मैला आँचल उपन्यास की तात्विक समीक्षा फणीश्वरनाथ रेणु भारतीय ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकता से रूबरू कराता है। यह उपन्यास सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीति
मैला आँचल उपन्यास की तात्विक समीक्षा | फणीश्वरनाथ 'रेणु'
फणीश्वरनाथ 'रेणु' का उपन्यास "मैला आँचल" हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह उपन्यास केवल एक कथा नहीं है, बल्कि उत्तर-पूर्वी बिहार के ग्रामीण जीवन का एक यथार्थवादी चित्रण है। इस उपन्यास की तात्विक समीक्षा करते हुए हम पाते हैं कि यह उपन्यास समाज, संस्कृति, राजनीति और मानवीय मूल्यों पर गहरा प्रभाव डालता है।
उपन्यास का निर्माण अनेक उपकरणों की सहायता से होता है। शास्त्रीय शब्दावली में इन्हीं को 'तत्व' कहा जाता है। बाह्यतः भिन्न होने पर भी मूलतः ये उपकरण अथवा तत्व परस्पर अन्तः सम्बन्धित और अन्यान्याश्रित होते हैं। इन तत्वों के आधार पर प्रत्येक उपन्यास की अपनी विशेषताएँ होती हैं और इन्हीं का विवेचन करना तात्विक समीक्षा उपन्यास के सर्वमान्य तत्व है - कथानक अथवा कथा वस्तु, पात्र अथवा चरित्र-चित्रण, कथोपकथन अथवा संवाद, भाषा, शैली उद्देश्य देशकाल अथवा वातावरण ।
"मैला आँचल" एक ऐसा उपन्यास है जो हमें भारतीय ग्रामीण जीवन की कठोर वास्तविकता से रूबरू कराता है। यह उपन्यास सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक और मानवीय मूल्यों पर गहरा प्रभाव डालता है। यह उपन्यास हमें समाज में व्याप्त कुरीतियों और असमानताओं के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित करता है।उपरोक्त उपन्यास की समीक्षा निम्नलिखित रूपों में की जा सकती है -
कथावस्तु की दृष्टि से
"यह है मैला आँचल, एक आँचलिक उपन्यास । कथानक है। पूर्णिया।..... मैने इसके एक ही हिस्से एक ही गाँव को पिछड़े गाँवों का प्रतीक मानकर इस उपन्यास का कथा क्षेत्र बनाया है।" उपन्यासकार की इस स्वीकृतोक्ति से स्पष्ट है कि 'मैला आँचल' एक आँचलिक उपन्यास है। अन्य तत्वों के साथ-साथ इसकी कथावस्तु भी एकदम आँचलिक है । वर्णनस्थल है— मेरीगंज। आँचलिक उपन्यास होने के कारण प्रस्तुत उपन्यास में मूलतः मेरीगंज की ही कथा है जिसे विविध कथाओं से कहा गया है । विश्वनाथ प्रसाद, प्रशान्त-कमला, लक्ष्मी-रामदास लक्ष्मी-बालदेव, कालीचरण-वासुदेव, ज्योतिषी जी, कुलिया, बावनदास आदि की अपनी-अपनी कथायें हैं जो मिलकर सम्पूर्ण आँचल की कथा को मुखर करती हैं। मुख्य कथा है- प्रशान्त- कमला की। उसका विस्तार आद्योपांत रहना तथा उपन्यास के प्रारम्भ, विकास और अन्त से सम्बन्धित होना ? अन्य सभी कथायें गौण हैं। स्वाधीनता यह है कि सभी कथायें ग्राम्य की किसी न किसी विशेषता को प्रकट करने के साथ-साथ, मुख्यतः एक ही गाँव-मेरीगंज की कथा को परिपुष्ट करती हैं। शास्त्रीय दृष्टि से, ये वास्तविक, रोचक, प्रवाहशील और मौलिक है। इसमें कहीं-कहीं आदर्श या घटना- चमत्कार भी मिलता है यथा बावनदास की कथा, जमींदार विश्वनाथ प्रसाद का हृदय परिवर्तन, संथाल संघर्ष, कालीचरण का डाकुओं का साथ देना और चाँद पहलवान को हराना आदि ।
