आपका बंटी उपन्यास में बंटी का चरित्र चित्रण मन्नू भंडारी द्वारा रचित आपका बंटी ऐसा उपन्यास है, जिसमें बंटी चरित्र की ही प्रधानता है । इसी कारण इस
आपका बंटी उपन्यास में बंटी का चरित्र चित्रण
मन्नू भंडारी द्वारा रचित 'आपका बंटी' ऐसा उपन्यास है, जिसमें बंटी चरित्र की ही प्रधानता है । इसी कारण इस उपन्यास को चरित्र-चित्रण प्रधान उपन्यास माना जाता है । सम्पूर्ण उपन्यास में सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण चरित्र बंटी का ही है । लेखिका ने अपनी सम्पूर्ण एकाग्रता को बंटी के चरित्रांकन तक ही केन्द्रित रखा है, इसी कारण अन्य पात्रों को उभरने का अवसर प्राप्त नहीं हो पाया है । यद्यपि कुछ अन्य पात्र हैं जो थोड़ा-बहुत स्थान प्राप्त कर गये हैं। जैसे—शकुन, फूफी आदि, लेकिन वे भी बंटी पर ही आश्रित हैं अथवा बंटी के कारण ही सार्थक हैं। शकुन उसकी मम्मी है जो बंटी के बगैर अधूरी है, बंटी के बिना परेशान रहती हैं, प्रयास भी करती है कि बंटी को उसके पिता के पास भेजकर स्वतन्त्र जीवन व्यतीत करे, फिर भी प्रसन्न नहीं रह पाती । इसी प्रकार फूफी नामक धाय तो बंटी के भविष्य से इतनी अधिक बँधी हैं कि उसके अनिष्ट की आशंका के कारण ही वह नौकरी छोड़कर हरिद्वार जाकर वैराग्य ले लेती है । अन्य पात्रों में एक किनारे पर है-बंटी के पापा अजय बत्रा जो पूरे उपन्यास में दो-तीन बार ही उपस्थित हुए हैं। यही स्थिति वकील चाचा की है। मीरा (अजय की दूसरी पत्नी) तो एकदम अन्त में उपस्थित होती है तथा डॉ. जोशी थोड़े ही समय के लिए उपन्यास में बंटी के समानान्तर चलते हैं और पीछे छूट जाते हैं । इस प्रकार प्रस्तुत उपन्यास में बंटी के समान प्रमुखता उसकी मम्मी शकुन तक को प्राप्त नहीं हो पाती है। बंटी ही सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र है । इस पात्र के चरित्रांकन में लेखिका ने अत्यधिक रुचि ली है, तभी तो बंटी के चरित्र की सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को भी उजागर कर दिया गया है।
बंटी ही इस उपन्यास का नायक है क्योंकि वहीं इस उपन्यास में आदि से अन्त तक विद्यमान रहता है तथा उपन्यास की समस्त घटनाएँ उसी के चारों ओर घूमती हैं। समस्त घटनाओं के केन्द्र में बंटी ही रहा है। चूँकि यह दुःखान्त उपन्यास है, इस कारण उसको आलम्बन मानकर पाठक की करुण संवदेना और अधिक गहन होती चली जाती है। इस दृष्टि से उसे फल प्राप्ति अथवा चतुर्वर्ग प्राप्ति से वंचित अवश्य प्रदर्शित किया गया है। पात्रों में प्रमुखता के आधार पर प्रस्तुत उपन्यास का नायक बंटी को ही माना जाना चाहिए ।
चारित्रिक विशेषताएँ
बंटी की चारित्रिक विशेषताओं में विभिन्न प्रकार की बातें कही जा सकती हैं। वह एक भाग्यहीन बालक है जो जन्म लेते ही अपने बाप के प्यार से, उसके सतत सानिध्य से वंचित रहा है। अपनी माता के संरक्षण में पलने के कारण उसे स्नेह-वंचित बालक तो नहीं कहा जा सकता, परन्तु उसके लालन-पालन में यह कमी अवश्य रह गयी है कि उसकी माता (शकुन) ने उसे अति लाड़ में रखकर अथवा अपने बँगले तक ही सीमित रखकर उचित उन्मुक्त वातावरण में विकसित नहीं होने दिया । जिसके कारण अन्त में वह अपनी माता के लिए परेशानी का कारण बन जाता है । जो बालक शुरू में बहुत समझदार, होशियार, बुद्धिमान लगता है, वही बालक धीरे-धीरे परिस्थितिवश एक जिद्दी, क्रोधी, चिड़चिड़ा, निकम्मा, पढ़ने में रुचि न लेने वाला, सहमा-सहमा, डरा-डरा, अजनबीपन तथा एकाकीपन का शिकार हो गया । उसका जीवन एक अजीब शून्य के अतिरिक्त कुछ भी नहीं रह गया है।
