मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए

SHARE:

मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए भारतीय संस्कृति सदियों से अपनी समृद्धता और विविधता के लिए जानी जाती है। मनोरंजन के साधन सिर्फ मन

मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए


भारतीय संस्कृति सदियों से अपनी समृद्धता और विविधता के लिए जानी जाती है। मनोरंजन के साधन सिर्फ मन को खुश करने का माध्यम ही नहीं होते, बल्कि वे हमारी संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों को भी दर्शाते हैं।मानव की सर्वश्रेष्ठ उपलब्धियों को संस्कृति कहा जाता है. वस्तुतः संस्कृति द्वारा ही किसी जाति, राष्ट्र अथवा समुदाय विशेष के उन समस्त संस्कारों का बोध होता है जिनके सहारे वह अपने आदर्शों, जीवन-मूल्यों आदि का निर्धारण करता है. यथार्थ तो यह है कि भारतीय मनीषा ने इन्द्रिय- शैथिल्य, कामवासना, अनैतिकतापूर्ण प्रसाधनों, पतनशील प्रक्रियाओं और मर्यादारहित मान्यताओं को कभी भी प्रश्रय नहीं दिया है.
 
भारतीय संस्कृति ने शारीरिक स्वास्थ्य के लिए प्राकृतिक जीवन, प्रकृति के उन्मुक्त वातावरण में स्थित तपोनिष्ठ जीवन पर बल दिया और मानसिक स्वास्थ्य के लिए विषय- वासनाओं से दूर रहने का सन्देश दिया. वस्तुतः सभ्यता के उद्गम काल से ही मानव मन बहलाव के संसाधनों और उपायों की प्राप्ति हेतु सक्रिय रहा है. दिन भर के सघन परिश्रम और स्वेदमय जीवन शैली और जीविकोपार्जन के उपरान्त मानव सदैव तन-मन को उत्साह, उमंग और स्फूर्ति प्रदान करने वाले साधनों की कामना करता रहा है. फुरसत के क्षणों और आराम की अवस्था में भी मनुष्य ने तन-मन को गुदगुदाने वाले, बहलाने वाले और आहलादित करने वाले तरीकों को अपनाया है. वैसे भी कथन है कि "परिश्रमोपरान्त आराम और मनोरंजन जीवन को दीर्घायु प्रदान करते हैं." मनोरंजन से जहाँ एक ओर हमारे शिथिल शरीर में ताजगी का संचार होता है, वहीं दूसरी ओर शरीर को आवश्यक कार्य हेतु ऊर्जा भी प्राप्त होती है जहाँ मनोरंजन मानसिक प्रसन्नता प्रदान करता है वहीं यह कार्य के निष्पादन हेतु सामर्थ्य और बौद्धिक क्षमता भी मुहैया कराता है. 

परिश्रमी मानव के लिए तो वैदिक काल से ही मनोरंजन के विविध साधन अमृत-बूँदों के सदृश्य रहे हैं. मनोरंजन के असंख्य साधनों/प्रक्रियाओं और अवयवों ने मानव को कर्मठ और लक्ष्य समर्पित बनाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है. इसलिए मनोरंजन की प्रासंगिकता, उपयोगिता व संदर्भितता निर्विवाद है. यहाँ तक कि बोझिल मन को हल्का करने और शरीर की थकान परे हटाने के लिए पशु-पक्षी भी मन बहलाव की प्रक्रियाओं को अपनाते हैं. निःसन्देह यह सत्य है कि मनोरंजन से जीवन की नीरसता जहाँ दूर भागती है वहीं जीवन की दुरूहता भी हल्की हो जाती है. मनोरंजन में अनन्त आनन्द भी समाहित है और मानसिक सुकून भी मनोरंजन से जहाँ मन ऊर्जावान् बना रहता है वहीं तन स्वस्थ मनोरंजन से बौद्धिक विकास भी सकारात्मक रूप में प्रभावित होता है और रचनात्मक-क्रियाशीलता को भी नवीन आयाम प्राप्त होता है, यह कल्पनाशीलता को नवीन दिशा भी प्रदान करता है. इसलिए हम यह सशक्ततापूर्वक कह सकते हैं कि मनोरंजन की श्रेष्ठता व महत्वशीलता एवं आवश्यकता अद्वितीय व असाधारण है. हकीकत भी यही है कि मनोरंजन मन की खुराक है.
 

