धरती अब भी घूम रही है विष्णु प्रभाकर कहानी का सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, दूसरों के बच्चों के साथ बुरा, व्यवहार, चरित्रह
धरती अब भी घूम रही है विष्णु प्रभाकर कहानी का सारांश उद्देश्य प्रश्न उत्तर
विष्णु प्रभाकर की कहानी धरती अब भी घूम रही है हिंदी साहित्य में एक महत्वपूर्ण स्थान रखती है। यह कहानी न केवल एक रोचक कथा है बल्कि समाज के गहरे सच को उजागर करने वाली एक मार्मिक रचना भी है।
धरती अब भी घूम रही है कहानी का सारांश
नीना की आयु दस वर्ष की भी नहीं थी, लेकिन बुद्धि उसकी काफी प्रौढ़ हो चुकी थी। उसका छोटा भाई कमल आठ वर्ष का था। इन दोनों की माँ मर गई थी और बाप को रिश्वत लेने के जुर्म में सजा हो गई थी। नीना का छोटा भाई रो रहा है। नीना उसे समझाती है। ये दोनों अपनी मौसी के यहाँ रह रहे हैं। वह शिकायत करता है कि उसे मौसी ने बासी रोटी दी और प्रदीप ने मारा । सारा हलुआ प्रदीप और रंजन को दे दिया और मुझे खुरचन दी। वह अपनी बहन से पूछता है कि पिताजी को रोटी कौन खिलाता होगा। प्रदीप मेरे पिताजी को चोर बताता है।
इसी बीच उनकी मौसी आ जाती है और नीना को डाँटती है। तभी मौसा हड़बड़ा कर उठ बैठे और बोले कि क्या हुआ। उनकी पत्नी ने बताया कि ये दोनों भागने की कोशिश कर रहे हैं। मौसा ने कहा कि कल उन्होंने अलमारी में पाँच सौ रुपये लाकर रखे हैं। फिर झपट कर नीना को उठाते हुए कहा, 'चल अपनी खाट पर !' खबरदार जो पास सोए ! बाप तो आराम से जेल में बैठा है, मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती तो दुनिया मुँह पर थूकती, बहन के बच्चे थे।
ये दोनों चचेरी बहन के बच्चे हैं। उनके मौसा कह रहे थे कि उनका पिता बीस रुपये रिश्वत लेते हुए पकड़े गए। वह पांच सौ रुपये लेकर आए हैं, कोई कह दे, साबित कर दे। उनमें इतनी बुद्धि होती तो क्या अब तक तीसरे दर्जे के क्लर्क बने रहते। उनसे कहा था कि तीन-चार सौ रुपए का प्रबन्ध कर दें, तो छुड़ा देंगे, लेकिन वह कहने लगे कि वह रिश्वत नहीं देंगे। मौसी ने मौसा से कहा कि अब चुप रहो रात के समय आवाज बाहर तक गूँजती है। फिर वे दोनों सो गये, लेकिन ये दोनों भाई-बहन जागते रहे। वे सोचते हैं कि मौसी का व्यवहार बहुत खराब हो गया है। उनके साथ पशु से भी तिस्कृत व्यवहार होता है। उनके पिता उन्हें कितना प्यार करते थे। खुद खाना बनाते थे, अच्छे स्कूल में पढ़ाते थे । उन्होंने दूसरी शादी नहीं की। मौसा कहते थे कि जज को रिश्वत देते तो छूट जाते। रिश्वत कई तरह की होती है। एक प्रोफेसर ने एक लड़की को एम.ए. में अव्वल कर दिया था। क्योंकि वह खूबसूरत थी।
नीना ने देखा आसमान में तारे जगमगा रहे थे। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि खूबसूरत होना भी क्या रिश्वत है ? मौसा कहते थे कि गंजे हाकिम के पास खूबसूरत लड़की भेज दो और कुछ भी करा लो... खूबसूरत लड़की और रुपया, रुपया और खूबसूरत लड़की- इन्हें लेकर जज और हाकिम काम क्यों कर देते हैं ?
