जन्मदिन एक दार्शनिक विमर्श मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि जन्मदिन मनाने का उत्सव समाज में तेजी से बढ़ता जा रहा है। आजकल लोग जन्मदिन इस तरह मनाते है
जन्मदिन एक दार्शनिक विमर्श
मुझे यह देखकर आश्चर्य होता है कि जन्मदिन मनाने का उत्सव समाज में तेजी से बढ़ता जा रहा है। आजकल लोग जन्मदिन इस तरह मनाते हैं, मानो उन्होंने जीवन में कोई बड़ी उपलब्धि हासिल की हो। दूसरों की देखा-देखी में जन्मदिन मनाने का चलन अत्यधिक लोकप्रिय होता जा रहा है, जबकि इसके पीछे कोई तार्किक आधार दिखाई नहीं पड़ता।
मैं एक दार्शनिक प्रश्न उठाता हूँ: यदि आप हिन्दू धर्म में आस्था रखते हैं, तो यह प्रश्न स्वाभाविक रूप से मन में आता है—आखिर जन्मदिन मनाने का आधार क्या है?
हिन्दू धर्म में इस विषय पर दो मत हैं। पहले मत के अनुसार, आत्मा अजर-अमर मानी गई है। आत्मा का न जन्म होता है, न मृत्यु। तो फिर हम किसका जन्मदिन मना रहे हैं और क्यों? भौतिक शरीर तो नश्वर है जो मूलतः महत्त्वपूर्ण नहीं है। महत्त्वपूर्ण तो चेतना है जो आत्मा के रूप में अजर-अमर है।
दूसरे मत के अनुसार, मनुष्य 84 लाख योनियों से होकर गुजरता है, बार-बार जन्म-मृत्यु के चक्र में उलझता और भटकता है। इतने जन्मों के पश्चात किस जन्म का उत्सव मनाना उचित है? यदि मनुष्य जन्म का अवसर मिलना ही उत्सव का कारण है, तो इसके लिए उत्सव तो ईश्वर या उन गुरुजनों का होना चाहिए, जो जीवन का उचित-अनुचित मार्ग हमें सिखाते हैं। इन सब प्रश्नों के कोई स्पष्ट उत्तर न मिल पाने से जन्मदिन मनाने की सार्थकता संदिग्ध प्रतीत होती है।
इसके अतिरिक्त, जन्मदिन मनाने का एक नकारात्मक पहलू यह है कि इससे व्यक्ति में आत्मकेंद्रितता और अहंकार की भावना बढ़ सकती है, जो भौतिकवाद और सामाजिक प्रतिस्पर्धा को प्रोत्साहित करती है। यह भारतीय दर्शन के मूल सिद्धांतों के विपरीत है, विशेष रूप से वेदान्त, बौद्ध और जैन दर्शन के, जो जन्म को संसार के दुखों से जोड़ते हैं। जन्मदिन का उत्सव संसारिक बन्धनों की स्वीकृति है, जबकि इन दर्शनों में मोक्ष या निर्वाण की प्राप्ति हेतु संसारिक बन्धनों से मुक्ति को सर्वोच्च माना गया है।
भारतीय दर्शन के साथ ही कुछ महान भारतीय और पाश्चात्य विचारकों ने जन्मदिन मनाने को लेकर नकारात्मक दृष्टिकोण व्यक्त किया है। इनमें से प्रमुख विचारकों में निम्नलिखित शामिल हैं:-
महात्मा गाँधी, स्वामी विवेकानन्द, रजनीश ओशो, आर्थर शोपेनहावर और सिग्मंड फ्रायड इत्यादि। इन महान व्यक्तित्वों ने जन्मदिन न मनाने के पीछे गहरे दार्शनिक और आध्यात्मिक तर्क प्रस्तुत किए हैं:-
- महात्मा गाँधी: गाँधीजी ने जन्मदिन मनाने को बाहरी दिखावे और व्यर्थ की परम्परा माना। उन्होंने साधारण जीवन और आत्मसंयम पर बल दिया।
- स्वामी विवेकानन्द: विवेकानन्द ने भी व्यक्तिगत जन्मदिन उत्सव को महत्व नहीं दिया। वे मानते थे कि जीवन का उद्देश्य आत्मा की उन्नति और समाज सेवा है। व्यक्तिगत उपलब्धियों का उत्सव मनाने के बजाय, उन्होंने दूसरों की सेवा और विश्व कल्याण पर जोर दिया।
- रजनीश ओशो: ओशो कहते थे कि जन्मदिन मनाने का कोई औचित्य नहीं है, क्योंकि यह व्यक्ति की नश्वरता को दर्शाता है और उसे आत्मा की शाश्वतता से दूर करता है।
- आर्थर शोपेनहावर: शोपेनहावर का जीवन-दर्शन निराशावादी था। उनका विचार था कि जन्मदिन मनाना व्यक्ति के अस्तित्व के दुखों और तकलीफों का उत्सव मनाने जैसा है, क्योंकि जीवन में जन्म के साथ ही दुःख और पीड़ा भी जुड़ जाते हैं।
- सिग्मंड फ्रायड: फ्रायड के अनुसार जन्मदिन जैसे व्यक्तिगत उत्सव व्यक्ति के अहंकार को बढ़ाते हैं और एक नकारात्मक आत्म-केन्द्रितता को जन्म देते हैं। उनका मानना था कि जन्मदिन मनाना व्यक्ति को आत्म-मुग्धता और आंतरिक समस्याओं की ओर ले जा सकता है।
उक्त विचारों को ध्यान में रखते हुए, मैं यह मानता हूँ कि मनुष्य को अपना जन्मदिन मनाने के बजाय उन महापुरुषों का जन्मदिन मनाना चाहिए। जिन्होंने समाज, राष्ट्र और मानव कल्याण के लिए महान कार्य किए हैं। ईश्वर और महापुरुषों के जीवन का उत्सव मनाना कहीं अधिक सार्थक और प्रेरणादायक है, जबकि अपना जन्मदिन मनाने से अहंकार, भौतिकवाद और सामाजिक प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा मिलता है।
मैं जन्मदिन को एक प्रकार की सामाजिक बुराई के रूप में देखता हूँ, क्योंकि इसके बढ़ते भव्य और दिखावटी आयोजनों से सामाजिक असमानता, अनावश्यक खर्च और दिखावे की प्रवृत्ति को बढ़ावा मिलता है। विशेषकर जब एक परिवार दूसरे परिवार की तुलना में अधिक धन खर्च करने या विशिष्टता प्रदर्शित करने का प्रयास करता है। फिर भी, यदि जन्मदिन मनाना ही है तो इसे अत्यंत साधारण ढंग से मनाया जाए और इस उत्सव को समाज सेवा या व्यक्तिगत विकास के अवसर के रूप में देखा जाए।
- प्रतीक झा 'ओप्पी'
चन्दौली , उत्तर प्रदेश kvpprateekjha@gmail.com
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