एक दीप धरम का | हिन्दी कहानी

SHARE:

एक दीप धरम का दीवाली की साँझ।अपने ही शहर की छटा देखते विमुग्ध होते जा रहे थे हम। देवताओं के राजा इंद्र की नगरी क्या इससे भी ज्यादा ऐश्वर्यमयी होती होग

एक दीप धरम का

दीवाली की साँझ।अपने ही शहर की छटा देखते विमुग्ध होते जा रहे थे हम। देवताओं के राजा इंद्र की नगरी क्या इससे भी ज्यादा ऐश्वर्यमयी होती होगी !

जयस्तंभ रोड। विस्तृत मार्ग के दोनों ओर बिजली के रंग बिरंगे लट्टुओं से जगमगाती विशाल अट्टालिकाऐं।  बालकोनियों , छतों ,अटारियों में त्वरितगति से आती जाती सोलहों श्रृंगार से सजी सौभग्यवती रमणियाँ ,स्वस्थ , संपन्न , सुवेशित पुरुष। अट्टालिकाओं के सामने की खुली जगह पर गृहलक्ष्मियों द्वारा सजाई गई विमुग्धकारी रांगोलियाँ। अपनी अट्टालिकाओं के सुसज्जित द्वारों से दीपों से भरी जगमगाती थाल लिये निकलती वस्त्राभूषणों की आभा से दमकती लक्ष्मी स्वरूपा कुलवधुयें। उनसे दीप ले लेकर घरों के सामने बने सुदीर्घ चबूतरे पर दीपों की कतार सजाती देवकन्याओं सी शुभांगी कन्यायें।

महानिशा धीमें धीमें बढ़ी चली आ रही है। वैभव एवं श्री की देवी महालक्ष्मी के आगमन का मुहूर्त निकट आ रहा है। सुदूर मंदिरों में घंटाध्वनि गूंजने लगी है। अट्टालिकाओं मे विराजे पंडितगण श्रीसूक्त उच्चारने लगे हैं। बीच बीच में गूंज उठते हैं, शंख ध्वनि के उद्घोष। उमंग और उल्लास में नेत्र रक्तिम हो रहे हैं। उल्लासित युवक आतिशबाजियों की चकाचौंध से जमीन आसमान एक किये दे रहे हैं। धाँंय धाँय छूटते फटाके बम बच्चों को मारे खुशी के पागल किये दे रहे हैं। आसमान अपने विस्फारित नेत्रों से धरती का यह अपरूप ऐश्वर्य निहार रहा है। सारा वातावरण एक रहस्यमयी सी अलौलिकता में डूबता जा रहा है मानो आतुर हो आकुल पुकार सी कर रहा हो....पधारो...पधारो....हे श्रीसंपन्नता की देवी महादेवी ...महालक्ष्मी पधारो....म्हारी नगरी मा पधारो....म्हारी गलियन में पधारो...म्हारे कुटियन मा विराजो....

विस्फारित नेत्रों से ताकते...आल्हाद में डूबे हम बढ़े जा रहे हैं। आगे खंडूपारा , यहाँ भी वही चकाचौंध...वही विमुग्धकारी भव्यता....विस्मयकारी अलौकिकता....आकुल प्रतीक्षा....पधारो...पधारो हे महादेवी महालक्ष्मी म्हारी गलियन मंे भी...म्हारे गेहन में भी...

आगे बैंक रोड ,गोलबाजार रोड....हम जैसे अपने आप में नहीं हैं। किसी देवलोक में उड़े चले जा रहे हैं। शहर की सारी गलियाँ ,चौबारे आज हर्षोल्लास में दपदपाते मानो किसी पराशक्ति के आगमन का आभास कराते मंत्र मुग्ध किये जा रहे हैं।

