राजकीय सेवाओं में आरक्षण आरक्षण वह कमजोर वैशाखी है. जिसके सहारे अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और तथाकथित अन्य पिछड़े वर्गों के लोग जीवन
राजकीय सेवाओं में आरक्षण
आरक्षण वह कमजोर वैशाखी है. जिसके सहारे अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और तथाकथित अन्य पिछड़े वर्गों के लोग जीवन रूपी माउण्ट एवरेस्ट पर पहुँचकर अपनी कामयाबी का झण्डा फहराना चाहते हैं. सामाजिक विकास की प्रक्रिया में जब कोई जाति आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़ जाती है, तो उन्हें राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर सकारात्मक विधि का उपयोग किया जाता रहा है.
भारत में सर्वप्रथम आरक्षण अंग्रेजों ने 1909 ई. में मुसलमानों को प्रदत्त किया. उस समय अंग्रेजों ने भारत में 'फूट डालो, शासन करों' की नीति अपनाई थी जिसके तहत उसने मुसलमानों को आरक्षण प्रदान कर हिन्दू-मुस्लिम एकता में दरार उत्पन्न करने का प्रयास किया. इसके बाद 1919 ई. में मुसलमानों, ईसाइयों तथा सिखों के लिए कुछ सीटों का आरक्षण किया गया. इसके बाद पुनः 1932 ई. में 'पूना पैक्ट' के तहत डॉ. भीमराव अम्बेडकर एवं महात्मा गांधी के बीच हुई वार्तालाप में अम्बेडकर ने कहा कि "दलितों को हिन्दुओं से अलग किया जाए." जिस पर गांधीजी ने अपनी असहमति दिखाई. उन्होंने कहा कि "दलितों को कुछ सीटों पर आरक्षण प्रदान किया जाएगा."
आधुनिक अर्थप्रधान और प्रतिभा की कद्र न किए जाने वाले युग में आरक्षण का कोई खास महत्व तो नहीं है, परन्तु कुछ जगहों पर आरक्षण न रहने से विकास कार्य उतनी तेजी से नहीं हो पाता, जितनी तेजी से इसे होना चाहिए था. ऐसी जगहों पर आरक्षण प्रदान करना ठीक समझा जाता है, परन्तु प्रश्न यह उठता है कि आरक्षण किस. क्षेत्र में किसे और कितना प्रदान किया जाएं ?
अभी मुसलमानों को अल्पसंख्यक कह कर उन्हें आरक्षण प्रदान करने की बात की जा रही है, जिनकी जनसंख्या सम्पूर्ण भारतवर्ष की जनसंख्या का 17% है. इसके बाद आरक्षण की श्रेणी में हरिजन, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, पिछड़े वर्ग, ईसाइयों तथा सिखों का स्थान आता है. यदि आरक्षण प्राप्त श्रेणी वाले लोगों की जनसंख्या का योग किया जाए, तो वे लोग भारत में बहुसंख्यक हो जाएंगे और जिन्हें आरक्षण प्राप्त नहीं है वे लोग (जैसे-भूमिहार, ब्राह्मण, राजपूत आदि) अल्पसंख्यकों की श्रेणी में आ जाएंगे. एक तरफ तो यह कहा जा रहा है कि अल्पसंख्यकों को आरक्षण प्रदान किया जाए, परन्तु वही नियम पूर्णतः विपरीत होता नजर आ रहा है. आज भारत में 'वोट बैंक' को आरक्षित किया जा रहा है. भारत एक लोकतांत्रिक देश है जिसमें बहुमत से सरकार का गठन होता है और बहुमत पाने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों द्वारा अनेक प्रकार के प्रलोभन भी दिए जाते हैं, जिसमें एक खास प्रकार का प्रलोभन आरक्षण भी है.
आरक्षण उस समय एक मुद्दा बनकर आया जब वी. पी. मण्डल की अध्यक्षता में गठित आयोग की सिफारिशों को अगस्त 1990 ई. में वी. पी. सिंह द्वारा लागू किया गया. इसके विरोध में कुछ जगहों पर नवयुवकों के आत्मदाह भी हुए. कहीं-कहीं तोड़-फोड़ और आगजनी जैसी अप्रिय घटनाएं भी हुईं. इन्हीं सब कारणों से विश्वनाथ प्रताप सिंह को प्रधानमंत्री की कुर्सी छोड़नी पड़ी. इसके बाद यह आग उस समय बुझी जब तत्कालीन प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिंह राव ने कहा कि "सवर्णों को आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर 10% का आरक्षण प्रदान किया जाएगा."
