राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति एवं प्रमुख प्रावधान भारतीय संविधान ने हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया है। यह निर्णय भारत की विविधतापूर्ण भा
राजभाषा हिन्दी की संवैधानिक स्थिति एवं प्रमुख प्रावधान
भारतीय संविधान ने हिंदी को भारत की राजभाषा का दर्जा दिया है। यह निर्णय भारत की विविधतापूर्ण भाषाई पृष्ठभूमि को ध्यान में रखते हुए लिया गया था।सांविधानिक स्थिति संविधान की धारा 120 के अनुसार संसद का कार्य हिन्दी या अंग्रेजी में किया जाता है । परन्तु यथास्थिति लोकसभा का अध्यक्ष या राज्यसभा का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। संसद विधि-द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् “या अंग्रेजी में" शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 210 के अन्तर्गत राज्यों के विधान मण्डलों का कार्य अपने अपने राज्य की राज्यभाषा या राजभाषाओं में या हिन्दी में या अंग्रेजी में किया जा सकता है । परन्तु यथास्थिति विधान सभा का अध्यक्ष या विधान परिषद् का सभापति किसी सदस्य को उसकी मातृभाषा में सदन को सम्बोधित करने की अनुमति दे सकता है। राज्य का विधान मण्डल विधि द्वारा अन्यथा उपबन्ध न करे तो 15 वर्ष की अवधि के पश्चात् “या अंग्रेजी में” शब्दों का लोप किया जा सकेगा।
धारा 343- संघ की राजभाषा हिन्दी और लिपि देवनागरी होगी और अंकों का रूप भारतीय अंकों का अन्तर्राष्ट्रीय रूप होगा। शासकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजों भाषा का प्रयोग 15 वर्ष की अवधि तक किया जाता रहेगा। परन्तु राष्ट्रपति इस अवधि के दौरान किन्ही शासकीय प्रयोजनों के लिये अंग्रेजी के साथ हिन्दी भाषा का प्रयोग अधिकृत कर सकेगा।
धारा 344- इस संविधान के प्रारम्भ से 5 वर्ष की समाप्ति पर राष्ट्रपति एक आयोग गठित करेगा जो निश्चित की जाने वाली एक प्रक्रिया के अनुसार राष्ट्रपति को सिफारिश करेगा कि किन शासकीय प्रयोजनों के लिये हिन्दी का प्रयोग अधिकाधिक किया जा सकता है। आदि। यह प्रावधान भी किया गया कि ये आयोग भारत की औद्योगिक, सांस्कृतिक और वैज्ञानिक उन्नति का और लोक-सेवाओं के सम्बन्ध में अहिन्दी भाषी क्षेत्रों के न्यायसंगत दावों और हितों का पूरा-पूरा ध्यान रखेंगे। आयोग की सिफारिशों पर संसद की एक समिति अपनी राय राष्ट्रपति को देगी। इसके पश्चात् राष्ट्रपति उस सम्पूर्ण रिपोर्ट के या उसके किसी भाग के अनुसार निर्देश जारी कर सकेगा।
धारा 345- किसी राज्य को विधानमण्डल विधि द्वारा, उस राज्य में प्रयुक्त होने वाली या किन्हीं अन्य भाषाओं को या हिन्दी को शासकीय प्रयोजन के लिये स्वीकार कर सकेगा। यदि किसी राज्य का विधान मण्डल ऐसा नहीं कर पायेगा तो अंग्रेजी भाषा का प्रयोग यथावत् किया जाता रहेगा।
धारा 346- संघ द्वारा प्राधिकृत भाषा एक राज्य या दूसरे राज्य के बीच में तथा किसी राज्य या संघ की सरकार के बीच पत्र आदि की राजभाषा होगी। यदि कोई राज्य परस्पर हिन्दी भाषा को स्वीकार करेंगे तो उस भाषा का प्रयोग किया जा सकेगा।
धारा 347- यदि किसी राज्य की जनसंख्या का पर्याप्त भाग यह चाहता हो कि उसके द्वारा बोली जाने वाली भाषा को उस राज्य में (दूसरी भाषा के रूप में) मान्यता दी जाये और इस निमित्त से माँग की जाये तो राष्ट्रपति यह निर्देश दे सकेगा कि ऐसी भाषा को भी उस राज्य में सर्वत्र या उसके किसी भाग में ऐसे प्रयोजन के लिये जो वह विनिर्दिष्ट कर, शासकीय मान्यता दी जाये।
