सारा आकाश उपन्यास के कथानक की विशेषताएं | राजेंद्र यादव राजेंद्र यादव का उपन्यास "सारा आकाश" हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति है। इस उपन्यास में ल
सारा आकाश उपन्यास के कथानक की विशेषताएं | राजेंद्र यादव
राजेंद्र यादव का उपन्यास "सारा आकाश" हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण कृति है। इस उपन्यास में लेखक ने भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं को बड़ी ही गहराई से उकेरा है। किसी भी कहानी अथवा उपन्यास की रचना में कथानक का महत्वपूर्ण स्थान होता है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि कथानक के बिना कहानी या उपन्यास की रचना असम्भव है। कथानक में किसी एक विषय को महत्व दिया जाता है। एक कथा मुख्य होती है और उस कथा को आगे बढ़ाने में अन्य छोटी-छोटी प्रासंगिक कथाएँ सहायता करती हैं। 'सारा आकाश' उपन्यास में भी कथाकार राजेन्द्र यादव ने
- मुख्य कथा तथा
- प्रासंगिक कथाओं दोनों का समावेश किया है।
इसके अतिरिक्त रोचकता, मौलिकता, विश्वसनीयता, प्रवाह और कौतूहल जैसे गुण भी कथानक में होना जरूरी हैं। 'सारा आकाश' की मुख्य कथा समर और प्रभा के जीवन से सम्बन्धित है जबकि बाबूजी, अम्मा, भाभी, अमर और मुन्नी आदि से जुड़े प्रसंग गौण कथा अथवा प्रासंगिक कथाएँ कही जाती हैं। यही वे पात्र हैं जो समर और प्रभा के जीवन की समस्याओं को दर्शाते हैं। संयुक्त परिवार की बुराइयाँ, नई बहू के प्रति सास और जेठानी का दुर्व्यवहार, बाबूजी का क्रोध और उनके ताने, बेरोजगार समर की मजबूरियाँ, स्त्री-समाज की दुर्दशा, आर्थिक पराधीनता आदि समस्याओं को 'सारा आकाश' में इन्हीं पात्रों और प्रासंगिक घटनाओं के द्वारा दर्शाया गया है।
समर और प्रभा को लेकर बुने गए मुख्य कथानक को जो प्रासंगिक कथाएँ आगे बढ़ाती हैं, वे इस प्रकार हैं—
- समर की बहन मुन्नी और उसके पति की कथा।
- शिरीष से जुड़े हुए प्रसंग ।
- समर के मित्र दिवाकर और उसकी पत्नी किरण से जुड़े प्रसंग।
- समर की भाभी से सम्बन्धित प्रसंग ।
सारा आकाश में ये सभी प्रासंगिक घटनाएँ मुख्य कथा से जुड़ी हुई हैं और मुख्य कथा के छिपे हुए उद्देश्यों को प्रकट करने में पूरी तरह सफल हैं।उपर्युक्त विशेषताओं के अतिरिक्त इस उपन्यास के कथानक में कुछ अन्य विशेषताएँ भी दिखाई देती हैं, जो किसी भी उपन्यास की सफलता के लिए आवश्यक हैं। ये विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
मौलिकता
यहाँ मौलिकता से अर्थ नवीनता से है अर्थात् कथानक का विषय नया हो, वह किसी देशी-विदेशी पुस्तक की नकल नहीं होनी चाहिए। इस दृष्टि से 'सारा आकाश' की कथा पूर्णतः मौलिक है। यह भारतीय समाज विशेष रूप से मध्यमवर्गीय संयुक्त परिवार की समस्याओं, नवविवाहितों में सामंजस्य का अभाव, परिवार में स्त्रियों द्वारा स्त्रियों पर अत्याचार और उन्हें एक-दूसरे से नीचा दिखाने के अवसर तलाशना, बेरोजगार युवक को परिवारीजनों द्वारा ताने मारना, धन के अभाव से उपजी अनेक समस्याओं, स्त्री शिक्षा का अभाव, दहेज प्रथा एवं पुरुष की दूषित मनोवृत्ति आदि का सजीव चित्र हमारे सामने प्रस्तुत करता है। यदि इस दृष्टि से देखा जाए तो 'सारा आकाश' पूर्णतः मौलिक उपन्यास है।
रोचकता
यह मनुष्य का स्वभाव है कि वह रुचिकर विषयों को ही पढ़ना चाहता है। अतः पाठक को बाँधे रखने के लिए कथानक में रोचकता होना जरूरी है। 'सारा आकाश' में आवश्यकतानुसार पारिवारिक जीवन के अनेक रोचक प्रसंगों को भी स्थान दिया गया है जो जीवन की सच्चाई को प्रस्तुत करने के साथ-साथ नीरसता को दूर करने में पूरी तरह सफल हैं। शिरीष भाई के विचार लम्बे होने के कारण कहीं-कहीं उबाने लगते हैं, परन्तु ये उपन्यास की माँग हैं क्योंकि यही विचार पाठकों को उनकी दकियानूसी सोच से स्वतंत्र होने को प्रेरित करते हैं। उपन्यास में मुन्नी से सम्बन्धित कुछ प्रसंग, देवर-भाभी का हँसी-मजाक, समर और प्रभा के प्रेम-प्रसंग कथानक की रोचकता को बनाए रखते हैं।
