धर्मवीर भारती हिंदी साहित्य के एक प्रमुख उपन्यासकार हैं। उनके उपन्यासों में समाज की गहन समझ, मानवीय संवेदनाओं का गहरा चित्रण और भाषा की सहजता देखने को
धर्मवीर भारती की उपन्यास कला की समीक्षा
हिन्दी साहित्य के जाने-माने साहित्यकार धर्मवीर भारती बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। आप कवि, नाटककार, निबन्धकार होने के साथ-साथ कथाकार भी हैं। प्रारम्भ में आपने कुछ कहानियाँ लिखीं, पर लोकप्रियता उपन्यासकार के रूप में मिली। आपने स्वतंत्र रूप से दो उपन्यास लिखे-गुनाहों का देवता (1949) और सूरज का सातवाँ घोड़ा (1952)। तीसरा उपन्यास 'ग्यारह सपनों का देश' आपकी स्वतंत्र कृति नहीं है। दस लेखकों ने मिलकर इस उपन्यास की रचना करने का असफल प्रयोग किया था। 'गुनाहों का देवता' मध्यवर्गीय समाज की प्रेम कहानी है जिसमें लेखक की विद्रोह चेतना एक छवि को लेकर उभरती प्रतीत होती है। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' एक नवीन प्रकार का प्रयोगधर्मी उपन्यास है। ये दोनों ही उपन्यास अत्यधिक लोकप्रिय हुए।
भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वानों ने उपन्यास कला के छः तत्व निर्धारित किए हैं-कथानक, पात्र एवं चरित्र-चित्रण, संवाद, देश-काल एवं वातावरण, भाषा-शैली और उद्देश्य। इन्हीं के आधार पर भारती जी की उपन्यास कला की समीक्षा प्रस्तुत है-
कथावस्तु या कथानक
धर्मवीर भारती प्रेम, सौन्दर्य और भावना के चितेरे हैं-आपके दोनों ही उपन्यासों का मुख्य विषय प्रेम, विवाह, वासना और उससे उत्पन्न परिस्थितियाँ हैं। 'गुनाहों का देवता' में भावना और वासना के द्वन्द्व के रूप में आदर्श और यथार्थ का विश्लेषण किया गया है। उपन्यास के नायक चन्द्रकुमार कपूर उर्फ चन्दर. का सुधा के साथ मन का सम्बन्ध है जबकि विवाहिता पम्मी के साथ तन का। सुधा और पम्मी दोनों ही चन्दर को आकर्षित करती हैं। चन्दर भावना की उदात्तता के साथ सुधा को प्यार करता है, पर एक सीमा पर पहुँचकर वह पम्मी के शरीर से प्यार करने लगता है। विवाहिता पम्मी की चाहत चन्दर जैसा पागल प्रेमी पाने की थी और चन्दर भी आत्मा की प्यास से अधिक महत्व शारीरिक प्यास को देता है। तन तृषा उसे यह मानने को बाध्य कर देती है कि शरीर की भूख को पाप मानना जीवन की सबसे बड़ी गलती है। लेखक स्वीकार करता है कि शरीर की भूख की तृप्ति के बिना न तो आत्मिक शांति संभव है और न स्वस्थ जीवन ही संभव है।