धारा 348- जब तक संसद विधि द्वारा उपबन्ध करे तब तक उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सब तरह की कार्यवाही अंग्रेजी भाषा में होगी। संसद के प्रत्येक सदन या राज्य के विधान मण्डल के किसी सदन में विधेयकों, अधिनियमों, प्रस्तावों, आदेशों, नियमों,विनियमों और विधियाँ एवं राष्ट्रपति अथवा किसी राज्य के राज्यपाल द्वारा प्रख्यापति अध्यादेशों के प्राधिकृत पाठ अंग्रेजी भाषा में होंगे। किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाही के लिये हिन्दी भाषा या उस राज्य में मान्य भाषा का प्रयोग: - प्राधिकृत कर सकेगा, परन्तु उस उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये निर्णय, डिक्री या आदेशों पर इस खण्ड की कोई बात लागू नहीं होगी। यह प्रावधान भी किया गया है कि इस खण्ड की किन्हीं . बातों के लिये यदि अंग्रेजी से भिन्न किसी भाषा को प्राधिकृत किया गया है, तो अंग्रेजी भाषा में उसका अनुवाद प्राधिकृत पाठ समझा जायेगा।
धारा 349- राजभाषा से सम्बन्धित संसद यदि कोई विधेयक या संशोधन पुनः स्थापित या प्रस्ताविक करना चाहे तो राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी पड़ेगी और राष्ट्रपति आयोग की सिफारिशों पर और उन सिफारिशों की गठित रिपोर्ट पर विचार करने के पश्चात् ही अपनी मंजूरी देगा, अन्यथा नहीं ।
धारा 350- प्रत्येक व्यक्ति किसी शिकायत को दूर करने के लिए संघ या राज्य के किसी अधिकारी या प्राधिकारी को यथास्थिति संघ में या राज्य में प्रयोग होने वाली किसी भाषा में अभ्यावेदन देने का हकदार होगा। अल्पसंख्यक बच्चों की प्राथमिक शिक्षा उनकी मातृभाषा में दिये जाने की पर्याप्त सुविधा सुनिश्चित की जायेगी। भाषायी अल्पसंख्यक वर्गों के लिये राष्ट्रपति एक विशेष अधिकारी को नियुक्ति करेगा जो उन वर्गों के सभी विषयों में सम्बन्धित रक्षा के उपाय करेगा और अपनी रिपोर्ट समय-समय पर राज्यपाल और राष्ट्रपति को देगा। जिस पर संसद विचार करेगी।
धारा 351 के अन्तर्गत यह निर्देश दिया गया कि संघ का यह कर्त्तव्य होगा कि वह हिन्दी भाषा का प्रसार बढ़ाए और उसका विकास करे ताकि वह भारत की सामाजिक संस्कृति के सभी तत्त्वों की अभिव्यक्ति का माध्यम बन सके और उसकी प्रकृति में हस्तक्षेप किये बिना हिन्दुस्तानी के और आठवीं अनुसूची में विनिर्दिष्ट भारत की अन्य भाषाओं में प्रयुक्त रूप, शैली और पदों को आत्मसात करते हुए और जहाँ आवश्यक या वांछनीय हो वहाँ उसके शब्द भंडार के लिये मुख्यतः संस्कृत से और गौणतः अन्य भाषाओं से शब्द ग्रहण करते हुए उसकी समृद्धि सुनिश्चित करे ।
भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची भारत की भाषाओं से संबंधित है। इस अनुसूची में 22 भारतीय भाषाओं को शामिल किया गया है, जो देश की भाषाई विविधता को दर्शाता है।असमिया, बंगाली, गुजराती, हिन्दी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली आदि भाषाएँ शामिल हैं ।
हिंदी भारत की राजभाषा है और इसका संविधान में महत्वपूर्ण स्थान है। हालांकि, हिंदी भाषा के विकास में अभी भी कई चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों से निपटने के लिए सरकार और समाज को मिलकर प्रयास करने होंगे।
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