सारा आकाश उपन्यास की तात्विक समीक्षा राजेंद्र यादव निम्न मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार का चित्रण किया गया है। एक ऐसा परिवार जिसकी समस्याओं का कोई अन्त नह
सारा आकाश उपन्यास की तात्विक समीक्षा | राजेंद्र यादव
राजेंद्र यादव का उपन्यास सारा आकाश एक ऐसा कृति है जो पाठकों को गहरे सामाजिक और मनोवैज्ञानिक आयामों में ले जाता है। यह उपन्यास मध्यम वर्ग के भारतीय समाज के जीवन, सामाजिक परिवर्तनों, और मानवीय संघर्षों को बड़ी संवेदनशीलता से चित्रित करता है।
श्री राजेन्द्र यादव का उपन्यास 'सारा आकाश' छठे दशक का चर्चित और यथार्थवादी उपन्यास है। इस उपन्यास में एक निम्न मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार का चित्रण किया गया है। एक ऐसा परिवार जिसकी समस्याओं का कोई अन्त नहीं है। प्रत्येक उपन्यास की आलोचना कुछ तत्वों के आधार पर की जाती है। ये तत्व इस प्रकार हैं-
- कथावस्तु
- पात्र एवं चरित्र-चित्रण
- देशकाल एवं वातावरण
- संवाद योजना
- भाषा-शैली
- उद्देश्य
कथावस्तु
इस उपन्यास की कथा एक संयुक्त परिवार की कथा है, जिसके मुखिया रिटायर्ड और पेंशन प्राप्त बाबूजी हैं। इस परिवार में कुल सदस्य हैं, जिनके भरण-पोषण, पढ़ाई-लिखाई आदि का पूरा खर्चा केवल दो सदस्यों पर है। बाबूजी की पच्चीस रुपए पेंशन के अतिरिक्त उनका बड़ा बेटा धीरज सौ रुपए की नौकरी करता है। इस प्रकार कुल एक सौ पच्चीस रुपए में घर का खर्चा चलाना बहुत मुश्किल काम है। समर इण्टर का विद्यार्थी है और उसकी शादी उसकी मर्जी के खिलाफ कर दी गई है। वह प्रभा को अहंकारी समझकर प्रभा से एक साल तक बात नहीं करता। उनके सम्बन्धों को भाभी ने और खराब कर दिया। पति की उपेक्षा, सास और जेठानी के ताने और घर के काम के बोझ तले दबी प्रभा की दशा दिनोंदिन दयनीय होती जा रही थी। कुछ समय बाद प्रभा और समर के बीच की दूरियाँ खत्म हो जाती हैं। मजबूर होकर समर नौकरी करके प्रभा की जरूरतों को पूरा करना चाहता है, परन्तु यह नौकरी भी कुछ दिन बाद छूट जाती है और उसे अनेक मुसीबतों का सामना करना पड़ता है। मित्र दिवाकर के यहाँ समर की भेंट शिरीष बाबू से होती है जो भारतीय संस्कृति, नारी की स्थिति, संयुक्त परिवार आदि विभिन्न विषयों पर अपने विचारों से समर को प्रभावित करते हैं। समर की बहन मुन्नी पति के अत्याचारों को सहन करती है और अन्त में उसे मृत्यु प्राप्त होती है। बेरोजगार समर को बाबूजी-पिटाई करके घर से निकाल देते हैं। यही उपन्यास का कथानक है जिसमें वही घटनाएँ हैं जो कहानी को उसके उद्देश्य तक पहुँचाती हैं। कथानक की दृष्टि से यह एक सफल उपन्यास है।
पात्र एवं चरित्र चित्रण
इस उपन्यास के प्रमुख पात्र समर और प्रभा हैं। इनकी कहानी को गति प्रदान करने के लिए अन्य पात्रों की रचना की गई है। समर महत्वाकांक्षी युवक है जो उच्च शिक्षा प्राप्त कर आगे बढ़ना चाहता है। पत्नी प्रभा भी शिक्षित और आधुनिक विचारधारा की युवती है। समर की भाभी परिवार में षड्यन्त्र रचती रहती है। एक अन्य पात्र शिरीष बाबू के विचार समर को प्रभावित करते हैं।
समर के पिता बाबूजी पुरातन पंथी, चिड़चिड़े और क्रोधी स्वभाव के व्यक्ति हैं जो अपना जीवन आर्थिक अभावों में काट रहे हैं। समर और बाबूजी के विचारों में बहुत अन्तर है, इसलिए वह समर पर हाथ तक उठा देते हैं। समर की माँ अम्मा जी एक परम्परागत सास की तरह प्रभा से हमेशा कठोर व्यवहार करती हैं।