एक दीप धरम का
महान घड़ियाँ हैं ये...विमुग्धकारी ...शब्दातीत....कि हमारी उड़ान थम सी जाती है। सड़क से हटकर कुछ दूर एक निर्जन सी जगह में एक एकांत सा घर नजर आ रहा है। बेहद पुराना। जर्जर। मिट्टी की दीवारें। खपरैल का छप्पर। पहले भी देखा था इस वीरान से पुराने घर को। मगर आज उसमें रोशनी दिख रही थी। घर के सामने एक दीपक जल रहा था। कुछ विशेष सा ही लग रहा वह दीपक। दरवाजे पर एक वृद्धा सी नारी मूर्ति  भी नजर आ रही थी। मैं पल भर चकित सी सोचती हूँ कि अनायस ही मेरे कदम उस ओर बढ़जाते हैं।

छुई मिट्टी से बड़ी सुघड़ता से चिकनी पोती गई माटी की जर्जर दीवारें , गोबर से स्वच्छ सुंदर लीपा गया सामने का हाता। चावल पीसकर बनाई गई अनूठी ग्रामीण अल्पना। अल्पना के बीचोंबीच रखा अपनी सिंदूरी आभा बिखेरता शांत , स्निग्ध एक दीपक। 

अरे धरम तें यहाँ...वृद्ध नारी मूर्ति को देखते ही मेरे मुँह से निकल गया।

हव नोनी में इंहचे रथों ( हाँ बेटी मैं यहीं रहती हूँ)....मुझे देखते ही वह सहज सरलता से हाथ जोड़कर खड़ी हो गईं...तें कब आये ?(तुम कब आई?)

में भी अब इहचें रथों(मैं भी अब यहीं रहती हूँ) ....मैं गौर से उसके चेहरे की तरफ देखते कहती हूँ....तें बने बने ? ( तुम कुशल तो हो न ?)

हव नोनी मेैं बने बने हों....वह स्निग्ध सरलता से कहती है।

मुझे आघात सा लगता है। यह क्या पूछ बैठी मैं। जिंदगी में कभी यह ”बने बने“ रह पाई। तिस पर इस बुढ़ापे में। इस नितांत निर्जन स्थान में। निपट अकेली।

बइठ न नोनी....वह दीवार से सटी मूंज की छोटी सी खटिया बिछा देती है।

हम एक दूसरे की तरफ देखने लगते हैं। महालक्ष्मी के शुभागमन की इन परम सौभाग्यशाली घड़ियों में क्या हमें इस जनम भर दुख दुर्भाग्य में पिसती , अपशकुनी सी नारी के पास बैठना चाहिये !

मगर मैं बैठ जाती हूँ। मेरी साथिने भी।

धरम के बारे में बता ही दूं। बचपन से जानती हूँ इसे। ठीक हमारे घर के सामने ही तो रहती थी यह। अपने पति और दो बेटियों के साथ। पति उधोसिंह आठवीं तक पढ़ा था। सुनारी का छोटा मोटा धंधा करता था। मकान वैसा ही था जैसा उन दिनों इस गाँवनुमा कस्बे के थे। मिट्टी की दीवारें। खपरैल का छप्पर। मिट्टी का ही फर्श। मगर था बड़ा। फैला हुआ। यह उनका पैतृक मकान था। मकान के आधे हिस्से में उसका छोटा भाई साधोसिह रहता था। सपत्नीक। निसंतान। आँगन साझा था। साधोसिंह भी मामूली पढ़ा लिखा ,छोटा मोटा सुनारी का धंधा करता था। पत्नी चंपाकली ऊंची पूरी ,हृष्ट पुष्ट , गोरी चिट्टी , अद्भुत सुंदरी। जेवर कपड़ों में दमकती , दबंग , बड़बोली। बेलिहाज। मुहल्ले की औरतें सहमतीं उससे। वह हमेशा अपने इर्द गिर्द दो चार चमचियें रखती। लगभग सभी जानते थे कि वह कुछ गड़बड़ कामों में लिप्त रहती है। पति से चोरी के जेवरात गलवाती है। गांजा चरस की अफरा तफरी करती है। अपने इर्द गिर्द की युवा औरतों को पुलिस को खुश करने भेजती है। पति को तो वह आयेदिन लताड़ती रहती । बुरी तरह गरज गरजकर। अपनी जनानी आवाज में खुशामदी ढंग से विरोध करता साधोसिह बड़ा ही दयनीय लगता। हास्यास्पद भी। वह हार खाती थी तो सिर्फ एक आदमी से। अपने जेठ उधोसिंह से। उधोसिंह उसे फूटी आँख न पसंद करता। एक बार भयंकर युद्ध के दौरान उधोसिंह ने अपने सुनारी औजार से उस पर वार भी कर दिया था। फिर तो सड़क में लोट लोटकर उसने वह कोहराम मचाया कि पूरा मुहल्ला, पूरी बिरादरी ही जमा हो गईं। उधोसिंह ने राई रत्ती पर्वाह नहीं की। मामला बड़ी मुश्किल से ठंडा हो पाया था।