भारतीय संस्कृति और मनोरंजन के साधन

वस्तुतः संस्कृति के उद्गम काल से ही चाहे वह सैंधव सभ्यता रही हो या वैदिक सभ्यता, हमें मनोरंजन के साधनों का बाहुल्य दृष्टिगोचर होता है. पांसों का खेल, गेंदों का खेल, गायन, वादन, नृत्य, उत्सव, मेले, समारोह-सत्संग, मल्लयुद्ध, पशु-क्रीड़ाएं, रथदौड़ विविध प्रतियोगिताओं व आयोजनों का माध्यम प्रारम्भ से ही भारतीयों के मन बहलाव का साधन रहा है. राग-रंग, नाचना-गाना, सामूहिक आयोजन प्राचीनकाल से ही मानव को मानसिक ताजगी व शारीरिक स्फूर्ति प्रदान करते रहे हैं. शनैः-शनैः इसी तारतम्य में कलात्मक विकास भी सम्पादित होता गया और सांस्कृतिक कोष सम्पन्न होता गया. यद्यपि गायन-वादन के साथ-साथ नृत्य का श्रीगणेश मनोरंजकता के रूप में हुआ तथापि आगामी काल में अनेक राग-रागनियों, स्वरों व नृत्य शैलियों के माध्यम से कलात्मक व सांस्कृतिक अभिव्यंजना भी मुखर हुई. वैसे तो द्यूत क्रीड़ा भी वैदिक काल में प्रचलित थी पर 'महाभारत का युद्ध' रच देने के कारण सदैव आगामी काल में मनोरंजन के इस साधन को हेय और असामाजिक नजरों से ही देखा गया. शासकों द्वारा राजकीय तमाशों, उत्सवों व अन्य समारोहों का आयोजन करके भी सामूहिक मनोरंजन को समय-समय पर चरितार्थ किया गया. शस्त्र-संचालन, भ्रमण व आखेट (पशु हिंसा के कारण यह आलोचनीय रहा और सर्वमान्य नहीं रहा) को भी मनोरंजन के साधनों के रूप में महत्व हस्तगत हुआ. देखते-ही-देखते नट, गायक, नृत्यांगनाएं, वादक और मदारी अस्तित्वमय हो गए. लोगों का मन बहलाव कर ये जीविका-संचालन करने लगे. राजाओं ने भी गायन-वादन-नृत्य और साहित्य सृजन को राजकीय संरक्षण व संवर्धन प्रदान कर निज मनोरंजन व कलात्मक अनुराग फलीभूत किया. जहाँ वेद, पुराण, अरण्यक, संहिताओं इत्यादि का अध्ययन मनुष्य की ज्ञान-पिपासा का साधन बना, वहीं मन के स्वास्थ्य और मनोरंजन का उपाय भी. सामूहिक आयोजन, उत्सव और मेले त्यौहार तथा क्षेत्रीय समारोह लोगों की थकान को परे हटाकर ताजगी व हल्केपन की संरचनारत् रहे. 

मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए
पर भारतीय संस्कृति ने सदैव नैतिकता, चारित्रिकता, मानवता, स्त्री-सम्मान, मर्यादा व आदर्शवादिता को जीवित रखने वाले मनोरंजक संसाधनों को ही अपने प्रांगण में विचरण करने की आज्ञा दी. लज्जाहीन एवं मूल्यरहित व धर्मच्युत प्रक्रियाओं को न तो पनपने का अवसर प्राप्त हुआ और न ऐसी चेष्टाओं को सिर उठाने दिया गया. इसीलिए तो उत्तर- वैदिक काल में द्यूत क्रीड़ा के असामाजिक व अमर्यादित हो जाने के कारण इसे समाज व संस्कृति संचालकों ने अमान्य कर दिया. पशुवध व शिकार को मनोरंजन के साधनों से भारतीय संस्कृतिवेत्ताओं द्वारा पृथक् कर (यद्यपि यह जीविकोपार्जन के रूप में स्वतः ही अस्तित्वमय रहा) मनोरंजन के साधनों की पावनता व आचरणसंहिता को बहाल रखा गया. नारियों द्वारा यद्यपि गायन, वादन व नृत्य की विधाओं को सम्पादित किया गया, पर कहीं भी प्रस्तुति में अश्लीलता, अमर्यादितता सम्मिलित नहीं हो पाई. यद्यपि सत्ताधीशों ने भोग- विलासिता को राजसी आन-बान-शान का प्रतीक मानकर आचरण अवश्य किया, पर उनकी यह मन बहलाव और मस्ती की मानसिकता उनके निजी जीवन का अंग थी. भारतीय संस्कृति के आदर्श प्रतिमानों द्वारा अनुमोदित मान्यता नहीं. इतिहास के पृष्ठ साक्षी हैं कि भारतीय सांस्कृतिक प्रांगण में मनोरंजन के नाम पर कभी भी अनैतिकता, मूल्यविहीनता व असांस्कृतिकता अंकुरित नहीं हो सकी. मनोरंजन के साधनों का दायरा रहा. आचरणसंहिता रही. गरिमा रही और पावनता रही. हिंसा, नग्नता, फूहड़पन, लज्जा- विहीनता व वासना की शैली से आप्लावित मनोरंजन के साधनों का भारतीय सांस्कृतिक प्रांगण में प्रविष्ट हो पाना तो दूर वे झाँक पाने में भी असमर्थ रहे. मदिरापान और वेश्यावृत्ति के उदाहरण अवश्य मिलते हैं, पर न तो उन्हें सांस्कृतिक अनुमति प्राप्त हुई थी और न ही मान्यता. साथ ही इनसे सरोकार रखने वालों को सदैव समाज और संस्कृति- संवाहकों ने हेय, उपेक्षित और समाजच्युत, सम्मान परे तथा अमर्यादित ही निरूपित किया. कारण ये प्रक्रियाएं भारतीय आदर्श अवधारणाओं के अनुकूल नहीं थीं.
 
यथार्थ तो यही है कि "भारतीय संस्कृति पावन विचारों और नैतिक धारणाओं की पर्याय है." इसीलिए भारतीय संस्कृति के अन्तर्गत मनोरंजन के साधन स्वच्छंद, अनैतिक व पतनशील क्रियाकलापों से न तो सम्बद्धित हो पाए और न संदर्भित. मूलतः भारतीय अर्थात् पूर्वी और पाश्चात्य संस्कृति में यही भिन्नता है और पूर्वी संस्कृति की यही आदर्श शैली उसे श्रेष्ठतम संस्कृति के रूप में स्थापित कराने में सहायक सिद्ध हुई है.
 

वर्तमान और मनोरंजन के साधनों की सांस्कृतिक अनुकूलता

वर्तमान के इस मूल्यरहित, पतनकारी और पाश्चात्य तौर-तरीकों से आप्लावित काल में हमारा समाज नैतिक-अनैतिक, मर्यादित-अमर्यादित, आदर्श-अनादर्श, मूल्ययुक्त-मूल्य- रहित, उचित-अनुचित व सांस्कृतिक-असांस्कृतिक का विचार किए बिना मनोरंजन के साधनों के पीछे अंध-दौड़ लगाने में संलग्न है. इसलिए वर्तमान में अश्लील साहित्य, नग्न व काम-क्रियाओं को प्रस्तुत करने वाले प्रकाशन, विदेशी अश्लील चैनल, ब्लू फिल्में, कैबरे डांस, गैंबलिंग, हिंसक बॉक्सिंग, ऊँट दौड़ (पीठ पर बँधे और विलाप करते शिशु), कॉल- गर्लशिप व वेश्यावृत्ति आदि की व्यापकता दृष्टिगोचर है, यह हमारी सांस्कृतिक क्षति है वस्तुतः यह अविवेक का परिचायक भी है. इनसे हमें मानसिक रुग्णता तो प्राप्त होती ही है, हमारा चरित्र भी दुष्प्रभावित होता है. ऐसे अनैतिक व अस्वस्थ साधनों का मनोरंजन के नाम पर प्रचलन व अनुगमन घोर निंदनीय है. नारी की नग्न देह का अवलोकन, कामुक व रति दृश्यों का दर्शन क्या यथार्थ में मनोरंजन का साधन स्वीकार किया जा सकता है? पर-पुरुष और पर-नारीगमन चाहे कितना भी लुभावना और आकर्षक क्यों न लगे, क्या इसे उचित माना जा सकता है? अश्लील चित्र, चलचित्र और किताबें चाहे कितनी ही रोचक, उत्तेजक और कल्पनालोक में ले जाने वाली क्यों न प्रतीत हों, क्या इन्हें मान्यता दी जा सकती है? और क्या इनका प्रयोग उचित माना जा सकता है? आधुनिकता के नाम पर क्लबों में व्यापकता के साथ जुए का होना और धनिकों द्वारा रुचि लेना क्या नैतिक माना जा सकता है? वस्तुतः मनोरंजन वह नहीं है जिससे हमारा मन बहलाव हो, मनोरंजन वह है जो मर्यादा, गरिमा तथा मूल्यों के अनुकूल हो, क्योंकि विचार-विकृति और वरन् पाश्चात्य प्रदूषण के कारण सम्भव हैं आपको घोर अश्लील, हेय और अनैतिक साधन भाते हों, पर उन्हें न अनुमोदित किया जा सकता है और न ही स्वीकृत. 