इतना होने पर भी, कथानक की घटनाएँ प्रायः धीमी गति से बढ़ती हैं। दूसरे, इन्हें परस्पर सम्बद्धता नहीं है। 'मैला आँचल' में छोटी बड़ी अनेक घटनाओं को इस तरह एकत्र किया है कि सहसा उनमें परस्पर सम्बन्ध खोजना कठिन हो जाता है और वे एक सशक्त कथानक का आकार तक नहीं ले पाते। तीसरे, कथा-प्रसंगों में ‘चयन-दृष्टि और समानुपात-बोध' का पूर्ण निर्वाह नहीं है। उदाहरणार्थ रोमांस-प्रसंगों की भरमार को देखा जा सकता है 1
चरित्र चित्रण की दृष्टि से
कथा विपुलता के कारण यहाँ पर चरित्रों का बाहुल्य है फिर भी इसे दोष नहीं माना जा सकता है। “ये पात्र (अथवा चरित्र) अँचल विशेष की बहुविधि गति-विधि दिखाने या उपन्यास को व्यापकता देने के लिए है। अंचलेतर परिस्थितियों का ज्ञान कराने अथवा मानव-प्रकृति की विचित्रता दिखाने पर उपन्यास की मार्मिकता बढ़ाने में किसी न किसी का योग देते हैं। "सच तो यह है कि बहुसंख्यक पात्र होते हुए भी 'रेणु' जी ने व्यर्थ में पात्रों का निर्माण नहीं किया। यहाँ पात्र बाहुल्य है पर पुनरावृत्ति नहीं। यदि है भी तो सप्रयोजन-सभी अपनी विशेषताओं में विशिष्ट हैं।"
जहाँ तक प्रश्न है पात्र-प्रकार का, वह भी विविध और व्यापक है। इनमें राजनैतिक दलों के पात्र हैं (यथा बालदेव,कालीचरण, वासुदेव, संयोजक जी) गाँव के विविध वर्गों के पात्र हैं। (यथा ज्योतिषी जी, जमींदार, कृषक संथाल, महन्त रामदास, लरासिंह, रामखेलावन), भ्रष्टाचारी हैं। (यथा स्मगलर्स), जनसेवक हैं (यथा' बावनदास), शिक्षित, मानवसेवी हैं। (यथा डॉ. प्रशान्त) नगर-सम्बन्धी पात्र है (यथा ममता)। इतना ही नहीं वरन कामाचारी महन्त ज्योतिषी जी काम पीड़ित (रामपियरिया, फुलिया), कुंठित (कमला, लक्ष्मी) चरित्र हैं तो तहसीलदार, नौकर प्यारू जन-साधारण यथा— गनेसी की माँ तथा भाई-भतीजावादी नेता (यथा नाथूबाबू, चौधरी) आदि भी हैं सभी पात्र किसी न किसी रूप में वर्ग-प्रतिनिधि हैं। इतना ही नहीं वरन् गौण चरित्र भी पूरी तरह उभर कर सामने आए हैं यथा प्यारु, गनेसी की माँ, सुमरितदास आदि। शास्त्रीय दृष्टि से भी ये सभी पात्र कथानुकूल, व्यावहारिक, स्वाभाविक और सभी मिलाकर प्रभावशाली हैं। सच तो यह है कि “मैला आँचल के पात्रों को हम कई स्थितियों में देखते हैं और अन्त में गहरी मानवीय सहानुभूति और आस्था की छाप वे हमारे मन पर छोड़ जाते हैं। दुर्बलतायें मानवता के भविष्य में हमारी आस्था को कम नहीं करती।”
कथोपकथन की दृष्टि से
कथावस्तु को विकसित करने, चरित्रांकन करने उपन्यासकार उद्देश्य को स्पष्ट करने एवं चरित्रों के विचारों को मुखर करने आदि के लिए उपन्यास में भी कथोपकथन का सहारा लिया जाता है। ‘मैला आँचल' में उपन्यासकार ने इनका प्रयोग पर्याप्त रूप में किया है। आँचलिक होने के कारण प्रस्तुत उपन्यास के कथोपकथन भी एकदम आँचलिक गुणों से युक्त हैं। यही कारण है कि इनमें न तो लम्बे-चौडे भाषण हैं और न गहन मनोविश्लेषण की शुष्कता अथवा ज्ञान प्रदर्शन की ऊहापोह । अधिकांश कथोपकथन छोटे, आवश्यकतानुकूल, पात्र प्रसंगानुकूल, सोद्देश्य और स्थानीय विशेषताओं से युक्त हैं। इसकी भाषा एकदम आँचलिक है। एक उदाहरण देखिए-
“जरा अपना हाथ बढ़ाइये तो”
“क्यों ?”
