आपका बंटी उपन्यास का नामकरण | मन्नू भंडारी

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आपका बंटी उपन्यास का नामकरण मन्नू भंडारी शीर्षक न केवल सरल और यादगार है, बल्कि उपन्यास के केंद्रीय विषय और पात्रों के मनोविज्ञान को भी गहराई से उजागर

आपका बंटी उपन्यास का नामकरण | मन्नू भंडारी


न्नू भंडारी का प्रसिद्ध उपन्यास आपका बंटी अपने शीर्षक के माध्यम से ही पाठक को कहानी की ओर आकर्षित करता है। यह शीर्षक न केवल सरल और यादगार है, बल्कि उपन्यास के केंद्रीय विषय और पात्रों के मनोविज्ञान को भी गहराई से उजागर करता है।

किसी भी साहित्यिक रचना के नामकरण का कोई-न-कोई विशेष आधार अवश्य होता है । उपन्यास के नामकरण के विषय में किसी प्रकार के एकमत की कल्पना करना अपने-आप में एक निराधार बात है । उपन्यासों के नामकरण का आधार या तो कोई पात्र विशेष अथवा घटना-विशेष, स्थान-विशेष अथवा उपन्यास का उद्देश्य आदि में से कुछ भी हो सकता है।वस्तुतः जिस समय किसी उपन्यास की रचना की जाती है, उस समय उपन्यासकार अनिवार्यतः उसका नामकरण नहीं कर देता ।अनेक बार प्रारम्भ में सोचा गया नाम बाद में परिवर्तित हो जाता है। यह कहा जा सकता है कि उपन्यास के नामकरण का कोई निश्चित नियम नहीं है।

आपका बंटी उपन्यास का नामकरण | मन्नू भंडारी
संस्कृतों के आचार्यों ने काव्य-शास्त्र के अन्तर्गत साहित्यिक रचना के नामकरण के विषय में विस्तार से विचार किया है। उपन्यास शब्द का संस्कृत काव्य-शास्त्र में कहीं पर भी उल्लेख नहीं है। वैसे उपन्यास शब्द का अर्थ समीप रखना है। पता नहीं कब, कैसे और किसने अंग्रेजी के 'नॉवेल' शब्द के समानार्थक रूप में उपन्यास शब्द का प्रचलन और प्रयोग किया। यह मत सभी को स्वीकार्य है कि उपन्यास रचना की प्रेरणा हिन्दी के लेखकों को बँगला भाषा से प्राप्त हुई है। हिन्दी के लेखकों ने पहले बँगला भाषा के उपन्यासों का अनुवाद किया। इसके बाद मौलिक उपन्यासों की रचना की। यह अनुमान करना अनुचित न होगा कि उपन्यास की रचना के साथ यह नाम भी बँगला से आया होगा ।
 
संस्कृत में गद्य विधाएँ तो हैं, पर उपन्यास के नाम से कोई गद्य विधा नहीं है । उन्होंने गद्य की रचनाओं के दो भेद-कथा और आख्यायिका किये हैं। ऐतिहासिक सत्य और तथ्य पर रचित गद्य की रचना को कथा तथा काल्पनिक कथानक वाली गद्य रचना को आख्यायिका कहा गया है। कुछ आधुनिक आचार्य बाणभट्ट द्वारा विरचित कादम्बरी को उपन्यास मानते हैं ।
 
नामकरण के विषय में संस्कृत के आचार्यों का मत है कि रचना का नाम रचयिता अर्थात् कवि या लेखक के नाम पर, प्रमुख घटना के नाम पर, उद्देश्य के नाम पर, प्रमुख पात्र या नायक के नाम पर अथवा पात्र के नाम पर किया जा सकता है। इस दृष्टि से विचार करें तो बंटी उपन्यास का नामकरण नायक के नाम के आधार पर किया गया है । इस उपन्यास के आरम्भ में बंटी शब्द का प्रयोग दूसरे वाक्य में किया गया है। इससे पहले शकुन के लिए 'मम्मी' शब्द का प्रयोग हुआ है। जैसे "ममी ड्रेसिंग टेबुल के सामने बैठी तैयार हो रही है । बंटी पीछे खड़ा चुपचाप देख रहा है ।" इस आधार पर कह सकते हैं कि बंटी इस उपन्यास में आने वाला पहला नाम है ।इस उपन्यास के अन्त में बंटी ही आने वाला नाम है । प्रमाण के रूप में पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं- 

