कहानी क्या है कहानी के प्रकार कहानी, हिंदी में गद्य लेखन की एक ऐसी विधा है जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को शब्दों के माध्यम से जीवंत करती है। यह एक
कहानी क्या है कहानी के प्रकार
कहानी, हिंदी में गद्य लेखन की एक ऐसी विधा है जो मानव जीवन के विभिन्न पहलुओं को शब्दों के माध्यम से जीवंत करती है। यह एक ऐसी कला है जिसमें लेखक अपनी कल्पना और अनुभवों को पाठक के सामने प्रस्तुत करता है। कहानी, पाठकों को मनोरंजन करने के साथ-साथ उन्हें सोचने और महसूस करने पर भी मजबूर करती है।
हिन्दी में अनेक प्रकार की कहानियाँ लिखी जा चुकी हैं; इसलिए इनका वर्गीकरण कर पाना सहज संभव नहीं है। डॉ० श्रीकृष्णलाल ने हिन्दी कहानियों को स्थूल रूप में तीन वर्गों में विभक्त किया है- कथा-प्रधान, वातावरण-प्रधान और प्रभाव-प्रधान। इन तीनों वर्गों के भी उन्होंने कई उपवर्ग निश्चित किये हैं। उनका वर्गीकरण यद्यपि पूर्ण नहीं कहा जा सकता,फिर भी सुविधा और सरलता की दृष्टि से वह ग्राह्य हो सकता है। कहानियों के तीन तत्त्व-कथा, चरित्र और कार्य अत्यन्त महत्त्वपूर्ण होते हैं। ये तत्त्व हर कहानी में एक साथ उपस्थित होते हैं। इनके माध्यम से लेखक का उद्देश्य किसी भावना अथवा अनुभूति से वातावरण की सृष्टि करना होता है। कुछ कहानियों में लेखक का उद्देश्य घटनाओं, प्रसंगों, चरित्रों तथा कार्यों की सहायता से किसी प्रभाव की सृष्टि करना होता है। अतः कथा एवं कार्य को कहानियों का भेदक आधार माना जा सकता है।
कहानी के प्रकार
कहानियों को विभिन्न आधारों पर वर्गीकृत किया जा सकता है। कुछ प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं:
कथा प्रधान कहानी
ये कहानियाँ तीन प्रकार की होती हैं- चरित्र - प्रधान, घटना-प्रधान और कार्य-प्रधान ।
- चरित्र प्रधान कहानी : जिस कहानी में चरित्र-चित्रण को प्रधानता दी जाती है, वह चरित्र-प्रधान कहानी होती है। 'आत्माराम', 'पुरस्कार' और 'बूढ़ी काकी' जैसी कहानियाँ इसी कोटि में आती हैं। इन कहानियों का एक सुन्दर रूप उन मनोवैज्ञानिक कहानियों में मिलता है जहाँ किसी असाधारण परिस्थिति विशेष में किसी चरित्र का संवेद्य मनोवैज्ञानिक विश्लेषण होता है। इनमें घटना या कथा बहुत कम रहती है। इनमें कुछ ऐसी भी कहानियाँ होती हैं जिनमें अचानक परिवर्तन दिखाया जाता है। कौशिक जी की 'ताई” नामक कहानी में रामेश्वरी के चरित्र में सहसा परिवर्तन दिखाया गया है। इस प्रकार की कहानियों में लेखक अपने प्रमुख चरित्र को विविध परिस्थितियों और प्रसंगों में डालकर उसके गुणों की मनोमय व्यञ्जना करता है। लघु आकार के नाते कहानी में चरित्रों के सभी अंगों और पक्षों का विशद चित्रण संभव नहीं है। अतः लेखक चरित्र का वह मुख्यतम अंश चुनता है जो उसके समग्र गुणों में विशिष्टता का बोधक हो। ये चरित्र प्रायः आत्मवत्ता, वीरता, प्रेम, उदारता आदि के प्रतीक होते हैं।
- घटना प्रधान कहानी - कहानी का सबसे साधारण रूप घटना की प्रधानता ही होती है। इसमें कौतूहल की शान्ति तो अवश्य हो जाती है, किन्तु कला और चरित्र - सौन्दर्य बहुत कम होता है। इनमें घटनाओं के घात-प्रतिघात पर विशेष ध्यान दिया जाता है, जिनमें दैवी घटना और संयोग की सहायता ली जाती है। यहाँ उन उलझनों पर विशेष बल दिया जाता है जो चरित्रों के भिन्न परिस्थितियों में पड़ने के कारण पैदा हो जाती हैं। वस्तुतः यह कहानी की सबसे पुरानी पद्धति है। कौशिक जी की 'पावन पतित' कहानी इसी कोटि में आती है।
