कफन कहानी के घीसू और माधव का चरित्र चित्रण मुंशी प्रेमचंद घीसू और माधव के चरित्र चित्रण के माध्यम से प्रेमचंद ने गरीबी के दुष्परिणामों को बड़ी मार्मिक
कफन कहानी के घीसू और माधव का चरित्र चित्रण | मुंशी प्रेमचंद
मुंशी प्रेमचंद की कहानी "कफन" में घीसू और माधव दो ऐसे पात्र हैं जो गरीबी और बेबसी के बावजूद अपनी मानवीयता को खो देते हैं। इन दोनों पात्रों का चरित्र चित्रण कहानी के मुख्य विषय को उजागर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रेमचन्द आदर्शोन्मुख यथार्थवाद के पक्षधर रहे हैं, पर इस कहानी में वे मात्र यथार्थवाद से ही जुड़े रहे हैं। प्रस्तुत कहानी में प्रमुख दो ही पात्र हैं—घीसू और माधव । घीसू पिता और माधव पुत्र हैं पर विलक्षणता यह है कि दोनों का चरित्र एक ही धरातल पर चित्रित हैं। दोनों ही कामचोर, निकम्मे, आत्मकेन्द्रित, व्यसनी हैं जिन्हें अपने परिवार की भी चिन्ता नहीं है, फलतः उनका जीवन धीर अभावग्रस्तता से भरा है ।
निकम्मे
वह महा निकम्मे थे। ये चमार जाति के थे और अपने निकम्मेपन के कारण सारे गाँव में बदनाम थे, कहानीकार के अनुसार- "घीसू एक दिन काम करता तो तीन दिन आराम। माधव इतना कमजोर था कि आधा घण्टे काम करता तो घण्टे-भर चिलम पीता-घर में मुट्ठी भर भी अनाज मौजूद हो तो उनके लिए काम करने की कसम थी।"
महा आलसी
वे महा आलसी थे। कोई काम नहीं करना चाहते थे। खेतों से आलू आदि उखाड़ लाते और भूनकर खा लेते थे। माधव का विवाह पिछले वर्ष हुआ था। उस स्त्री ने व्यवस्था की नींव डाली थी — “पिसाई करके या घास छीलकर वह सेर भर आटे का इन्तजाम कर लेती थीं और इन दोनों बेगैरतों का दोजख भरती रहती थी। जब से वह आयी, वह दोनों ओर भी आलसी और आराम-तलब हो गये थे । .... कोई काम करने बुलाता तो निर्व्याज भाव से दुगुनी मजदूरी माँगते।'
मद्यप और पेटू
वे दोनों ही पेटू भी थे। दोनों आलू निकाल-निकालकर जलते-जलते खाने लगे-इतना सब न था कि ठण्डा हो जाने देते। कई बार दोनों की जबानें भी जल गयीं। घीसू उस समय ठाकुर की बारात याद आयी क्योंकि उसी दावत में उसे तृप्ति मिली थीं वे दोनों ही चन्दे के पैसे से कफन खरीदने जाते हैं पर वहाँ शराब पीकर छक कर चखौना, तली मछलियाँ, दो सेर पूड़ियाँ कलेजियाँ उड़ाते हैं। डटकर शराब पीते हैं ।
निर्लज्ज
दोनों ही इतने निर्लज्ज हैं कि उन्हें किसी की परवाह भी नहीं है। इसी से वे संसार की थे। । समस्त चिन्ताओं से मुक्त थे । 'कर्ज से लदे हुए। गालियाँ भी खाते, मार भी खाते, मगर कोई भी गम नहीं । उनकी समूची निर्लज्जता इस पंक्ति में ही उभर आती है। भीख माँगकर वह कफन खरीदने गये थे और वहाँ छककर बढ़िया माल खाया, शराब पी और मौज मस्ती उड़ायी, तब माधव कहता है-"बड़ी अच्छी थी बेचारी । मरी तो खूब खिला-पिलाकर ।”
निर्दयी और कठोर
सहृदयता नाम की चीज तो उनको छू भी नहीं गयी थीं फलतः कठोरता और निर्दयता उनके ऊपर हावी थी। जब माधव की पत्नी बुधिया प्रसव वेदना से तड़प रही थी, तब दोनों को कोई चिन्ता नहीं थीं जबकि बुधिया उनको पाल रही थी। वह खुद मेहनत-मजदूरी करती और उन्हें रोटी खिलाती ।. घीसू ने कहा- "मालूम, होता है बचेगी नहीं। सारा दिन दौड़ते हो गया, जा देख-तो आ ।”
“तू बड़ा ही बेदर्द है रे ! सालभर जिसके साथ सुख-चैन से रहा, उसी के साथ इतनी बेवफाई ।" “तो मुझसे तो उसका तड़पना और हाथ-पाच पटकना नहीं देखा जाता।"
घीसू ने आलू निकालकर छीलते हुए कहा-“जाकर देख तो क्या दशा है उसकी ? चुड़ैल का फिसाद. होगा। यहाँ तो ओझा भी एक रुपया माँगता है।"
माधव बोला- "मुझे वहाँ जाने से डर लगता है।"
“डर किस बात का है। मैं तो यहाँ हूँ ही।”
“तो तुम्हीं जाकर देखो न ?”
“मुझसे लजायेगी कि नहीं। जिसका कभी मुँह नहीं देखा, उसका उघड़ा हुआ बदन देखूँ । उसे तन की सुध भी न होगी ? मुझे देख लेगी तो खुलकर हाथ-पाँव भी न पटक सकेगी।
झूठे
वे झूठ बोलने में बड़े कुशल थे। बहाना बनाने में माहिर थे। जब बुधिया मर जाती है, तो उनका असली रूप (झूठ-कपट) सामने आ जाता है। वे कफन के पैसों से छककर पीते हैं और डटकर खाते हैं। जब माधव ने प्रश्न किया—“लोग पूछेंगे नहीं, कफन कहाँ है ?” घीसू हँसा–“अब कह देंगे कि रुपये कमर से खिसक गये, बहुत ढूढ़ा, मिले नहीं ? लोगों को विश्वास तो न आयेगा, लेकिन फिर वही रुपये देंगे।”
उपसंहार
संक्षेप में कहा जा सकता है कि इस कहानी का चरित्रांकन यथार्थ पर आधारित प्रभावी, व्यंजनापूर्ण और विशिष्ट है। कुछ स्तर पर तो सीमा ही पार कर गया है। निर्लज्जता, आत्म-केन्द्रितता, उदासीनता, निर्दयता और घोर निकम्मापन का यथार्थ चित्रण हुआ है।
घीसू और माधव के चरित्र चित्रण के माध्यम से प्रेमचंद ने गरीबी के दुष्परिणामों को बड़ी मार्मिकता से उजागर किया है। इन पात्रों के माध्यम से लेखक यह दिखाना चाहता है कि कैसे गरीबी लोगों को मानसिक रूप से तोड़ सकती है और उन्हें अपने मानवीय मूल्यों को खोने पर मजबूर कर सकती है।घीसू और माधव के चरित्र चित्रण के माध्यम से प्रेमचंद ने "कफन" कहानी को एक सार्वभौमिक अपील दी है। ये पात्र आज भी प्रासंगिक हैं और हमें गरीबी और असमानता के मुद्दों पर गंभीरता से सोचने पर मजबूर करते हैं।
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