मनोरंजन के साधन वही श्रेयस्कर और लाभदायक हैं जो भारतीय संस्कृति के अनुकूल हैं. सत्साहित्य का अध्ययन, नैतिकता के मानदण्डों से युक्त गीत, संगीत, नृत्य व अन्यान्य साधन सदैव मनोरंजन की उपलब्धि तो कराते ही हैं, हमें वास्तविक मानसिक तृप्ति व उत्साह भी प्रदान करते हैं, जबकि आदर्शरहित साधन मात्र क्षणिक उत्तेजना देकर हमारी मानसिक विकृति कर भटकाव व पतन की रचना करते हैं. ऐसे साधन हमारे चरित्र में घुन की भाँति लगकर हमें असामाजिक व कलंकित कर देते हैं. इनसे हमें मानसिक, शारीरिक, आर्थिक, सामाजिक, आध्यात्मिक व सक्रियता सम्बन्धी क्षति होती है. ऐसे मनोरंजन के साधन जो भारतीय संस्कृति के प्रतिकूल हैं हमारी ऊर्जा का क्षय कर हमारी सृजनात्मक व बौद्धिक शक्तियों पर आघात कर हमें अक्षम बना डालते हैं.
 
वस्तुतः वर्तमान के भटकाव वाले, दूरदर्शनी संस्कृति (?) के इस दौर में मनोरंजन के नाम पर नग्नता, अश्लीलता, अनैतिकता व कामुकता का बोलबाला है. क्लबों में पानी-सी बहती मदिरा, मादक व उत्तेजक धुनों पर थिरकते नग्न नारी जिस्म, थियेटरों, वीडियो- पार्लरों व विदेशी चैनलों और वी.सी.आर./ वी.सी.पी. में गरमाती फिल्में क्या सचमुच में मनोरंजन का साधन स्वीकार की जा सकती हैं? पाश्चात्यता का अविवेकपूर्ण अंधानुकरण महानगरों में कॉलगर्लशिप और रेड लाइट एरिया को पीछे छोड़ता हुआ 'वाइफ स्वेपिंग' (मनोरंजन के नाम पर पत्नी की अदला-बदली) तक जा पहुँचा है, क्या इसे उचित कहा जा सकता है और क्या ये सब तथाकथित साधन यथार्थ में ताजगी, मानसिक शान्ति और सक्रियता प्रदान करने वाले मनोरंजन के साधनों की परिधि में आते हैं ? बॉक्सिंग के नाम पर रिंग में खून का बहाव, डब्ल्यू. डब्ल्यू.एफ. की कुश्तियाँ (हिंसक प्रदर्शन, कृत्रिम ही सही), ऊँट दौड़ व फूहड़पन, द्विअर्थता से परिपूर्ण चलचित्र व गाने, कमर हिलाऊ नृत्य, अभद्र प्रदर्शन व प्रस्तुतियाँ, सस्ती व स्तरहीन पत्रिकाएं, ग्लैमरस चित्र अवलोकन ये सब मृगमरीचिका से अधिक कुछ नहीं है. तात्कालिक रूप में केवल मन बहले, यही मनोरंजन के साधन की विशेषता नहीं है, वरन् मन को स्थायी सुकून व स्फूर्ति मिले यह विशेषता सन्निहित होनी चाहिए.
 