- कार्य प्रधान कहानी - इनमें सबसे अधिक बल कार्य पर दिया जाता है, चरित्र को महत्त्व नहीं दिया जाता। गोपालराम गहमरी की जासूसी कहानियाँ तथा अन्य साहसिक, रहस्यपूर्ण, अद्भुत और वैज्ञानिक कहानियाँ इसी कोटि की हैं। जी० पी० श्रीवास्तव की अति प्रसंगपूर्ण हास्यमय कहानियाँ भी ऐसी ही हैं।
वातावरण प्रधान कहानी
इन कहानियों में केवल वातावरण या परिपार्श्व पर ज़ोर देना ही यथेष्ट नहीं है, उनमें कहानियों की परिस्थितियों में से किसी विशेष अंग या पक्ष पर अधिक बल देकर एक मुख्य भावना का प्राधान्य रखा जाता है। इसी प्रकार भावना द्वारा कथा का विकास होता है। जैसे प्रेमचन्द की 'शतरंज के खिलाड़ी' में 'मीर और मिर्ज़ा' तो निमित्त मात्र हैं, कहानी का प्रधान उद्देश्य तो शतरंज की लत का कलापूर्ण चित्रण है। कला की दृष्टि से ऐसी कहानियों का सर्वाधिक महत्त्व है। कलाकार अपनी इच्छानुसार वातावरण की सृष्टि कर सकता है। कवित्वपूर्ण, आदर्शवादी और नाटकीय वातावरण की सृष्टि करने में प्रसाद अद्वितीय हैं। सुदर्शन और प्रेमचन्द की कला में यथार्थवाद का चित्रण मिलता है।
प्रभाव प्रधान कहानी
इन कहानियों में कहानीकार का उद्देश्य किसी प्रभाव विशेष की सृष्टिं करना है। वातावरण, घटना, चरित्र आदि से अधिक महत्त्व प्रभाव को ही दिया जाता है। कला की दृष्टि से ये कहानियाँ, संगीत-कला के अधिक निकट मानी जाती हैं। मोहनलाल महतो की 'कवि' तथा चन्द्रगुप्त विद्यालंकार की 'क' 'ख' 'ग' तथा 'हृदयेश' की कहानियाँ इसी कोटि में आती हैं। हिन्दी में प्रभाव-प्रधान कहानियाँ कम लिखी गयी हैं ।
विविध कहानियाँ
उपर्युक्त कहानियों के अतिरिक्त हास्यपूर्ण, ऐतिहासिक, प्रकृतिवादी और प्रतीकवादी कहानियाँ भी लिखी गयी हैं। हिन्दी में हास्यपूर्ण कहानी-लेखकों में जी० पी० श्रीवास्तव, अन्नपूर्णानन्द और बदरीनाथ भट्ट आते हैं। परन्तु इनका हास्य कुछ विशेष या उच्च कोटि का नहीं है। कुछ कहानियाँ इस कोटि में महत्त्वपूर्ण हैं । ऐतिहासिक उपन्यासों की अपेक्षा हिन्दी में ऐतिहासिक कहानियाँ कम लिखी गयी हैं। वृन्दावनलाल वर्मा, प्रेमचन्द, प्रसाद, सुदर्शन आदि प्रसिद्ध ऐतिहासिक कहानी लेखक हैं। चतुरसेन शास्त्री ने भी इस प्रकार की कहानियाँ लिखी हैं। वैसे प्रसाद को छोड़कर अन्य लेखकों को इस दिशा में कम सफलता मिल सकी है। प्रकृतिवादी कहानियों में मानवता की घृणास्पद और लज्जास्पद बातें कलात्मक ढंग से चित्रित की जाती हैं। यथार्थवादी होने पर भी ऐसी कहानियाँ जनता की रुचि और मंगलभावना के लिए उचित नहीं होतीं। यद्यपि इन कहानियों का उद्देश्य समाज-सुधार करना था, फिर भी ये कुरुचिपूर्ण हैं। इनके कथानक वेश्याओं, सड़क पर भीख माँगने वालों, विधवाश्रमों तथा गुण्डों के समाज से लिये गये हैं। उनका चरित्र-चित्रण यथार्थ और सजीव है, कला निर्दोष है, लेकिन सुरुचि का अभाव उन्हें पनपने नहीं देता । बेचनशर्मा 'उग्र', चतुरसेन शास्त्री ने प्रकृतिवादी ढंग की कुछ कहानियों की रचना की है। प्रतीकवादी कहानियाँ भी हिन्दी में कम लिखी गयी हैं। राय कृष्णदास की 'कला की कृत्रिमता' तथा प्रसाद की 'कला' शीर्षक कहानियाँ सफल प्रतीकवादी कहानियों की कोटि में महत्त्वपूर्ण हैं। इधर व्यंग्य-प्रधान कहानियों के लिए हरिशंकर परसाईं उल्लेखनीय हैं।
इस प्रकार कहानी एक ऐसी शक्तिशाली कला है जो हमें जीवन के विभिन्न पहलुओं को समझने और महसूस करने में मदद करती है। कहानियां पढ़ना हमारे लिए एक सुखद अनुभव होता है और यह हमें कई तरह से फायदा पहुंचाता है।
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