'सूरज का सातवाँ घोड़ा' शीर्षक लघु-उपन्यास का कथानक सात दोपहरों में सुनायी जाने वाली प्रेम कहानियों, चार अनध्यायों और प्रारम्भ में प्रस्तुत 'उपद्धात' के रूप में गूँथा गया है। माणिक मुल्ला अपने जीवन में आई तीन लड़कियों जमुना, लिली और सत्ती तथा उनसे सम्बन्धित पुरुष पात्रों की प्रेम कहानियाँ सुनाता है। अज्ञेय जी ने इस उपन्यास के कथानक के सम्बन्ध में लिखा है- "सबसे पहली बात है उसका गठन। बहुत सीधी, बहुत सादी, पुराने ढंग की-बहुत पुराने, जैसा आप बचपन से जानते हैं-आलिफ लैला वाला ढंग, पंचतन्त्र वाला ढंग, बोकैच्छियों वाला ढंग, जिसमें रोज किस्सागोई की मजलिस जुटती है, फिर कहानी में से कहानी निकलती है।" वस्तु-विन्यास की इस पद्धित को कथा-चक्र पद्धति कहा जाता है।
वास्तव में दोनों ही उपन्यासों के कथानक जाने-पहचाने हैं। ऊँच-नीच, गरीबी-अमीरी, जात-पाँत, सामाजिक विषमता तथा दलित शोषित समाज के प्रति सहानुभूति हिन्दी उपन्यासों का लोकप्रिय विषय है। भारती जी की विशेषता कथानक के मौलिक और प्रभावशाली प्रस्तुतीकरण में है।
पात्र एवं चरित्र चित्रण
दोनों उपन्यासों के पात्र मध्यवर्गीय समाज से सम्बन्धित हैं। गुनाहों का देवता के पात्र उच्चवर्गीय समाज का स्पर्श करते प्रतीत होते हैं पर 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' के पात्र निम्न-मध्यवर्गीय समाज के हैं। 'गुनाहों का देवता' के प्रमुख पात्र हैं- चन्द्रकपूर अर्थात् चन्दर और सुधा । पम्मी, वर्ती, विनती, कैलास, गेसू, हसरत, रवीन्द्र, बिसरिया, ठाकुर साहब आदि अन्य प्रमुख पात्र हैं। ये पात्र लिंग, धर्म, आयु आदि की दृष्टि से विभिन्न श्रेणियों के हैं। भावुकता, बौद्धिकता, तार्किकता, जीवन्तता आदि इस उपन्यास के पात्रों की विशेषताएँ हैं। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' में केन्द्रीय पात्र है माणिक मुल्ला । उसके जीवन में आने वाली तीनों लड़कियाँ -जमुना, लिली और सत्ती प्रेम के विविध रूपों का उद्घाटन करती हैं। इन्हीं से सम्बन्धित अन्य पात्र हैं तन्ना, महेसर दलाल, रामधन, चमन ठाकुर, बुआ आदि। भारती जी के पात्रों को देखकर ऐसा आभास होता है कि मानो ये लेखक के पड़ौसी रहे हैं जो उनके जीवन में आये और जिन्हें उन्होंने औपन्यासिक कलेवर प्रदान किया।
संवाद योजना
उपन्यास में संवादों की स्थिति कथानक को रोचक, जीवंत और उद्देश्यपूर्ण बनाती है। भारती जी के दोनों उपन्यासों के संवाद पात्र की स्थिति, शिक्षा, स्तर आदि के अनुकूल छोटे-छोटे, रोचक और जीवंत भाषा में प्रस्तुत किये गये हैं। वे कहीं छोटे हैं तो कहीं बड़े भी हैं। ऐसे संवाद घटना का विस्तार करने के साथ-साथ उसकी व्याख्या भी करते हैं। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' उपन्यास से संवाद का एक स्थल उदाहरणार्थ प्रस्तुत है -
मैं- (खाट पर बैठकर तकिये को उठाकर गोद में रखते हुए) भई कहानी बहुत अच्छी रही।
ओंकार- (जम्हाई लेते हुए) रही होगी।
प्रकाश- (करवट बदलकर) लेकिन तुम लोगों ने उसका अर्थ भी समझा ।
श्याम - ( उत्साह से) क्यों, उसमें कौन कठिन भाषा थी?