मगर उधोसिंह जल्दी सिधार गये। सिधारने के पहले अपनी दोनों किशोरी बेटियों का अच्छे से विवाह संपन्न करा गए। घर में बच गई सिर्फ धरम। धरम अपनी देवरानी के सर्वथा विपरीतं। गहरा सांवला रंग। इकहरा शरीर। मझोला कद। ठेठ छत्तीसगढ़ी नाक नक्श। छत्तीसगढ़ी ढंग से पहनी गई मामूली साड़ी यानी लुगड़ा। ढीलाढाला पोलखा (ब्लाउस)। गले में चांदी की हँसुली , कानो में खिनवा , हाथों में ऐंठी। काम की बातों के अलावा कुछ और बोलना बतियाना उसे सूझता ही न था। मुहल्ले में उपेक्षित। लगभग नगण्य। मगर जाने क्यों निहायत नगण्य सी दिखने वाली वह औरत उस जबरजंग देवरानी को बर्दाश्त ही न हो। उधोसिंह के जाने के बाद तो ज्यादा ही उलझने लगी....तें अपन लुगड़ा मोर डोरी में काबर (क्यों) सुखाये। तोर फूल के पेड़ अँगना भर में कचरा करथें। मोर बाल्टी से पानी काबर भरें। मोर चीज बसूत ला काबर छूथस। मैं दीवार खड़ा करहूँ।  

और सचमुच में उसने ऐसी दीवार खड़ी की कि धरम के हिस्से में आँगन नामकी कोई चीज ही नहीं रह गई। आँगन का कुआँ भी चंपाकली के हिस्से में।

धरम किसके पास फरियाद करने जाय। मुहल्ला तो था ही गरीब बेसहारा के प्रति असंवेदनशील। बिरादरी वालों का भी वही हाल। हारकर धरम मुँहअंधेरे ही उठकर स्नानआदि से निवृत होने तालाब जाने लगी। घर लौटकर गीली साड़ी में ही सार्वजनिक कुऐं से पानी भरकर लाती। चंपाकली की कटूक्तियाँ चलती ही रहतीं...पानी लेकर आती है तो मेरी दुआरी में छलका देती है। कीचड़ करने के लिये। रांधती है तो धुआँ मेरी तरफ कर देती है।

उधोसिंह की जो थोड़ी सी जमापूंजी थी वह देखते ही देखते समाप्त हो गईं। धरम के वे थोड़े से चाँदी के गहने भी। मुहल्ले में पढ़ालिखा संपन्न कहने को हमारा ही घर था। सो धरम हमारे घर काम मांगने आई। बहुत हिम्मत करके। क्योंकि उसकी बिरादरी की औरतें घरों में काम करने नहीं जाती थीं। जूठे बर्तन मांजने तो हर्गिज नहीं। मगर ब्राह्मण के घर का काम सहा जा सकता था। तब भी माँ ने उसे दूसरे ही काम दे दिये थे...चाँवल फटकना ,चुनना , गेहूँ धोना, सुखाना, पिसाना। अचार पापड़ बड़ियों के मसाले तैयार करना।

मगर चंपाकली माँ को ही जब तब कोंचती रहती...ये जिंदगी में कभी अचार बनाई है जो इससे मसाले तैयार करवाती हो बाई। मैं दूसरी दूंगी बढ़िया काम करनेवाली। इतनी तो गंदी रहती है। कैसे सहती हो।