“उसे गोद में उठाकर किसी ने खड़ा कर दिया । सफेद दाढ़ीवाले चेहरे में से एक और चेहरा उभर आया— पापा ।' 
"जल्दी से मुँह-हाथ धो लो, नींद उड़ जायेगी । पाँच-सात मिनट में ही स्टेशन आने वाला है।" 
“तो बंटी धीरे-धीरे जैसे अपने में लौट आया । रेल का डिब्बा, डिब्बे में बैठे हुए लोग, सामान बाँधते हुए पापा । सवेरे का उजाला चारों ओर फैल गया था।' 
"पता नहीं क्या हुआ कि इतनी देर में मन पर रखा हुआ पत्थर जैसे एकाएक ही दरक गया और ढेर-ढेर आँसू उफन आए । भीतर की आँखों में ही नहीं, बाहर की आँखों में भी । " 
आँसू भरी आँखों के सामने डिब्बे की हर चीज, बैठे हुए अजनबी लोगों के चेहरे पहले धुँधले हुए, और धुँधले हुए और एक-दूसरे में मिल गये। पापा का चेहरा भी उन्हीं में मिल गया और फिर धीरे-धीरे सारे चेहरे एक दूसरे में गड्डमड्ड हो गये ।"

उपन्यास का प्रधान पक्ष अर्थात् नायक उपन्यास के आरम्भ से अन्त तक रहता है है इस दृष्टि से बंटी इस उपन्यास का नायक है और इस उपन्यास का नामकरण नायक के आधार पर माना जा सकता है।इस उपन्यास की रचयिता मन्नू भण्डारी को इसकी रचना की प्रेरणा बंटी शब्द से ही प्राप्त हुई । उन्होंने इस उपन्यास के आरम्भ में 'जन्म-पत्री : बंटी की' शीर्षक से जो लिखा है, वह इस बात का प्रमाण है- "यह बाँकुरा की एक साँझ थी।"
 
अचानक ही पी. का फोन आया-"तुम से बहुत कुछ जरूरी बात करनी है, जैसे भी हो, आज शाम को मिलो, बाँकुरा में ।" मैं उस जरूरी बात से कुछ परिचित भी थी और चिन्तिन भी । रेस्त्राँ की भीनी रोशनी में मेज पर आमने-सामने बैठकर परेशान और बदहवास पी. ने कहा- "समस्या बंटी की है। तुम्हें शायद मालूम हो कि बंटी की माँ (पी. की पहली पत्नी) ने शादी कर ली। मैं बिल्कुल नहीं चाहता कि अब वह वहाँ एक अवांछनीय तत्त्व बनकर रहे, इसलिए तय किया है कि बंटी को मैं अपने पास ले जाऊँगा । अब से वह यहीं रहेगा ।" और फिर वे देर तक बताते रहे कि बंटी से उन्हें कितना लगाव है और इस नई व्यवस्था में वहाँ रहने से उनकी स्थिति क्या हो जायेगी ? मैंने उनकी भावना, चिन्ता, उद्विग्नता को समझते हुए अपनी पहली प्रतिक्रिया व्यक्त की" आप ऐसा नहीं सोचते कि यह गलत होगा ? मुझे लगता है कि उसे अपनी माँ के पास ही रहना चाहिए, क्योंकि साल में दो एक बार मिलने के अलावा उसके पास कोई आसरा नहीं है। जबकि माँ के साथ वह शुरू से रह रहा है, एक छत्र होकर रहा है। इस नाजुक उम्र में वहाँ से वह उखड़ जायेगा और सम्भवतः यहाँ जम नहीं पायेगा । लम्बी बातचीत के बाद तय हुआ कि बंटी अभी कुछ दिनों के लिए वहीं रहे लेकिन उस दिन लौटते हुए सचमुच बंटी कहीं मेरे साथ चला आया । आकर डायरी में मैंने बंटी की पहली जन्मपत्री बनायी । उस रात बंटी की विभिन्न स्थितियों में न जाने कितने कल्पना चित्र बनते- बिगड़ते रहे । मुझे लगा, बंटी अपनी नई माँ के घर आ गया है।'
 
उपन्यास की इस भूमिका से स्पष्ट है कि लेखिका मन्नू भण्डारी को उपन्यास की रचना करने और इसका नामकरण करने की प्रेरणा बंटी से प्राप्त हुई। इस दृष्टि से उपन्यास का नामकरण सभी प्रकार से उचित है।
 
हिन्दी की उपन्यास-परम्परा, विशेषतः सामाजिक उपन्यासों की परम्परा पर यदि दृष्टि डालें तो पता चलता है कि सामाजिक उपन्यासों का नामकरण प्राय: उपन्यास के उद्देश्य के आधार पर किया जाता है। इस दृष्टि से गबन, रंगभूमि, गोदान, कब तक पुकारूँ, एक टुकड़ा इतिहास आदि नामों का उल्लेख किया जा सकता है।
 