प्रकाश-यही तो माणिक मुल्ला की खूबी है। अगर जरा-सा सचेत होकर उनकी बात तुम समझते नहीं गए तो फौरन तुम्हारे हाथ से तत्व निकल जाएगा, हल्का-फुलका भूसा हाथ आएगा।
देश काल एवं वातावरण
धर्मवीर भारती ने अपने दोनों उपन्यासों का देश इलाहाबाद शहर और उसके आस-पास का क्षेत्र रखा है। दोनों का ही काल स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद का है। लेखक ने तत्कालीन वातावरण का जीवंत चित्र प्रस्तुत किया है। 'गुनाहों का देवता' में लेखक ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के युवा वर्ग में व्याप्त निराशा, अन्त:संघर्ष, चेतना, वैचारिकता, राजनीति, साहित्य आदि का जीवंत चित्रण किया है। उपन्यास के प्रारम्भ में लिखा है- "इलाहाबाद का नगर-देवता जरूर कोई रोमांटिक कलाकार है। ऐसा लगता है कि इस शहर की बनावट, गठन, जिन्दगी और रहन-सहन में कोई बँधे-बँधाये नियम नहीं, कोई कसाव नहीं, हर जगह एक स्वच्छन्द खुलाव, एक बिखरी हुई सी अनियमितता । बनारस की गलियों से भी पतली गलियाँ और लखनऊ की सड़कों से भी चौड़ी सड़कें। पार्क, शायर और ब्राइटन के उपनगरों का मुकाबला करने वाली सिविल लाइन्स और दलदलों की गन्दगी को मात करने वाले मुहल्ले....।"
'सूरज का सातवाँ घोड़ा' नामक लघु उपन्यास में भी तत्कालीन निम्न-मध्यवर्ग की निराशा, कुंठा आदि का प्रभावशाली चित्रण किया गया है। लेखक के अनुसार, “ये कहानियाँ वास्तव में प्रेम नहीं वरन् उस जिंदगी का चित्रण कर रही हैं, जिसे आज का निम्न मध्यवर्ग जी रहा है।" डॉ. यश गुलाटी के शब्दों में- “समग्रतः इनके द्वारा इलाहाबाद के एक मौहल्ले के साधारण पात्रों की जिन्दगी ही चित्रित हुई है जो कैसे छोटे-छोटे प्रायः अदृश्य सूत्रों से एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं, पीड़ाग्रस्त वर्तमान और अपनी चरमनियति- दोनों में। वे ऊपर से भिन्न दीखते हुए भी अंततः एक जैसी साहसहीनता, गतानुगतिकता और सुविधावादिता से आक्रान्त हैं। एक प्रकार के ढुलमुलपन और संकीर्ण स्वार्थपरता से उनके सपने निरे कल्पना विलास होकर रह जाते हैं। दरअसल अपनी वर्गीय प्रातिनिधिकता के बल पर ही एक नगर के एक मुहल्ले पर केन्द्रित यह उपन्यास समूचे भारत के निम्नवर्गीय जीवन का बिम्ब हो गया है। "
भाषा शैली
धर्मवीर भारती के उपन्यासों की लोकप्रियता का मुख्य कारण भाषा का साहित्यिक और व्यावहारिक होना है। 'गुनाहों का देवता' उपन्यास में आपने हिन्दी की विविध प्रकार की शब्दावली के साथ ही अंग्रेजी और उर्दू के शब्दों का प्रयोग भी सहज रूप से किया है। वे कतरब्योंत जैसा आंचलिक शब्द प्रयोग में लाते हैं तो स्वर्ग शिखर, ज्वालामुखी, कंचनलता, विषाद, अमंगल जैसे संस्कृत शब्दों का प्रयोग भी करते हैं। स्टडीरूम, इमीटेशन, एबॉर्शन, क्लोरोफार्म आदि अंग्रेजी के शब्दों के साथ ही ता-उम्र, नफरत, तकल्लुफ, जाहिर जैसे उर्दू शब्दों का प्रयोग करने में भी पारंगत हैं। कहीं-कहीं तो पूरे के पूरे वाक्य या अनुच्छेद आंचलिक, अंग्रेजी या उर्दू भाषा में लिख दिये गये हैं। आंचलिक भाषा का एक उदाहरण प्रस्तुत है- "काहे बिटिया, काहे कोसत हो। कैसा चाँद से तो हैं छोटे बाबू और हँस के बातें करत हैं। भाई का जाने कैसे हियाब पड़ा कि उन्हें अलग कै दिहिस बेचारा होटल में जाने कैसे रोटी खात होई।"
