निराला वैविध्य के कवि है निराला के काव्य की भावभूमि व्यापक और विस्तृत है। प्रकृति, राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, प्रेम, सौन्दर्य, जनसाधारण के प्रति असीम कर
निराला वैविध्य के कवि है
निराला के काव्य की भावभूमि व्यापक और विस्तृत है। प्रकृति, राष्ट्रीयता, देश-प्रेम, प्रेम, सौन्दर्य, जनसाधारण के प्रति असीम करुणा, प्रीति एवं सहानुभूति, इतिहास-पुरुषों का पावन स्मरण, अध्यात्म-दर्शन, चुभते हुए यथार्थपरक व्यंग्य आदि सब-कुछ उनकी लेखनी के विषय बने हैं। उन्होंने प्रबन्धात्मक लम्बी कविताएँ लिखी हैं तो मुक्तक-गीत भी। संवेदना के साथ शोकगीत भी। कभी सहज, सरल, बोधगम्य भाषा का प्रयोग किया तो कभी तत्सम-प्रधान, समास-बहुला प्रांजल भाषा का। तात्पर्य यह कि वे वैविध्य के कवि हैं, और यह विविधता उनके काव्य में सर्वत्र दिखायी देती है। उसका क्रमिक अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है :
प्रकृति प्रेम
निराला की प्रकृति-चित्रण से सम्बन्धित कविताओं की संख्या शताधिक है। प्रकृति के प्रति उनके मन में अतीव आकर्षण है। प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण उनकी कविताओं में प्राप्त होता हे। उसके सहज सौन्दर्य से वे अभिभूत दिखायी देते हैं। प्रकृति के ऊपर नारीत्व का आरोप करके उसके कोमल-मनोरम रूपों का हृदयहारी चित्रण उन्होंने किया है । 'सन्ध्या-सुन्दरी' कविता का उदाहरण द्रष्टव्य है :
'दिवसावसान का समय
मेघमय आसमान से उतर रही है,
वह सन्ध्या-सुन्दरी परी -सी धीरे-धीरे-धीरे ।'
राष्ट्रीयता एवं देशप्रेम
इस देश के स्वर्णिम अतीत एवं उसकी गरिमामयी संस्कृति के प्रति निराला के मन में बड़ा सम्मान है। उनमें पराधीनता के प्रति वितृष्णा है। अपनी कविताओं के माध्यम से उन्होंने देश के लिए प्राणों को उत्सर्ग कर यश अर्जित करने की प्रेरणा और प्रोत्साहन दिया है। राष्ट्रीयता से सम्बन्धित उनके गीतों में सर्वत्र आत्म-जागृति, पौरुषप्रदर्शन और अनवरत संघर्ष करते रहने के महत्त्वपूर्ण उद्बोधन हैं।
कल्पनाप्रियता
कल्पना समस्त छायावादी कवियों का प्रिय उपकरण है। इस सत्य को स्वीकार करते हुए पन्त जी ने कहा है, 'मैं कल्पना के सत्य को सबसे बड़ा सत्य मानता हूँ और इसे ईश्वरीय प्रतिभा का भी अंश मानता हूँ।' निराला भी इस भावना से कदापि परे नहीं हैं। सुकुमार कल्पनाओं से उनका काव्य भरा पड़ा है-
'याद आया उपवन विदेह का, प्रथम स्नेह का लतान्तराल-मिलन
नयनों का नयनों से गोपन, प्रिय सम्भाषण,
डोलते द्रुमदल किसलय, झरते पराग समुदय,
गाते खग नव जीवन-परिचय, तरुमलय-वलय ।'
सौन्दर्य चित्रण
निराला के सौन्दर्यचित्रण की मूल विशेषता आत्मिक सौन्दर्य का चित्रण है। शारीरिक मांसलता, मोहकता, रूप-चमत्कार, कटाक्षपात आदि का चित्रण उन्होंने नहीं के बराबर किया है। यदि कहीं मांसलता है भी तो वह शारीरिक लावण्य-भार तथा हृदय की सात्त्विक भावनाओं से युक्त होकर वीणा पर मालकोश की तरह झंकृत होता है-
'कर पार कुञ्ज- तारुण्य सुधर, आयी लावण्य भार थर-थर,
काँपा कोमलता पर सस्वर, ज्यों मालकोश नव वीणा पर।'
रहस्यवाद
आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने निराला जी के काव्य का मेरुदण्ड ही रहस्यवाद को माना है जिसका सीधा-सा अर्थ यही है कि उनकी अलक्षित प्रेम-भावना अलक्षित प्रिय के प्रति अपार जिज्ञासाओं का सन्धान करती है। यही प्रेम अपनी भाव-विह्वल व्याकुलता में दर्शन की भूमि पर रहस्यवाद का नियामक है। उनकी रहस्यभावना का श्रेष्ठ रूप उनके 'मौन चली हार' नामक गीत में देखा जा सकता है जिसमें महा अभिसार-पथ पर अग्रसर नायिका के हृदय में नारी-सुलभ लज्जा के साथ प्रिय के चरणों में अनन्य अनुरक्ति और शरणागत की भावना विद्यमान है।