माँ चंपाकली को मुँह न लगातीं। मगर धरम को भी काम देने से परहेज करने लगीं। काम के लिये भटकती धरम को आखिर सेठ गोविंदलाल के घर का काम मिल गया। सेठजी का भारी भरकम संयुक्त परिवार। साफ सफाई से लेकर हर तरह के काम। दिनभर खटती रहती। सांझ ढले घर लौटती तो चंपाकली की कटूक्तियाँ शुरू....बनिया घर के जूठा मांजत हे। हमार नाक कटात हे। मरही तो कोनो तोर लास नहीं छूही।

धरम को तंग करने , प्रताड़ित करने में चंपाकली को अपार आनंद मिलता। उसकी चमचियें और आक्रामक बन जातीं। बाकी सब धरम का तमाशा देखते। कभी धरम काम से लौटकर घर का दरवाजा खोलती तो पाती कि पानी कि गगरी गायब। कभी लोटा गायब। कभी गिलास गायब। धरम नीम अँधेरे में अपने दरवाजे की ड्योढ़ी पर बैठी अपनी कमजोर आवाज में मानो हवाओं से फरियाद करती .रहती....में का करों दाई...में का करों ओ...ऐमन दीवार फाँदके मोर जम्मों बरतन ला डोहारत हें। इतना सुनना था कि चंपाकली का गिरोह नोच खाने के लिये टूट पड़ता...वाह , हम तोर थाली कटोरी चुराबो। हमार घर बरतन के कमी हे का। जा पुलिस बुलाले। तलासी ले ले।

सारे बर्तन गायब हो गये तो धरम मिट्टी की हँड़िया , परई लाकर खाना बनाने लग गई। उसमें भी कभी उसके भात में गंदगी पड़ी मिलती। कभी हँड़िया ही फूटी मिलती । कभी परई। एकाध बार गोविंद सेठ स्वयं समझाने आये। चंपाकली ने गोविंद सेठ से तो खूब कायदे से बातें की मगर उनके जाते ही धरम की तो चमड़ी ही उधेड़ दी...गोविद सेठ तोर खसम हे का ? ओखर धौंस दिखवत हस।

सहते सहते धरम बूढ़ी हो गई। अशक्त भी।

आखिरकार सेठजी ने सख्त कदम उठाते हुये मकान का धरम वाला हिस्सा ही बिकवा दिया। 

इस समय कभी न झांकने वाले बेटी दमादों ने आकर भारी बखेड़ा किया कि धरम सारा पैसा उन दोनों के नाम कर दे और बारी बारी से दोनों के घर रहे। मगर सेठजी ने सारा पैसा धरम के नाम बैंक में जमा कर दिया ताकि वह ब्याज से गुजारा कर सके। धरम के रहने के लिये उन्होंने अपने एक पुराने टूटे फूटे मकान में व्यवस्था कर दी जहाँ उनकी कुछ बूढ़ी गायें और चारा भूसा रहता था। दामादों से कह दिया ...इसके मरने पर आना और ठीक से क्रिया करम करके पैसा आपस में बांट लेना। अभी भागो यहाँ से।

मैं लंबे समय तक अपने शहर से बाहर ही रही थी। पहले पढ़ाई के सिलसिले में। बाद में विवाह के कारण। बरसों बाद लौटी और जानना चाहा कि धरम अब कहाँ है , कैसी है तो यही सब पता चला।  

सेठजी मोरबर बहुत करीन नोनी (सेठ जी मेरे लिये बहुत किये बेटी )....धरम मुझे कृतज्ञता पूर्वक बता रही थी....भगवान उनखर बालबच्चा ला सुखी रखे। मरहूं तो बेटी दामाद आबे करहीं....उसके चेहरे पर सहज विश्वास , शांति और तरलता थी।

जनम भर की प्रताड़ित , लोगो के उपहास का पात्र बनी , अपने सगे संबंधियों से उपेक्षित , पतिगृह से उजाड़ी गई , बेटियों के , नाती नातियों के प्यार दुलार भरे माहौल  से सर्वथा वंचित , जीवन में कभी भी न्याय न पाने वाली , जीवन की डूबती साँझ इस निर्जन एकांत में गुजारती धरम के शांत तरल चेहरे पर न कोई शिकायत थी , न खिन्नता , न अवसाद। सारी अवमाननाओं को कितनी सहजता से स्वीकार कर लिया था उसने।

