चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताएं

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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताएं चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के एक ऐसे रत्न हैं जिन्होंने अपनी सरल और मार्मिक कहानियों से पाठको

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताएं

न्द्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के एक ऐसे रत्न हैं जिन्होंने अपनी सरल और मार्मिक कहानियों से पाठकों के दिलों में गहरी छाप छोड़ी है। उनकी कहानियों में ग्रामीण जीवन का यथार्थ चित्रण, मानवीय मूल्यों पर बल और गहरी मनोवैज्ञानिक समझ जैसी अनेक विशेषताएं हैं।

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी का साहित्यिक जीवन परिचय

गुलेरी जी का जन्म 25 जुलाई, सन् 1883 को जयपुर में हुआ था। उनके पिता पं० शिवराम जी संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। बचपन में गुलेरी जी ने संस्कृत की शिक्षा अपने पिता जी से ही ग्रहण की और कुछ ही दिनों में इतनी दक्षता प्राप्त कर ली कि उन्होंने संस्कृत साहित्य, ज्योतिष, व्याकरण तथा दर्शन में अगाध गति प्राप्त कर ली। उनकी शिक्षा जयपुर के महाराजा कालेज में हुई। प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने प्रथम श्रेणीं में इंट्रेंस परीक्षा उत्तीर्ण की। उनकी प्रतिभा से प्रसन्न होकर जयपुर दरबार ने उन्हें अनेक बार स्वर्ण पदक से विभूषित किया। प्रयाग विश्वविद्यालय से उन्होंने 1903 ई० में बी० ए० की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कुछ दिनों तक वे अजमेर के मेयो कालेज में संस्कृत के प्रधानाध्यापक भी रहे। 1920 में वे अजमेर से काशी हिन्दू विश्वविद्यालय आये और वहाँ प्राच्य विद्यालय तथा संस्कृत विभाग के अध्यक्ष पद को उन्होंने सुशोभित किया। दो वर्षों तक यहाँ विश्वविद्यालय की सेवा में रहकर 11 सितम्बर, 1922 ई० को 39 वर्ष की अल्पायु में ही वे दिवंगत हो गये।

हिन्दी साहित्य के क्षेत्र में गुलेरीजी ने मुख्यतः कहानी, निबन्ध, आलोचना तथा भाषा - शास्त्र के क्षेत्र में कार्य किया। उनकी कहानी 'उसने कहा था' सन् 1915 में 'सरस्वती' नामक पत्रिका में प्रकाशित हुई जो गुलेरी जी की प्रसिद्धि का मुख्य कारण बनी। इसके पूर्व उनकी एक कहानी 'सुखमय जीवन' 1911 ई० में 'भारत-मित्र' में प्रकाशित हो चुकी थी उनकी तीसरी और अन्तिम कहानी 'बुद्ध का काँटा' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी। मात्र तीन कहानियों के आधार पर हिन्दी कहानी - साहित्य में गुलरी जी ने अपना अमर स्थान बनाया, जैसा एक 'सतसई' मात्र लिखकर कवियों में बिहारी ने बनाया था। वे अपनी कृतियों की संख्या के आधार पर आदरास्पद नहीं बने, अपितु उनके मूल्यों एवं महत्त्व के आधार पर उन्होंने असीम ख्याति अर्जित की। उनकी पहली कहानी 'सुखमय जीवन' प्रेम और कर्त्तव्य के द्वन्द्व पर आधारित है। आरंभिक कहानी होते हुए भी इसकी शैली स्पष्ट ध्वनित करती है कि लेखक कहानी-कला का मर्मज्ञ और पारखी है और उसकी भाषा में वक्रता तथा अभिव्यञ्जना-पद्धति अनुपम लाक्षणिकता है। इस कहानी में एक अनुभवहीन युवक की जीवन गाथा है, जिसके पास पुस्तकीय ज्ञान तो है परन्तु व्यावहारिकता में कमी है। अन्ततः परिस्थितियाँ उसे अनुभव की भट्ठी में डालकर पक्का बना देती हैं। जीवन में मात्र शास्त्रीय ज्ञान ही काम नहीं देता, अपितु अनुभव सर्वोपरि है। इसी आधार पर जीवन की गाड़ी गति पा सकती है। यही इस कहानी का सन्देश है। 'बुद्ध का काँटा' में गुलेरी जी की कहानी-कला एकदम विकसित हो जाती है। 

चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताएं
जीवन में अल्हड़पन और मस्ती के बीच प्रेम-कलिका का प्रस्फुटन दो आत्माओं के बीच किस रूप में होता है, इस कहानी में इसका मनोरम रूप दिखायी देता है। स्कूल और कालेज की कागज़ी उपाधियाँ प्राप्त कर लेना और बात है, प्रेम और जीवन के मैदान में सफलता पाना और। कहानी का नायक इसी प्रकार का एक अल्हड़, अनुभवहीन परन्तु स्वच्छ हृदय का व्यक्ति है। एक युवती के तमाचे खाता है फिर भी ताकता रहता है। अन्त में उसी से जब प्रेयसी के रूप में आकस्मिक मिलन होता है और दोनों की आँखें चार होती हैं। उस समय युवक के हृदय में भावधारा का जो प्रबल प्रवाह उमड़ता है, उसके चित्रण में लेखक ने कोई कसर नहीं छोड़ी है। इसमें संवेदनात्मक अन्विति का निर्वाह बड़ी सफलता से किया गया है। गुलेरी जी की कहानी- कला उनकी तीसरी कहानी 'उसने कहा था' में चरम उत्कर्ष को प्राप्त होती है। यह हिन्दी में तो अनूठी है ही, विश्व की कहानियों में भी ऊँचा स्थान रखती है। इस कहानी का आरंभ, मध्य और अंत लाक्षणिक है। इसमें लहनासिंह और सूबेदारनी के आदर्श प्रेम, कर्त्तव्य और बलिदान की कथा है। अमृतसर के बाज़ार में बालक-बालिका के मिलन के साथ जो प्रेम आरंभ होता है, उसका पर्यवसान लहनासिंह के बलिदान में होता है। इस कहानी का कथानक अपेक्षाकृत उच्च संगठनात्मकता लिये हुए है। इसमें नाटकीयता का भी अभाव नहीं है, किन्तु आदर्शवाद का जो परम्परागत रूप इस कहानी में मिलता है, वह समकालीन चेतना का प्रतीक है।

गुलेरी जी का कहानी लेखन

गुलेरी जी ने जिस समय कहानी-लेखन आरम्भ किया था, वह हिन्दी कहानी के आविर्भाव का युग था । इस युग में अनेक कहानीकारों ने सुन्दर कहानियाँ लिखकर अपनी-अपनी प्रतिभा का परिचय दिया था। किन्तु गुलेरी जी की 'उसने कहा था' कहानी जब प्रकाश में आयी, तो अन्यों की अपेक्षा इसका कलाविधान बहुत ही श्रेष्ठ था। नाटकीय संवाद, वातावरण-चित्रण, परिवर्तन-बिन्दु की सफलता तथा शीर्षक की उपयुक्तता, स्वप्न के द्वारा पूरी कहानी के कथानक का एक बार आँखों के सामने घूम जाना और सब कुछ एक रोमांटिक सेट के बीच रखना आदि ऐसी विशेषताएँ हैं जिन्होंने इस कहानी में एक अद्भुत आकर्षण पैदा कर दिया है। यही कारण है कि दिन-प्रतिदिन इसकी लोकप्रियता बढ़ती गयी। इसके कथानक पर आधारित अनेक चलचित्र बनाये गये। जिसने प्रथम महायुद्ध की विभीषिका के विषय में केवल पढ़ा हो या सुना हो, उसकी आँखों के सामने युद्ध का सारा चित्र इस कहानी को पढ़ने के बाद खिंच जाता है। जर्मनी के युद्ध-क्षेत्र में सिक्ख सिपाहियों का मस्ती भरा संगीत, वातावरण की ठंडक, मेमवाली कथा, फिर जर्मन जासूस का आना, लहनासिंह की सूझ, फुरती और बहादुरी, त्याग एवं कष्ट-सहिष्णुता हमारे सामने एक विचित्र चित्र उपस्थित करती है। यह कहना असंगत न होगा कि गुलेरी जी ने महायुद्ध की पृष्ठभूमि में हिन्दी कथा-साहित्य में पहले-पहल अन्तर-राष्ट्रीय कथानक का सूत्रपात किया। उनकी दृष्टि संकुचित नहीं, वरन् व्यापक है। सेक्स के नाम पर आज साहित्य में अश्लीलता का प्रचार हो रहा है किन्तु इस कहानी में सेक्स का कितना निर्मल और दिव्य रूप प्रस्तुत किया गया है। 