भाषा को रोचक और जीवंत बनाने के लिये भारती जी ने लोकोक्तियों, मुहावरों और सूक्तियों का प्रयोग किया है यथा-हीयर यू आर आई हैव काट रेड हैंडेड टुडे । अन्धे को नोन दो, अन्धा कहे मेरी आँखें फोड़ी। हमदर्दी करना इस दुनिया में सबसे बड़ा पाप है। गुड़ खाया गुलगुले से परहेज। नफरत से नफरत बढ़ती है, प्यार से प्यार बढ़ता है। प्यार स्थायी नहीं होता, पत्नीत्व स्थायी होता है।
'सूरज का सातवाँ' घोड़ा' उपन्यास की भाषा-शैली के सन्दर्भ में भारती जी ने लिखा है-"इनकी (माणिक मुल्ला की) शैली में बोलचाल के लहजे की प्रधानता है और मेरी आदत के मुताबिक उनकी भाषा रूमानी, चित्रात्मक, इन्द्रधनुष और फूलों से सजी हुई नहीं है। इसका मुख्य कारण यह है कि ये कहानियाँ माणिक मुल्ला की हैं, मैं तो केवल प्रस्तुतकर्ता हूँ।"
उद्देश्य
डॉ० भारती ने लिखा है कि कहानी वही सफल हो सकती है जिसका कोई-न-कोई निष्कर्ष निकले और वह निष्कर्ष समाज के लिये कल्याणकारी होना चाहिये। आपके दोनों ही उपन्यासों का प्रतिपाद्य नर-नारी के सम्बन्ध अर्थात् प्रेम है। 'गुनाहों का देवता' में उन्होंने कहा है कि केवल मन और आत्मा का प्रेम ही पर्याप्त नहीं है। नर-नारी परस्पर शारीरिक क्षुधा तृप्त करके ही स्वस्थ सामाजिक जीवन जी सकते हैं। मानसिक प्रेम एक प्रकार की बीमारी है। शारीरिक क्षुधा की तृप्ति का सामाजिक मान्यता प्राप्त उपाय 'विवाह' है, पर जैविक धरातल पर विवाह आवश्यक नहीं है। प्यार और वासना ही 'गुनाहों के देवता' उपन्यास की मुख्य समस्या है। 'सूरज का सातवाँ घोड़ा' उपन्यास में वैसे तो माणिक मुल्ला ने प्रत्येक कहानी को सुनाने के बाद उसका कल्याणकारी निष्कर्ष भी दिया है, पर वास्तविक बात अन्त में कही गई है- "देखो ये कहानियाँ वास्तव में प्रेम नहीं, वरन् उस जिन्दगी का चित्रण करती हैं, जिसे आज का निम्न-मध्यवर्ग जी रहा है। उसमें प्रेम से कहीं ज्यादा महत्वपूर्ण हो गया है आज का आर्थिक संघर्ष, नैतिक विश्रृंखलता, इसीलिये इतना अनाचार, निराशा, कटुता और अँधेरा मध्यवर्ग पर छा गया है। उद्देश्य के साथ ही लेखक ने भविष्य के प्रति आस्था भी व्यक्त की है- "वही सातवाँ घोड़ा हमारी पलकों में भविष्य के सपने और वर्तमान के नवीन आकलन भेजता है ताकि हम वह रास्ता बना सकें, जिन पर होकर भविष्य का घोड़ा आएगा, इतिहास के वे पन्ने लिख सकें, जिन पर अश्वमेध का दिग्विजयी घोड़ा दौड़ेगा।'
इस प्रकार उपन्यासकार धर्मवीर भारती ने प्रेम, वासना और विवाह जैसी शाश्वत समस्याओं पर न केवल एक भावुक नवयुवक कवि के रूप में बल्कि एक मनोविश्लेषणवादी के रूप में गम्भीरता से विचार किया है।अतः ये दोनों ही उपन्यास उन्हें हिन्दी का श्रेष्ठ उपन्यासकार सिद्ध करते हैं।
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