बच्चों की समझ में कुछ नहीं आया। इसी उधेड़बुन में रात निकल गई। मौसी ने चिल्ला कर उसे उठाया कि चौका-बासन कर ले। वह अपने भाई को अपने साथ ले गई और दोनों ने रसोई और बर्तन चमका दिये। मौसी ने खुश होकर पूछा कि आज क्या बात है ? कमल ने बताया कि जीजी कहती थी कि आज पिताजी आने वाले हैं। मौसी ने हँसकर कहा कि अभी तो सात महीने बाकी हैं। फिर कमल ने मौसी की अलमारी से कुछ रुपये चुरा लिए।
इसी समय वहाँ से कुछ दूर, सुसज्जित भवन में मुक्त अट्टहास गूँज रहा था। छोटे जज आज प्रसन्न थे। उनकी छोटी बेटी मनमोहिनी को कमीशन ने सांस्कृतिक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद के लिए चुन लिया था। मित्र बधाई देने आए थे। यह सब सचिव की कृपा से हुआ। वे वहीं बैठे थे। इसी समय छोटे जज को एक तार मिला जिसमें लिखा था कि उनके बड़े बेटे की नियुक्ति इनकम टैक्स में ऑफीसर के पद पर हो गई है। जज साहब ने हंसते हुए अपनी पत्नी से कहा- 'देखो निर्मल! मुझे पूरा विश्वास था, शर्मा मेरी बात नहीं टाल सकता। और मेरी बात भी क्या ! असल में वह तुम्हारा मुरीद है। कहा था औरत.... सचिव बात काटकर बोले, 'जी नहीं, यह न आप हैं और न श्रीमती निर्मल। यह तो आपकी कौटुम्बिक प्रतिभा है । '
इस पर सबने सूचक हर्ष ध्वनि की। तभी नौकर ने आकर बताया कि दो गरीब बच्चे जो भाई-बहन हैं जज साहब से मिलना चाहते हैं। बच्चों को अन्दर बुलाया गया। आज जज साहब प्रसन्न थे। नीना ने जज साहब से कहा- 'आपने हमारे पिताजी को जेल भेजा है। आप उन्हें छोड़ दें....।'
कमल ने उसी दृढ़ता से कहा- 'हमारे पास पचास रुपये हैं। आपने तीन हजार लेकर एक डाकू को छोड़ा है.....।'नीना बोली - 'लेकिन हमारे पिताजी डाकू नहीं हैं। मँहगाई बढ़ गई थी। उन्होंने बस बीस रुपये की रिश्वत ली थी।'कमल ने कहा 'रुपये थोड़े हों तो....' नीना बोली- 'तो मैं एक दो दिन आपके पास रह सकती हूँ। कमल ने कहा - 'मेरी जीजी खूबसूरत है और आप खूबसूरत लड़कियों को लेकर काम कर देते हैं.... रटे हुए पार्ट की तरह एक के बाद एक जब वे दोनों इस प्रकार बोल रहे थे तो न जाने हमारे कथाकार को क्या हुआ, वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे धरती सूर्य की चुम्बक शक्ति से अलग हो रही है। लेकिन ऐसा होता तो क्या हम यह 'पुनश्च' लिखने को बाकी रहते। धरती अब भी उसी तरह घूम रही है।
धरती अब भी घूम रही है कहानी की मूल संवेदना समस्या
धरती अब भी घूम रही है कहानी की मूल संवेदना वहाँ प्रकट होती है जहाँ नीना और कमल दोनों बच्चे अपने पिता के जेल चले जाने पर मौसी के घर में दुःख पाते हैं। वे नौकरों की तरह काम करते हैं और रुखा-सूखा भोजन प्राप्त करते हैं। वे यहाँ दया के पात्र बनकर रह गये हैं । जब मौसी उन्हें लाई थी तो बड़े प्यार दिखाकर लाई थी, लेकिन कुछ दिन बाद मौसा मौसी दोनों का व्यवहार कठोर होता गया । उदाहरण देखिए- 'एक चित्र मौसी का था जो उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया।'
एक और उदाहरण देखिए जिसमें मौसी उन बच्चों के लाने से दुःखी है। चल अपनी खाट पर ! खबरदार जो पास सोए ! बाप तो आराम से जेल में बैठा है, मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती तो दुनिया मुँह पर थूकती, बहिन के बच्चे थे। शहर की शहर में आंखों में लिहाज न आई। लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने-चाँदी की खान है ? क्या खर्च नहीं होता ? पढ़ाई कितनी महँगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज्यादा ही है ।