इसीलिए भारतीय संस्कृति के अनुकूल मनोरंजन के साधन ही मान्य, उपयोगी, हितकर, सारगर्भित व प्रयोगणीय हैं. भारतीय संस्कृति द्वारा अनुमोदित मूल्यों को अपने गर्भ में धारण करके रखने वाले मनोरंजन के साधन ही व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय व सांस्कृतिक दृष्टि से उपयोगी व महत्वपूर्ण हैं. वैसे भी सांस्कृतिक मूल्यों की बहाली से ही राष्ट्र विकास सम्भव होता है और पतन पर विराम लगता है. यह हमारा व्यक्तिगत दायित्व भी है और राष्ट्रीय कर्तव्य भी कि हम भारतीय संस्कृति के अनुकूल. मनोरंजन के साधन ही अपनाएं. तभी हमारा व्यक्तिगत हित सम्पन्न होगा और राष्ट्र का विकास फलीभूत होगा तथा धार्मिक, नैतिक, आध्यात्मिक और चारित्रिक भारतीय सांस्कृतिक श्रेष्ठता बहाल हो सकेगी. भारतीयों की आदर्शवादिता और विचारों की पावनता भी सदैव सांस्कृतिक मान्यताओं व अवधारणाओं द्वारा ही सुरक्षित रह सकती है.

शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से हम फुटबाल, हॉकी, क्रिकेट आदि का महत्व स्वीकार करते हैं, परन्तु इनके साथ तैरना, कबड्डी, लपक डंडा, कूके आदि खेलों को भी मान्यता कर दें, तो भारतीय बालकों के लिए अनेक मनोरंजन के साधन मिल जाएं.
 

उपसंहार 

वर्तमान के दूरदर्शनी मायाजाल व सांस्कृतिक संक्रमण के इस युग में भारतीय सांस्कृतिक दिशा-निर्देशन और उसका अनुकरण ही हमें दिग्भ्रमित होने से सुरक्षित कर हमारे कल्याण की प्रक्रिया को सम्पादित कर सकता है. इंद्रिय लोलुपता और अनैतिकता, अमानवीयता व पतनशीलता से सने हुए मनोरंजन के साधन, मनोरंजन के साधन नहीं वरन् हमारे विनाश की सामग्री हैं. वैसे भी कहा गया है कि "हर चमकने वाली वस्तु सोना नहीं होती है." तएव स्पष्ट है कि मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनूकूल होने चाहिए. यही समय की माँग है और विवेक का तकाजा भी.

