्यास की भूमिका में रेणु जी ने कहा है, "यह है मैला आँचल, एक आँचलिक उपन्यास । कथानक है पूर्णिया। पूर्णिया बिहार राज्य का एक जिला है, इसके एक ओर है नेपाल; दूसरी ओर पाकिस्तान और पश्चिमी बंगाल । विभिन्न सीमा-रेखाओं से इसकी बनावट मुकम्मल हो जाती है जब हम दक्खिन में संथाल परगना और पश्चिम में मिथिला की सीमा रेखायें खींच देते हैं। मैंने इसके एक हिस्से के एक ही गाँव को पिछड़े गाँवों का प्रतीक मानकर - इस उपन्यास का कथा-क्षेत्र बनाया ।” पूर्णिया का यह एक हिस्सा-गाँव है-मेरीगंज जिसको उपन्यासकार ने भूमिका 'मैला आँचल' कहा है। “मैला आँचल का शाब्दिक अर्थ है-गन्दा आँचल, लाक्षणिक अर्थ है मैला प्रान्त या प्रदेश।” मैला इसलिए कि यह प्रान्त अनेकानेक दृष्टि-बिन्दुओं से अन्य प्रान्तों की अपेक्षा अधिक पिछड़ा हुआ है। इसी पिछड़ेपन के आधार पर उपन्यासकार ने उपन्यास का नामकरण किया है। यह नाम उपन्यासकार ने कविवर सुमित्रानन्दन पन्त की 'भारत माता' कविता की निम्न पंक्तियों से लिया है-
'भारत माता ग्राम वासिनी !
खेतों में फला है श्यामल
धूल भरा मैला आँचल सार'
'आँचल' शब्द को विद्वानों ने 'अँचल' और 'आँचल' दोनों अर्थों में ग्रहण किया है। इसी के आधार पर यह भी कहा गया है, 'वैसे तो आँचल की अपेक्षा 'अचल' शब्द होना चाहिए था क्योंकि 'प्रान्त' अर्थ में लक्षणानुसार अँचल शब्द ही रूढ़ हो गया है, आँचल नहीं। इतना ही नहीं, अँचल शब्द (संज्ञा) में ही सम्बन्धार्थी 'इक' तद्धित प्रत्यक्ष लगाकर 'आँचलिक' शब्द 'धारा' संज्ञा का विश्लेषण बनाया गया है। यह विश्लेषण 'आँचल' से भी बन सकता है किन्तु प्रान्त के लिए 'आँचल' की शब्द रूढ़ि नहीं है।' रेणुजी ने 'मैला आँचल' को अभिधाय के साथ-साथ लाक्षणिक प्रतिकार्थक में भी ग्रहण किया है 'उदाहरण के लिए कथा की मुख्य नारी-पात्रा कमली से उसकी माँ कौमार्य या नारीत्व अथवा सतीत्व को बनाए रखने की सलाह देते हुए कहती है-"हत भागिन ! आँचल को मैला मत करना बेटी ! दुहाई ! इसी प्रकार डॉ. प्रशान्त का कथन है, ' साधना करूँगा, ग्रामवासिनी भारत माता के मैले आँचल तले ? कम से कम एक गाँव के कुछ प्राणियों के मुरझाए होठों पर मुस्काराहट लौटा सकूँ इस प्रकार 'मैला आँचल' शब्द बहुअर्थी है और अचल की अपेक्षा अधिक सटीक तथा सार्थक है।"
'मैला आँचल' में किसी एक व्यक्ति या वर्ग की कथा नहीं है वरन् इसमें उपन्यासकार ने पूरे अंचल की कथा का चित्रण किया है। इस कथा की विविध परतें हैं। विभिन्न स्तर और पक्ष हैं। 'ये तमाम स्तर और पक्ष इस प्रकार कितने ही भिन्न-भिन्न दृष्टि बिन्दुओं से दिखाए गए हैं कि जीवन एक साथ कई-कई किस्मों में हमारे समक्ष प्रस्तुत होता है, बहुत कुछ चलचित्र की भाँति समग्र होकर भी और अलग-अलग भी, दूर से भी और समीप से भी।' उपन्यासकार अंचल के समग्र जीवन को गहनता, विस्तार और आत्मीयता से अंकित करता है। इस प्रकार उपन्यास में पूरी कथा में मैला आँचल ही उजागर किया गया मिलता है। जहाँ तक प्रश्न है पात्रों का,“मैला आँचल के सभी पात्र इस मैले आँचल की गन्दगी को दूर करने में प्रयत्नशील हैं.. घटनाएँ तथा समस्त गाँव इस बात के प्रयत्न में पूर्णतया लीन दिखाई देते हैं कि इस गाँव के मैले को दूर कर इसे एक आदर्श गाँव के रूप में प्रदर्शित किया जा सके। परिणामस्वरूप भिन्न-भिन्न सेन्टरों का खुलना तथा अस्पताल का बनना और गाँव में युग-चेतना का प्रवेश सभी कुछ इस मैल को दूर करने के लिए ही आते हैं।'
सच तो यह है कि 'सन् 42 के बाद सन् 48 तक उस गाँव की स्थिति, संगठन, बोल-चाल, रहन-सहन व्यक्ति के मनोविकार, भारतव्यापी सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक आन्दोलनों को ग्रहण करने की उस अंचल की प्रतिक्रियाओं के संकलिति शब्द चित्रों का नाम 'मैला आँचल' है। जहाँ तक प्रश्न है नामकरण और उद्देश्य का पूर्णिया अंचल का अंकन उसके मैले घिनौने किन्तु वास्तविक रूपों का प्रस्तुतीकरण, फूल शूल, धूल-गुलाब, कीचड़-चन्दन, सुन्दरता-कुरुपता किसी से भी उपन्यासकार का दामन न बचाना और एकसाथ सबका अंकन करना, ग्राम्यांचल के पिछड़ेपन का प्रस्तुतीकरण आदि इसे बिहार से ही नहीं सम्पूर्ण भारत से सम्बन्धित कर देता है। रेणुजी ने जिस ग्रामजीवन का चित्रण किया है वह निःसन्देह पूर्णिया जिले का ही ग्राम है। किन्तु इसके साथ ही वह एक सांकेतिक अथवा प्रतीकात्मक अर्थ भी ध्वनित करता है। वह है-भारत के ग्रामों का विकासशील जीवन। स्थानीय सीमाओं के भीतर राष्ट्रीय प्रगति का निर्देशन। इस प्रकार कथा, पात्र, वातावरण उद्देश्य आदि सभी दृष्टियों से 'मैला आँचल' नाम एकदम सटीक, सार्थक और उचित है।
हिन्दी में इस नाम का कोई अन्य उपन्यास नहीं है। अतएव यह नाम एकदम मौलिक है। साथ ही साथ सरल और केवल दो शब्दों का होने से संक्षिप्त भी है। इसको पढ़ते ही क्या, किसका, क्यों आदि के प्रश्न पाठक के मन में उठने लगते हैं। इस कारण यह जिज्ञासावर्धक भी है। कुल मिलाकर कह सकते हैं कि 'मैला आँचल' उपन्यास नामकरण की दृष्टि से एकदम गुणयुक्त है और यह नाम एकदम उचित है।
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