नीना मन-ही-मन विह्वल विकल होकर कहती है- 'पिताजी! अब नहीं सहा जाता। मौसा तुम्हारे कमल को पीटते हैं। पिताजी तुम आ जाओ, अब हम उस स्कूल में नहीं पढ़ेंगे। अब हम बढ़िया कपड़े नहीं पहनेंगे। पिताजी तुमने रिश्वत ली थी तो देते क्यों नहीं....' ।
उन बच्चों से घर का काम कराया जाता है देखिए- मौसी फिर चीखी, 'अरी सुना नहीं नीना ? कब से पुकार रही हूँ। दोनों भाई-बहिन कुम्भकरण से बाजी लगाकर सोते हैं, चल जल्दी। चौका-बासन कर। मैं आती हूँ....'।कितना कठोर व्यवहार है उन मासूम बच्चों पर। उनकी हालत दयनीय हो गई है परवशता शके चलते वे बच्चे कर भी क्या सकते हैं। सामाजिक जीवन की बिडम्बना स्पष्ट होती है।
धरती अब भी घूम रही है कहानी का उद्देश्य
प्रस्तुत कहानी यथार्थवादी कहानी है। यह जीवन की यथार्थता का बालपन पर पड़ने वाले प्रभाव दिखलाती है। राजनीतिक, सामाजिक, जीवन के भ्रष्टाचार, समाज में फैली अव्यवस्था और सामाजिक वातावरण का बच्चों के मन पर पड़ते हुए प्रभाव को दिखाना इस कहानी का उद्देश्य है। सामाजिक और राजनीतिक जीवन के भ्रष्टाचार से बालक मन प्रभावित होता है। वे बच्चे बातों को स्थूलता से जानकर उनका सहज मन से प्रयोग करते हैं। इस सामाजिक जीवन की विडम्बना स्पष्ट होती है। नीना और कमल के पिता पर रिश्वत का आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया जाता है। दोनों बच्चे बड़ों की रटी-रटाई बातें बोलकर उन्हें शर्मसार करते हैं और सबको ऐसा प्रतीत होता है- धरती अब भी घूम रही है। अर्थात जमाना अपनी रफ्तार से चल रहा है उसमें कोई परिवर्तन नहीं हुआ है।
विष्णु प्रभाकर लेखक का परिचय
श्री विष्णु प्रभाकर का जन्म 22 जून सन 1912 को मीरापुर, जिला मुजफ्फरनगर (उ.प्र.) में हुआ। प्रारम्भिक शिक्षा हिसार में हुई। पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर तथा बी.ए. पास किया। नौकरी के साथ-साथ साहित्य-सेवा में भी रुचि लेने लगे। सन 1944 में आप दिल्ली आ गये और यहीं के हो गये। पत्रकारिता में भी आपकी रुचि रही। 'जीवन साहित्य' का सम्पादन भी आपने किया ।
आप गाँधीवादी विचारधारा के लेखक हैं। आपकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ का सुधारवादी दृष्टि से चित्रण रहता है। उपन्यास, कहानी, नाटक, एकांकी, जीवनी और यात्रावृत्त सभी प्रकार की रचनाएँ आपने लिखी हैं। 'आवारा मसीहा' नामक शरतचन्द्र की जीवनी आपकी उल्लेखनीय कृति है जिस पर आपको साहित्य अकादमी का पुरस्कार मिला है।
आपने सात उपन्यास, बारह कहानी संग्रह, बारह नाट्य, दो नाट्य रूपान्तर, ग्यारह एकांकी, छः जीवनियां, चार यात्रा वृतान्त तथा अनेक बाल साहित्य की पुस्तकों का सृजन किया है।
विष्णु जी की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता जीवन के प्रति गहरी अन्तर्दृष्टि और सहज प्रस्तुति । 'धरती अब भी घूम रही है' आपकी सर्वाधिक प्रसिद्ध कहानी है।
धरती अब भी घूम रही है कहानी के प्रश्न उत्तर