COMMENTS

Leave a Reply
नाम

अंग्रेज़ी हिन्दी शब्दकोश,3,अकबर इलाहाबादी,11,अकबर बीरबल के किस्से,62,अज्ञेय,37,अटल बिहारी वाजपेयी,1,अदम गोंडवी,3,अनंतमूर्ति,3,अनौपचारिक पत्र,16,अन्तोन चेख़व,2,अमीर खुसरो,7,अमृत राय,1,अमृतलाल नागर,1,अमृता प्रीतम,5,अयोध्यासिंह उपाध्याय "हरिऔध",7,अली सरदार जाफ़री,3,अष्टछाप,4,असगर वज़ाहत,11,आनंदमठ,4,आरती,11,आर्थिक लेख,8,आषाढ़ का एक दिन,22,इक़बाल,2,इब्ने इंशा,27,इस्मत चुगताई,3,उपेन्द्रनाथ अश्क,1,उर्दू साहित्‍य,179,उर्दू हिंदी शब्दकोश,1,उषा प्रियंवदा,5,एकांकी संचय,7,औपचारिक पत्र,32,कक्षा 10 हिन्दी स्पर्श भाग 2,17,कबीर के दोहे,19,कबीर के पद,1,कबीरदास,19,कमलेश्वर,7,कविता,1474,कहानी लेखन हिंदी,17,कहानी सुनो,2,काका हाथरसी,4,कामायनी,6,काव्य मंजरी,11,काव्यशास्त्र,38,काशीनाथ सिंह,1,कुंज वीथि,12,कुँवर नारायण,1,कुबेरनाथ राय,2,कुर्रतुल-ऐन-हैदर,1,कृष्णा सोबती,2,केदारनाथ अग्रवाल,4,केशवदास,6,कैफ़ी आज़मी,4,क्षेत्रपाल शर्मा,52,खलील जिब्रान,3,ग़ज़ल,139,गजानन माधव "मुक्तिबोध",15,गीतांजलि,1,गोदान,7,गोपाल सिंह नेपाली,1,गोपालदास नीरज,10,गोरख पाण्डेय,3,गोरा,2,घनानंद,3,चन्द्रधर शर्मा गुलेरी,6,चमरासुर उपन्यास,7,चाणक्य नीति,5,चित्र शृंखला,1,चुटकुले जोक्स,15,छायावाद,6,जगदीश्वर चतुर्वेदी,17,जयशंकर प्रसाद,35,जातक कथाएँ,10,जीवन परिचय,76,ज़ेन कहानियाँ,2,जैनेन्द्र कुमार,6,जोश मलीहाबादी,2,ज़ौक़,4,तुलसीदास,28,तेलानीराम के किस्से,7,त्रिलोचन,4,दाग़ देहलवी,5,दादी माँ की कहानियाँ,1,दुष्यंत कुमार,7,देव,1,देवी नागरानी,23,धर्मवीर भारती,10,नज़ीर अकबराबादी,3,नव कहानी,2,नवगीत,1,नागार्जुन,25,नाटक,1,निराला,39,निर्मल वर्मा,4,निर्मला,42,नेत्रा देशपाण्डेय,3,पंचतंत्र की कहानियां,42,पत्र लेखन,202,परशुराम की प्रतीक्षा,3,पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र',4,पाण्डेय बेचन शर्मा,1,पुस्तक समीक्षा,139,प्रयोजनमूलक हिंदी,38,प्रेमचंद,47,प्रेमचंद की कहानियाँ,91,प्रेरक कहानी,16,फणीश्वर नाथ रेणु,4,फ़िराक़ गोरखपुरी,9,फ़ैज़ अहमद फ़ैज़,24,बच्चों की कहानियां,88,बदीउज़्ज़माँ,1,बहादुर शाह ज़फ़र,6,बाल कहानियाँ,14,बाल दिवस,3,बालकृष्ण शर्मा 'नवीन',1,बिहारी,8,बैताल पचीसी,2,बोधिसत्व,9,भक्ति साहित्य,143,भगवतीचरण वर्मा,7,भवानीप्रसाद मिश्र,3,भारतीय कहानियाँ,61,भारतीय व्यंग्य चित्रकार,7,भारतीय शिक्षा का इतिहास,3,भारतेन्दु हरिश्चन्द्र,10,भाषा विज्ञान,17,भीष्म साहनी,8,भैरव प्रसाद गुप्त,2,मंगल ज्ञानानुभाव,22,मजरूह सुल्तानपुरी,1,मधुशाला,7,मनोज सिंह,16,मन्नू भंडारी,10,मलिक मुहम्मद जायसी,9,महादेवी वर्मा,20,महावीरप्रसाद द्विवेदी,3,महीप सिंह,1,महेंद्र भटनागर,73,माखनलाल चतुर्वेदी,3,मिर्ज़ा गालिब,39,मीर तक़ी 'मीर',20,मीरा बाई के पद,22,मुल्ला नसरुद्दीन,6,मुहावरे,4,मैथिलीशरण गुप्त,14,मैला आँचल,8,मोहन राकेश,15,यशपाल,15,रंगराज अयंगर,43,रघुवीर सहाय,6,रणजीत कुमार,29,रवीन्द्रनाथ ठाकुर,22,रसखान,11,रांगेय राघव,2,राजकमल चौधरी,1,राजनीतिक लेख,21,राजभाषा हिंदी,66,राजिन्दर सिंह बेदी,1,राजीव कुमार थेपड़ा,4,रामचंद्र शुक्ल,3,रामधारी सिंह दिनकर,25,रामप्रसाद 