आरक्षण से व्यक्ति के व्यक्तित्व पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है. इससे योग्यता के मूल्यांकन में भी बहुत-सी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. किसी भी देश की सर्वांगीण उन्नति के लिए उसके सरकारी कर्मचारियों को सुयोग्य होना चाहिए. यदि आरक्षण प्रदान किया जा रहा है, तो आप व्यर्थ ही योग्य कर्मचारियों की उम्मीद में बैठे रहेंगे. आज मध्य प्रदेश तथा महाराष्ट्र में मेडिकल तथा इंजीनियरिंग की पढ़ाई में आरक्षण के चलते तथाकथित पिछड़ी जाति के एकदम कम अंक पाने वाले अभ्यर्थियों का दाखिला हुआ है, जबकि अधिक अंक पाने वाले तथाकथित अगड़ी जातियों के अभ्यर्थियों का दाखिला नहीं हो पाया. बड़े-बड़े नेता अपनी संतानों के लिए फर्जी जाति प्रमाण-पत्र दिलाकर इनमें प्रवेश दिलाने के लिए संलग्न पाए गए. इससे आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं कि आरक्षण कितनी बड़ी सीढ़ी है, जिस पर चढ़कर लोग बड़े-से-बड़े महलों पर बिना झिझक आसानी से चढ जाना चाहते हैं. आज आरक्षण के चलते अयोग्य लोग राजकीय सेवाओं में उच्च स्थानों पर आ रहे हैं और प्रतिभावान लोग बेरोजगारी का शिकार होकर दर-दर की ठोकरें खाकर अपना जीवन व्यतीत करने को विवश हैं. इस विवशता का एकमात्र कारण यही है कि उनका जन्म एक विशेष जाति में हुआ है.
आरक्षण के कारण ही आज हमारे देश में समाज का जातिगत बँटवारा हो गया है जिसमें आजकल के स्वार्थी नेता राजनीतिक लाभ उठा रहे हैं. वे पिछड़ों को अपना 'वोट बैंक' समझकर घटिया राजनीति कर अपना उल्लू सीधा कर रहे हैं.आरक्षण की नीति के प्रतिकूल रूप से प्रभावित होने वाले मेधावी लोगों का भी राष्ट्र के निर्माण और विकास में योगदान लिया जाए, तो मेरा पूर्ण विश्वास है कि भारत विश्व के किसी भी राष्ट्र से पिछड़ा नहीं रहेगा तथा पूरी तरह से विकसित हो जाएगा.
आज जिन्हें राजकीय सेवाओं में स्थान नहीं मिलता. वे खिन्न होकर अपने 'स्वत्व' को दबा देते हैं और राष्ट्र निर्माण कार्य से विमुख होकर राष्ट्र विरोधी विध्वंसात्मक कार्यों में लिप्त हो जाते हैं.
आरक्षण की चाह उन्हीं लोगों को रहती है, जो अपने को असमर्थ एवं अक्षम पाते हैं. ऐसे में आरक्षण इन लोगों के लिए रामबाण की तरह काम करता है. आजकल पुरुषों से कदम-से-कदम मिलाकर चलने का दंभ भरने वाली महिलाएं भी आरक्षण की माँग जोर- शोर से कर रही हैं. आखिर महिलाएं ऐसी माँगें क्यों नहीं करें? वे देख रही हैं कि आरक्षण रूपी वैशाखी की बदौलत लोग राजकीय सेवाओं में ऊँचे-से-ऊँचे पदों पर आसीन हैं. सुख किसे नहीं भाता ? एक तरफ कहा जा रहा है कि पुरुष एवं महिलाएं कदम-से- कदम मिलाकर अपना कार्य सम्पादित करें. वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों को आरक्षण प्रदान किया जाता है जो प्रासंगिक नहीं लगता है.
समस्त भारतवासी एक ही माता की संतान है, लेकिन एक ही माता की संतान होते हुए भी कोई आरक्षण पाता है, तो कोई आरक्षण की भेदभावपूर्ण नीति के चलते बेरोजगारी जैसी समस्या का सामना करता है.
दुर्जनः परिहर्तव्यो विद्यायालंकृतोऽपि सन् ।
मणिना भूषितः सर्पः किमसौ न भयङ्करः ॥
आरक्षण मणि से आभूषित उस सर्प के समान है, जिसमें गुण रहते हुए भी उससे ज्यादा अवगुण हैं. इस आभूषित सर्प को खत्म किया जाए.आइए हम सब आरक्षण जैसी वैशाखी को छोड़कर अपने पैरों पर खड़ा होने का संकल्प करें.
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