प्रश्न - 'धरती अब भी घूम रही है', कहानी की प्रतीकात्मकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर - प्रस्तुत कहानी यथार्थवादी कहानी है। यह जीवन की यथार्थता का बालपन पर पड़ने वाले प्रभाव दिखलाती है। राजनीतिक-सामाजिक जीवन के भ्रष्टाचार से बालक मन प्रभावित होता है। बातों को स्थूलता से जानकर वे उनका सहज मन से प्रयोग करते हैं। नीना और कमल के पिता पर रिश्वत का आरोप लगाकर उन्हें जेल भेज दिया जाता है। दोनों बच्चे बड़ों की रटी-रटाई बातें बोलकर उन्हें शर्मसार करते हैं और सबको ऐसा प्रतीत होता है- 'धरती अब भी घूम रही है।' लेखक ने प्रतीकात्मक शैली में व्यावहारिक बातों को स्पष्ट किया है। बच्चों के सामने बड़े लोग जो भी प्रतीकात्मक बातें करते हैं, वे उनके बालमन पर अंकित हो जाती हैं। वे उसे बार-बार याद करते हैं पर प्रतीकात्मक बातें उनकी छोटी समझ से बाहर होती हैं। लेखक ने इसका निम्न प्रकार से वर्णन किया है-
'काफी देर बड़बड़ाने के बाद जब वे फिर सो गए, तो दोनों बालक तब भी जागते पडे थे। आँखों की नींद आँसू बनकर उनके गालों पर जमती जा रही थी और उसके धुँधले परदे पर बहुत से चित्र अनायास ही उभरते आ रहे थे। एक चित्र मौसी का था जो उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया।'
एक चित्र मौसा का था जो तीसरे चौथे दिन बहुत से नोट लेकर आते और बच्चों के पिताजी को लक्ष्य कर कहते 'मैं कहता हूं कि रिश्वत ली तो दी क्यों नहीं? अरे तीन सौ देने पड़ते तो पांच सौ बटोरने का मार्ग भी तो खुलता...'।रिश्वत लेने की वजह बताती हुई पड़ोसिन कहती, 'उसका खर्च बहुत था और आमदनी कम। वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था और तुम जानो अच्छी शिक्षा बहुत महँगी है....... ।एक और प्रतीकात्मक उदाहरण देखिए- 'मौसा कहते थे, रिश्वत और तरह की भी होती है। एक प्रोफेसर ने एक लड़की को एम.ए. में अव्वल कर दिया था क्योंकि वह खूबसूरत थी...'।
जज साहब के घर पर मित्रों की भीड़ थी जो उनकी लड़की के सांस्कृतिक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद पर चुन लिए जाने पर बधाई दे रहे थे । यद्यपि वाकायदा चाय-पार्टी का कोई प्रबन्ध नहीं था, तो भी मेज पर अच्छी भीड़भाड़ थी। अंग्रेज लोग चाय पीते समय बोलना पसन्द नहीं करते थे, पर भारतवासी क्या अब भी उनके गुलाम हैं! लोग जोर-जोर से बातें कर रहे थे। मनमोहिनी ने चाय बनाते हुए कहा, 'मुझे तो बिल्कुल आशा नहीं थी, पर सचिव साहब की कृपा को क्या कहूँ....!' सचिव साहब बोले- 'मेरी कृपा ! आपको कोई 'न' तो कर दे? आपकी प्रतिभा....'
डायरेक्टर कह रहे थे 'हाँ, इनकी प्रतिभा ! सांस्कृतिक विभाग तो है ही नारी की प्रतिभा का क्षेत्र ।' अन्त में लेखक ने भोले-भाले बालकों द्वारा जज साहब से बात कराकर समाज के दूषित वातावरण को उजागर किया है। अन्तिम अनुच्छेद देखिए- 'रटे हुए पार्ट की तरह एक के बाद एक जब वे दोनों इस प्रकार बोल रहे थे तो न जाने हमारे कथाकार को क्या हुआ, वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ। उसे ऐसा लगा जैसे धरती सूर्य की चुम्बक शक्ति से अलग हो रही है। लेकिन ऐसा होता तो क्या हम यह 'पुनश्च' लिखने को बाकी रहते ? धरती अब भी उसी तरह घूम रही है। लेखक ने प्रतीक का इशारा करते हुए कुछ बातें समझने के लिए छोड़ दी हैं।'
प्रश्न - सामाजिक वातावरण का बाल मन पर किस प्रकार प्रभाव पड़ता है ?