'बिस्मिल',1,रामविलास शर्मा,9,राही मासूम रजा,8,राहुल सांकृत्यायन,2,रीतिकाल,3,रैदास,4,लघु कथा,124,लोकगीत,1,वरदान,11,विचार मंथन,60,विज्ञान,1,विदेशी कहानियाँ,34,विद्यापति,8,विविध जानकारी,1,विष्णु प्रभाकर,2,वृंदावनलाल वर्मा,1,वैज्ञानिक लेख,8,शमशेर बहादुर सिंह,6,शमोएल अहमद,5,शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय,1,शरद जोशी,3,शिक्षाशास्त्र,6,शिवमंगल सिंह सुमन,6,शुभकामना,1,शेख चिल्ली की कहानी,1,शैक्षणिक लेख,57,शैलेश मटियानी,2,श्यामसुन्दर दास,1,श्रीकांत वर्मा,1,श्रीलाल शुक्ल,4,संयुक्त राष्ट्र संघ,1,संस्मरण,33,सआदत हसन मंटो,10,सतरंगी बातें,33,सन्देश,44,समसामयिक हिंदी लेख,269,समीक्षा,1,सर्वेश्वरदयाल सक्सेना,19,सारा आकाश,20,साहित्य सागर,22,साहित्यिक लेख,86,साहिर लुधियानवी,5,सिंह और सियार,1,सुदर्शन,3,सुदामा पाण्डेय "धूमिल",10,सुभद्राकुमारी चौहान,7,सुमित्रानंदन पन्त,23,सूरदास,16,सूरदास के पद,21,स्त्री विमर्श,11,हजारी प्रसाद द्विवेदी,4,हरिवंशराय बच्चन,28,हरिशंकर परसाई,24,हिंदी कथाकार,12,हिंदी निबंध,432,हिंदी लेख,532,हिंदी व्यंग्य लेख,14,हिंदी समाचार,182,हिंदीकुंज सहयोग,1,हिन्दी,7,हिन्दी टूल,4,हिन्दी आलोचक,7,हिन्दी कहानी,32,हिन्दी गद्यकार,4,हिन्दी दिवस,91,हिन्दी वर्णमाला,3,हिन्दी व्याकरण,45,हिन्दी संख्याएँ,1,हिन्दी साहित्य,9,हिन्दी साहित्य का इतिहास,21,हिन्दीकुंज विडियो,11,aapka-banti-mannu-bhandari,6,aaroh bhag 2,14,astrology,1,Attaullah Khan,2,baccho ke liye hindi kavita,70,Beauty Tips Hindi,3,bhasha-vigyan,1,chitra-varnan-hindi,3,Class 10 Hindi Kritika कृतिका Bhag 2,5,Class 11 Hindi Antral NCERT Solution,3,Class 9 Hindi Kshitij क्षितिज भाग 1,17,Class 9 Hindi Sparsh,15,English Grammar in Hindi,3,formal-letter-in-hindi-format,143,Godan by Premchand,11,hindi ebooks,5,Hindi Ekanki,20,hindi essay,424,hindi grammar,52,Hindi Sahitya Ka Itihas,105,hindi stories,679,hindi-bal-ram-katha,12,hindi-gadya-sahitya,8,hindi-kavita-ki-vyakhya,19,hindi-notes-university-exams,67,ICSE Hindi Gadya Sankalan,11,icse-bhasha-sanchay-8-solutions,18,informal-letter-in-hindi-format,59,jyotish-astrology,22,kavyagat-visheshta,25,Kshitij Bhag 2,10,lok-sabha-in-hindi,18,love-letter-hindi,3,mb,72,motivational books,11,naya raasta icse,9,NCERT Class 10 Hindi Sanchayan संचयन Bhag 2,3,NCERT Class 11 Hindi Aroh आरोह भाग-1,20,ncert class 6 hindi vasant bhag 1,14,NCERT Class 9 Hindi Kritika कृतिका Bhag 1,5,NCERT Hindi Rimjhim Class 2,13,NCERT Rimjhim Class 4,14,ncert rimjhim class 5,19,NCERT Solutions Class 7 Hindi Durva,12,NCERT Solutions Class 8 Hindi Durva,17,NCERT Solutions for Class 11 Hindi Vitan वितान भाग 1,3,NCERT Solutions for class 12 Humanities Hindi Antral Bhag 2,4,NCERT Solutions Hindi Class 11 Antra Bhag 1,19,NCERT Vasant Bhag 3 For Class 8,12,NCERT/CBSE Class 9 Hindi book Sanchayan,6,Nootan Gunjan Hindi