कथानक के विकास की दृष्टि से 'सुखमय जीवन' में कोई नवीनता नहीं है। इसकी तुलना में 'बुद्ध का काँटा' का कथानक अधिक प्रौढ़ है। 'उसने कहा था' कहानी की कथानक-योजना प्रौढ़ तथा चरम विकसित रूप में है। इन तीनों कहानियों में कहानी कला का क्रमिक विकास मिलता है। कथानक के विकास में गुलेरी जी ने संयोगों और घटनाओं का सहारा लिया है। 'सुखमय जीवन' और 'उसने कहा था' के कथानक का विकास संयोग द्वारा ही हुआ है। मार्ग में जयदेव वर्मा और कमला तथा अमृतसर के बाज़ार में लहना तथा बालिका का मिलन संयोगवश ही होता है । घटनाओं और संयोगों के द्वारा कथानक में प्रारम्भ से लेकर अन्त तक जिज्ञासा और कुतूहल बना रहता है । घटनाओं और संयोगों की योजना जासूसी, तिलस्मी या अन्य घटना-प्रधान कहानियों के समान है। परन्तु गुलेरी जी की कहानियों की यह विशेषता है कि उनमें चरित्र की महत्ता का भी प्रतिफलन हुआ है।

चरित्र चित्रण में अद्भुत सफलता

चरित्र-चित्रण में गुलेरी जी को अद्भुत सफलता मिली है। उनके चरित्र यथार्थ जीवन से चुने गये हैं। उन्होंने अपनी तीनों कहानियों के प्रमुख पात्रों में व्यक्तित्व की पूर्ण प्रतिष्ठा की है। जयदेव वर्मा, कमला, रघुनाथ, भगवती और लहनासिंह अदि सभी पात्र व्यक्तित्व सम्पन्न हैं। चारित्रिक दृष्टि से रघुनाथ, भगवती और लहनासिंह का विशेष महत्त्व है। इनका रूप विशेषकर निखर सका है। लहनासिंह के चरित्र में मानवीयता और आदर्श का सुन्दर समन्वय हुआ है। अतः उसका चरित्र सर्वोत्तम है। गुलेरी जी के चरित्र उतने ही अमर हैं, जितने वे स्वयं हैं। वे हमारे जीवन के अभिन्न साथी के रूप में आते हैं। वास्तविक जीवन के चरित्रों को काल के प्रवाह में हम भूल सकते हैं पर लहनासिंह को भूलना कठिन है और 'उसने कहा था' को भूलना और भी कठिन है जिसके कारण लहनासिंह अपने प्राणों की हँसते-हँसते बलि दे देता है। यदि सच्चा प्रेम अमर होता है, तो उसका पथिक लहनासिंह भी सदा के लिए अमर रहेगा।
 
गुलेरी जी की कहानियों के कथोपकथन कथानक के विकास और चरित्र-चित्रण में सहायक हैं। वर्णनों का सहारा उन्होंने दृश्य-चित्रण में विशेष रूप से लिया है। एक ओर वर्णन द्वारा वातावरण उपस्थित कर और उसमें पात्रों को रखकर उनके वार्तालाप में उनके चरित्र की रेखाएँ उभारने की कला में उन्हें बड़ी सफलता मिली है तो दूसरी ओर स्वाभाविकता, सजीवता और संगति का बराबर उन्होंने ध्यान रखा है। उनके कथोपकथन बड़े ही सजीव, सटीक, स्वाभाविक और पात्र-परिचय में सहायक होते हैं।