उत्तर - मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में रहकर वह अपने आपको ढालता है। समाज के वातावरण का प्रभाव बड़ों पर भी पड़ता है और छोटों पर भी। बड़ों में इतनी समझ होती है कि वे बुरे वातावरण से अलग रहें। लेकिन बच्चों में अच्छा और बुरा छाँटने की समझ नहीं होती। जैसे वातावरण में बच्चे रहते हैं उनके बालमन पर वह प्रभाव डालता है। उस वातावरण के धुँधले से चित्र उनके स्मृति पटल पर छप जाते हैं। और यही प्रभाव उनके चरित्र का निर्माण करता है।
यह कहानी यथार्थवादी कहानी है। यह जीवन की यथार्थता का बालमन पर पड़ने वाले प्रभाव दिखाती है। राजनीतिक-सामाजिक जीवन के भ्रष्टाचार से बालक मन प्रभावित होता है। बातों को स्थूलता से जानकर उनका सहज मन से प्रयोग करते हैं। नीना और कमल के पिता को रिश्वत लेने के अपराध में जेल हो जाती है। नीना और कमल पंचास रुपये लेकर जज साहब को रिश्वत देने जाते हैं कि वह उनके पिता को छोड़ दें। फिर समाज में सुनी हुई रटी-रटाई बातों बोलकर उन्हें शर्मसार करते हैं। वहाँ बैठे सब लोगों को ऐसा प्रतीत होता है- 'धरती अब भी घूम रही है।'
पिता के जेल चले जाने पर नीना और कमल की मौसी इन्हें अपने साथ ले आई है। लेखक का खींचा हुआ चित्र देखिए- काफी देर बड़बड़ाने के बाद जब वे फिर सो गए, तो दोनों बालक तब भी जागते पड़े थे। आँखों की नींद आँसू बनकर उनके गालों पर जमती जा रही थी, और उसके धुंधले परदे पर बहुत से चित्र अनायास ही उभरते आ रहे थे। एक चित्र मौसी का था जो उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गए थे।
लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया.... ।एक चित्र उनकी स्मृति में मौसा का था जो तीसरे चौथे दिन बहुत से नोट लेकर आते और बच्चों के पिताजी को लक्ष्य करके कहते, 'मैं कहता हूं कि रिश्वत ली तो दी क्यों नहीं? अरे तीन सौ देने पड़ते तो पाँच सौ बटोरने का मार्ग भी खुलता.....
उन बच्चों से चौका बर्तन कराया जाता। मौसी के मन के भाव देखिए बच्चों के प्रति कैसे थे- 'और फिर झपटकर नीना को उठाते हुए कहा, 'चल अपनी खाट पर ! खबरदार जो पास सोए! बाप तो आराम से जेल मे बैठा है। मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती तो दुनिया मुँह पर थूकती, बहिन के बच्चे थे। शहर की शहर में आँखों में लिहाज न आई। लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने-चाँदी की खान है ? क्या खर्च नहीं होता ? पढ़ाई कितनी महँगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज्यादा ही है।'
मौसा घर में रिश्वत लेने और देने की बातें करते हैं वे भी बच्चों पर प्रभाव डालती हैं कहानी के अन्त में वे दोनों बच्चे जज के पास पचास रुपये लेकर पहुँचते हैं कि वे पचास रुपये ले लें और उनके पिता को छोड़ दें। वह बालक उनसे यह भी कहता है कि अपने तीन हजार रुपये रिश्वत लेकर एक डाकू को छोड़ा है।
अपने पिता से कमल और नीना बहुत प्यार करते हैं। कमल जज को रिश्वत देने के लिए मौसी की अलमारी से पचास रुपये चुरा लेता है। ऐसा क्यों हुआ ? क्योंकि समाज के रिश्वत के वातावरण का उस बच्चे के कोमल मन पर प्रभाव पड़ा और उसने बच्चों से चोरी 'भी कराई और रिश्वत भी देने को प्रेरित किया। यदि बच्चों को अच्छा वातावरण मिलेगा तो वे अच्छे बनेंगे और बुरा वातावरण मिलेगा तो वे बुरे बनेंगे।
प्रश्न - कहानी में लेखक ने सामाजिक भावों को किस प्रकार चित्रित किया है?
