लड़का लड़की का प्रेमी था। तो लड़की ने उल्टा माधो पर छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया था। माधो को आज भी याद है कि कितनी मुश्किल से उस दिन उसकी जान बची थी। यह
अच्छा मददगार व्यक्ति
माधो बांदल चौक पर खड़ा अपने भाई का इंतजार कर रहा है। माधो अपने मामा के घर समारोह में शामिल होने सजाओ पिपलू जा रहा है। उसका भाई मोटरसाइकिल पर उसे लेने आने वाला है। चौक पर दुकानों में काफी चहल-पहल है। माधो भी चौक की रौनक का आनंद ले रहा है। चौक पहाड़ी के ऊपर स्थित है। वहां से दूर दूर तक सुहावनी वादियाँ दिखाई दे रही हैं। इन वादियों को देख माधो परमानंद ले रहा है। काफी देर हो जाने पर भी उसका भाई उसे लेने नहीं आता। माधो चौक पर हर आने जाने वाले को देख रहा है। तभी माधो को एक सफेद रंग की कार आते हुए दिखती है। किराने की दुकान पर भीड़ कम होने पर बुड्ढा दुकानदार हवा खाने दुकान से बाहर निकलता है। वह अपनी दुकान के बाहर खड़ा होता है। तभी सफेद रंग की कार उसकी दुकान के सामने से गुजरती है। तभी दुकानदार को चक्कर आता है और वह कार के पीछले भाग पर गिर जाता है।
'ठक' की आवाज सुनकर कार का ड्राइवर कार रोक देता है। वह कार से निकलकर बुड्ढे दुकानदार को उठाता है। इतने में वहां भीड़ जमा हो जाती है। तभी दुकानदार को होश आ जाता है और वह उठ खड़ा होता है। वह कार के ड्राइवर पर टक्कर मारने का आरोप लगाता है। ड्राइवर - "मैंने आपको टक्कर नहीं मारी है। आप खुद मेरी गाड़ी के ऊपर गिरे हैं।" दुकानदार - "तुमने ही मुझे टक्कर मारी है। तुम्हें मेरी टांग में जो चोट लगी है उसका सारा खर्चा देना पड़ेगा। नहीं तो मैं पुलिस को बुलाउंगा।" ड्राइवर - "मैं खुद पुलिस में हूँ। आप चाहें तो पुलिस को बुला सकते हैं। " दुकानदार -" तुम मुझे पुलिस में होने की धमकी दे रहे हो। अब मैं तुम्हें छोड़ूंगा नहीं। " इतने में कोई दुकानदार के घर पर सूचना दे देता है। दुकानदार का लड़का दौड़ता हुआ वहां पहुंच जाता है।दुकानदार का लड़का शिक्षित और परिपक्व व्यक्ति है। वह ड्राइवर से शांति से बात करता है। बुड्ढा दुकानदार किसी की बात सुनने को तैयार नहीं होता और अपने गांव के लोगों की भीड़ को देखकर वह और जोश में आ जाता है। ड्राइवर उनसे अनुरोध करता है कि उसकी बेटी बीमार है और उसे जल्दी घर पहुंचना है। पर कोई उसकी बात नहीं सुनता। यह सारी घटना माधो की आंखों के सामने हुई होती है। माधो इस बात का गवाह है कि कार वाले ने टक्कर नहीं मारी है। बुड्ढा चक्कर खा कर कार पर गिरा था। माधो के दिमाग में यह द्वंद्व चल रहा होता है कि वह यह बात लोगों को बताए कि नहीं। आखिर में माधो लोगों को यह बात बताने के लिए आगे बढ़ता है। अपने जीवन के पीछले अनुभवों को याद करके उसके पांव ठिठक जाते हैं। कार वाला दुकानदार को उसकी टांग का इलाज कराने, अपनी कार में बिठाकर अस्पताल के लिए निकल पड़ता है। इलाज का सारा खर्चा कार वाले को देना होता है। वह देर रात को ही अपने घर पहुंच पाएगा। चौक में भीड़ अब कम हो जाती है। माधो सोचता है कि उसे यह बात बतानी चाहिए थी कि नहीं। तीन साल पहले सड़क पर एक लड़का लड़की को पीट रहा था। माधो ने लड़के से लड़की को छुड़ाया। इतने में वहां भीड़ जमा हो गई थी।
लड़का लड़की का प्रेमी था। तो लड़की ने उल्टा माधो पर छेड़छाड़ का आरोप लगा दिया था। माधो को आज भी याद है कि कितनी मुश्किल से उस दिन उसकी जान बची थी। यह सोचकर माधो सोचता है कि अच्छा हुआ उसने सच नहीं बताया। लोग उसकी हड्डियां तोड़ते और बोलते, तू क्या सत्यवादी हरिश्चंद्र है क्या?
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