भाषा पर असाधारण अधिकार

गुलेरी जी का भाषा पर असाधारण अधिकार है। वर्णन-कौशल और कथोपकथन की सफलता भाषा पर बहुत कुछ निर्भर करती है। वे हिन्दी के साथ विदेशी तथा प्रान्तीय भाषाओं के भी विद्वान् थे। संस्कृत के अतिरिक्त मराठी, बंगला, प्राकृत, पालि तथा उर्दू के भी वे अच्छे जानकार थे। उनकी भाषा में सहज व्यावहारिकता, विलक्षण वक्रता, सौष्ठव और आकर्षण मिलता है। उसमें कहीं भी विशृंखलता और शिथिलता नहीं है। भाषा के मिले-जुले रूप ने वर्णनों में चमत्कार ला दिया है। इससे कथोपकथन बड़े ही सजीव और स्वाभाविक हो गये हैं। संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी तथा बोलचाल के शब्दों और भावों का इतना सुन्दर प्रयोग एक रासायनिक मिश्रण के समान शायद ही कहीं मिले। इतनी धारावाहिक शैली में ये कहानियाँ लिखी गयी हैं, मानो पहाड़ी नदी की निर्मल धारा पहाड़ से उतरकर शीघ्रता से लुकती-छिपती किसी महानद में विलीन हो जाती हो। द्विवदी युग में उत्पन्न होते हुए भी गुलेरी जी में उसकी वर्णनात्मकता और उपदेशात्मक नहीं है। वरन् उनका दृष्टिकोण व्यापक, मौलिक और स्वस्थ है। यही कारण है कि इतने वर्ष बाद भी इन कहानियों की ताज़गी, स्वस्थता और आकर्षण वैसा ही बना हुआ है। इसका एक मात्र कारण यही है कि लेखक ने किसी एक संकुचित काल की नहीं, वरन् सार्वकालिक शाश्वत समस्या को उठाया है। प्रेम और त्याग बलिदान की समस्या किसी एक युग की नहीं। इन कहानियों के चित्र अनुपम हैं। वे कल्पना-जगत् में विचरने वाले चित्र नहीं, वरन् हमारी आँखों के सामने विचरने वाले जीते-जागते चित्र हैं।

गुलेरी जी यद्यपि संस्कृत के अगाध पंडित हैं, फिर भी संस्कृत के तत्सम शब्दों के मोह-जाल में अनावश्यक न पड़कर, मुहावरेदार भाषा के प्रयोग से अपनी शैली में इतना रस, आकर्षण और प्रवाह पैदा करते हैं कि एक बार कहानी प्रारंभ करने के बाद उसे बिना समाप्त किये छोड़ने को जी नहीं चाहता। वास्तव में उत्कृष्ट कहानी की यही एक कसौटी है और इस कसौटी पर उनकी कहानियाँ खरी उतरती हैं।
 
गुलेरी जी की कहानियों में रस-परिपाक की पूर्ण स्थिति है। 'उसने कहा था' के आरंभ में सरलता, माधुर्य और चंचलता तथा अन्त में विषाद की गहरी छाया एवं गम्भीरता है। दोनों का गुम्फन इस प्रकार हुआ है कि पाठक का हृदय रस में डूब जाता है। उनकी गंभीरता और पांडित्य के बीच में उनकी हास्य-विनोद की प्रवृत्ति का बड़ा कलात्मक सामंजस्य दिखायी देता है। उन्होंने स्थान-स्थान पर हास्य की व्यञ्जना की है। सरल-से-सरल और गंभीर-से-गंभीर स्थिति में भी हास्य की योजना करने की उनमें अपूर्व क्षमता है। उनका हास्य कहीं भी सहानुभूति से शून्य नहीं होता, क्योंकि उनके हृदय में कुढ़न का विष नहीं, संतोष का अमृत था। डॉ० नगेन्द्र के अनुसार “वास्तव में उनका हास्य एक ऐसे व्यक्ति का हास्य है, जिसके हृदय में जीवन के प्रत्येक सुख से सहानुभूति है, जो विकृतियों में भी अद्भुत वैचित्र्य और आकर्षण पाता है, जिसके हृदय में किसी प्रकार का गंद या मैल नहीं है और जो खुलकर हँसता है।” हास्य और व्यंग्य का प्रयोग तो हिन्दी-लेखकों में बहुत कम मिलता है। भारतेन्दु-युग यदि कहीं है भी तो द्विवेदी युग में नगण्य है। परन्तु गुलेरी जी का व्यंग्य अत्यन्त निश्छल तथा मनमोहक है। वह हृदय को गुदगुदाने वाला मनोरम हास्य है, जिसमें सरलता के साथ सौन्दर्य है। इसका प्रयोग तीनों कहानियों में व्यापक रूप से मिलता है। उनकी भाषा की मुहावरेदानी अद्भुत है। 

कहानी के शिल्प-विधान की दृष्टि से गुलेरी जी का नाम कहानी-कला के अग्रदूतों में माना जाता है। ‘उसने कहा था' कहानी के शिल्प-विधान ने कहानीकारों का पथ-प्रदर्शन किया। गुलेरी जी की कहानियाँ प्रायः भूमिका अथवा पृष्ठभूमि के साथ आरंभ होती हैं। 'उसने कहा था' कहानी के प्रारंभ का अंश, जो उसकी पृष्ठभूमि का कार्य करता है, कहानी से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है । घटनाओं एवं संयोगों के कारण इसके मध्यभाग में रोचकता बराबर बनी हुई है। विकास के 'चरम बिन्दु' पर पहुँचकर कहानी का अन्त हो जाता चरम बिन्दु पर समाप्त हो जाने के कारण कहानी का प्रभाव अधिक तीव्र हो जाता है। 

गुलेरी जी की कहानियों में सोद्देश्यता विद्यमान रहती है। आदर्श प्रमुख प्रेरणा है।व्यक्ति, वर्ग और समाज तीनों के उच्च आदर्शों की उन्होंने प्रतिष्ठा की है। उनकी कहानियाँ | सामाजिक चेतना से अनुप्राणित हैं। प्रेम और कर्त्तव्य की भूमि पर उनका आदर्श स्थापित है।जीवन के प्रति स्वस्थ दृष्टिकोण देना, मानवीय अनुभूतियों को जगाना तथा चरित्र के आदर्श की प्रतिष्ठा करना ही उनकी कहानियों का लक्ष्य रहा है। 

हिन्दी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान

हिन्दी कहानी की शैशवावस्था में गुलेरी जी जैसे सशक्त और प्रौढ़ कहानीकार का आना आश्चर्यचकित कर देता है। इससे हिन्दी कहानी का स्रोत प्रबल वेग से प्रवाहित हो उठा, उसमें कलात्मक उत्कर्ष आया। अपने युग में उन्होंने हिन्दी कहानी को भाषा-शैली कथावस्तु के गठन, कसाव तथा मानवीय आदर्श से प्रेरित करने में अपूर्व सफलता प्राप्त की। समाज की ज्वलंत समस्याओं की ओर हल्का व्यंग्य और जीवन की गहन अनुभूतियों की अभिव्यक्ति उनकी कहानी - कला की प्रमुख विशेषताएँ हैं। जीवन के प्रति उनका स्वस्थ अविकृत दृष्टिकोण प्रशंसनीय एवं युग चेतना का प्रतीक है। उनका स्थान हिन्दी कहानीकारों में निःसन्देह विशिष्ट है। जब यहाँ उपदेशात्मक कहानियों की भरमार थी, हमारे कहानी-साहित्य पर बँगला और अंगरेजी का आतंक था, इतनी मौलिक कहानियों द्वारा हिन्दी - कहानी - साहित्य के भण्डार को भरना कम श्रेय की बात नहीं है। दुःख है कि वे असमय में ही काल-कवलित हो गये, अन्यथा उनकी और भी कहानियाँ हमारे कहानी - साहित्य को एक अमर विभूति के रूप में प्राप्त होतीं। हिन्दी के प्रति उनकी अगाध श्रद्धा थी और जीवन के अंतिम दिनों में हिन्दी की सेवा में उन्होंने बड़ा योग दिया।

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चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी कला की विशेषताएं चन्द्रधर शर्मा गुलेरी हिंदी साहित्य के एक ऐसे रत्न हैं जिन्होंने अपनी सरल और मार्मिक कहानियों से पाठको
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