उत्तर - 'धरती अब भी घूम रही है' नामक कहानी में लेखक ने यथार्थ का चित्रण किया है। जीवन की यथार्थता बालमन पर पड़ने वाला प्रभाव दिखलाती है। समाज में फैले भ्रष्टाचार से बालक का मन प्रभावित होता है। बातों की स्थूलता को जानकर वे उनका सहज मन से प्रयोग करते हैं। इस सामाजिक जीवन की विडम्बना स्पष्ट होती है।
समाज में लोकलाज के डर से भी कुछ काम करते हैं जिन्हें वे नहीं चाहते। जैसे मौसी अपनी बहन के दो बच्चों को अपने साथ इसलिए लाई कि लोग क्या कहेंगे यदि वह इनको सहारा नहीं देती है तो। देखिए मौसी का एक कथन- 'चल अपनी खाट पर ! खबरदार जो पास सोए! बाप तो आराम से जेल में बैठा है। मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती तो दुनिया मुँह पर थूकती, बहिन के बच्चे थे। शहर की शहर में आँखों में लिहाज न आई। लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने-चाँदी की खान है? क्या खर्च नहीं होता? पढ़ाई कितनी मँहगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज्यादा ही है ।
पुनः समाज में पहले दर्शाया प्रेम दिन-पर-दिन कम होता चला जाता है। उदाहरण देखिए- 'एक चित्र मौसी का था जो उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रोते-रोते पागल हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया... ' ।
लेखक ने समाज में फैले भ्रष्टाचार का भी चित्रण किया है। उदाहरण- 'मौसा कहते थे', 'जज को रिश्वत देते तो छूट जाते। एक जज ने तीन हजार लेकर डाकू को छोड़ दिया था । एक आदमी जिसने एक औरत को मार डाला था, उसे भी जज ने छोड़ दिया था। पाँच हजार लिए थे.... ' ।
दूसरा उदाहरण देखिए- 'मौसा कहते थे, रिश्वत और तरह की भी होती है। एक प्रोफेसर ने एक लड़की को एम.ए. में अव्वल कर दिया था क्योंकि वह खूबसूरत थी ।'ये सब बातें बच्चे सुनते हैं और उनके बाल मन में ये चीजें छप जाती हैं । अन्त में वे दोनों भी जज को रिश्वत देने पहुँचते हैं ताकि वह उनके पिता को छोड़ दे।
एक सामाजिक भाव यह है कि दूसरे के बच्चे किसी और के घर में सम्मान नहीं पाते। इस कहानी में लेखक ने बताया है कि नीना और कमल को अपनी मौसी के यहाँ चौका बर्तन और सफाई का काम करना पड़ता है।छोटे जज साहब रिश्वत और अपने प्रभाव से अपने बच्चों की नौकरी लगवा देते हैं। उनकी लड़की सुन्दर थी। सचिव की कृपा से वह सांस्कृतिक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर चुन ली गई। उनका लड़का भी इनकम टैक्स ऑफीसर हो गया।
अन्तिम दृश्य में ये दोनों बालक रिश्वत का भंड़ाफोड़ करते हैं- नीना बोली- 'आपने हमारे पिताजी को जेल भेजा है। आप उन्हें छोड़ दें.... ।'
कमल ने उसी दृढ़ता से कहा- 'हमारे पास पचास रुपये हैं। अपने तीन हजार लेकर एक डाकू को छोड़ा है.....।' इस प्रकार हम देखते हैं कि जो जो घटनाएँ समाज में घटित होती हैं उनका प्रभाव लोगों पर पड़ता है।
प्रश्न - पिता के जेल जाने पर नीना और कमल की स्थिति क्या हुई ?
उत्तर - नीना और कमल की माँ की मृत्यु हो गई थी। दोनों बच्चे आठ-दस साल की अवस्था के हैं। इनका पिता इन दोनों को बहुत प्यार करता था। उनके पिता की आँखों में प्यार था। वाणी में मिठास थी। बच्चों को नए स्कूल में भरती करवा दिया था। जहाँ उन्हें कोई मारता, झिड़कता नहीं था, जहाँ नाश्ता मिलता था, जहाँ वे तस्वीरें काटते थे, खिलौने बनाते थे.... ।घर में पिता उनका खाना बनाता था, अच्छी-अच्छी किताबें लाता था, फल लाता था। उनकी माँ के मरने पर उसने दूसरी शादी तक न की थी। पड़ोसी उनके पिता की तारीफ करते थे। वे रिश्वत के खिलाफ थे। पड़ोसिन कहती, 'उसका खर्च बहुत था और आमदनी कम। वह बच्चों को अच्छी शिक्षा दिलाना चाहता था और तुम जानो अच्छी शिक्षा बहुत मँहगी है।'
पिता के जेल जाने पर बच्चों की मौसी उनको अपने साथ ले आई इस डर से कि दुनिया थूकेगी कि बहन के बच्चे थे लिहाज न आई। अब वह कहती है- 'लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने-चाँदी की खान है ? क्या खर्च नहीं होता ? पढ़ाई कितनी महँगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज्यादा होती है।' उनकी मौसी उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया।
पिता को जेल गए हुए दो महीने बीत थे और अभी सात महीने बाकी थे। नीना ने मन-ही-मन विह्वल होकर कहा, 'पिता जी! अब नहीं सहा जाता। मौसा तुम्हारे कमल को पीटते हैं। पिताजी तुम आ जाओ। अब हम उस स्कूल में नहीं पढ़ेंगे, अब हम बढ़िया कपड़े नहीं पहनेंगे। पिताजी तुमने रिश्वत ली थी तो देते क्यों नहीं... क्यों....क्यों ।'नीना से चौका-बर्तन कराया जाता था। लड़के को पीटा जाता था। कमल ने रोते हुए अपनी बहन से कहा- 'जीजी! आज मौसी ने हमें बासी रोटी दी। सारा हलुआ प्रदीप और रंजन को दे दिया और हमें बस खुरचन दी और जीजी, जब दोपहर को हम मौसी जी के कमरे में गए तो हमें घुड़क कर निकाल दिया। जीजी वहाँ हमें क्यों नहीं जाने देते ?...
