राग दरबारी उपन्यास का सारांश | श्रीलाल शुक्ल

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श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण रत्न है। यह उपन्यास भारतीय समाज, खासकर ग्रामीण भारत की राजनीति और सामाजिक संरचना पर

राग दरबारी उपन्यास का सारांश | श्रीलाल शुक्ल


श्रीलाल शुक्ल का उपन्यास राग दरबारी हिंदी साहित्य का एक महत्वपूर्ण रत्न है। यह उपन्यास भारतीय समाज, खासकर ग्रामीण भारत की राजनीति और सामाजिक संरचना पर व्यंग्य करता है। उपन्यास में लेखक ने पात्रों के माध्यम से सत्ता के खेल, भ्रष्टाचार, अहंकार और दिखावे की परतें उधेड़कर रख दी हैं।रागदरबारी उपन्यास की कथावस्तु बहुत कसी हुई है। वह 35 परिच्छेदों में चलती है। इसका कथानक संक्षेप में इस प्रकार है -
 
शहर के किनारे एक ट्रक खड़ा था। ट्रक के ड्राइवर और क्लीनर एक दुकान के सामने खड़े होकर चाय पी रहे थे । 
रंगनाथ रोज की तरह ट्रेन को दो घण्टा लेट समझकर घर से चला था, मगर उस दिन उसकी ट्रेन छूट गयी थी। रास्ते में चलते हुए उसने ट्रक की ओर देखा और वह बहुत प्रसन्न हुआ।रंगनाथ ड्राइवर से पूछकर शिवपालगंज जाने के लिए ट्रक में बैठ गया। ट्रक बहुत तेज रफ्तार से शिवपालगंज की ओर बढ़ रहा था। रास्ते में ट्रक के आगे एक स्टेशन वैगन रुकी, उसमें से एक अफसर और दो सिपाहियों ने उतरकर ट्रक की चैकिंग शुरू कर दी। इसके बाद स्टेशन वैगन भी चली गई, ट्रक भी चल दिया और शाम होते-होते ट्रक शिवपालगंज पहुँच गया।
 
राग दरबारी उपन्यास का सारांश | श्रीलाल शुक्ल
शिवपालगंज के थाने में दरोगा जी और एक व्यक्ति के बीच वहाँ की आपराधिक स्थिति के बारे में वार्तालाप हो रहा है। इसी बीच वहाँ रुप्पन बाबू पहुँचते हैं। रुप्पन बाबू कक्षा 10 के छात्र हैं और अपने कॉलेज के नेता हैं। वे थाने में आकर कहते हैं कि उनको वहाँ पर उनके पिताजी ने रिपोर्ट करने भेजा है कि रामाधीन के यहाँ डाकुओं की चिट्ठी आई है, जिसमें पाँच हजार रुपये की माँग की गयी है। रुप्पन बाबू उस चिट्ठी को जाली बताकर उसके लिए सिपाहियों पर आरोप लगाते हैं और दरोगा जी उसके लिए शिक्षा-विभाग को दोषी ठहराते हैं। इतने में उस ओर रामाधीन आता हुआ दिखाई देता है।
 
छंगामल विद्यालय (इण्टरमीडिएट कॉलेज) का परिचय दिया गया है। इसी विद्यालय में मास्टर मोतीराम विज्ञान की कक्षा ले रहे हैं। वे आपेक्षिक घनत्व पढ़ा रहे हैं आपेक्षिक घनत्व समझाने के लिए वह दो आटा चक्कियों का उदाहरण देते हैं। इस पर लड़के मजाक बनाते हैं। मास्टर साहब आपेक्षिक घनत्व को बिना समझाए तथा किताब में से पढ़ने के लिए कहकर चले जाते हैं। कॉलेज के प्रिंसीपल चपरासी के साथ मास्टर मोतीराम की कक्षा के सामने से निकलते हैं। उस कक्षा को भी देखने के लिए एक अन्य मास्टर मालवीय से कह देते हैं। मालवीय दो भिन्न कक्षाओं को एक साथ पढ़ाने में अपनी असमर्थता प्रकट करते हैं। प्रिंसीपल उसे दोनों कक्षा लेने का आदेश देकर वहाँ से चले जाते हैं।
 
खन्ना मास्टर इतिहास के अध्यापक हैं, परन्तु इण्टरमीडिएट की कक्षा को अंग्रेजी पढ़ा रहे हैं। उस कक्षा का निरीक्षण करने के पश्चात् प्रिंसीपल साहब मास्टर खन्ना पर क्रोध करते हैं कि पढ़ाई से ज्यादा महत्वपूर्ण डिसीप्लिन है।प्रिंसीपल साहब को रास्ते में मजदूर और ठेकेदार मिलते हैं। प्रिंसीपल साहब टीचरों से परेशान हैं और ठेकेदार मजदूरों से। ठेकेदार प्रिंसीपल से कहते हैं कि आप फिक्र न कीजिए। डण्डे के जोर से प्रिंसीपली कीजिए।
 