Pathmala Class 8,18,Notifications,5,nutan-gunjan-hindi-pathmala-6-solutions,17,nutan-gunjan-hindi-pathmala-7-solutions,18,political-science-notes-hindi,1,question paper,19,quizzes,8,raag-darbari-shrilal-shukla,7,Rimjhim Class 3,14,samvad-lekhan-in-hindi,6,Sankshipt Budhcharit,5,Shayari In Hindi,16,skandagupta-natak-jaishankar-prasad,6,sponsored news,10,suraj-ka-satvan-ghoda-dharmveer-bharti,4,Syllabus,7,top-classic-hindi-stories,51,UP Board Class 10 Hindi,4,Vasant Bhag - 2 Textbook In Hindi For Class - 7,11,vitaan-hindi-pathmala-8-solutions,16,VITAN BHAG-2,5,vocabulary,19,
ltr
item
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika: मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए
मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए
मनोरंजन के साधन भारतीय संस्कृति के अनुकूल होने चाहिए भारतीय संस्कृति सदियों से अपनी समृद्धता और विविधता के लिए जानी जाती है। मनोरंजन के साधन सिर्फ मन
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi97qtzXrtGB0Xg9ApyZSlOg2QakltJgF3kMqeXdzNG7Qx21tg8wZ4OiEbOAyVXgjAyDpW_edfeo9zbCwPH1XY8iUUE2_5gz0tpvgW913dZqRet1QgQdS5VPWS5Nb0ILMSzLYl0QpAS989lkXjnGwhGOZsEn7T2SeUnXXzPt6h05Z-DfUnyaqNRyaL5sUB3/w290-h320/bharatiya-sanskriti.jpg
https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEi97qtzXrtGB0Xg9ApyZSlOg2QakltJgF3kMqeXdzNG7Qx21tg8wZ4OiEbOAyVXgjAyDpW_edfeo9zbCwPH1XY8iUUE2_5gz0tpvgW913dZqRet1QgQdS5VPWS5Nb0ILMSzLYl0QpAS989lkXjnGwhGOZsEn7T2SeUnXXzPt6h05Z-DfUnyaqNRyaL5sUB3/s72-w290-c-h320/bharatiya-sanskriti.jpg
हिन्दीकुंज,Hindi Website/Literary Web Patrika
https://www.hindikunj.com/2024/10/manoranjan-ke-sadhan-bhartiya-sanskriti-ke-anukul.html
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/
https://www.hindikunj.com/2024/10/manoranjan-ke-sadhan-bhartiya-sanskriti-ke-anukul.html
true
6755820785026826471
UTF-8
Loaded All Posts Not found any posts VIEW ALL Readmore Reply Cancel reply Delete By Home PAGES POSTS View All RECOMMENDED FOR YOU LABEL ARCHIVE SEARCH ALL POSTS Not found any post match with your request Back Home Sunday Monday Tuesday Wednesday Thursday Friday Saturday Sun Mon Tue Wed Thu Fri Sat January February March April May June July August September October November December Jan Feb Mar Apr May Jun Jul Aug Sep Oct Nov Dec just now 1 minute ago $$1$$ minutes ago 1 hour ago $$1$$ hours ago Yesterday $$1$$ days ago $$1$$ weeks ago more than 5 weeks ago Followers Follow THIS PREMIUM CONTENT IS LOCKED STEP 1: Share to a social network STEP 2: Click the link on your social network Copy All Code Select All Code All codes were copied to your clipboard Can not copy the codes / texts, please press [CTRL]+[C] (or CMD+C with Mac) to copy बिषय - तालिका