उपर्युक्त वर्णन से जान पड़ता है कि पिता के जेल चले जाने के बाद बच्चों की दशा बड़ी दयनीय थी। दूसरे के रहम पर जीवित थे। दोनों नौकरों की तरह काम करते थे और रुखा-सूखा खाकर पड़े रहते। उनका जीवन तिरस्कृत हो गया था ।
प्रश्न . समाज में व्याप्त अव्यवस्था के किन रूपों का लेखक ने वर्णन किया है?
उत्तर - लेखक ने इस कहानी में समाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, दूसरों के बच्चों के साथ बुरा, व्यवहार, चरित्रहीनता, भेदभाव और धनी एवं निर्धन व्यक्तियों के जीवन यापन का चित्रण किया है। कहानी पढ़ने से पता लगता है कि समाज का ढाँचा रिश्वत लेने-देने और मनुष्य की गन्दी सोच पर ही खड़ा हुआ है। अपने बच्चों में और बहन के बच्चों में भेदभाव स्पष्ट दृष्टिगोचर होता है। समाज में लोग भले बने रहना चाहते हैं, इसलिए भी कुछ काम दिखाने के लिए करते हैं। जैसे नीना और कमल के पिताजी के जेल जाने पर मौसी उनको अपने साथ ले आई। देखिये- 'चल अपनी खाट पर ! खबरदार जो पास सोए ! बाप तो आराम से जेल में बैठा है, मुसीबत डाल गया मुझ पर। न लाती तो दुनिया मुँह पर थूकती, बहिन के बच्चे थे। शहर की शहर में आँखों में लिहाज न आई। लेकिन कहने वाले यह नहीं देखते कि हमारे घर में क्या सोने-चाँदी की खान है ? क्या खर्च नहीं होता ? पढ़ाई कितनी मँहगी हो गई है और फिर बच्चों की खुराक बड़ों से ज्यादा ही है।'
रिश्वत का समाज में बोलबाला है। मौसा का कथन देखिए- 'हाँ, बहिन के बच्चे हैं तभी तो बहनोई साहब को रिश्वत लेने की सूझी और रिश्वत भी क्या थी, बीस रुपये की । वह भी लेनी नहीं आई। वहीं पकड़े गए। हूँ, मैं रात पांच सौ लाया हूं, कोई कह दे, साबित कर दे।'
रिश्वत देने के बारे में उन्हीं का कथन देखिए- 'और मजा यह कि अब मैंने कहा कि तीन सौ, चार सौ रुपये का प्रबंध कर दें, तुम्हें छुड़ाने का जिम्मा मेरा, तो सत्यवादी बन गए मैं रिश्वत नहीं दूँगा। नहीं दूँगा तो ली क्यों थी ? अरे लेते हो तो दो भी। मैं तो...' ।
निम्न उदाहरण से मौसी का दिखावटी प्रेम देखिए- 'एक चित्र मौसी का था जो उन्हें रोते-रोते घर लाई थी और वह प्रेम दर्शाया था कि वे भी रो-रोकर पागल हो गए थे। लेकिन जैसे-जैसे दिन बीतते गए, प्यार घटता गया और दया बढ़ती गई। दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। उसने उन्हें आज पशु से भी तिरस्कृत बना दिया....।'
समाज में चरित्र का पतन देखिए... मौसा कहते थे, रिश्वत और तरह की भी होती है। एक प्रोफेसर ने एक लड़की को एम.ए. में अव्वल कर दिया था। क्योंकि वह खूबसूरत थी... । इस प्रकार का भेदभाव भी समाज में व्याप्त था। रिश्वत लेकर डाकू और खूनी छोड़ दिये जाते थे। यह न्याय व्यवस्था में फैला भ्रष्टाचार था। समाज में फैले पक्षपात का भी वर्णन मिलता है कि जज साहब के बेटे और बेटी को ऊँचे पदों पर जगह मिल जाती है और साधारण आदमी बेरोजगारी में भटकता रहता है।