वो दुखाही चंपाकली तोला बड़ा दुख दीस ( वह दुष्ट चंपाकली ने तुझे बड़ा दुख दिया )....मेरे मुँह से निकल गया।

कोनो कोई ला दुख र्नइंं दे नोनी...वो सब मोर करम के दंड रहिस होही। वो ह तो ओखी ए।( कोई किसी को दुख नहीं देता बेटी। वह तो मेरे कर्मो का दंड रहा होगां। वह तो एक बहाना , एक माध्यम थी।)

मैं अवाक् रह गई। जनम भर जिसने प्रताड़ना दी। घर से बेघर कर दिया। उसके लिये कोई दुर्भावना कोई मलिनता नहीं इसके मन में।

अब जांँगर नईं चले नोनी....वह कह रही थी...अपन बर भात रांध लेथों। चारा भूसा निकाल के गाय गोरू ला दे देथों। गायमन सब हिल गे हें मोर से। (अपने लिये भात रांध लेती हूँ। चारा भूसा निकाल के गायों को दे देती हूँ। गायें सब मुझसे हिल गई हैं )।

जाने गायें हमारी बातें सुन रही थीं या क्या। पुकार उठीं...बाँ....बाँ...माँ...माँ...

क्या कहूँ इसे ! धैर्य , सहशीलता , क्षमा और आस्था की इस जीवंत मूर्ति के आगे मुझे अपने सारे शब्द व्यर्थ से लगने लगे। समय हो गया था। उससे विदा लेकर अपने घर की ओर कदम बढ़ाते हुये मैंने एकबार फिर पलटकर देखा। घर के सामने हाते पर खड़ी वह हमें जाते हुये देख रही थी...सहज ,शंात , स्निग्ध। सिंदूरी आभा बिखेरता उसका वह दीपक भी वैसा ही जल रहा था...सहज , शांत , स्निग्ध। जाने क्यों मुझे लगा , अगर मुझे यह दृश्य देखने को न मिलता तो नगर में चारों ओर छाई यह चकाचौंध भरी भव्यता मुझे खोखली ही लगती। बेजान ही लगती। इस एक दीप ने मानो इस नगर की भव्यता में प्राण डाल दिये हैं। हाँ , उस नगर की सारी भव्यता , सारा ऐश्वर्य फीका पड़ जाता है अगर उसके किसी कोने में धैर्य ,सहनशीलता , क्षमा और आस्था का कोई दीप अपनी शांत, स्निग्ध , आभा न बिखेर रहा हो।


- शुभदा मिश्र
14,पटेलवार्ड, डोंगरगढ़(छ.ग.) 491445
मो..82695,94598

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: एक दीप धरम का | हिन्दी कहानी
एक दीप धरम का | हिन्दी कहानी
एक दीप धरम का दीवाली की साँझ।अपने ही शहर की छटा देखते विमुग्ध होते जा रहे थे हम। देवताओं के राजा इंद्र की नगरी क्या इससे भी ज्यादा ऐश्वर्यमयी होती होग
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8WBtPXMrMxRqzp971B0Y2gHBihE0sb_tUz0htbYn3mVy05abdbCs90tr8eK3HocRj24_4j2d54BkQ5rrkWeErO4nZq0xuuyvuMOCdBJPnuuu4WR1s_C6l8aYZjRyXPXp3u3nWhKRu66R8k95_U8XCYwxQgKMltW7yNPiQ3wFVyo-VRMvIQE0TDHSfenMG/w320-h320/deep.png
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj8WBtPXMrMxRqzp971B0Y2gHBihE0sb_tUz0htbYn3mVy05abdbCs90tr8eK3HocRj24_4j2d54BkQ5rrkWeErO4nZq0xuuyvuMOCdBJPnuuu4WR1s_C6l8aYZjRyXPXp3u3nWhKRu66R8k95_U8XCYwxQgKMltW7yNPiQ3wFVyo-VRMvIQE0TDHSfenMG/s72-w320-c-h320/deep.png
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/10/ek-deep-dharam-ka-hindi-kahani.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/10/ek-deep-dharam-ka-hindi-kahani.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका