आपका बंटी उपन्यास का सारांश मन्नू भंडारी मन्नू भण्डारी द्वारा रचित 'आपका बंटी' एक प्रसिद्ध उपन्यास है । आपका बंटी उपन्यास का प्रकाशन वर्ष सन 1971 ह
आपका बंटी उपन्यास का सारांश | मन्नू भंडारी
मन्नू भण्डारी द्वारा रचित 'आपका बंटी' एक प्रसिद्ध उपन्यास है।आपका बंटी उपन्यास का प्रकाशन वर्ष सन 1971 है।इसमें एक बालक की मानसिकता का सुन्दर चित्रण किया गया है। विशेष रूप से असामान्य बालक की मनोवैज्ञानिकता का परिचय देने के लिए इस उपन्यास की रचना की गयी है । इस उपन्यास के प्रमुख पात्र 'अजय' और 'शकुन' हैं, जो इस बच्चे (बंटी) के जन्म के कुछ समय पश्चात् ही अलग हो गये थे । दोनों ही पर्याप्त उच्च शिक्षा प्राप्त थे, अतः उनमें अहं की टकराहट हुई। इसने उनके दाम्पत्य सम्बन्धों को समाप्त कर दिया। अजय कलकत्ता चला जाता है और वहाँ मीरा से विवाह कर लेता है। उससे एक सन्तान का जन्म भी हो जाता है । इधर बंटी के तीन-चार वर्ष का होने पर कथा का प्रारम्भ होता है । उसकी माता शकुन एक कॉलेज की प्रिन्सिपल है और कॉलेज में ही उसे रहने को एक बँगला भी मिला है । उस बँगले में बंटी उस समय अकेला रह जाता है, जब उसकी माता शकुन कॉलेज चली जाती है । माँ की अनुपस्थिति में बंटी न जाने किस प्रकार की विचित्र बातें सोचता रहता है ।घर में उसकी देखभाल करने के लिए फूफी नाम की एक धाय माँ है, जो बंटी को अपने बेटे से भी अधिक प्यार करती है।
माँ-बेटे दोनों पूरी गर्मियों की छुट्टियों में कहीं बाहर नहीं गये । बंटी अपने पड़ोस के बच्चों से मिलने गया तो उसके सहपाठी बच्चों के माँ, बाप, भाई, बहन आदि ने उसके क साथ जिस प्रकार का व्यवहार किया उसकी बंटी पर गलत प्रतिक्रिया हुई। अपने बँगले में लॉन में माली के साथ बंटी पानी देता था और गुड़ाई करता था । कभी पत्तों पर पानी की धार छोड़कर उन्हें साफ करता था । कभी माँ-बेटे लॉन में पड़ी कुर्सियों पर बैठे चाय पी रहे होते थे, कभी रात में बंटी होम-वर्क कर रहा होता था । इस प्रकार की दैनिक घटनाओं के चित्रण में ही उपन्यास की कथा उलझी है । यदि कुछ उल्लेखनीय घटनाएँ हैं तो केवल ये कि बंटी की शैशवकाल से लेकर उसकी मम्मी (प्रिंसिपल शकुन) ने बंटी को इतने लाड़-प्यार से पाला है कि वह अपनी मम्मी का कॉलेज जाना भी सहन नहीं कर पाता है। वह स्कूल से लौटता है तो उसके बस्ते को फूफी रखती है, उसे खाने के लिए पूछती है तथा उसके कपड़े बदलवाती है। इस प्रकार वह स्वतन्त्र रूप से पल्लवित नहीं हो पाता । वह अपने आप कुछ नहीं कर पाता । वह यहाँ तक जिद करता है कि फूफी (सेविका) जब उसे नाश्ते में दूध-दलिया देती है तो वह कटोरी फेंक देता है और रोज-रोज दलिया देने पर लड़ बैठता है । मम्मी के लाड़-प्यार से वह दिन-ब-दिन बिगड़ता जा रहा था ।
बंटी के पिता (अजय बत्रा) कलकत्ते में अलग रहते थे। कभी दो-एक बार आये भी, तो कुछ खिलौने ले आये, उसे घुमा दिया, आइसक्रीम खिला दी. बस इतने से ही वह प्रसन्न हो जाता था । यदि वे उसकी ओर जरा-सा ध्यान न दें या बातें न करें तो बिगड़ उठता था । वह ऊपर से चाहे कुछ न कहे, परन्तु अन्दर ही अन्दर माता-पिता के प्रति विद्रोह की अग्नि भड़कने लगती थी। एक बार उसकी मम्मी ने ड्रेसिंग टेबिल पर जब शृंगार किया तो उसे बदली-बदली नजर आयीं । वह फूफी से जब लोक-कथाएँ सुनता था तो उन कथाओं की दुनिया में स्वयं को समझने लगता था । उन कहानियों में आने वाले राजा-रानी की, डायनों के रूप बदलने की, बंगाल के जादू