प्रश्न - विष्णु प्रभाकर की भाषागत विशेषताओं पर निबंध लिखिए ।
उत्तर - विष्णु प्रभाकर गाँधीवादी विचारधारा के लेखक हैं, आपकी रचनाओं में सामाजिक यथार्थ का सुधारवादी दृष्टि से चित्रण रहता है। आपकी रचनाओं में सबसे बड़ी विशेषता जीवन के प्रति गहरी अन्तर्दृष्टि और सहज प्रस्तुति है । 'धरती अब भी घूम रही है' आपकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना है।
इस कहानी में लेखक यथार्थ को लेकर चले हैं। समाज में फैले हुए भ्रष्टाचार का प्रभाव बालक मन पर पड़ता है।आपकी भाषा सहज, सरल और बोधगम्य है। वाक्य कहीं-कहीं छोटे हैं, पर सरल हैं भाषा में देशज, तत्सम, उर्दू, अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग कर भाव को अच्छी तरह से समझाया है जैसे- सुबकियाँ, बटोर, कुनमुनाया, खुरचन, गुटर-गुटर, हड़बड़ाकर, पहरूआ, लकदक, तन्द्रा, स्तब्ध, प्रस्तर- प्रतिमा, सांस्कृतिक, ध्वनि, बुजुर्गों, किस्मत, खूबसूरत, मुरीद, एक बारगी, एम.ए., कमीशन, डिप्टी डायरेक्टर, पार्ट, जज. इनकम टैक्स ऑफीसर आदि।
प्रभाकर जी ने कहीं-कहीं उक्तियों का भी सुन्दर प्रयोग किया है। उससे भाव को समझने में सहायता मिलती है। जैसे- दया ऊँच-नीच और दम्भ की जननी है। इसी प्रकार मुहावरों का भी प्रयोग अपनी भाषा में किया है। जैसे- मुँह पर थूकना, आँखों में लिहाज न होना, बाजी लगाना ।
लेखक ने निम्न शैलियों का प्रयोग किया है-
- चित्रात्मक शैली - लेखक के वर्णन में चित्रोपमैली का प्रयोग किया गया है। जैसे- इसी समय वहाँ से कुछ दूर एक सुसज्जित भवन में मुक्त अट्टहास गूंज रहा था। छोटे जज आज विशेष प्रसन्न थे । उनकी छोटी पुत्री मनमोहिनी को कमीशन ने सांस्कृतिक विभाग में डिप्टी डायरेक्टर के पद के लिए चुन लिया था। मित्र बधाई देने आये हुए थे। उसी हर्ष का यह अट्टहास था ।
- भावात्मक शैली - लेखक ने मन को भावों को बड़ी सुन्दरता से इस शैली में पिरोया है। जैसे- ‘नीना ने सहसा दोनों हाथों से मुँह भींच लिया। उसकी सुबकी निकलने वाली थी। उसने मन-ही-मन विह्वल विकल होकर कहा, पिताजी! अब नहीं सहा जाता। मौसा तुम्हारे कमल को पीटते हैं।'
- वर्णनात्मक शैली- लेखक ने किसी घटना, वस्तु और स्थान का वर्णन किया है वहाँ पर इस शैली का प्रयोग किया है।
साहित्य में स्थान - विष्णु जी की कहानियों की सबसे बड़ी विशेषता जीवन के प्रति गहरी अन्तर्दृष्टि और सहज प्रस्तुति है। इन्होंने अनेक बाल साहित्य की पुस्तकों का सृजन किया है। साहित्य में इनका विशेष योगदान है।
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