“ हाथ पर गुलाल लगा दूँ ? "
आप होली खेल रहे हैं या इन्जेक्शन दे रहे हैं। चुटकी में अबीर लेकर ऐसे खड़े हैं मानो किसी की माँग में सिन्दूर देना है।'
ग्राम्य भाषा, स्थानीय देशज शब्द, लोकोक्तियाँ- सूक्तियाँ आदि का समावेश करके उपन्यासकार ने इनको एकदम आँचलिक बना दिया है।
भाषा की दृष्टि से
प्रस्तुत उपन्यास में वैसे तो साहित्यिक भाषा (विशेषतः उपन्यासकार के वर्णनों में) तथा लोक भाषा (चरित्रों के कथनों में) दोनों का प्रयोग मिलता है लेकिन प्रधानता है द्वितीय अर्थात् लोकभाषा की। इस लोकभाषा का प्रयोग दो प्रकार से हुआ है-वातावरण-चित्रण और कथोपकथन के रूपों में स्थानीय शब्द (यथा गमकौआ, दुखा, वोरसी, धनहर), विकृत शब्द (इसपिताल, उपनियास, जेहल, जैहित्र), बोलचाल परिवर्तित शब्द (यथा रेडी, धुधका, मूलगैन) आदि के साथ-साथ सर्वप्रचलित अंग्रेजी (यथा टेबल, ब्राइट, रेट, लेट, स्टाक) और उर्दू-फारसी (यथा अवाम्, आफताब, जेहन, जहालत) आदि ने इस भाषा को स्वाभाविक और कथापात्रानुकूल बना दिया है। स्थानीय उक्तियाँ, मुहावरे, अपशब्द, लोक गीत आदि भी इसे गुणमयी बनाते हैं। इस प्रकार प्रस्तुत "उपन्यास की भाषा सीधी-सीधी अपभ्रंश मिश्रित है, बीच-बीच में आँचलिक बोली का पुट है। लगता है कि सम्पूर्ण कथा गाँव की शैली में ही लिपीबद्ध की गई है।" निःसन्देह यह इसकी एक प्रमुख विशेषता है। सच तो यह है कि “प्रादेशिक भाषा के प्रयोग द्वारा सबसे विचारणीय शैल्पिक उपलब्धि फणीश्वरनाथ रेणु की है। उसका इतना प्रभावशाली उपयोग कि वह उपन्यास का गौण पक्ष न रह कर उसका प्रमुख और सबसे महत्वपूर्ण पक्ष प्रतीत हो, यह रेणु की (भाषा की) विशेषता है।” साथ ही यह भी दृष्टव्य है कि स्थानीय भाषा के इस बेलगाम प्रयोग ने उपन्यास को एक ओर तो अरोचक बनाया है और दूसरी ओर पाठकों को समझने में बाधा उत्पन्न कर दी है।
शैली की दृष्टि से प्रस्तुत उपन्यास में उपन्यासकार ने वर्णन, विवरण, संवाद, फ्लैश बैंक, पत्र, भावात्मक और आँचलिक आदि विविध शैलियों का प्रयोग किया है। सभी मिलकर इसे मिश्रित या सामूहिक शैली कह सकते हैं जिससे मुख्यतः तीन लाभ हुए हैं—समूचे पात्र - अँचल का स्वतः चित्रण, उपन्यासकार की तटस्थता तथा समग्र कथा का पात्रों की मानस कथा बन कर मुखर होना उल्लेखनीय है कि आँचलिक शैली का इससे उत्तम प्रयोग इस उपन्यास से पूर्व अन्यत्र नहीं मिलता। सच तो यह है कि “शैली की दृष्टि से किसी उपन्यास की परम्परा न होकर यह एक नया प्रयोग है-काफी सीमा तक नया प्रयोग ।”
उद्देश्य की दृष्टि