उपन्यास के अन्य पात्रों में धीरज, अमर, कुँवर हैं जो समर के भाई हैं। मुन्नी समर की बहन है। दिवाकर समर का मित्र है और किरण उसकी पत्नी और शिरीष दिवाकर का परिचित है। इन्हीं पात्रों से कथानक का निर्माण किया गया है। इस प्रकार पात्र एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से यह एक सफल उपन्यास है।
देशकाल एवं वातावरण
सारा आकाश उपन्यास की रचना छठे दशक के प्रारम्भ में की गई है। इसमें 1950-51 के देशकाल का वर्णन किया गया है। उपन्यास में समर को उत्तर भारत के शहर आगरा का निवासी दर्शाया गया है, इसलिए इसमें यहाँ के दो रेलवे स्टेशनों राजामंडी एवं आगरा कैंट का उल्लेख किया गया है।
इसके अतिरिक्त उपन्यास में मध्यमवर्गीय परिवारों की आर्थिक स्थिति, समाज और परिवार में स्त्रियों की दशा, पर्दा प्रथा, कम आयु में विवाह, दहेज प्रथा आदि का वास्तविक चित्रण किया गया है। इस प्रकार देशकाल एवं वातावरण की दृष्टि से भी 'सारा आकाश' एक सफल उपन्यास है।
संवाद योजना
उपन्यास में जब दो पात्र आपस में बातचीत करते हैं तो लेखक संवादों की रचना करता है। संवाद पात्रों के विचारों और भावनाओं को प्रगट करते हैं। उपन्यास को गतिवान और रोचक बनाने का काम संवाद ही करते हैं।ज्यादा बड़े संवाद उपन्यास को उबाऊ बना देते हैं। इस दृष्टि से देखा जाए तो 'सारा आकाश' के संवाद संक्षिप्त हैं और भावों को व्यक्त करने में पूरी तरह सफल हैं। संवाद की दृष्टि से 'सारा आकाश' एक सफल उपन्यास है।
भाषा शैली
लेखक अपनी प्रत्येक रचना को जनसाधारण के लिए लिखता है। अतः यह आवश्यक है कि वह अपनी रचनाओं में सरल और आम बोलचाल की भाषा का प्रयोग करे। इस दृष्टि से यदि देखा जाए तो 'सारा आकाश' उपन्यास की भाषा सरल, प्रवाहपूर्ण और पात्रानुकूल है। इसमें उर्दू एवं अंग्रेजी भाषा के शब्दों का आवश्यकतानुसार प्रयोग किया गया है। संस्कृत के शब्द जो जन सामान्य द्वारा प्रयोग किए जाते हैं जैसे—साधना, प्रभाव, अभिप्राय आदि भी उपन्यास की भाषा के अंग हैं।
राजेन्द्र यादव जी ने पात्रों और विषय को ध्यान में रखते हुए 'सारा आकाश' में अनेक शैलियों का प्रयोग किया है। इनमें विवरणात्मक, वर्णनात्मक, डायरी आदि विभिन्न शैलियों का प्रयोग प्रमुख है। इस प्रकार हम यह कह सकते हैं कि भाषा-शैली की दृष्टि से भी यह एक सफल उपन्यास है।
उद्देश्य
सारा आकाश उपन्यास की रचना राजेन्द्र यादव जी ने निम्नलिखित उद्देश्यों को लेकर की है -
- बेरोजगार युवकों के संघर्षमय जीवन का चित्रण ।
- संयुक्त परिवार में उत्पन्न होने वाली समस्याओं का वर्णन ।
- समाज में स्त्री की स्थिति का चित्रण ।
- पत्नी और पति में सामंजस्य की समस्या ।
- दहेज प्रथा के बुरे परिणामों का चित्रण ।
- भारतीय एवं पश्चिमी संस्कृति की समस्या ।
उपर्युक्त उद्देश्यों को ध्यान में रखते हुए ही 'सारा आकाश' की रचना की गई है। ये उद्देश्य मुख्य कथा और अन्य कथाओं के द्वारा पूरे किए गए हैं। युवकों की बेरोजगारी से उत्पन्न समस्या को समर, दहेज की समस्या को मुन्नी, दो देशों की संस्कृतियों की तुलना शिरीष, स्त्रियों की दशा का वर्णन प्रभा और मुन्नी के द्वारा प्रस्तुत किया गया है। अतः कहा जा सकता है कि लेखक अपने उद्देश्य में पूर्णत: सफल हुआ है। 60-65 वर्ष पूर्व की ये समस्याएँ आज भी हमारे भारतीय समाज में आसानी से देखी जा सकती हैं। पूरे विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि उपन्यास के तत्वों के आधार पर 'सारा आकाश' एक सफल उपन्यास है।
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