शिवपालगंज में एक वैद्य जी रहते हैं। असली शिवपालगंज वैद्य जी की बैठक में है। थाने से लौटकर रुप्पन बाबू आते हैं। घर पर आकर उनको शहर से आने वाले अपने ममेरे भाई रंगनाथ मिलते हैं। इसी समय वैद्य जी की बैठक में नियमित रूप से बैठने वाले मंगल से उनकी मुलाकात होती है। मंगल को लोग सनीचर भी कहते हैं।बातचीत में रुप्पन बाबू रंगनाथ से कहते हैं कि मारपीट करने से स्टूडेण्ट कम्यूनिटी बदनाम होती है। रुप्पन बाबू तीन साल से कक्षा दस में होने के लिए देश की शिक्षा-पद्धति को दोषी ठहराते हैं। वे शिवपालगंज के अध्यापकों को बुरा-भला कहते हैं। रुप्पन की बातें सुनकर वैद्य जी अन्दर से ही उनसे शान्त रहने के लिए कहते हैं और घोषणा करते हैं कि इस कुव्यवस्था का अन्त होने वाला है। रुप्पन रंगनाथ को बताते हैं कि उनके पिता वैद्य जी कॉलेज के प्रबन्धक हैं, कोऑपरेटिव यूनियन के मैनेजिंग डायरेक्टर हैं । वैद्य जी राजनीतिज्ञ हैं।
 
वैद्य जी के अनुसार सेहत के लिए अधिक जिम्मेदार ब्रह्मचर्य है। सेहत का सम्बन्ध गरीबी और खुराक से नहीं है। वैद्य जी ब्रह्मचर्य पर भाषण देते हैं। वैद्यजी रंगनाथ से कहते हैं कि ब्रह्मचर्य से मुँह पर तेज आ जाता है। रुप्पन बाबू का विचार है कि मुँह पर तेज लाने के लिए ब्रह्मचर्य की आवश्यकता नहीं है। आजकल तो क्रीम-पाउडर लगाने से भी तेज आ जाता है।
 
लंगड़ को मुकदमे के लिए पुराने फैसले की नकल चाहिए। इसी सन्दर्भ में वैद्य जी के चबूतरे पर लंगड़ बैठा है। लंगड़ को मंगल भंग पिलाता है। वैद्य जी की बैठक में प्रिंसीपल साहब, क्लर्क, वैद्य जी, रंगनाथ आदि हैं। सनीचर ने प्रिंसीपल साहब को भी भंग पिलाई। वैद्य जी प्रिंसीपल साहब को भंग पड़ी हुई सामग्री की विशेषता बताते हुए कहते हैं कि रंगनाथ की तन्दुरुस्ती बनाने के लिए उन्होंने उसे गाँव बुलाया है। धर्म पर डटे रहने के कारण लंगड़ को नकल लेने में बहुत परेशानी हो रही है। लंगड़ प्रिंसीपल को बताता है कि कोऑपरेटिव में गबन हो गया है। हँसी-मजाक के दौरान कोऑपरेटिव के गबन के बाद कॉलेज के अध्यापकों के बारे में बात होने पर वैद्य जी प्रिंसीपल साहब से कहते हैं कि अपने विरोधी से भी आदरपूर्वक बात करनी चाहिए। यह राजनीति का सिद्धान्त है। बाद में बात जूता मारने की परम्परा पर आ जाती है। 

रिक्शे पर बद्री पहलवान बैठकर आ रहे हैं। बद्री पहलवान रिक्शे वाले से फसल के बारे में बात करना चाह रहे थे, मगर रिक्शेवाला मूड में नहीं था। पहलवान और रिक्शे वाले में देहाती और शहरी रिक्शे वालों के बारे में बातचीत होती है। इसी सन्दर्भ में दुःख के ऊपर बात होती है कि दुःख मनुष्य को निचोड़ देता है।
 
बाबू रामाधीन कलकत्ते में अफीम का कारोबार करते थे। अफीम के कानून के अन्तर्गत वे गिरफ्तार हो गये। जेल से छूटकर उनको गाँव वापस आना पड़ा। रामाधीन की रास्ते में बद्री पहलवान से मुलाकात होती है। रामाधीन बद्री पहलवान का रिक्शा रुकवाकर उससे कहते हैं कि उनके यहाँ डाका पड़ने वाला है। रामाधीन बद्री पहलवान को बताते हैं कि उनसे पाँच हजार रुपये की माँग की चिट्टी रुप्पन ने भेजी है। बद्री यह कहकर चल देते हैं कि रुप्पन को समझा दूँगा और यदि ज्यादा बुरा लगा है तो हमारे यहाँ भी ऐसी चिट्ठी भिजवा दो।
 