आदि की बातें वह हमेशा सोचता रहता था । उसे डर भी लगता था और उपेक्षा करने पर विद्रोह तथा क्रोध की ज्वाला में जलने लगता था । कभी इस बात की चिन्ता में सहमा-सहमा रहता था कि उसकी मम्मी नाराज न हो जाएँ। एक दिन कलकत्ते से वकील चाचा अजय का यह सन्देश लेकर आये कि किस तारीख को कोर्ट में जाना होगा और तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर करने होंगे। पति-पत्नी की इसी बातचीत में एक वाक्य बंटी को सुनाई पड़ गया, जिसका अर्थ वह सही प्रकार समझ नहीं पाया, परन्तु जब उसने देखा कि उस दिन से उसकी मम्मी उदास रहने लगीं, तो वह इस चिन्ता में डूब गया कि आखिर क्या गड़बड़ है ? वह मन ही मन मम्मी से पूछना चाहता था, परन्तु डर के मारे नहीं पूछ पाता ।
इसी प्रकार एक बार जब उसके पापा आये, तो वह सर्किट हाउस में ठहरे और उसे अपने पास बुलाया । वह उन्हें जिद करके घर तक ले आया । बहुत थोड़ी देर रुकने पर जो अति संक्षिप्त वार्तालाप उन दोनों (बंटी के मम्मी-पापा) में हुआ, उसे भी बंटी ने आश्चर्य के रूप में लिया और मन में प्रत्येक क्षण यही सोचता रहा कि उसके पापा घर में क्यों नहीं रहते ? जब वह पड़ोस में जाता और पड़ोसी बच्चों के माता-पिता की बातचीत में वह कुछ संकेत अपने माता-पिता का पा जाता तो उन्हीं बातों के विषय में सोचता रहता था। वकील चाचा के आने पर वह बहुत प्रसन्न रहता था, उनके जाने पर चिन्तित हो जाता था। वकील चाचा के द्वारा डॉक्टर जोशी के बारे में कहना, मम्मी का कभी-कभी अकेले बाहर जाना भी उसे सहन नहीं होता था। डॉक्टर जोशी का कभी-कभी घर पर आना और चाय पीना भी उसे सहन नहीं होता था । इसके साथ ही कभी फूफी के द्वारा, कभी वकील चाचा के द्वारा यह कहने पर कि बंटी को अधिक लाड़-प्यार करना उसे बिगाड़ना है, शकुन की चिन्ता और अधिक बढ़ा जाता था । शकुन ने बंटी को अपने जीवन का सहारा बनाना चाहा, उसे मोह-ममता का केन्द्र बनाया ।
शकुन ने अपने कॉलेज की सहकर्मी टीचर्स को एक दिन घर पर चाय पर बुलाया और उनसे बातचीत की, इसकी भी प्रतिक्रिया बंटी पर अच्छी नहीं हुई। दीपा आंटी द्वारा बंटी की प्रशंसा करने पर भी वह भीतर से सन्तुष्ट नहीं हुआ, बल्कि समझने लगा कि ये टीचर्स उसकी मम्मी को प्रसन्न करने के लिए ही उसकी तारीफ कर रही हैं। उसके पापा एक बड़ी एयरगन लाये । जब वह गुस्से में आता तो अपने साथी बच्चों से लड़ता- 'झगड़ता और पेड़ पर चढ़कर धांय-धांय गोलियाँ दागने लगता । हाँ, घर के माली दादा से वह घुट-घुटकर अवश्य बातें करता था। एक दिन उसने छोटी आम की गुठली बो दी । जब आम का पौधा उग आया, तब वह बहुत प्रसन्न हुआ। उसके पापा आये तो उसने उन्हें अपना बगीचा दिखाया और कुछ फूल तोड़कर उन्हें दिये । जब से तलाक के कागजों पर हस्ताक्षर हुए, शकुन ने बहुत दिन तो उदास रहकर काट दिये, परन्तु वकील चाचा के द्वारा किये गये संकेत को उसने समझ लिया कि उसको नये सिरे से अपनी जिन्दगी व्यतीत करती है। इसीलिए डॉ. जोशी के साथ उसने उठना-बैठना बढ़ा लिया।
शकुन दो बच्चों के बाप डॉक्टर जोशी से शादी करना चाहती थी । वह यहाँ तक सोचने लगी कि यदि कॉलेज के मैनेजर ने चूँ-चपड़ की तो वह नौकरी ही छोड़ देगी । उधर बंटी पर इस शादी की गम्भीर प्रतिक्रिया हुई । वह उदास रहने लगा, पढ़ने में उसका मन नहीं लगता था । यही स्थिति फूफी (सेविका) की थी । उसने तो अपना आक्रोश व्यक्त करने के साथ-साथ नौकरी छोड़कर हरिद्वार जाने की प्रार्थना भी कर दी । फूफी अपनी बात पर इतनी अड़ गयी कि शकुन को उसका टिकट मँगाना पड़ा और आखिरकार फूफी भी बंटी को छोड़कर चली गयी। अब बंटी और अधिक उदास रहने लगा । वैसे तो कॉलेज के चपरासी थे, परन्तु जो स्नेह उसे फूफी से प्राप्त होता था, जितनी चिन्ता फूफी रखती थी, उतनी और कोई नहीं रख सकता। इसके बाद सबसे महत्वपूर्ण घटना सोमवार के दिन तब घटित हुई है, जब शकुन कॉलेज वाला बँगला छोड़कर डॉ. जोशी की कोठी में चली गयी ।