उपन्यास लेखिका ने बंटी को एक अत्यन्त सभ्य एवं समझदार, बालक के रूप में उपस्थित किया है तथा परिस्थितियों के कारण धीरे-धीरे उसे दब्बू, सहमने वाला तथा एक व्यर्थ जीवन जीने वाला बालक बना दिया है। बंटी के चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं -
बहुत समझदार बालक
एक साधारण परिवार में जन्में बंटी में वे सभी गुण हैं, जो एक समझदार बालक में होने चाहिए। वह सभी काम व्यवस्थित ढंग से करता है, स्कूल जाता है । होमवर्क रुचि से करता है, बागबानी का कार्य भी बड़ी रुचि से करता है, उसकी मम्मी जब साथी टीचर्स को चाय-पार्टी पर बुलाती हैं तो घर को व्यवस्थित बनाने में सक्रिय भूमिका का निर्वाह करता है। यहाँ तक कि किचन में भी मम्मी की सहायता करता है । वह सभी प्रकार के सभ्य समायोजित व्यवहार (मैनर्स) समझता है। वह इतना समझदार भी है कि सदैव इस बात का बहुत ध्यान रखता है कि उसके व्यवहार से उसकी मम्मी को किसी प्रकार की परेशानी न हो। वह अपनी तमाम परिस्थितियों को समझने का प्रयास करता है। घर में क्या गड़बड़ है, उसका कारण जानना चाहता है । वह अपनी मम्मी को हर प्रकार से प्रसन्न रखना चाहता है । वह कक्षा में द्वितीय श्रेणी में उत्तीर्ण भी हुआ ।
धीरे धीरे परिवर्तन
बंटी के व्यक्तित्व में धीरे-धीरे परितर्वन आने लगता है । इसका एक कारण तो यह है कि वह भीतर ही भीतर बहुत-कुछ सोचता रहता है, उसके मन में जो कुछ विचार उठते रहते हैं, उन्हें मम्मी के भय से या उनके गुस्सा हो जाने की आशंका से व्यक्त नहीं करता । परिणाम यह होता है कि वह बार-बार अपने पापा को चिट्ठी लिखता है, परन्तु पूरी चिट्ठी एक बार भी नहीं लिख पाता । वह इतना जिद्दी हो गया है कि दलिये की कटोरी को कमरे में ही फेंक देता है। वह फूफी (घर की सेविका) को भी तंग करने लगा है। वह पड़ोस के लड़कों को मारने-पीटने लगा है। गुस्से में आकर वह अपनी एअर-गन से धांय धांय करता रहता है। जब देखो वह पेड़ पर चढ़ जाता है किन्तु अब धीरे-धीरे उसमें परिवर्तन आने लगा है। वह अपनी मम्मी से भी दूर होने लगा है और अब उन्हें तंग करने, दुखी रखने तथा रुलाने के लिए उल्टे-सीधे काम करने लगा है। बदला लेने की प्रवृत्ति का उसके व्यक्तित्व में विकास होने लगा है और अन्त में वह मम्मी की नाक में दम करने लगता है, जिससे परेशान होकर वे उसे अजय के पास कलकत्ता भेज देती हैं। इन सब परिवर्तनों के कारणों का भी उपन्यास- लेखिका ने विश्लेषण किया। जब उसे अपनी उपेक्षा होती दिखने लगी, उसकी मम्मी से समीपता कम होने लगी, उसकी देखभाल करने वाली फूफी छोड़कर चली गयी, उसका बँगला भी छूट गया और डॉक्टर जोशी की कोठी में वह परायेपन के व्यवहार को करने लगा तो उसमें इतना अधिक परिवर्तन हो गया है कि सारे परिवेश से कट जाने के कारण डरा-डरा, सहमा-सहमा रहने लगा । प्रतिक्षण एक भय या आतंक उसके मन में छाया रहता था । कभी उसमें काम-कुंठा जगती, कभी अपराध-बोध जगता, यहाँ तक कि वह बिस्तर में पेशाब तक करने लगता है, जिससे उसमें हीनता की ग्रन्थि विकसित होती चली जा रही है । अब उसका न पढ़ाई में मन लगता है और न घर पर ।
