आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है

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आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है आर्थिक समृद्धि को अक्सर एक देश की समग्र प्रगति का मापदंड माना जाता है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जैसी आर्

आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है


र्थिक समृद्धि को अक्सर एक देश की समग्र प्रगति का मापदंड माना जाता है। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) जैसी आर्थिक गतिविधियों के माध्यम से मापी जाती है। लेकिन यह एक बहुआयामी अवधारणा है और इसमें कई अन्य कारक भी शामिल होते हैं जो एक देश की समग्र समृद्धि को परिभाषित करते हैं।

"मैं इस बात की आज्ञा नहीं दे सकता कि कोई व्यक्ति यह कहे कि मेरे पास लम्बी- चौड़ी जमीन है, इसलिए मैं धनी हूँ. मैं उसे यह अनुभव करवा दूँगा कि मैं उसके धन के बगैर भी काम चला सकता हूँ, परन्तु आत्म-सन्तोष के बल पर मैं अपने को सम्पन्न समझँगा”- इमरसन
 
संसार में अनेक ऐसे लोग हैं जो बिना धन के प्रसन्न रहते हैं. हजारों ऐसे हैं जिनकी जेबें खाली हैं, परन्तु वे सम्पन्न हैं. सुदृढ़ शरीर, अच्छे दिल और अंगों वाला व्यक्ति वास्तव में सर्वसम्पन्न है. हड्डियाँ मजबूत होना सोने से अधिक अच्छा है, माँसपेशियाँ कठोर होना चाँदी से अधिक मूल्यवान है और सारे शरीर में ऊर्जा पहुँचाने वाली नस- नाड़ियाँ अनेक मकानों और भूमि का मालिक होने से अच्छी हैं।

आर्थिक समृद्धि सम्पन्नता की सूचक नहीं है
फ्रेंकलिन का कहना है कि धन से मनुष्य प्रसन्न नहीं हो सकता. इसमें ऐसी कोई भी चीज नहीं जो मनुष्य को प्रसन्नता दे सके. जिसके पास जितना धन होता है वह और धन की उतनी ही आकांक्षा करता है. एक रिक्त स्थान को भरने के बजाए वह और रिक्तता पैदा करता है. लम्बा-चौड़ा बैंक खाता (अकाउंट) मनुष्य को धनी नहीं बना सकता है. केवल उसके विचार ही उसको सम्पन्न बनाने में सहयोग दे सकते हैं. जिस व्यक्ति का दिल गरीब है उसके पास बहुत-सा धन और सम्पत्ति होने पर भी उसको धनी नहीं कहा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति धनी और निर्धन अपने विचारों के अनुरूप ही होता है, जो कुछ उसके पास है उसके कारण नहीं. 

"तवंगरी ब दिलस्त न बमाल । " "जो सन्तुष्ट है वही धनी है भले ही उसके पास सम्पत्ति न हो." सुकरात

अनेक ऐसे व्यक्ति हैं जिनके पास स्वास्थ्य की दौलत है वे सदा प्रसन्न रहते हैं. वे कठिनाइयों को बड़ी आसानी से पार कर जाते हैं. कुछ व्यक्ति अपने परिवार तथा मित्रों के कारण सम्पन्न कहला सकते हैं. कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जिन्हें देखकर सभी उनसे प्रेम करने लगते हैं, उनके चारों ओर प्रसन्नता का वातावरण छाया रहता है. क्या इन्हें आप सम्पन्न नहीं समझते हैं?
 
जीवन का सबसे बड़ा सबक यही है कि हम मानव मूल्यों का सही मूल्यांकन कर सकें. जब कोई युवक कोई कार्य प्रारम्भ करता है, तो उसे अनेक वस्तुओं को प्राप्त करने की आकांक्षा पैदा होती है, परन्तु उसकी सफलता उसकी योग्यता पर निर्भर करती है न कि उसके द्वारा इकट्ठी की गई वस्तुओं से प्रलोभनों में न पड़कर हमें जीवन के वास्तविक मूल्यों पर जोर देना चाहिए.
 
समृद्ध मस्तिष्क और श्रेष्ठ आत्मा किसी भी घर में सौंदर्य का प्रकाश दे सकती है. घर की साज-सज्जा वाले व्यक्तियों के लिए ऐसा करना असम्भव है. ऐसा कौनसा व्यक्ति होगा जो उच्च चरित्र, सन्तोष और तृप्ति रूपी धन को प्राप्त न करके निकृष्ट सिक्कों के पीछे भागेगा? वास्तव में वही व्यक्ति सम्पन्न है जिसने संस्कृति को समृद्ध बनाने में योगदान दिया है, भले ही वह बिना पैसे के मर गया. आने वाली पीढ़ियाँ ऐसे लोगों के स्मारक खड़ा करती हैं. समग्रता का दूसरा नाम सम्पन्नता है.
 
