बापू के पावन संदेश पर लेख महात्मा गांधी ने सात ऐसे पापों का उल्लेख किया था जिन्हें उन्होंने मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा माना था। ये सात पाप न केवल व
बापू के पावन संदेश पर लेख
महात्मा गांधी ने सात ऐसे पापों का उल्लेख किया था जिन्हें उन्होंने मानवता के लिए सबसे बड़ा खतरा माना था। ये सात पाप न केवल व्यक्तिगत स्तर पर बल्कि समाज और राष्ट्र के लिए भी हानिकारक होते हैं।
ये सात पाप निम्नलिखित हैं:
श्रम के बगैर संपदा
श्रम के बगैर संपदा प्राप्त करना जीवन में गांधी जी की दृष्टि में वह जघन्य पाप के समान माना गया है, इसलिए हमें संपदा प्राप्त करनी है तो उसके लिए ईमानदारी से संपदा के अनुसार श्रम भी करना पड़ेगा श्रम के बाद जो संपदा मिलेगी वह सुख का निर्माण करेगी ।
आत्मा के बगैर आनंद
बापू जी कहते हैं जिस आनंद में आत्मिक भाव नहीं वह आनंद जीवन में नुकसानदायक होता है और जघन्य पाप के समान माना गया है इसलिए हमें आत्मा यानी वह आनंद का भाव जो किसी को किसी भी प्रकार से हिंसा का भाव, विचार उत्पन्न न करें ऐसे आनंद को आत्मिक आनंद कहते हैं, अर्थात जो जोड़े न की तोड़े। कर्म की सफलता सत्य के साथ होती है तब जो आनंद प्रकट होता है वह आत्मा से जुड़ जाता है ऐसे आनंद को बापूजी ने पाप रहित माना है
मानवता के बगैर विज्ञान
आधुनिकता युग में विज्ञान ने नए-नए आविष्कार और अस्वाभाविक सफलता प्राप्त की है जो मानवता का ध्यान न रखते हुए या मानवता से अलग होकर परिणाम प्रस्तुत करती है जो बापूजी की दृष्टि में वह विज्ञान जघन्य पाप के समान माना जाएगा। विज्ञान परिणाम की प्रमाणिकता होती है लेकिन मानवता विज्ञान के परिणाम की प्रमाणिकता से ऊपर है अर्थात प्रमाण का भी प्रमाण है।
चरित्र के बगैर ज्ञान
बापूजी कहते हैं चरित्र के बिना जान हासिल कर लेना जान एक जघन्य पाप बन जाएगा या माना जाता है विद्वान लोगों का कहना है की शरीर नष्ट हो जाए कोई फर्क नहीं पड़ता, सारा धन नष्ट हो जाए कोई फर्क नहीं पड़ता लेकिन चरित्र नष्ट हो जाए समझो सब कुछ नष्ट हो गया। या हो जाता है इसलिए बापूजी की दृष्टि में चरित्रवान बनकर जान को प्राप्त करना चाहिए अन्यथा वह जान जघन्य पाप बन जाएगा।
सिद्धांतों के बगैर राजनीति
राजनीति बापूजी कहते हैं कोई भी, कहीं भी, राजनीति की बातें होती है या देश में राज्य में चलती है तो वह सिद्धांतों के अनुसार होनी चाहिए अन्यथा वह राजनीति,राजनीति न होकर जघन्य पाप हो जाएगा, सिद्धांतों की राजनीति लोकतंत्र का निर्माण करती है, लोकतंत्र को मजबूत बनाती है, और उसे विश्वसनीय स्थान प्रदान करती है, सिद्धांतों की राजनीति हमें सत्य, अहिंसा का मार्ग प्रदान करती है।
नैतिकता के बगैर व्यापार
व्यापार, बापूजी कहते हैं, छोटा व्यापार हो या बड़ा व्यापार, व्यापार, व्यापार होता है लेकिन व्यापार की कुछ मर्यादाएं होती हैं, जो बापूजी की दृष्टि में नैतिकता के बिना व्यापार करते हैं तो वह जघन्य पाप की श्रेणी में आता है। बापूजी कहते हैं, व्यापार में उतार चढ़ाव आता है और जाता है अर्थात् चलता रहता है लेकिन व्यापारी को अपनी नैतिकता को नहीं भूलना या भुलाना चाहिए नैतिकता व्यापार में सत्य को प्रकट करती है।
त्याग और बलिदान के बगैर पूजा अर्चना
बापूजी कहते हैं, त्याग और बलिदान के बिना पूजा अर्चना भी जघन्य पाप की श्रेणी में चली जाती है, बापूजी ने कहा निःस्वार्थ भाव से त्याग करने से अर्थात् बलिदान करने से किया गया कर्म अपने आप पूजा-अर्चना में बदल जाता है इसलिए हमें त्याग के महत्व को समझना चाहिए और मुफ्त में पूजा-अर्चना का कोई सार्थक अर्थ नहीं वह सिर्फ पाप का ही भाव उत्पन्न करती है।
उद्देश्य
बापूजी सत्य, अहिंसा को सभी सद्गुणों का आधार मानते थे, उनका मानना था की सत्य बोलना चाहिए, जौवन के सभी मूल्य में सत्य की तलाश करनी चाहिए और ईमानदारी और निष्ठा से जीवन जीना चाहिए।
- डॉ. अनिल मीणा,
मुंडावर अलवर, राजस्थान,301407
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जवाब देंहटाएंपर हार्दिक शुभकामनाएं ...