बद्री पहलवान का कमरा रंगनाथ को रहने के लिए दे दिया गया है। वैद्य जी ने रंगनाथ की सेहत बनने के हिसाब से उसका नित्य का कार्यक्रम बना दिया है। रंगनाथ को मालूम पड़ा कि गाँव में भी पीढ़ी का संघर्ष है। इसके बाद कॉलेज, सहकारी समिति और ग्राम-सभा का त्रिकोणात्मक संघर्ष शुरू होता है। वैद्य जी इस संघर्ष के केन्द्र-बिन्दु हैं। वैद्य जी रूपी आकाश के तले प्रिंसीपल, सनीचर, गयादीन, बद्री पहलवान, छोटे पहलवान, रुप्पन बाबू, रंगनाथ और लंगड़ का प्रभावी अस्तित्व विद्यमान है।
 
कॉलेज से सम्बन्धित कथानक में यह बात स्पष्ट कर दी गयी है कि शिक्षा राजनीति की दासी है और उसकी स्थिति बहुत ही दयनीय है। दलगत राजनीति एवं उससे सम्बद्ध तमाम दोष शिक्षा-जगत् को बंजर बना चुके हैं। 

तीनों मोर्चों पर संघर्ष चलता है, जो युद्ध या जंग के स्तर तक पहुँच जाता है। राजनीति की उखाड़ पछाड़ और कूटनीति के दाँव-पेंच चलते हैं। अन्ततः तीनों मोर्चों पर वैद्य जी सफल होते हैं और ग्राम शिवपालगंज के बेताज बादशाह के रूप में उभरकर सामने आते हैं वैद्य जी उनके ज्येष्ठ पुत्र वद्री पहलवान, बद्री पहलवान के चेले छोटे पहलवान, परिवार-सेवक सनीचर, प्रिंसीपल आदि अपने समस्त विरोधियों को पराजित कर देते हैं और खन्ना, मालवीय, रुप्पन, रंगनाथ सभी न्यूनाधिक रूप में मुँह की खाते हैं।
 
कथा का समापन प्रिंसीपल और रंगनाथ की बात-चीत से होता है। प्रिंसीपल प्रस्ताव करते हैं कि रंगनाथ खन्ना की जगह उनके कॉलेज में इतिहास के लेक्चरार हो जायें-"इतिहास के लेक्चरार की जगह हमारे यहाँ खाली पड़ी हुई है। उसी में आप क्यों नहीं लग जाते। ठाठ से मामा के यहाँ रहिए, कॉलेज में दो घण्टा पढ़ाइए। बाकी वक्त रिसर्च कीजिए।
 
रंगनाथ की आँखों में खून उतर आता है। स्कूल में मास्टरी और वह भी एक विरोधी के कॉलेज में। प्रिंसीपल ऊँचे खिलाड़ी हैं। रंगनाथ को रास्ते पर लाने के लिए कहते हैं- " मैं तो तुम्हें घर का आदमी मानकर कह रहा हूँ। आखिर कहीं-न-कहीं नौकरी तो करोगे ही।"
 
रंगनाथ को अत्यधिक क्रोध आ जाता है। वे पूरे आवेश में आकर कहते हैं कि प्रिंसीपल साहब! आपकी बातचीत से मुझे नफरत हो रही है, इसे बंद कीजिए। प्रिंसीपल उदास होकर कहते हैं- “रंगनाथ ! तुम्हारे विचार बहुत ऊँचे हैं। पर कुल मिलाकर यही साबित होता है कि तुम गधे हो।" इसके बाद बातचीत में गतिरोध आ जाता है और कथावस्तु का अंत हो जाता है। 

मदारी की डुगडुगी बजने लगती है। सामने मदारी के दोनों बन्दर मुँह फुलाये बैठे हैं। सम्भवत: मदारी के इशारे पर नाचने को तैयार हैं। कुछ दूरी पर कुछ कुत्ते दुम हिलाते कमर लपलपाते भाँक रहे हैं। अन्तिम पंक्तियाँ सम्भवतः उपन्यास की प्रतीकात्मकता के सन्दर्भ में लिखी गयी हैं। वैद्य जी सबको मदारी की तरह बन्दर बनाकर नचाते हैं। उनके विरोधी दूर खड़े होकर कुत्तों की तरह भोंकते रहते हैं। 

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