शोषितों के प्रति सहानुभूति
छायावादी कवियों में सबसे पहले निराला ने ही मुखर रूप से शोषितों-पीड़ितों के प्रति अपनी सहानुभूति प्रदर्शित की। वे समतामूलक दृष्टि के पक्षधर थे। वे गरीबों, वंचितों एवं सर्वहारा को उबारने हेतु ईश्वर से भी प्रार्थना करते हैं:
'दलित जन पर करो करुणा ।
दीनता पर उतर आये प्रभु तुम्हारी कृपा अरुणा ।'
रूढ़ियों का विरोध
चूँकि निराला आधुनिक वैज्ञानिक दृष्टि से सम्पन्न थे इसलिए उन्हें किसी प्रकार की रूढ़ि में विश्वास नहीं था। अपनी जन्मकुण्डली देखकर उनके मन में ऐसी प्रतिक्रिया हुई कि ज्योतिषियों द्वारा निर्मित कुण्डली में विश्वास नहीं रहा, उन्हें उस पर हँसी आती है :
'पढ़ लिखे हुए शुभ दो विवाह,
हँसता था मन में बढ़ी चाह, खण्डित करने को भाग्य अंक,
देखा भविष्य के प्रति अशंक ।'
आत्माभिव्यक्ति
यों तो सम्पूर्ण छायावादी कवियों ने अपने-आप को कविताओं में व्यक्त किया है, लेकिन निराला की बात ही कुछ और है। जीवन की सुख-दुःखात्मक अनुभूतियों की अभिव्यक्ति प्रायः उनकी कविताओं में मिल जाती है। एक उदाहरण द्रष्टव्य है-
'दुःख ही जीवन की कथा रही,
क्या कहूँ आज जो नहीं कही।
प्रतीक विधान
निराला के काव्य में प्रकृति-प्रतीकों की तुलना में सांस्कृतिक, ऐतिहासिक और यौगिक-प्रतीकों का आधिक्य है। 'राम की शक्ति-पूजा' में राम के हृदय की निराशा, विवशता एवं किंकर्त्तव्यविमूढ़ता का एक प्रभावी प्रतीकात्मक बिम्ब दर्शनीय है:
'है अमा निशा उगलता गगन घन अन्धकार ।
खो रहा दिशा का ज्ञान, स्तब्ध है पवन चार।
अप्रतिहत गरज रहा पीछे अम्बुधि विशाल,
भूधर ज्यों ध्यानमग्न, केवल जलती मशाल ।'
बिम्ब-विधान
निराला ने अनेक प्रकार के बिम्बों का प्रयोग इस तरह किया है कि वर्णित वस्तु पाठक या श्रोता के सम्मुख समग्रतः रूपायित हो जाती है। 'प्यारी मुस्कान' के शृंखलाबद्ध बिम्बविधान में 'मृदु सुगन्ध-सी' में घ्राणबिम्ब 'कोमल दल फूलों' में स्पर्श- बिम्ब, 'शशि-किरणों की-सी' में चाक्षुष बिम्ब आदि स्पष्ट देखे जा सकते हैं :
'मृदु सुगन्ध-सी कोमल दल फूलों की,
शशि-किरणों की-सी यह प्यारी मुसकान ।
स्वच्छन्द गान - सी मुक्त, वायु-सी चंचल,
खोई स्मृति की फिर आयी-सी पहचान।'
गीतात्मकता
रवीन्द्रनाथ टैगोर से प्रभावित होने के कारण निराला की कविताओं में गीतात्मकता अत्यन्त सहजता के साथ उपस्थित है। उनकी 'गीतिका' गीतात्मक होने के कारण 'यथानाम तथागुण' हो गयी है।
मुक्तछन्द योजना
हिन्दी कविता में मुक्त छन्द के आविष्कार का श्रेय निराला को ही है। लगभग एक हजार वर्षों की बँधी हुई हिन्दी - छन्द-परम्परा को तोड़कर मुक्त छन्दों का प्रयोग करना निस्सन्देह साहसिक और क्रान्तिकारी कार्य है। उनकी पहली कविता 'जुही की कली' मुक्त छन्द में ही है :
'विजन - वन - वल्लरी पर,
सोती थी सुहाग-भरी,
स्नेह-स्वप्न-मग्न अमल-कोमल - तनु तरुणी जुही की कली
दृग बन्द किये - शिथिल, पत्रांक में'
समग्रतः अपनी व्यापक वस्तु-योजना, स्वच्छन्द दृष्टिकोण तथा उदात्त जीवन-दर्शन एवं तदनुसार विभिन्न काव्य-रूपों और शैलियों के प्रयोगों द्वारा निराला जी ने न केवल अपने काव्य में, वरन् आधुनिक साहित्य में अपनी शक्ति और सामर्थ्य के नये शिखरों का निर्माण किया है। आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी के शब्दों में कहें तो हम कह सकते हैं कि 'वे नख से शिख तक मौलिक हैं। वे किसी से हू-ब-हू नहीं मिलते। उनका निराला नाम बिलकुल सार्थक है।'
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