जिस व्यक्ति के पास धन नहीं है वह गरीब है, परन्तु जिसके पास धन के अतिरिक्त और कुछ नहीं है, वह उससे भी अधिक निर्धन है. वास्तव में धनी वही है जो धन के बिना मस्त रहता है और निर्धन वह है जो लाखों रुपए पास होने पर भी अधिक सम्पत्ति पाने की लालसा रखता है. बुद्धिमत्ता में ही समृद्धि का निवास है. बुद्धिमत्तापूर्ण व्यवहार का स्वामी व्यक्ति निर्धन नहीं कहलाता है. वह समृद्ध होने के साथ निर्धनता का मुकाबला करने के कारण बहादुर भी कहलाता है.
 
हमें अपनी इच्छाशक्ति को वस्तुओं के उज्ज्वल पक्ष पर स्थिर करना चाहिए जिससे आत्मा का विकास हो और अच्छाइयाँ पैदा हों. यही बातें व्यक्ति को सम्पन्न बनाती हैं प्रत्येक वस्तु का उज्ज्वल पक्ष देखना अपने आप में सौभाग्य की बात है. सम्पन्न वही है जो स्वर्ण की अपेक्षा अपने यश को अधिक महत्व देता है जो ऐसा करता है. प्राचीन यूनानी व रोम के लोग धन के बजाए इज्जत को अधिक महत्व देते थे. समृद्धि की अपेक्षा सम्पन्नता उनके लिए सब कुछ थी. विलियम पिट ने कहा था कि "जनता के लाभ के कार्यों के सामने धन सम्पत्ति पैरों की धूल के समान है."

अच्छे कार्यों से ही व्यक्ति वैभवशाली बनता है, परन्तु लाखों की सम्पत्ति होने पर भी वह निर्धन रह सकता है. जिस धनाढ्य व्यक्ति के पास चरित्र की कमी है उसकी तुलना भिखारी से ही की जाएगी, क्योंकि माया आनी-जानी होती है, चरित्र की सम्पन्नता नहीं-
 
धन यदि गया, गया नहीं कुछ भी, 
स्वास्थ्य गए कुछ जाता है। 
सदाचार यदि गया मनुष्य का, 
सब कुछ ही लुट जाता है।"
 
व्यक्ति को अपने अन्दर चरित्र बल का विकास करना चाहिए. चरित्र रूपी धन को बाढ़, तूफान अथवा भूचाल समाप्त नहीं कर सकते हैं.

जो व्यक्ति अपने मस्तिष्क का विकास करता है, वह चरित्र बल से सम्पन्न रहता है, उसे उससे कोई वंचित नहीं कर सकता. यदि हम ज्ञान का निवेश करते हैं, तो हमको सदैव उसका लाभ मिलेगा.मेरा विश्वास है कि श्रेष्ठ व्यक्ति होना बड़ी बात है. दयावान व्यक्ति की तुलना में मुकुट का कोई महत्व नहीं. निष्ठावान होना धनी व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक इच्छा है. आर्थिक समृद्धि साधन है, परन्तु चारित्रिक सम्पन्नता साध्य है. आर्थिक समृद्धि एवं व्यक्तित्व की सम्पन्नता पर अंग-अंगी भाव से विचार किया जाना चाहिए.
 
निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति धन से ही धनी नहीं होता. वास्तव में समृद्ध वही है जिसका मस्तिष्क समृद्ध है और जिसके विचारों से संसार में बुद्धिमत्ता का विकास होता है.
 
अंग्रेजी साहित्य के उद्भट्ट विद्वान् विलियम शेक्सपियर ने कहा है- "मेरा मुकुट मेरे सिर के बजाय मेरा दिल है, उसे हीरे-मोतियों की आवश्यकता नहीं, मेरा मुकुट तो मेरी सन्तुष्टि है जिसे शायद ही कभी राजा महाराजाओं ने धारण किया हो. " 

आर्थिक समृद्धि एक महत्वपूर्ण लक्ष्य है, लेकिन यह एक देश की समग्र समृद्धि का एकमात्र सूचक नहीं है। एक सच्ची समृद्ध राष्ट्र वह है जहां सभी नागरिकों के पास समान अवसर हों, जहां पर्यावरण का संरक्षण किया जाए, और जहां जीवन की गुणवत्ता उच्च हो।

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