'मैला आँचल' एक उद्देश्यपूर्ण रचना है। इसमें व्याप्त विविध उद्देश्य तथा अँचल विशेष (मेरीगंज-पूर्णिया) का चित्रण भारतीय ग्राम्य समाज का प्रस्तुतीकरण, सामयिक समस्याओं का समाधान, स्वतन्त्रता आन्दोलन और उसके जन-मानस पर पड़े विविध प्रभावों का दिग्दर्शन, नवीन जन-चेतना का परिचय देना, आदर्शोन्मुख यथार्थ की स्थापना, जन-शोषक तत्वों पर व्यंग्य तथा नवीन शिल्प-प्रयोग। विशेषता यह है कि उपन्यासकार ने किसी भी उद्देश्य को मुखर करने में न तो लम्बे चौड़े तर्क दिये हैं और न स्वयं पैरवी की है। यहाँ तो सब-कुछ स्वमेव ही प्रकट होता गया है।
देशकाल की दृष्टि से
अंचल विशेष से सम्बद्ध होने के कारण प्रस्तुत उपन्यास का देशकाल सीमित है किन्तु उपन्यासकार ने उसे गहन, सूक्ष्म, विविध पक्षीय और पूर्णतया प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया है। यथार्थ इसका सबसे बड़ा गुण है। "मेरीगंज के चित्रण में लेखक ने भौगोलिक स्थिति, खण्डहरों-नदी- नालों, जलवायु, बारिस बाढ़ उपज- उत्पादन, पशु-पक्षियों आदि का पूरा परिचय मानो गाँव का सर्वांगी मानचित्र दिया है। राजनैतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक तथा सामाजिक परिस्थितियों का प्रायः तटस्थ प्रतिरूपण है।' ग्राम्यांचल का इतना विशद्, व्यापी और सहानुभूति से युक्त अंकन, प्रेमचन्द के पश्चात्, रेणु ही कर सके हैं इस देशकाल अंकन की एक बड़ी विशेषता है--उपन्यासकार का तटस्थ रहना। निःसन्देह लेखक ने मेरीगंज अँचल की अवधि स्थितियों के स्वयं भी वर्णन किये हैं किन्तु वे प्रायः संक्षिप्त हैं। अधिकांशतः तो उसने परोक्ष साधनों का ही प्रयोग किया है। फलस्वरूप यह देशकाल चित्रण अधिक प्रभावशाली हो गया। यहाँ पर अँचल विशेष अपनी सभी अच्छाई-बुराइयों के साथ मानों स्वयं ही समग्र रूप में प्रकट हो गया है स्थान-स्थान पर आये खान-पान, पशु-पक्षी, वनस्पति, अस्त्र-शस्त्र, परिवहन के साधन, वेशभूषा आभूषण उत्सव-त्यौहार, धार्मिक ग्रन्थ और रीति-रिवाज आदि न जाने कितने उल्लेख इसी सत्य के परिचायक हैं। इसी से उपन्यास को पढ़ लेने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि लेखक को अपने अँचल का पूर्ण ज्ञान है।
निष्कर्ष
उपर्युक्त विवेचन से एकदम स्पष्ट है कि उपन्यास के तत्वों के आधार पर 'मैला आँचल' सफल बन पड़ा है। इसमें लेखक की उपन्यास कला पूरी तरह से उभर कर प्रकट हुई है। दूसरे शब्दों में, 'मैला आँचल' नाना विशेषताओं से परिपूर्ण है और लेखक की उपन्यास कला का पूरा-पूरा प्रतिनिधित्व करती है।
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