प्रवाहमयता
उपन्यास की कथा और उसके प्रसंगों का परस्पर जुड़ा रहना उपन्यास की सफलता के लिए बहुत जरूरी है। इससे कथानक में प्रवाह बना रहता है। ‘सारा आकाश' में प्रवाह का गुण प्रारम्भ से अंत तक दिखाई देता है।
उपन्यास समर के विवाह से आरम्भ होता है और इसके बाद अनेक घटनाएँ घटित होती हैं जिनमें प्रथम रात्रि में समर और प्रभा में बातचीत न होना, भाभी द्वारा प्रभा के सम्बन्ध परिजनों से खराब करने की चेष्टा, आर्थिक तंगी का सामना करते बाबूजी का क्रोध, अम्मा और भाभी का बात-बात पर ताने मारना, मुन्नी से जुड़ी: घटनाएँ, दिवाकर और शिरीष के प्रसंग, समर और प्रभा की मानसिक स्थितियाँ कथानक को इस तरह जोड़ देती हैं कि उनमें प्रवाह अपने आप उत्पन्न हो गया है। यही नहीं उसमें एक गति, लय और क्रम सभी जगह दिखाई देता है। अत: 'सारा आकाश' प्रवाह की दृष्टि से भी एक सफल उपन्यास है।
कौतूहल
उपन्यास के कथानक में इस गुण का विशेष महत्व है। यही वह गुण है जो पाठक में प्रारम्भ से अंत तक यह जिज्ञासा उत्पन्न करता है कि अब आगे क्या होगा ? 'सारा आकाश' की कथावस्तु में कौतूहल का गुण भी प्रत्येक अंक और घटना के बाद दिखाई देता है और वे यह जानने को उत्सुक रहते हैं कि इस घटना के बाद अब क्या घटित होने वाला है ? समर की मानसिक दशा का चित्रण पाठकों में यह जिज्ञासा जगाए रहता है कि क्या समर को उसकी समस्याओं से छुटकारा मिल जाएगा ? क्या वह और प्रभा एक सुखी विवाहित जीवन जी पाएँगे ? उपन्यास के अन्त तक पाठक के मन में ये प्रश्न उमड़ते रहते हैं, परन्तु उपन्यास के अन्त में उपन्यासकार ने समस्याओं के समाधान नहीं सुझाए हैं अतः पाठक के ये प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाते हैं और कौतूहल बना ही रहता है। यदि इस दृष्टि से देखा जाए तो उपन्यास की सफलता पर कोई सन्देह नहीं रहता।
यथार्थता
उपन्यास की कथावस्तु यथार्थपरक होनी चाहिए अर्थात् उपन्यास की मुख्य कथा और घटनाएँ जीवन की सच्चाई से जुड़ी होनी चाहिए। प्रत्येक कथाकार यथार्थ के साथ कल्पना का भी समावेश अपने उपन्यास में करता है, परन्तु उसे यह भी ध्यान रखना चाहिए कि कल्पना का उतना ही प्रयोग करे जो मानव जीवन का अंश दिखाई दे और पाठक उन कथाओं और घटनाओं पर विश्वास कर सके। इस दृष्टि से यदि हम देखें तो पता चलता है कि 'सारा आकाश' मानव जीवन में घटने वाली घटनाओं को ही हमारे सामने प्रस्तुत करता है।
साठ के दशक में कम आयु में बेरोजगार युवक-युवतियों की शादी तथा उससे उत्पन्न समस्यायें वास्तविक जीवन के ही चित्र हैं। संयुक्त परिवार में एक-दूसरे को नीचा दिखाने की मानसिकता, सास द्वारा बहू को बात-बात पर ताने मारना, बहुओं के साथ अम्ना जी का भेदभावपूर्ण व्यवहार, आर्थिक संकटों का सामना करते बाबूजी की झल्लाहट, नई और पुरानी पीढ़ी के विचारों में अन्तर, संयुक्त परिवार की कलह, मुन्नी पर मुन्नी के पति का अत्याचार और उसका मायके आकर रहना, ये सभी स्थितियाँ आज भी भारतीय समाज और भारतीय परिवारों में देखने को मिलती हैं। अत: 'सारा आकाश' यथार्थपरक और विश्वसनीय उपन्यास है।
सार रूप में हम कह सकते हैं कि कथानक की विशेषताओं के आधार पर 'सारा आकाश' पूर्णतः सफल उपन्यास है।
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