कलकत्ते पहुँचकर वहाँ का परिवर्तित वातावरण भी उसके अनुकूल नहीं बन पाया । पापा जब दफ्तर चले जाते, तब वह कटा-फटा अनुभव करता और जब साथ होते तो पापा के हाथ से छूट जाने का भय लगा रहता।
मम्मी पर एकाधिकार की इच्छा
बंटी का लालन-पालन जिन परिस्थितियों में हुआ है, उनके कारण उसके व्यक्तित्व में कुछ कमियाँ आ गयी हैं । उदाहरण के लिए उसे बचपन से ही पिता (अजय बत्रा) का प्यार प्राप्त नहीं हो पाया, तो वह अपनी मम्मी के प्यार तक सीमित रहकर उसे अधिक गहरा करके उस कमी को पूरा करने लगा, जिसके कारण उसका समुचित विकास रुक गया । वह प्रत्येक क्षण अपनी मम्मी को अपने पास देखने, अपनी तरफ ध्यान केन्द्रित रखने का अभ्यस्त हो गया है। इसीलिए जब उसकी मम्मी कॉलेज जाती और वह अपनी मम्मी का एक प्रिंसिपल के रूप में परिवर्तित चेहरा देखता, तो सहम जाता और यह बर्दाश्त नहीं कर पाता कि वे जब कॉलेज में होती हैं, तो उसकी उपेक्षा क्यों करती हैं ? इसी क्रम में जब उसकी मम्मी उदास रहतीं, तब भी बर्दाश्त नहीं कर पाता था और न किसी दूसरे पात्र को अपने और मम्मी के मध्य किसी प्रकार से आने देना चाहता था । यहाँ तक कि घर पर एक बार उसकी मम्मी ने जब साथ की टीचर्स को चाय-पार्टी पर बुलाया तो उनकी गपशप को भी वह सहन नहीं कर पाता । बाद में तो यह प्रवृत्ति इतनी अधिक बढ़ जाती है कि डॉ. ज.शी के बच्चों से ईर्ष्या करने. उनसे झगड़ा करने, माँ को भी दुखी करने में प्रसन्नता का अनुभव करने जैसे दोष उसके व्यक्तित्व में ग्रहण की तरह समा जाते हैं ।
असामान्य बालक
मन्नू भण्डारी ने बंटी को एक असामान्य बालक के रूप में पाठकों के सामने रखा है। वह अपने माता-पिता के सामने वास्तव में एक समस्या बन गया है । उपन्यास-लेखिका ने उसे अजय की कार्बन-कॉपी के रूप में प्रस्तुत करके शकुन के लिए एक समस्या बना दिया है, क्योंकि वह भी शकुन को अनेक प्रकार की विषम परिस्थितियों में डालने लगा है। डॉक्टर जोशी के साथ शकुन के सम्बन्धों को वह नहीं सह सकता । इसलिए उसमें माँ से बदला लेने की प्रवृत्ति तीव्रतम हो गयी है। डॉक्टर जोशी उसके विषय में शकुन को समझाते हुए कहते हैं-
"देखो शकुन ! बंटी थोड़ा प्रॉब्लम बच्चा है, तो उसकी प्रॉब्लम को तो झेलना ही होगा, तुम्हारे साथ अकेले रहते-रहते वह बहुत पजेसिव हो गया है। वह किसी और को तुम्हारे साथ नहीं देख सकता ।"इसी समय शकुन को बंटी के विषय में कहे गये वकील चाचा के वाक्य भी याद आ जाते हैं- "जानती हो अजय बहुत ईगोइष्ट भी है और बहुत पजेसिव भी । अपने आपको पूरी तरह समाप्त करके ही तुम उसे पा सको, तो पा सको, अपने को बचाये रखकर तो उसे खोना ही पड़ेगा ।"
निष्कर्ष
इस प्रकार मनोवैज्ञानिक विश्लेषणवादी धरातल पर प्रस्तुत किया गया बंटी का चरित्र इतना महत्वपूर्ण बन गया है कि कदम-कदम पर लेखिका के सूक्ष्म पर्यवेक्षण का लोहा स्वीकार करना पड़ा है। प्रत्येक छोटी-छोटी बात पर बंटी के मन में होने वाली प्रतिक्रियाओं का सुन्दर चरित्र-चित्रण लेखिका ने बड़ी सूक्ष्मता के साथ किया है। निःसन्देह बंटी इस उपन्यास की विशिष्ट चरित्र सृष्टि है।
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