बंटी ने इसका कड़ा प्रतिरोध किया, क्योंकि उस कॉलेज वाले बँगले में उसने पेड़-पौधे लगाये थे, उसको अपनी मम्मी के पास सोने को मिलता था, उसके घर में और कोई होड़ करने वाला अथवा हिस्सा-बँटाने वाला बच्चा नहीं था, बंटी का ही एकछत्र राज्य था । उसका चप्पा-चप्पा बंटी का जाना-पहचाना था। डॉ. जोशी की कोठी दुल्हन की तरह सजायी गयी थी । उसमें उठने-बैठने के सामान, डबल-बैड आदि समस्त सुख-सुविधा की बहुमूल्य चीजें एकत्रित की गयी थीं। वहाँ जाकर शकुन तो उस घर में खप गयी, क्योंकि डॉ. जोशी की पत्नी मर चुकी थी, परन्तु बंटी उस घर में न खप सका । उसके मन में प्रत्येक छोटी-छोटी बात को लेकर उग्र आक्रोश भरने लगा । वह इन बातों को तुलना के साथ देखता और अपने कॉलेज वाले बँगले में अपनत्व अनुभव करता और यहाँ परायापन । डॉ. जोशी का कठोर व्यवहार उसे बिल्कुल पसन्द नहीं था। उनके बच्चों में छोटा लड़का था - अनि, उससे तो बात-बात पर बंटी का झगड़ा होने लगा, क्योंकि वह प्रत्येक बात पर झगड़ा करता अथवा अधिकार जताता था। डॉ. जोशी के बच्चों को स्कूल छोड़ने कार ही जाती और स्कूल से लौटने पर लाती, उसकी मम्मी भी कॉलेज तक कार में जाती और आती थीं । परन्तु वह अनुभव करता था कि उसे स्कूल की मोटर में जाना पड़ता है। इसी प्रकार की और भी अनेक बातें थीं जो उसे परायेपन का अनुभव कराती रहती थीं। डॉ. जोशी का लड़का कभी मेज पर न बंटी को किताबें लगाने देता था और न कुर्सी पर बैठने देता था।
एक दिन बंटी ने उसे ऐसी बातें करने पर पीट दिया, तो उसने बंटी को दाँतों से काट लिया। अब बंटी का मन विद्रोह करने पर उतारू हो गया। वह न स्कूल में मन लगाकर पढ़ पा रहा था और न सो पा रहा था, क्योंकि उसकी मम्मी डॉ. जोशी के साथ सोती थीं। बंटी ने जब एक दिन उन दोनों को नग्न अवस्था में देखा, तो उसके मन में भी काम-अपराध जाग्रत हुआ। वह बिस्तर में ही पेशाब करने लगा और उसमें हीनता की भावना भर गयी। उसके मन में डॉ. जोशी के प्रति ग्लानि बढ़ गयी। उसे पापा के साथ कलकत्ता भेज दिया गया । वहाँ अजनबी लोगों के बीच वह कसकर पापा की उँगली पकड़े रहता था। कलकत्ते में बहुत छोटा-सा घर था, वहाँ भीड़-भरी सड़कों को एक खिड़की पर बैठकर वह घण्टों देखता रहता था। वहाँ सौतली माँ मीरा का भी एक छोटा बच्चा था । वह बड़ा प्यारा था, परन्तु उसका आकर्षण भी बंटी को न बाँध पाया । पापा के घर से चले जाने पर बंटी उदास रहने लगा था । वह न किसी से बोलता, न कुछ खाता-पीता । पापा एक दिन जब उसे स्कूल में दाखिल कराने ले गये तो टेस्ट में वह किसी प्रश्न का उत्तर नहीं दे पाया। अन्त में परेशान होकर उसके पापा अजय उसे एक हॉस्टल में भर्ती करने लोकल ट्रेन से ले जाने लगे तो वह फूट-फूटकर रोने लगा और इसी दृश्य के साथ उपन्यास समाप्त हो गया।
इस प्रकार उपन्यास में यह चित्रित किया गया कि तलाकशुदा परिवारों में बच्चों की क्या दुर्दशा होती है ? मन्नू भण्डारी का यह उपन्यास बाल मनोविज्ञान का आश्रय लेकर तैयार किया गया है।
COMMENTS