प्रस्तुत उपन्यास में बंटी ही एकमात्र वह पात्र है जो सम्पूर्ण उपन्यास पर छाया हुआ है। इस उपन्यास में घटनाएँ अधिक हैं लेकिन दूसरी ओर उपन्यास में बंटी के अतिरिक्त अन्य पात्र भी हैं, किन्तु ही बंटी एकमात्र ऐसा पात्र है जो उपन्यास के आरम्भ से लेकर अन्त तक विद्यमान रहता है। प्रस्तुत उपन्यास में मुख्यतः तीन ही महत्वपूर्ण घटनाएँ हैं- प्रथम शकुन और अजय का पार्थक्य, दूसरे शकुन का डॉ. जोशी से विवाह और तीसरा बंटी । बंटी को मम्मी का अधिक प्यार प्राप्त है, वह अपने पापा का भी बहुत दुलारा है, किन्तु उसका सबसे बड़ा दुर्भाग्य यही है कि मम्मी-पापा के रहते हुए भी उसे सच्चे अर्थों में माता-पिता का स्नेह प्राप्त नहीं हो सका । 

विडम्बना तो यह है कि जो मम्मी किसी समय अपने जीवन के प्रत्येक क्षण को बंटी के सुख के लिए समर्पित किए रहती थी, अन्ततः उसी मम्मी को अपने ही हाथों से बंटी को अपने से अलग करना पड़ा। शकुन ने स्पष्ट यह देखा कि जिस बंटी के प्रति उसने अपना सर्वस्व समर्पित कर दिया था, वही बंटी उसके जीवन की सबसे बड़ी बाधा बन गया था। डॉ. जोशी के साथ विवाह कर लेने के पश्चात् बंटी उन परिवर्तित परिस्थितियों में समायोजित नहीं हो सका । वह अपनी मम्मी पर एकाधिकार रखना चाहता था, किन्तु डॉ. जोशी के साथ विवाह होने के बाद न तो वह मम्मी पर एकाधिकार रख सका और न मम्मी ही उसके प्रति समर्पित रह सकी । मम्मी के सामने एक नये जीवन की शुरुआत का प्रश्न था । वे डॉ. जोशी से विवाह करके बीते हुए दस वर्षों की वेदना को भूल जाना चाहती थी, किन्तु एक बंटी था कि अपने आपको निरन्तर कटा हुआ, उपेक्षित और तिरस्कृत अनुभव कर रहा था । 

इस प्रकार इस उपन्यास का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पात्र बंटी सिद्ध होता है।वही एकमात्र ऐसा पात्र है, जिसकी उपस्थिति पाठक को उपन्यास के आरम्भ से उपन्यास के अन्तिम पृष्ठ तक दृष्टिगत होती है । वास्तव में यह पाठक की सहानुभूति का पात्र है महत्त्व की दृष्टि से शकुन का चरित्र भी समान रूप से महत्वपूर्ण है, उसे भी जीवन की अनेक विषमताओं का सामना करना पड़ा है, किन्तु बंटी का दुर्भाग्य उससे भी बढ़कर है, क्योंकि शकुन को तो बाद में डॉ. जोशी के साथ विवाह करके अपने जीवन के लिए एक आधार प्राप्त हो गया है, किन्तु बेचारा बंटी अन्त तक अधर में लटका रहता है।उसका दुर्भाग्य इससे अधिक और क्या हो सकता है कि माता-पिता के रहते हुए भी वह उनके सच्चे स्नेह से वंचित रहा। शकुन से विदा लेते हुए फूफी ने सच ही कहा था, "नहीं, हमें पाप में मत डालो बहूजी ! कसम दिलाकर । हम कुछ नहीं लेंगे । भगवान के दरबार में जा रहे हैं । रुपया पइसा का होगा क्या ? देना ही है तो एक वचन दे दो कि हमारे बंटी भैया को जैसा आपने बिसरा दिया है आजकल, वैसा और मत करना । बाप के रहते हुए यह बिना बाप का ही रहा, अब माँ के रहते यह बिना माँ कान हो जाए ।" 

उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि बंटी प्रस्तुत उपन्यास की आधारशिला है। प्रत्येक पात्र किसी-न-किसी रूप में बंटी के साथ गंम्भीरता से जुड़ा हुआ है। पाठक का ध्यान सबसे अधिक उसी की ओर आकर्षित होगा । अतः लेखिका ने प्रस्तुत उपन्यास का नामकरण इस बंटी के नाम पर कर दिया है, जो सर्वाधिक उपयुक्त है। यही नहीं, यदि किसी अन्य घटना अथवा विचार आदि के आधार पर इसका नामकरण किया जाता है तो वैसा करना निश्चय ही बंटी के चरित्र के प्रति अन्याय होता । संक्षेप में, यही कहा जा सकता है कि प्रस्तुत उपन्यास का नामकरण सभी दृष्टियों से उचित और सार्थक है।

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